Friday, December 30, 2016

मज़े के दय्लोक

म दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी हैं। उसका कारण हमारी जनसंख्या है। डेमोक्रेसी में संख्या महत्वपूर्ण होती है। वैसे, गुण महत्वपूर्ण होते, तो हमारी डेमोक्रेसी सबसे गुणवान भी होती। क्योंकि हमारी डेमोक्रेसी सर्वगुणसम्पन्न है। उतनी ही सर्वगुणसम्पन्न, जितनी शादी के लिए दिखाई जाने वाली लड़की होती है। कुछ गुण उसमें होते हैं, कुछ जोड़ दिए जाते हैं। हमारी डेमोक्रेसी में भी कुछ ऐसे गुण जोड़े गये हैं, जिनकी दूसरी डेमोक्रेसी में कल्पना भी नहीं की जाती।

डेमोक्रेसी, विदेशी विचार से उपजी एक राजनैतिक व्यवस्था है। जब डेमोक्रेसी हमारे हाथ लग गई, तो हमने वही किया, जिसे करने में हम लोग माहिर हैं− मिलावट! आप गलत समझ रहे हैं, मिलावट नकारात्मक शब्द नहीं है। मिलावट मेल−मिलाप जैसा शब्द है। जब लोग मिलते हैं तो उसे मेल−मिलाप कहा जाता है। जब चीज़ें मिलती हैं तो उसे मिलावट कहा जाता है। अगर मेल−मिलाप नकारात्मक नहीं है, तो मिलावट कैसे हुआ? खैर, हिंदुस्तानियों ने डेमोक्रेसी के विदेशी विचार में खास हिंदुस्तानी गुण मिला दिये। इस तरह हिंदुस्तानी डेमोक्रेसी का एक खास अंदाज़ में विकास हुआ। इस विकास की तुलना दूध में पानी मिलाने से की जा सकती है। पानी मिलाने से एक बड़ा फायदा होता है। दूध की मात्रा बढ़ जाती है और दूध वाले का आर्थिक विकास होता है। डेमोक्रेसी में मिलावट से नेताओं को भी दूधवाले जैसा ही फायदा होता है। अगर, आप मानते हैं कि दूध में पानी मिलाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, तो आपकी सोच नकारात्मक है। पानी मिला दूध हज़म करना ज़्यादा आसान होता है। हिंदुस्तानी डेमोक्रेसी का हाज़मा भी बहुत अच्छा है। तभी तो बहुत से नेता बहुत कुछ हज़म कर जाते हैं।

डेमोक्रेसी में खास हिंदुस्तानी गुण मिलाने से कई और फायदे हुए। धर्म और जातियां जागृत हो गर्इं। सब जानते हैं हिंदुस्तान अनेक जातियों और धर्मों का देश है। डेमोक्रेसी ने जातियों और धर्मों को विकास दिया। इस विकास से वोट बैंक नामकी संस्था विकसित हुई। वोट बैंक में, बैंक ज़्यादा महत्वपूर्ण शब्द है। बैंक आर्थिक विकास का माध्यम होता है। वोट बैंक से भी आर्थिक विकास होता है। नेताओं का हो गया है। बाकी लोगों का भी कभी न कभी हो जाएगा, अभी थोड़ा सब्र रखिए। विकास एक धीमी प्रक्रिया है। रोम एक दिन में नहीं बना था। जानते हैं, रोम जल्दी क्यों नहीं बना? क्योंकि उसे हिंदुस्तान में बना कर इटली भेजा गया था। हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार के अलावा कोई भी काम जल्दी करना मना है।

हिंदुस्तानी डेमोक्रेसी ने शानदार ध्येय तय किये। उन ध्येयों के लिए शानदार ध्येय−वाक्य बनाये। एक शानदार वाक्य है− सत्यमेव जयते। कुछ लोग यह वाक्य सुन कर हंसते हैं। क्या हंसने वालों ने कभी सोचा है, सत्य कब जीतता है? तब, जब वह असत्य से लड़ता है! यानी सत्यमेव को जयते बनाने के लिए असत्य का मौजूद होना ज़रूरी है। यानी सत्य को कायम रखने के लिए असत्य को कायम रखना ज़रूरी है। हमारे नेता यह सार्थक काम बड़ी कुशलता से करते हैं। हमारी डेमोक्रेसी महान है, क्योंकि इस देश का हर झूठा नेता सत्य का पक्षधर है।

