Friday, September 4, 2015

रेगर समाज अपनी स्वतंन्त्र पहचान नही बना पाया

विकास के दौर मे जहां लोग चांद सितारे छुने की बात करते है वहीं आज भी हम पुराने रीति रिवाजों से जकडे हुये है। विकास के नाम पर सिर्फ और सिर्फ बातें व एक दूसरे पर छिटाकशी के सिवाय कुछ नही।
भारतीय समाज मे रेगर समाज अपनी स्वतंन्त्र पहचान नही बना पाया, रेगर समाज का कई समूह में विभाजित होना। जिसमे कुछ कारण निम्न हैे।
१. सरकारी व गैरसरकारी कामकाजी लोग रोजी रोटी व परिवार को छोड सामाजिक सेवा नहीं देते।
२. शिक्षित नोजवान जिसे पढाई से ही समय नही निकल पाते।
३. धनी, उच्च शिक्षित, उच्च पद आसीन व जागरूक बन्धु अपनी हैसियत बनाने मे व्यस्त है और जो समाज से जुडे वह केवल महासभा के चुनाव तक सिमित रहे।
४. एक तबका रेगर विकास के नाम पर कुछ लोग ऐसे भी है जो केवल साल में एक दिन (दोज) व सामुहिक सम्मेलनो से अपनी राजनेतिक रोटियां सेकने मे मगन है। रेगर विकास से की ए.बी.सी-डी नही पता बस अपना विकास करना जानते है।
५. अशिक्षित बन्धु जो कुछ अपनी बात कहने व समाज का विकास करने में कमजोर हे।
६ आर्थिक स्थिती से कमजोर बन्धु अपनी रोजी रोटी कमाने मे व्यस्त है।
७. संधर्षवान जो कुछ समझता है और करना चाहता है लेकिन उसे किसी प्रकार का साथ नही मिलता और वो हारकर हताश हो जाता है।
लेकिन इसके बावजूद रेगर समाज में कुछ शेर दिल समाज सुधारक ऐसे भी है जो हार नही मानते और समाज को नई उचाईयो पर ले जाने के लिए संघर्ष कर रहे है। हमारे संत समाज सुधारक इसमें अहम भूमिका निभा रहे है, साथ ही समाज के नौजवान समाज को विकासशील बनाने के लिए संघर्ष करने को तैयार है। समाज के सभी संघर्ष कार्य कर्ताओ को मेरा नमन।
आप इस विषय पर अपनी राय रखना चाहै जरूर लिखे।