हमारे देश में डेमोक्रेसी की स्थापना करने वाले बड़े दूरदर्शी थे। इसीलिए तो उन्होंने स्पीकर की कुर्सी के सामने बड़ी सी खाली जगह छोड़ी। और, उस खाली जगह को नाम दिया− 'वैल ऑफ़ द हाउस'। जिसे अंग्रेज़ी में 'वैल' कहते हैं, उसे हिंदी में कुआं कहते हैं। हिंदुस्तान में डेमोक्रेसी की स्थापना करने वालों ने यह कुआं क्यों बनाया? क्योंकि वे जानते थे कि एक दिन ऐसा आएगा, जब देश के नेता कुएं में कूदा करेंगे। वैसे, जब कोई नेता कुएं में कूदता है तो अकेला नहीं कूदता। उसके धक्के से देश का वह हिस्सा भी कुएं में जा गिरता है, जिसका नेता प्रतिनिधित्व करता है। नेता कुएं में क्यों कूदते हैं? क्योंकि नेता अच्छे तैराक होते हैं। क्या हमारा देश भी अच्छा तैराक है? क्या यह देश तैरना जानता है? किसी दिन ऐसा न हो कि कुएं में कूदे नेता, और डूब जाए देश। हमारे देश की डेमोक्रेसी में अब कुछ भी असंभव नहीं लगता।
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लोकतांत्रिक देश में चुनाव ही जनता का सबसे बड़ा त्योहार होता है। जनता इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेती है और वह अपने देवता का निर्धारण करती है। इसके बाद वह हर क्षण, हर पल उस देवता की ओर आस भरी नजरों से देखती रहती है कि वह किस ओर कदम बढ़ाता है। सरकार यानी लोकतांत्रिक देवता के कदम दो ही प्रकार के होते हैं-एक ढीला कदम और दूसरा कड़ा कदम।
जो कदम कभी उठाया नहीं जाता है वह हमेशा ही कठोर होता है और जो उठा लिया जाता है वह ढीला। अब यह समझने वाली बात है कि कठोर कदम को क्यों नहीं उठाया जाता है। भई वह कदम कठोर होगा तो स्वाभाविक ही है कि वजनी भी होगा और वजनी कदम को उठाने की बजाए ढीला यानी हल्का कदम उठाना ही बेहतर होता है। क्योंकि इसे उठाने में कोई जोखिम नहीं लेना पड़ता है।
जनता किसी भी मुद्दे के सामने आने पर सरकार से यह अपेक्षा रखती है कि सरकार कड़ा कदम उठाएगी। जनता और विपक्षी भी इसके लिए निवेदन करते हैं। तथाकथित ज्ञानी वर्ग भी सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार को लताड़ता है कि कड़ा नहीं तो कम से कम ढीला कदम ही उठा लिया जाए। सरकार भी सबकी सुनते हुए इन सबसे आगे निकल जाती है। वह न केवल अपने दोनों कदम उठाकर उस मुद्दे तक पहुंचती है, बल्कि वह मुद्दे के बीच में कुण्डली मारकर बैठ जाती है। इससे विरोधी तो चुप हो ही जाते हैं, जनता को भी यह संतोष हो जाता है कि चलो सरकार ने कदम तो उठाया है। 
चुनावी हार का दंश झेल चुके विपक्ष को तो जैसे अनर्गल प्रलाप से ही मतलब है। वह सरकार के बैठने को ही ढीला कदम और नौटंकी बतला देता है व सारा दोष सरकार पर ही मढ़ देता है। वह घटना में सरकार के शामिल होने की बात करता है और घटनाकारी व्यक्ति को सरकार के सहयोगी जैसी टोपी और हॉफ पैंट फोटोशॉप के द्बारा पहना देता है।
वे रोज ऐसी फोटो मीडिया के सामने लाकर सरकार को जनता के सामने नंगा करने का असफल प्रयास करते हैं।
सरकार ने घटना के सभी पहलुओं को उजागर करने व उनकी विवेचना करने के लिए एक सदस्यी आयोग का गठन किया। लोगों को सरकार के इतने महत्वपूर्ण कदम से भी एलर्जी है। देखिए न कितनी तत्परता से सरकार ने मुआवजा बांटने की घोषणा की, खुद जाकर पीड़ितों के बीच बैठी और सबसे महत्वपूर्ण बात जांच के लिए शीघ्र ही आयोग बिठा दिया। यह बात अलग है कि देश में अब तक बैठाए गए सभी आयोग बैठे ही रहे हैं, खड़े नहीं हो सके हैं। लोग इसमें भी बुरा मान जाते हैं कि आयोग क्यों बिठाया है जब वह खड़ा ही नहीं हो पाता तो भाई कोई उनको समझाओ न कि जिसे एक बार बिठा दिया उसे दोबारा खड़ा करने से सरकार की बेइज्जती न होगी। सो सरकार भी उसे खड़ा होने के लिए नहीं कहती है। 
लोग बेमतलब ही सरकार से सीबीआई जांच की दिशा में कदम बढ़ाने को कहत्ो हैं। सीबीआई के जिम्मे पहले से ही ढेर सारे मामले हैं। जिनमें वह बारी-बारी से कदम बढ़ाती है। इतना बड़ा देश और बेचारी एक सीबीआई जिसकी मांग चारों ओर से हो रही है। एक जगह पहुंचकर वह मामले को ठीक से सुन भी नहीं पाती है कि दूसरा सीबीआई जांच के लिए दहाड़ मार-मार कर रोने लगता है। सीबीआई दौड़ी-दौड़ी वहां पहुंचती भर है कि तीसरा चिल्लाने लगता है। सीबीआई एक मामले से दूसरे, तीसरे, चौथ्ो... सौवें तक इसी तरह दौड़ती भर रह जाती है बेचारी जांच कुछ भी नहीं कर पाती है। सरकार ने इसी दूरदृष्टि का उपयोग करते हुए सीबीआई को सारे मामले से दूर ही रखा है।
ऐसे में भला सीबीआई जांच के आदेश न देने के इस महत्वपूर्ण कदम को ढीला कैसे माना जाएगा? सरकार ने सोच-समझकर ही सीबीआई जांच की बजाए एक सदस्यी आयोग का गठन करने का कदम उठाया है। जो अति महत्वपूर्ण भी है। भाई यह कदम पहली बात तो अकेला है। चूं-चपड़ और खटर-खटर से बिल्कुल मुक्त रहेगा और दूसरी बात यह कि इसे चूंकि अकेले चलना है तो दूसरे का इंतजार करने की झंझट से भी दूर है। विरोध करने वाले इसे सरकार का लंगड़ा कदम कह रहे हैं। शायद उनको मतिभ्रम हो गया है, इसीलिए वे ऐसी बातें कर रहे हैं। वे सरकार को जनहितैषी होने के बजाए जनविरोधी बतला रहे हैं।
हमारा चुनावी इतिहास गवाह है कि कोई भी सरकार बुरी या जनविरोधी नहीं होती है। सरकार पर बेकार ही स्वार्थपरक राजनीति करने और अपनों को बचाने के आरोप लगाए जाते हैं। हर सरकार जनता से अच्छे चुनावी वादे कर सत्ता में आती है और दोबारा चुनाव के समय अपना स्वर्णिम रिपोर्ट कार्ड भी तो जनता के सामने प्रस्तुत करती है। जब वह ऐसा करती है तो भला बुरी कैसे हो गई?
सरकार के कदमों की आलोचना करने वाले सरकार के कदम उठाते ही तिलमिला उठते हैं कि हमने ऐसा नहीं किया। सरकार ने हम पर ये आरोप जनता का ध्यान भटकाने के लिए लगाया है। जनता किस पर भरोसा करे? कौन सही है और कौन बुरा? ये सब शोध के विषय हैं। सबसे बेहतर तो यही है कि हम सरकार को अपना काम करने दें, विपक्ष को अपना और बेकार की बातों को छोड़कर खुद अपने कामों में लग जाएं। इनकी बातों में कान न दें। वास्तव में आरोप-प्रत्यारोप ही इनके सबसे कड़े कदम होते हैं।
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ज्यों ही अखबारों में यह खबर छपी कि शिच्छामित्रों को अ से ज्ञ तक कहना नहीं आता, वे एक से सौ तक गिनती नहीं बोल सकते, उन्हें पता नहीं कि उनके राज्य का मुख्यमंत्री कौन है तो यह हृदय विदारक खबर सुन अपने मुहल्ले के शिक्षा को पूरी ईमानदारी से ताजिंदगी समर्पित रहे शास्त्री जी को अचानक दिल का दौर पड़ा और वे वेतन भोगी से सीधे फैमिली पेंशन जोगी हो गए।
ज्यों ही वे यमराज के दरबार में पहुंचे तो वहां यमराज का चेहरा तमतमाया देख उनके पसीने छूट गए मानो हैडमास्टर साहब को देख लिया हो । यमराज का चेहरा डीईओ की तरह तमतमा रहा था। 
यमराज को पता नहीं कैसे पता चला था कि अपने शिच्छामित्रों ने सरकारी स्कूल के बच्चों का बेड़ा गर्क करके रख दिया है। वे और तो सब कुछ करते हैं, पर उनका जो काम है, बस उसे ही नहीं करते। वे और तो सब कुछ हैं, पर शिच्छामित्र नहीं हैं। शास्त्री जी को सामने देख वे औरों को डांटना छोड़ उन पर पिल पड़े, ‘ क्यों शास्त्री जी! मन तो करता है तुम लोगों का वेतन ही बंद कर दूं पर ..... ये मैं क्या सुन रहा हूं? यार! हद हो गई! शिच्छामित्र कहलाते हो, शिक्षा के नाम की पूरी कचैरी खाते हो और शिच्छा को ही चूना लगाते हो? यार, सच कहूं , तुम लोगों के अपना तो नाक है ही नहीं, पर तुम लोगों ने तो शिच्छा विभाग की नाक भी कटवा कर रख दी। बच्चों के मां बापों की तरह मेरा भी तुम लोगों से मन इतना खट्टा हो गया कि......’
यमराज का चेहरा गुस्से से लाल होता देख शास्त्री जी ने दोनों हाथ जोड़ यमराज से सानुनय कहा,‘ प्रभु! यात्रा में पैदल चलते - चलते थक गया हूं। बहुत प्यास लगी है। दो घूंट पानी दे दो तो ....यमराज ने पास खड़े वाटर कैरिअर को इशारा किया तो उसने चिढ़ते हुए गिलास में पानी भर शास्त्री जी को दिया। शास्त्री जी पानी पीने लगे तो यमराज ने गुस्से में ही कहा,‘ पर तुम्हें लाने के लिए तो हमने विशेष विमान भेजा था। मास्टर चाहे कैसा भी हो, पर समाज और मेरी नजरों में वह गुरू ही है। तुम उसमें नहीं आए क्या?’
‘नहीं हुजूर! मैं तो पैदल आ रहा हूं।’
‘तो उस विमान में कौन आया देवदूत?’ यमराज ने गुस्साए हुए देवदूत से पूछा तो देवदूत ने सिर झुकाकर कहा,‘ महाराज! हम इन्हें विमान में चढ़ाने ही वाले थे कि तभी अचानक एक अफसर पता नहीं कहां से आ धमके और पता नहीं कहां जाने के लिए जबरदस्ती विमान में सवार हो गए।’
‘ तो तुमने उन्हें बताया नहीं कि ये विमान उनके लिए नहीं, इनके लिए है और यमपुरी जा रहा है?’
‘कहा तो बहुत सर , पर वे नहीं माने। हम पर गुस्सा होते बोले ,‘ विमान चाहे काई भी हो, उसमें बैठने का पहला हक अफसर का होता है और दूसरा नेता का।’
‘ कहां है वह कंबख्त अफसर? उसके दर्शन तो कराओ?’
‘सर, उसे तो हमने नरक में आपके सम्मुख लाने पहले ही उतार दिया।’
‘गुड! तो अब कहो शास्त्री जी ये मैं क्या सुन रहा हूं आपकी बिरादरी के बारे में?’
यमराज की ओर से आए प्रश्न पर कुछ देर तक शास्त्री जी वैसे ही कुछ कहने के लिए हिम्मत बटोरते रहे मानो वे अपने महीने में एक बार स्कूल आने वाले अपने हैडमास्टर साहब के आगे कहने की हिम्मत बटोर रहे हों , ‘प्रभु! माना दीपक तले अंधेरा बढ़ता जा रहा है। मशालची बुझी मशाल लिए अंधेरे से लड़ने का स्वांग कर रहा है। पर प्रभु! इसमें गलती हमारी नहीं, व्यवस्था की है।’
‘कैसे?’ यमराज चैंके। सभा में यह सुन सन्नाटा!
‘ वह ऐसे प्रभु कि इन दिनों असली शिक्षक चुने ही कहां जा रहे हैं? कहीं नेता के पोस्टर लगाने वाले शिक्षक हो रहे हैं तो कहीं चुनाव में उनका प्रचार करने वाले। कहीं चयन बोर्ड का भतीजा शिक्षक हो रहा ह,ै तो कहीं बेटा। जब जंगल में लकड़ियां चुनने वाले चावल पकाने लगेंगे तो ऐसा ही होगा।’
‘ भतीजे- बेटेे का क्या? कम से कम अपने प्रधानमंत्री का नाम तो पता होना चाहिए। अपने राष्ट्रपति का नाम पता होना चाहिए , वर्तमान नहीं तो भतपूर्व ही सही।’
‘सर, एक बात कहूं जो बुरा न मानो तो?’
‘कहो?’ यमराज का गुस्सा कुछ शांत होने लगा।
‘किसीको क्या लेना प्रधानमंत्री से, क्या लेना राष्ट्रपति से, उनके लिए तो वे ही उनके आजीवन प्रधानमंत्री हैं, राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने उन्हें मलाई मित्र बनाया। जब ज्ञान की उपासना वाले कुर्सियों की पूजा करने लग जाएं तो ऐसा ही होता है प्रभु। ’
‘ तो अब?’ अब यमराज असमंजस में।
‘प्रभु! गुस्सा कर क्यों अपना बीपी बढ़ा अपना दिमाग खराब करते हो मेरी तरह। आपको कुछ हो हवा गया तो... मेरे घरवालों को तो पेंशन लग गई आपके घरवालों को तो वह भी नहीं लगने वाले। अब वहां न गुरू सुधरने वाले, न चेले। अब न नीम गुणकारी रहे, न करेले। जय शिच्छामित्र!’ शास्त्री जी ने सहज कहा तो यमराज अपने सिंहासन से उठे और शास्त्री जी के सादर चरण छू लिए।
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देश में रसास्वादन करने की परम्परा सदियों पुरानी है। साहित्य, संगीत, कला जैसी विधाओं में रस लेने वाले रस मर्मज्ञ कहे जाते हैं जबकि सौंदर्य, मादकता और कुछ अन्य प्रकार के रस पान करने वाले रसिक। हालॉकि रसिकों की संख्या हमेषा ही ज्यादा रहती है। उधर, किसी जमाने में जितना रस बहा करता था, वो भी अब कम होता जा रहा है। राजषाही जमाने के रसिकों मे स्वयं को रस मर्मज्ञ दिखाने और कहाने का जुनून सा होता था। इसलिये उनके दरबारों में अंगरक्षकों से भी बड़ी कलाकारों की फौज होती थी। उस समय में रसों के जो तालाब-पोखर और बावड़ी खोदे गये, वो समय के साथ सूखते चले गये और अब तो इन विधाओं का वाटर टेबल बहुत ही नीचे जा चुका है, तकरीबन रसहीन होने की कगार पर। वहीं रसों की गुणवत्ता में भी बहुत फर्क आया है। जहां कहीं से साहित्यिक रस बरसने की उम्मीद बंधती है तो नीरस सी एसिड-रेन्स होकर रह जाती है।
बहुत मुष्किल से चुल्लू भर रस सामने दिख जाये तो उसकी पृष्ठ भूमि गन्ने की चरखी वाले के असीम परिश्रम से निकले उस रस की तरह होती है, जिसे वह अध-पके गन्ने के कई बार निकाले गये छूंछ को फिर-फिर ठूंस कर निकालता है। आज-कल लेखकों के बीच यह अक्सर हो रहा है कि छूंछ का ही बार-बार दोहन कर रस की निष्पत्ति की जा रही है। ऐसे नीरस माहौल में मधुर रस की उम्मीद कैसे की जाये, समझ नहीं पड़ता। फिर भी आइये प्रिय रस मर्मज्ञों और रसिक महानुभावों! आज हम साहित्य के नौ प्लस एक रसों के आधुनिक संदर्भ ढूंढे। या कहें कि आधुनिक घटना संदर्भों में साहित्य के स्थापित रस तलाष करें।
नीरस से लगती घटनाओं में रस का उदाहरण है-‘‘एक युवती, दिल्ली की सड़कों से अकेले निकलकर, रात ग्यारह बजे अपने घर जा पहुॅची।’’ बताइये इसमें कौन सा रस है। शायद आप सोच रहे होंगे कि कर दी न फिर एक नीरस सी बात। लेकिन, जरा गौर से देखिये, यह उदाहरण है-अद्भुत रस का। आज के हालातों में अगर दिल्ली जैसे महानगर की लड़की रात को अकेले सुरक्षित घर पहुॅच जाये, मैं तो इसे विस्मय की सीमा में ही बांध रहा हूॅ, तमाम लोगों को यह चमत्कार से कम नहीं लगेगा। इस रस के और भी ताजे उदाहरण हो सकते हैं-‘‘ नई बनी हुई सड़क एक महीने तक न तो खुद उखड़ी और न ही नालियां और केबल लाइन के लिये खोदी गई।’’ं........... इसी तर्ज पर अगला उदाहरण है-‘‘ शहर में आज हुई दुर्घटनाओं में एक भी इंजीनियरिंग, एमबीए या मेडीकल स्टूडेंट शामिल नहीं है।’’..
अब देखिये, हास्य रस का उदाहरण। उस वाले हास्य रस का नहीं जिसे आजकल टीवी पर पेला जा रहा है, जिसमें डायलाग मुंह से फूटने से पहले ही कामेडी शो के जज जोर-जोर से हंसने लगते हैं। मैं तो जन संदर्भ में हास्य की उत्पत्ति का नया स्त्रोत आपको बता रहा हूॅ।
समाचार है-‘‘सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की गिरती कीमतों को देखते हुए पैट्रोल की कीमत में 15 पैसे प्रति लीटर कम करने की घोषणा की। यह कटौती रात 12 बजे से लागू होगी।’’
अगला उदाहरण शान्त रस का है इसलिये बहुत शान्त मन से सुनियेगा- ‘‘भारतीय जवान का सिर काटकर ले गये पाकिस्तानी फौजी, लेकिन हम जवाबी कार्यवाही नहीं करेंगे।’’
करूण रस के लिये भी इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि-‘‘एक गरीब के लड़के ने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमीषन ले लिया।’’................ एक और मिसाल में भी दम है-‘‘एक सरकारी अधिकारी के यहां आयकर छापे में तीन हजार करोड़ की अवैध सम्पत्ति मिली।’’............. बेचारे धनी की गाढ़ी कमाई पर पानी फिर गया।
वात्सल्य रस के अच्छे उदाहरण भी मेरे पास हैं-‘‘आतंकवादियों से शान्ति वार्ता जारी रखी जायेगी।’’ इससे जुड़ा दूसरा उदाहरण है-‘‘कसाब की बिरयानी पर लाखों का खर्च।’’ और इसी तरह जब कोई विपक्षी पार्टी का नेता अपने युवा समर्थकों की हौसला अफ़जाई करता है-‘‘हमारी पार्टी सत्ता में आई तो आपके ऊपर चल रहे सभी मुकदमे वापस ले लिये जायेंगे।’’
इसी से जुड़ा हुआ है, भक्ति रस-‘‘वे जब चाहे प्रधानमंत्री बन सकते हैं।’’ और ‘‘मैं जानता हूॅ कि वे और उनके लोग चोर हैं, ब्लेक मैलर हैं, भ्रष्ट हैं किन्तु मैं उनके खिलाफ न तो कुछ बोलूंगा और उनसे समर्थन भी वापस नहीं लूंगा।’’
श्रृंगार रस का नज़ारा देखने के लिये विधान सभा में नीली फिल्म देखते पाये गये जन प्रतिनिधियों वाला समाचार काफी है। यह फिल्मी धुन के भजनों पर थिरकते बाबा और उनकी ढेर सारी बाबियों या चेलियों के रंगीन परिदृश्य से भी अधिक संगीन है।
वीर रस के कुछ अच्छे उदाहरण भी आपके पेशे नज़र हैं-‘‘ एक राष्ट्रीय स्तर के नेता ने गरीब किसान के घर खाना खाया।’’ हालॉकि अगर वे उसके घर का पानी भी पी लेते तो मेरी अपनी राय में यह महावीर रस होता। एक और उदाहरण है जो वीर रस नहीं तो कम से कम निडर रस की श्रेणी का हक तो रखता ही है। यह है ‘‘ डालर के मुकाबले, रूपया दो पैसे चढ़ा।’’
इसके बाद यदि वीभत्स रस की चर्चा न की जाये तो रस शास्त्र अधूरा ही रहेगा। एक बड़ा उदाहरण यह होगा कि ‘‘पवित्र नदी का जल आचमन करने के बाद उस जल की विष्लेषण रिपोर्ट देख ली।’’ वीभत्स रस का एक अन्य उदाहरण है-‘‘एक महन्त जी, किसी फिल्मी हिरोइन के साथ लीलारत पकड़ाये।’’ यहां अगर एक या दोनों ही पात्र अलग केटेगिरी के होते तो इस रस का स्वाद किसी और रूप में लिया जा सकता था। लेकिन महन्त और हिरोइन के रूप रंग की कल्पना की जाये तो यह श्रृंगार तो हो ही नहीं सकता।
रौद्र रस के अनेक उदाहरण भी आपको रोज ही मिलते हैं लेकिन इस रस की उत्पत्ति के दो मुख्य स्त्रोत आजकल बहुत सामान्य हैं-‘‘किसी षिक्षक ने शरारती बच्चे को उॅगली उठा दी।’’ बस अब परषुराम स्कूल में अवतरित होने ही वाले हैं। इसी तरह ‘‘किसी अधमरे का आपरेषन अस्पताल में हुआ और वह रोकते-रोकते भी खुदागंज को निकल पड़ा....’’ इसके आगे जो होने वाला है, उसकी रसानुभूति आप खुद कर सकते हैं।
खैर, ये तो रहे वो रस, जो नीरस में से हमने ढूंढ निकाले। पर कुछ ऐसी भी घटनाएं हैं जिनमें निकले रस को कौन से लेबल की बाटल में भरा जाये, मुझे खुद समझ नहीं पड़ रहा। जैसे कि खबर है-‘‘सनी लिऑन, एनर्जी ड्रिंक का विज्ञापन करेंगी।’’ अब आप ही बताइये, यह श्रृंगार रस है, वीर रस या हास्य रस ? ‘‘आंगन बाड़ी के बच्चों को परोसे जाने वाले दलिये में इल्लियां और कॉक्रोच निकलना या कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल में छिपकली निकलना’’ यह श्रृंगार रस है या वीभत्स रस ? ‘‘एक बलात्कारी और हत्यारे का जेल में आत्म हत्या कर लेना’’, करूण रस है, रौद्र या शान्त रस ? ‘‘एक बददिमाग़ और अनचाहे मेहमान का गर्मजोषी से स्वागत किया जाना’’, यह रौद्र रस है, हास्य, शान्त या करूण रस ? ‘‘करोड़ों रूपये के घोटालों को छोटा बताना और गरीबों के सब्जी तथा फल खाने को मंहगाई बढ़ने के लिये दोषी बताना’’ यह वीर रस है, हास्य, करूण या रौद्र रस ? ‘‘सूखे तालाबों को भरने के लिये पेषाब का विकल्प बताना और बिजली की कमी को आबादी बढ़ने का खास कारण बताना’’ हास्य है, रौद्र, श्रृंगार या करूण अथवा वीभत्स रस ? मैं बहुत कन्फ्यूज़्ड हूं दोस्तों, बिना इस कन्फ्यूज़न से कोई रस निकाले, कृपया मेरी मदद करें।

Wednesday, December 28, 2016

पत्रकारिता जगत में असामाजिक तत्वों के प्रवेश से चिंतित केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय

*प्रैस कार्ड बेचने वालों पर दर्ज होगा अपराधिक मामला*
पत्रकारिता के गिरते स्तर तथा पत्रकारिता जगत में असामाजिक तत्वों के प्रवेश से चिंतित केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा समाचार पत्रों के पंजीकरण, समाचार पत्र/पत्रिका व टीवी चैनल तथा न्यूज एजेंसी द्वारा जारी प्रैस कार्ड के लिए नियमावली तैयार की जा रही है तथा मौजूदा नियमावाली में संशोधन किए जाने पर गंभीरता से मंथन चल रहा है।
मिली जानकारी के अनुसार देशभर में बढ़ रहे अखबारी आंकड़े और पत्रकारों की बढ़ रही संख्यां से पाठकों की जागरूकता में वृद्धि हुई है। वहीं कुछ ऐसे चेहरों ने भी पत्रकारिता जगत में दस्तक दे दी है, जिसके कारण पत्रकारिता पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए है।
*पत्रकारिता क्षेत्र में होगी शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य*
बता दें कि समाचार पत्र, पत्रिका के पंजीकरण के बाद प्रकाशक व संपादक एक-दो अंक प्रकाशित कर अनगिनत लोगों को प्रैस कार्ड जारी कर देते है, जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं होता। ऐसे चेहरों की बदौलत पत्रकारिता पर जरूर उंगलियां उठती है।
हर गावं शहर मे कुछ तथाकथित पत्रकार या समाचार पत्र मालिको ने कुछ लोगो को पैसे लेकर प्रेसकार्ड जारी कर रखे है जो पुलिस एवं टोलटेक्स नाको पर धोंस जमाते है।
एेसे तथाकथित पत्रकारो से असली पत्रकार भी परेशान हो रहे है ।
पुलिस, प्रशासन एवं टोलटेक्स नाके वाले असली नकली मे फर्क नही कर पाते है।
अब इस नियम के लागू होने पर तथाकथित फर्जी पत्रकारो से पुलिस प्रशासन पुछताछ कर उन सरगनाओ तक पहुचं सकेगी जिन्होने पैसे लेकर प्रेसकार्ड जारी कर रखे होगा
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय समाचार पत्र, पत्रिका के पंजीकरण के लिए आवेदक की *शैक्षणिक योग्यता पत्रकारिता में डिग्री की शर्त को अनिवार्य करने जा रहा है।*
समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद कर सकती है केंद्र सरकार
दैनिक समाचार पत्रों, न्यूज एजेंसियों व टीवी चैनल के रिपोर्टर के लिए संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट की स्वीकृति उसकी पुलिस वैरीफिकेशन होने उपरांत जिला सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा प्रैस कार्ड तथा प्रैस स्टीकर जारी किए जाने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
अन्य समाचार पत्र, पत्रिकाओं के प्रकाशक व संपादक का प्रैस कार्ड सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किया जाएगा।
*सरकारी तंत्र द्वारा जारी प्रैस कार्ड व प्रैस स्टीकर ही मान्य होंगे।*
केंद्र सरकार द्वारा उन समाचार पत्र व पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद किया जा सकता है जिन्होंने पिछले तीन वर्ष से अपनी वार्षिक रिपोर्ट जमा नहीं करवाई।
*प्रैस कार्ड बेचने वालों पर दर्ज होगा अपराधिक मामला*
चर्चा तो यह भी है कि किसी भी क्षेत्र से अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने वाला दैनिक समाचार पत्र, न्यूज चैनल, न्यूज एजेंसीज को प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए जिला मैजिस्ट्रेट को आवेदन करना होगा, जो जिला सूचना व संपर्क अधिकारी की तस्दीक उपरांत स्वीकृति प्रदान करेंगे।
जिला सूचना व संपर्क अधिकारी अपनी रिपोर्ट में दर्शाएंगे कि अमूक दैनिक समाचार पत्र, न्यूज चैनल, न्यूज एजेंसीज को इस क्षेत्र से प्रतिनिधि की जरूरत है।
संशोधित नियमावाली के चलते प्रैस कार्ड की खरीदों-फरोख्त तथा प्रैस लिखे वाहनों पर सरकारी तंत्र की नजर रहेगी। तथ्य पाए जाने उपरांत अपराधिक मामला कार्ड धारक, कार्ड जारी करने वाले हस्ताक्षर तथा प्रैस लिखे वाहन के मालिक पर दर्ज होगा।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की इस संभावित योजना पर अमल होने से पत्रकारिता का मानचित्र बदल जाएगा।
*क्या कहती है पुलिस:..*
हम खुद प्रेस कार्ड वालो से परेशान है कैसे पता किया जाये की कौन सही पत्रकार है और कौन फर्जी इसके लिये जैसे ही आदेश आते है प्रेस लिखे सभी वाहनों की जाँच की जायेगी और जो भी सूचना जनसम्पर्क विभाग की लिस्ट मै नही होगा उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा।

लेखनी

गिरने  के दर डर  से क्या चलना छोड़ दे ?
मरने के डर से क्या जीना  छोड़ दे ?
हारने  के डर  से क्या खेलना छोड़ दे?
असफल होने के दर से काम हाथ में लेना छोड़ दे ?


                                                नहीं ना  । तो फिर देर किस बात की । आइए चले एक नई  मंज़िल की ओर ,नए जीवन की ओर ,नए खेल की और नए काम की ओर  । एक नए युग की शुरूआत के लिये । 


ठीक है, मैं फिर हार  जाऊँगा ,गिर जाऊँगा ,मर जाऊँगा । लेकिन मै फिर उठूँगा और पूरी उर्जा पूरे जॊश से ,कहूँगा ,लो,"मै फिर तैयार हूँ "। नए जीवन के लिये । नए युग की शुरूआत के लिये । 


"हमारे सोच में ,हमारे काम में आशा की सरिता बहे। हमारी सोच एक धनात्मक उर्जा से पल्लवित हो। हम निरंतर गतिशील बने ,मर्यादित हों । हममे ,भोर के सूरज की आभा हो ,चंद्रमा की शीतलता हो ,धरती का धैर्य हो ,विचारों में समंदर की गहराई  हो । " देखिये ! हम फिर तैयार हैं ,एक नए जीवन के लिये । 


                                                मैं जानता हूँ ,मैं फिर गिर जाऊँगा ,सूरज की तरह । उस अमावस  में फिर खो जाऊँगा ,चंद्रमा की तरह । पतझड़ मे  पत्तों  की तरह । 



लेकिन मुझे पता है ,मै  फिर आऊंगा ,फिर से उगते सूरज की तरह ,पूर्णिमा में चंद्रमा की तरह ,बसंत में फूलों  की तरह ,सावन में धरती की प्यास बुझाने । नए जीवन की शुरुआत के लिए !


मैं जानता हूँ , सूरज की तरह मैं गति के नियम से बंधा नहीं हु ,ना  ही मैं सृष्टी  के समय चक्र से बंधा हूँ । मैं स्वतंत्र हूँ । तो फिर ,मेरे निर्णय गलत हो सकते हैं । मैं रास्ते से भटक सकता हूँ । तो फिर क्या ?........................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................
                       "मैं आऊंगा नए रास्तों  के तलाश के लिए ,नए युग की शुरुआत के लिये  । "

मैं अपने आप को या बहुत  सारे देश वासिओं को देश के कुछ हिस्सों में सुरक्षित महसूस नहीं कर पता ये मेरे देश की विफलता है । 
                            और मैं  देश को इस लायक नहीं बना पाया ये मेरी विफलता है । 


धार्मिक असुरक्षा का माहॊल है देश में ,मुझे दुःख है ,ये हमें विरासत में मिला है और  हम  देश वासी  अब भी इसे ढो रहे हैं । 

                         मेरे देश में अब भी रोटी की समस्या है ,और मुझे अपनी रोटी लहू से सनी नज़र आती है । 


खेल कोई हो हम हर वक़्त पिछड़े हैं ,मुझे दुःख है मैंने किसी को खेल में नहीं हराया । 

                          जुल्म की हदे कई जगह टूटी ,और जिमेद्दार लोग पीछे भागते रहे । 
                           और  भ्रस्टाचार ने मेरी नींद लूट ली है ।  
आतंकवादी हमलो से देश जूझता रहा ,सरकारे बिकती रही घोटाले होते रहे ,और हम देश वासी नपुंसक लोकतंत्र ढोते  रहे । 
                 ये मेरी विफलता है मैं इसे मजबूत नहीं बना पाया । 

मेरे  दोस्तों ,मै आपको  एक कहानी  सुनाता हूँ ।और कहानी  सुनाने से पहले कहानी की भूमिका ........
शायद आपको याद हो,जब आप बचपन में नींद से जाग जाते या देर रात तक नींद नहीं आती थी या फिर गाँव में जाड़े  की रातो में  अलाव को घेर बैठे अपनी दादी -नानी से कहानी सुनाने  की  जिद करते थे तो कहानी आपके लिए एक नींद की गोली हुआ करती थी ।रोमांच से भरी..............
                                                                   
                                                                        आज  बैरेन नींद ने मेरे  साथ धोखा किया ,और  किसी के साथ सोई है ।मेरी निगाह ढूंढ़ रही  है कहानी  सुनाने वाली दादी की ।लेकिन आज मै खुद दादी की भूमिका मे हूँ । लेकिन बैचेनी में .........।मै आपको कहानी सुनाता हूँ   ,गूंगे अंधे और बहरे भारत की .............।

कहीं धमाके हुए ,कुछ निर्दोष मरे। कई घायल । कुछ गंभीर रूप से घायल । कुछ  सरकारी सम्पतिओं का नुकसान । लाश से भर गए अस्पताल ।कराहती रही, कहीं ममता । कुछ टूटी चूड़ियों की खनखनाहट ।कही सर्द पड़ी लाशें । पास में चीखता मासूम।.कुछ सपने टूटे । कुछ घरोंदे बिखरे ।कुछ घोसले लापता ,कुछ कबूतर और कुत्ते  भी।...........

एक आताताई पकड़ा गया, जिन्दा।पुलिस पकड़  कर ले गई उसे तफ्तीश के लिए .....।चार साल बाद उसे सजा मिली मौंत की।.........आज तक इंतजार मे  है .....वह । 
    ....................................        इसी बीच मेरा गूंगा भारत खड़ा है वहाँ .........................

फिर कुछ घोटाले हुए ,अरबो के ।हर घोटाले के नाम  अलग -अलग ।और इन ऐतहासिक घोटालों को सामान्यं ज्ञान  का प्रशन बनाकर भिन्न -भिन्न परीक्षओं मे पूछा जाता है आजकल ।गरीबी  रेखा मुकर्र की गई  तीस तीस रुपये ,और गरीब चालीस करोड़ ......।एक गरीब  इन्ही घोटालो के नाम ,पार्टी ,नेता  याद याद करके किसी प्रतयोगी परीक्ष।में गया लाखों की भीड़ में .....  अपने रोटी के सपने में ......।
करोड़ टन अनाज सड़ गए ,घोटालो की भेंट चढ़ गए .....।

और गरीब रोटी ,मकान के सपने में दम तोड़ गया ..,किसी हाई-वे  के बीच ..............।कुत्ते ने भी नहीं पूछा इन लाशों का हाल ।चील और कौवों  भी नहीं मंडराये ....।क्योंकि चील ,कुत्ते,और  कौवों को भी पता था ,इनमे सिवाए हड्डी के कुछ नहीं है ।गरीब आदमी की गरीब लाश ।हुँह ............।
  ....................................        इसी बीच मेरा अँधा भारत खड़ा है वहाँ .........................

फिर कुछ चीखें ,कुछ मदद की । चीखें थी धार्मिक उन्माद में घायल लोगो की ....।या फिर सिसकियाँ थी कुछ अपमानो की ,टूटे अरमानो की .......।कुछ   व्यवस्था  से त्रस्त  चीखें ......।कही अलगाव वादिओं  के जुल्म की चीखें ।
कहीं अपनों से अपनों की लड़ाई की चीखें ..........।
चीखें इतनी गहरी थी की बहरा हो गया "भारत"  ...........
  ....................................        इसी बीच मेरा बहरा  भारत खड़ा है वहाँ ......................... 

                                            " अंतिम दृश्य "
जो आताताई   पकडे  गए ,सजा मिली मौंत की  उसे ।फांसी पर  चढाया गया उसको । पर रस्सी टूट गई ,क्योंकि भ्रष्ट व्यवस्था ने कमजोर रस्सी खरीदी थी ,या फिर जेल की रस्सी घोटाला  से एक और घोटाला नाम अस्तित्व  में आया ।................
इस तरह अजमल कसाब ,अफजल गुरु .........वगैरह -वगैरह बिरयानी खाते गणतंत्र दिवस 2050 का इंतजार कर रहे  है ,क्योंकि सदभावना के तहत यही तारीख मुकर्र की गई है ,इनकी रिहाई के लिए ....................

और जो नेता घोटालो में थे ,कुछ  को दलितों का मसीहा(मा ), गरीबों का मसीहा (ला ),धार्मिक मसीहा (मु ,दि ,न )(मैंने  किसी  धर्म का नाम  नहीं लिया  नहीं तो मेरे ऊपर धार्मिक विद्वेष फै लाने  का आरोप  लगेगा ).....इत्यादि  के नाम पार्क ,स्मारक और मूर्तियाँ लगवाई गई ।क्रमशः ये भारत के नये रत्न घोषित किये गए ........................................।

और  चीखें अब भी जारी है.......................। शोर बढ़ता जा रहा है .........।हाहाकार ......................।चीत्कार ......................।चीख -पुकार................।सिसकियाँ ..................।हिचकियाँ ....................। बस शोर बढ़ता  जा  रहा  है ...............।
.................     और  मेरा  अँधा बहरा गूंगा भारत   अब भी  खड़ा है वहां  ................

बाल अपराध

यूँ तो कहा जाता है कि बच्चे मन के सच्चे होते है . उनका निश्छल मन, कोमल भावनाये , बिना किसी दुराग्रह से ग्रसित हुए जो मन होता है वही करती है पर वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल साइट्स का प्रभाव उनके दिलो दिमाग पर घर करने लगा है और शायद यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में अपने देश में बच्चों में अपराधिक प्रवृति में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है जो अत्यन्त ही चिंता का विषय है। इस बात में दो मत नहीं हो सकता कि बाल- अपराधों की बढती संख्या हमारे देश के भविष्य के लिए खतरे का संकेत हैं। बच्चे हमारे देश का भविष्य है इन्हे संस्कारवान , सद्चरित्र और सुदृढ़ बनाने का दायित्व परिवार , समाज और सरकार का है , लेकिन वर्तमान सामाजिक परिवेश और अनेक सामाजिक कमजोरियों और सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते हमारे बच्चे पतन की ओर अग्रसित हो रहे है। बाल अपराधों की ब़ढती संख्या हमारे समाज के माथे एक ऐसा कलंक है जिससे धुलने के प्रयास तुरंत शुरू किये जाने चाहिए। जहाँ एक तरफ इसके लिए परिवार , माँ बाप को सतर्क होने की जरुरत है वहीँ दूसरी तरफ सामाजिक स्तर पर भी इसके लिए अलग से कदम उठाने की आवश्यकता है।
भारतीय संविधान में निहित वर्तमान कानून के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर कोई ऐसा कृत्य करें जो समाज या कानून की नजर में अपराध है तो ऐसे अपराधियों को बाल अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है। यद्यपि निर्भया कांड के बाद सोलह साल की उम्र पर अनेक वाद विवाद हुए।ऐसा माना जाता है कि बाल्यावस्था और किशोरावस्था में व्यक्तित्व के निर्माण तथा व्यवहार के निर्धारण में बच्चे को मिल रहे वातावरण का बहुत बड़ा हाथ होता है। वास्तव में बच्चों द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार के लिये बालक स्वयं नहीं बल्कि उसकी परिस्थितियां उत्तरदायी होती हैं, इसी वजह से भारत समेत अनेक देशों में किशोर अपराधों के लिए अलग कानून और न्यायालय और न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। इसमें ऐसे न्यायाधीशों और वकीलों की नियुक्ति की जाती है जो बाल मनोविज्ञान के जानकार होते है। बाल अपराधियों को दंड नहीं, बल्कि उनकी केस हिस्ट्री को जानने और उनके वातावरण का अध्ययन करने के बाद उन्हें जेल में नहीं वरन सुधार गृह में रखा जाता है जहां उनकी दूषित हो चुकी मानसिकता को सुधारने का प्रयत्न किए जाने के साथ उनके साथ उनके भीतर उपज रही नकारात्मक भावनाओं को भी समाप्त करने की कोशिश की जाती है। ऐसे बच्चों के साथ दण्डात्मक व्यव्हार न करके उनसे काउंसलिंग करके उनकी नकारात्मकता को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
यदि गौर करें तो बाल अपराध मुखयतः दो प्रकार के होते है पहला समाजिक होता है तो दूसरा पारिवारिक । यद्यपि पारिवारिक अपराधों के लिए किसी दंड की व्यवस्था भारतीय कानून में नहीं हैं, लेकिन फिर भी 16 वर्ष से कम आयु वाले बच्चे अगर ऐसा कोई भी काम करते हैं जिसके दुष्प्रभावों का सामना उनके परिवार को करना पड़ता है तो वह बाल․अपराधी ही माने जाते हैं. माता․पिता की अनुमति के बिना घर से भाग जाना,अपने पारिवारिक सदस्यों के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करना, स्कूल से भाग जाना, ऐसी आदतों को अपनाना जो ना तो बच्चों के लिए हितकर है ना ही परिवार के लिए , परिवार के नियंत्रण में ना रहना।लेकिन अगर बच्चे ऐसी आदतों को अपनाएं जिससे समाज प्रभावित होता है तो निस्चय ही उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता जैसे चोरी करना, लड़ाई,झगड़ा करना, यौन अपराध करना, जुआ खेलना, शराब पीना , अपराधी गुट या समूह में शामिल होना , ऐसी जगहों पर जाना, जहां बच्चों का जाना पूर्णत वर्जित है , दुकान से कोई समान उठाना ,किसी के प्रति भद्दी और अभद्र भाषा का प्रयोग करना। बाल अपराधों की बढ़ती संख्या से सभी चिंतित है। अधिकतर मामले ऐसे भी है जहाँ बच्चे घरेलू तनाव के कारण अपराध कर देते हैं। एक और कारण गरीबी और अशिक्षा भी है। बाल अपराधियों की संख्या गावों की अपेक्षा शहरों में अधिक है।
जहाँ तक इनके दण्ड की बात है तो देश का कानून यह मानता है कि इस उम्र के बच्चे अगर जल्दी बिगड़ते हैं और उन्हें अगर सुधारने का प्रयत्न किया जाए तो वह सुधर भी जल्दी जाते है इसीलिए उन्हें किशोर न्याय सुरक्षा और देखभाल अधिनियम 2000 के तहत सजा दी जाती है। इस अधिनियम के अंतर्गत बाल अपराधियों को कोई भी सख्त या कठोर सजा ना देकर उनके शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था करके सकारात्मक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है उन्हें तरह तरह की व्याव्सायिक प्रशिक्षण देकर आने वाले जीवन के लिए आत्म․निर्भर बनाने की भी कोशिश की जाती है. समय के साथ साथ सन 2006 में बाल․अपराधियों को सुधारने के उद्देश्य से बनाए गए अधिनियम में कुछ संशोधन किए गए जिसके अनुसार किसी भी बाल․अपराधी का नाम, पहचान या उसके निजी जानकारी सार्वजनिक करना एक दंडनीय अपराध माना जाता है ऐसा इसलिए भी किया गया ताकि उनके अतीत से उनके भविष्य को कोई नुकसान न हो।
भारतीय जीवन जीने की शैली में आये परिवर्तन , टीवी , मोबाइल और सोशल मीडिया आदि ने हमारे परिवार में संवाद का अभाव पैदा कर दिया है जिससे हम बच्चों की छोटी मोटी समस्याओं के बारे में न तो जान ही पाते है और न ही उसका हल निकालने की कोशिश करते है। वास्तव में आपसी बात चीत और पारिवारिक अपनेपन से अभिभावकों और बच्चों के बीच की दूरी और दरार को मिटाकर बच्चों के मन से आपराधिक भावना दूर की जा सकती है। हमें बच्चों को भारतीय परंपरा , रीति रिवाज़ , मानवीय मूल्यों और और संवेदनाओं से जोड़े रखना होगा तभी हम उन्हें भटकने से रोक पाएंगे और उनके बचपन को सुदृढ़ता प्रदान कर पाएंगे.

Tuesday, December 27, 2016

स्‍वामी आत्‍मारामजी 'लक्ष्‍य'

दौसा सम्‍मेलन के उपरांत काण्‍डों में स्‍वामी जी को बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा । स्‍वामी आत्‍माराम जी ने इस महासम्‍मेलन की समाप्ति पटरी मंगलानन्‍द जी को जो महाराज ज्ञानस्‍परूप जी के परम शिष्‍यों में से एक थे एवं उस समय हैदराबाद (सिंध) में पढ़ा करते थे, को अपने उपचार के लिए रोका । उनके आदेशानुसार श्री मंगलानन्‍द जी वहां पर उनके साथ रूक गए । जयपुर से ज्‍येष्‍ठ मास में दिल्‍ली में पहुँचे । दिल्‍ली में महाराज ज्ञानस्‍परूप जी के शिष्‍यों ने इनकी बहुत सेवा की एवं इनका इलाज कराया । स्‍वामी जी का ईलाज आयुर्वेदिक औषधालय तिबिया कालेज में वहां के श्री चन्‍द्रशेखर शास्‍त्री नामक योग्‍य वैद्य द्वारा हुआ लेकिन अन्‍तत: इन्‍हें स्‍वास्‍थ्‍य लाभ नहीं हो सका । विपरीत इसके इनके रोग में निरन्‍तर वृद्धि होती रही । तत्‍पश्‍चात् स्‍वामी आत्‍माराम जी को अपनी रुगणावस्‍था में भी जातिय सुधार कार्यों में भाग लेने की इच्‍छा बनी रहती थी । दिल्‍ली के स्‍वामी जी मंगलानन्‍द जी के साथ जयपुर अजमेर रूकते हुए 'ब्‍यावर' में पहुँचे । ब्‍यावर में स्‍वामी जी श्री सूर्यमल जी मौर्य एंव श्री रामचन्‍द्र जी पवार आदि महानुभावों के यहां विश्राम किया । वहाँ स्‍वामी जी की चिकित्‍सा होने लगी लेकिन कोई सफलता प्राप्‍त नहीं हुई । कुछ समय ब्‍यावर में रूकने के पश्‍चात् हैदराबाद (सिंध) गये वहां स्‍वामी जी के आश्रम पर इनकी चिकित्‍सा होने लगी । वहाँ पर इनकी चिकित्‍सा एक प्रसिद्ध राजपूत वैद्य से कराई गई । उन्‍होंने इनका ईलाज किया एवं स्‍वामी जी को विश्‍वास दिलाया कि वे शीघ्र ही ठीक हो जायेगें लेकिन एकान्‍त में श्री मंगलानन्‍द जी को बताया कि इनका यह संग्रहणी रोग लाइलाज हो गया है । ओर के चार मास में इस नश्‍वर संसार को छोड़कर जायेंगे । इससे मंगलानन्‍द जी पर बज्रपात सा हुआ लेकिन फिर भी ईश्‍वर पर भरोसा करते हुए अपने हृदय को धैर्य प्रदान किया एवं इस तथ्‍य को स्‍वामी जी से छिपाये रखा ।
इसके पश्‍चात् स्‍वामी आत्‍माराम जी पुन: हैदराबाद से जयपुर श्री मंगलानन्‍द जी के साथ पधारे । इस समय उनके हालात नाजुक दौर से गुजर रहे थे । जयपुर में स्‍वामी जी श्री लालाराम जलुथिरिया चांदलोल गेट के निवास स्‍थान पर रूके श्री लालाराम जी ने भी इनकी सेवा करने में भरसक प्रयत्‍न किया खतरनाक स्थिति में थे । मरणासन अवस्‍था में जब इन्‍हे ऐसा विश्‍वास हो गया कि वे अब इस संसार में केवल थोड़े समय के अतिथि है तो तब स्‍वामीजी ने अपने निकटतम साथी श्री कॅवरसेन मौर्य को याद किया श्री कॅवरसेन मौर्य पर उनका अत्‍यधिक प्रेम था एवं इन दौनों ने समाज कार्यो यथा प्रचार एवं काण्‍ड़ो में कन्‍धे से कन्‍धा मिलाकर कार्य किया था । स्‍वामी जी को श्री कॅवरसेन जी से अपने अधूरे कार्यो की पूर्ति की आशा थी । स्‍वामी जी द्वारा श्री कॅवरसेन जी को तार दिया गया । तार पाते श्री कॅवरसेन मौर्य जी ने दिल्‍ली से प्रस्‍थान किया एवं जयपुर में पहॅुच कर स्‍वीमा जी के दर्शन किये । स्‍वामी जी ने श्री कंवरसेन मौर्य जी को बताया कि वह सम्‍भवत: इस संसार के थोड़े ही दिनों के ही महमान है एवं सारा कार्य ही अधूरा है । इस प्रकार स्‍वामीजी समझते थे कि जिस 'लक्ष्‍य' को प्राप्‍त करने की प्रतिभा लेकर महाराज स्‍वामी ज्ञानस्‍वरुप जी के आशिर्वाद से उस क्षैत्र में पदार्पण किया उसमें सफलता नहीं मिल सकी । इस बात का उन्‍हे बहुत दू:ख था । वस्‍तुत: स्‍वामी आत्‍मारामजी 'लक्ष्‍य' अपने जीवन पर के लक्ष्‍य की प्राप्ति में पूर्ण रूपेण सफल रहे । लेकिन फिर भी उन्‍होंने वसीयत के रुप में अपने जीवन को तीन अन्तिम अभिलाषा व्‍यक्‍त की जिन्‍हे स्‍वामीजी अपने जीवन काल में ही पूरा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं सके थे । इन्‍होंने श्री कंवरसेन जी को बताया कि सर्वप्रथम तो रैगर जाति का एक विस्‍तृत इति‍हास लिखा जाना चाहिये, दूसरे जाति के समाचार पत्र का महत्‍व बताते हुए अभिलाषा प्रकट की कि रैगर जाति का अपना एक समाचार पत्र हो । तीसरे रैगर जाति के उच्‍च शिक्षा का अध्‍ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए रैगर छात्रावास का निर्माण होना चाहिए । श्री कंवरसेन मौर्य प्रचार मन्‍त्री अखिल भारतीय रैगर महासभा ने पूर्णतया स्‍वामी जी को विश्‍वास दिलाया एवं यथाशक्ति अधूरे कार्य को पूर्ण करने का आश्‍वासन दिया ।
परन्‍तु विधाता का विधान कुछ और ही था रैगर जाति का समय प्रयत्‍न, बहुत से लोगों की सेवा एवं प्रसिद्ध वैद्य डाक्‍टरों की औषधियॉ बेकार हो गई । वह दिन भी आया जब जाति का वह सितारा जिसने बहुत से लोगों के मन में ज्‍योति जगाई एवं इन्‍हें समाज सेवा के लिये प्रेरित किया था । 20 नवम्‍बर बुधवार प्रात: काल 1946 को उस 'त्‍याग' मूर्ति के जिसने अपना सारा जीवन अपने 'लक्ष्‍य' की पूर्ति में लगा दिया प्राण पखेरु अनन्‍त गगन की ओर उठ गए । रैगर जाति को प्रकाशित करने वाला वह सूर्य अस्‍त हो गया और हो गया उसके साथ ही रैगर जाति की सामाजिक क्रान्ति का स्‍वर्णिम अध्‍याय ।
🙏

नैतिकता

सब कुछ मुमकिन है
आप अपने इर्द-गिर्द लोगों से अक्सर सुनते होंगे कि यह काम नहीं हो सकता। कॉलेज से निकलने के बाद अब यह आपकी ड्यूटी है कि आप ऐसे मिथ्स को तोड़ें। बहुत से ऐसे काम हैं, जो हमारे देश में होने चाहिए थे, लेकिन वे नहीं हो पाए। इनके पीछे जिम्मेदार ऐसी मानसिकता के लोग ही हैं, जो कहते हैं कि इस काम को कर पाना मुमकिन नहीं है।

आने वाले सालों में आप लोग इस देश के लीडर्स होंगे। इस देश का भविष्य आपके ही कंधों पर है। यह काम कर पाना मुमकिन नहीं है, यह नहीं हो सकता... ऐसे विचारों को मन में जगह न दें। अपने चारों ओर नजर उठाकर देखिए, दुनिया कामयाबी की मिसालों से भरी पड़ी है। तमाम बड़ी कंपनियों के उदहारण हैं। सोचिए इन कंपनियों को बनाने के आइडियाज कहां से आए? माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक, ऐपल, एमजॉन जैसी कंपिनयां कहां से आईं? ये कंपनियां तभी अस्तित्व में आईं जब किसी ने सोचा कि यह काम किया जा सकता है, यह मुमकिन है।
आपसे यही उम्मीद है कि नकारात्मकता की ओर न देखें, सोच लिया जाए तो बड़े से बड़ा काम हो सकता है। इसके अलावा, ध्यान रखें कि जीवन में कितने भी कामयाब क्यों न हो जाएं, विनम्रता कभी न छोड़ें। कभी किसी नोबेल विजेता के पास बैठकर देखा है आपने? वह आपको कभी महसूस नहीं होने देंगे कि वह इतना बड़ा अवॉर्ड जीत चुके हैं। उनके आसपास के लोगों से ही आपको उनकी महानता के बारे में पता चलेगा। आपने जो भी शिक्षा हासिल की है, उसे समाज को वापस करने के लिए भी थोड़ा काम करते रहें।

अपनी कामयाबी को इस आधार पर कभी नहीं आंकिए कि आपने कितना पैसा कमा लिया, आप किस पद पर पहुंच गए या आपकी समाज में कितनी प्रतिष्ठा है। आपकी कामयाबी का पैमाना यह होना चाहिए कि जब आप रात को घर लौटें तो मन में यह संतुष्टि रहे कि आपने देश और समाज की तरक्की में अपनी ओर से योगदान दिया है, भले ही वह योगदान कितना भी छोटा क्यों न हो!


कामयाबी की नई मिसाल बनें
मैं आज आप लोगों के बीच आकर थोड़ा दुखी हूं, इस बात को लेकर कि मैं आज आपकी उम्र में नहीं हूं और ऐसे वक्त में कॉलेज से पासआउट नहीं हो रहा हूं, जब बिजनेस की दुनिया बांहें पसारे आपका स्वागत कर रही है। आपके लिए यह एक बेहद अहम पल है। जाहिर है आपकी जिम्मेदारियां भी बड़ी होंगी।

आप आने वाले सालों में लीडर्स बनने वाले हैं। कॉलेज से निकलकर आप सभी को बिजनेस वर्ल्ड की बड़ी जिम्मेदारियों को निभाना है और ऐसे में आपके पास अपना बेस्ट देने के अलावा दूसरा ऑप्शन नहीं है। आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना ही है। जिस लीडरशिप की बात मैं कर रहा हूं, मुझे उम्मीद है कि उसे निभाने के लिए आप अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करेंगे और अपनी वैल्यूज को पूरी तवज्जो देंगे।

मेरा मानना है कि असली लीडर वह होता है, जिसके पास विजन है, जो भविष्य के गर्भ में छिपे अवसरों को बहुत पहले ही ताड़ लेता है और उसके मुताबिक ही काम करता है। वैसे मुझे इस बात का अफसोस है कि हमारे देश में ऐसे बिजनेस लीडर्स की कमी रही है। हमारे बहुत से बिजनेस लीडर्स दुनिया के बिजनेस लीडर्स के फॉलोअर्स रहे हैं। आपको इस ट्रेंड को तोड़ना है और कामयाबी की अपनी नई कहानी लिखनी है। इसके लिए आपको दृढ़ संकल्प, काबलियत और भरपूर आत्मविश्वास की जरूरत होगी।

इसके अलावा मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं कि पैसा, पद, प्रतिष्ठा कमाने के अलावा भी आपकी एक और अहम जिम्मेदारी है और उस जिम्मेदारी को भी आपको पूरी शिद्दत से निभाना है। यह जिम्मेदारी है एक इंसान के तौर पर समाज में आपकी भूमिका। भले ही कोई भी काम कितना भी छोटा हो, लेकिन आपको कुछ न कुछ ऐसा काम जरूर करते रहना होगा, जो इस देश के ग्रामीण इलाकों में रह रहे करोड़ों लोगों के जीवन की क्वॉलिटी को बेहतर बना सके, उनके जीवन में बदलाव ला सके। अगर आप ऐसा कर पाए तभी आप सच्चे मायनों में कामयाब होंगे।
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असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आंदोलन, असमानता, असामंजस्य, अराजकता, आदर्श विहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, असफलता अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष, हिंसा… यही सब घेरे हुए है आज हमारे जीवन को.
व्यक्ति में एवं समाज में साम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद, हिंसा की संकीर्ण कुत्सित भावनाओं व समस्याओं के मूल में उत्तरदायी कारण है मनुष्य का नैतिक और चारित्रिक पतन अर्थात नैतिक मूल्यों का क्षय एवं अवमूल्यन.
नैतिकता का सम्बंध मानवीय अभिवृत्ति से है, इसलिए शिक्षा से इसका महत्त्वपूर्ण अभिन्न व अटूट सम्बंध है. कौशलों व दक्षताओं की अपेक्षा अभिवृत्ति-मूलक प्रवृत्तियों के विकास में पर्यावरणीय घटकों का विशेष योगदान होता है. यदि बच्चों के परिवेश में नैतिकता के तत्त्व पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं तो परिवेश में जिन तत्त्वों की प्रधानता होगी वे जीवन का अंश बन जायेंगे. इसीलिए कहा जाता है कि मूल्य पढ़ाये नहीं जाते, अधिग्रहीत किये जाते हैं.
देश की सबसे बड़ी शैक्षिक संस्था-राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के द्वारा उन मूल्यों की एक सूची तैयार की गयी है जो व्यक्ति में नैतिक मूल्यों के परिचायक हो सकते हैं. इस सूची में 84 मूल्यों को सम्मिलित किया गया है.
वास्तव में, नैतिक गुणों की कोई एक पूर्ण सूची तैयार नहीं की जा सकती, तथापि संक्षेप में हम इतना कह सकते हैं कि हम उन गुणों को नैतिक कह सकते हैं जो व्यक्ति के स्वयं के, सर्वांगीण विकास और कल्याण में योगदान देने के साथ-साथ किसी अन्य के विकास और कल्याण में किसी प्रकार की बाधा न पहुंचाए. विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि नैतिक मूल्यों की जननी नैतिकता सद्गुणों का समन्वय मात्र नहीं है, अपितु यह एक व्यापक गुण है जिसका प्रभाव मनुष्य के समस्त क्रिया- कलापों पर होता है और सम्पूर्ण व्यक्तित्व इससे प्रभावित होता है. वास्तव में नैतिक मूल्य/नैतिकता आचरण की संहिता है. हमें इस बात को भली भांति समझना होगा कि नैतिक मूल्य नितांत वैयक्तिक होते हैं. अपने प्रस्फुटन उन्नयन व क्रियान्वय से यह क्रमशः अंतयक्तिक/सामाजिक व सार्वभौमिक होते जाते हैं.
एक ही समाज में विभिन्न कालों में नैतिक संहिता भी बदल जाती है. नैतिकता/नैतिक मूल्य वास्तव में ऐसी सामाजिक अवधारणा है जिसका मूल्यांकन किया जा सकता है. यह कर्तव्य की आंतरिक भावना है और उन आचरण के प्रतिमानों का समन्वित रूप है जिसके आधार पर सत्य असत्य, अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित का निर्णय किया जा सकता है और यह विवेक के बल से संचालित होती है.
आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, महत्त्व अनिवार्यता व अपरिहार्यता को इस बात से सरलता व संक्षिप्ता में समझा जा सकता है कि संसार   के दार्शनिकों, समाजशात्रियों, मनोवैज्ञानिकों शिक्षा शात्रियों, नीति शात्रियों ने नैतिकता को मानव के लिए एक आवश्यक गुण माना है.
खेद का विषय है कि हमारी शिक्षा केवल बौद्धिक विकास पर ध्यान देती है. हमारी शिक्षा शिक्षार्थी में बोध जाग्रत नहीं करती वह जिज्ञासा नहीं जगाती जो स्वयं सत्य को खोजने के लिए प्रेरित करे और आत्मज्ञान की ओर ले जाये, सही शिक्षा वही हो सकती है जो शिक्षार्थी में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित कर सके.
नैतिकता मनुष्य के सम्यक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है. इसके अभाव में मानव का सामूहिक जीवन कठिन हो जाता है. नैतिकता से उत्पन्न नैतिक मूल्य मानव की ही विशेषता है. नैतिक मूल्य ही व्यक्ति को मानव होने की श्रेणी प्रदान करते हैं. इनके आधार पर ही मनुष्य सामाजिक जानवर से ऊपर उठ कर नैतिक अथवा मानवीय प्राणी कहलाता है. अच्छा-बुरा, सही गलत के मापदण्ड पर ही व्यक्ति, वस्तु, व्यवहार व घटना की परख की जाती है. ये मानदंड ही मूल्य कहलाते हैं. और भारतीय परम्परा में ये मूल्य ही धर्म कहलाता है अर्थात ‘धर्म’ उन शाश्वत मूल्यों का नाम है जिनकी मन, वचन, कर्म की सत्य अभिव्यक्ति से ही मनुष्य मनुष्य कहलाता है अन्यथा उसमें और पशु में भला क्या अंतर? धर्म का अभिप्राय है मानवोचित आचरण संहिता. यह आचरण संहिता ही नैतिकता है और इस नैतिकता के मापदंड ही नैतिक मूल्य हैं. नैतिक मूल्यों के अभाव में कोई भी व्यक्ति, समाज या देश निश्चित रूप से पतनोन्मुख हो जायेगा. नैतिक मूल्य मनुष्य के विवेक में स्थित, आंतरिक व अंतः र्स्फूत तत्त्व हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में आधार का कार्य करते हैं,
नैतिक मूल्यों का विस्तार व्यक्ति से विश्व तक, जीवन के सभी क्षेत्रों में होता है. व्यक्ति-परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र से मानवता तक नैतिक मूल्यों की यात्रा होती है. नैतिक मूल्यों के महत्त्व को व्यक्ति समाज राष्ट्र व विश्व की दृष्टियों से देखा समझा जा सकता है. समाजिक जीवन में तेज़ी से हो रहे परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याओं की चुनौतियों से निपटने के लिए और नवीन व प्राचीन के मध्य स्वस्थ अंतः क्रिया को सम्भव बनाने में नैतिक मूल्य सेतु-हेतु का कार्य करते हैं. नैतिक मूल्यों के कारण ही समाज में संगठनकारी शक्तियां व प्रक्रिया गति पाती हैं और विघटनकारी शक्तियों का क्षय होता है.
नैतिकता समाज सामाजिक जीवन के सुगम बनाती है और समाज में अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण रखती है. समाज राष्ट्र में एकीकरण और अस्मिता की रक्षा नैतिकता के अभाव में नहीं हो सकती है. विश्व बंधुत्व की भावना, मानवतावाद, समता भाव, प्रेम और त्याग जैसे नैतिक गुणों के अभाव में विश्व शांति, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मैत्री आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती. 

जीवन में मतभेद तो ठीक है परंतु मनभेद को जिन्दगी में नहीं आना चाहिए।

मतभेद के बीच मनभेद न आने दें...।
जंहा मतभेद हो पर मनभेद नहीं है। वहां पति-पत्नी को मुंह से बोलना ही नहीं पडता एक के मन में बात आती हैदूसरे के हृदय में स्वतः ही पंहुच जाती है। इशारों-इशारों में ही सारी जिन्दगी बीत जाती है।
हम देखते हैं वैचारिक भिन्नता के कारण पति-पत्नी छत्तीस की मुद्रा में होते हैं। वाक युध्द चलता हैछोटी-छोटी बात पर बडा मतभेद हो जाता है। न सिर्फ पति-पत्नी बल्कि कोई भी संबंध हों मन में एक बार दरार आ गई तो मानों जैसे पहाड टूट गया हो। परंतु इस बात नौबत क्यों आने दें अतः जीवन में मतभेद तो ठीक है परंतु मनभेद को जिन्दगी में नहीं आना चाहिए।
जीवन की सफलता आपके व्यवहार पर निर्भर है। व्यवहारिक योग्यता अनुभव से ही प्राप्त होती है। बुध्दि से काम लेनाव्यवहार में कुशलताअच्छा व्यवहार सबसे बडी बात है। जीवन में स्वयं की गलतियों को ढूंढे तथा अपने में सुधार लाने की आवश्यकता है। मनुष्य कुछ खोकर ही कुछ पाता है इसका सीधा मतलब है कि मनुष्य एक बार धोखा खाकर या गलती करके आगे के लिए सावधान हो जाता है। और अपने को सुधार लेता है। अपनी गलतियों का सबसे सरल यह उपाय है। यदि यही बात समझ में आ जाती तो आपस मेंरिश्तेदारी मेंमित्रों से मतभेदतर्क-वितर्क हो सकता है पर मनभेद की तो संभावना ही नहीं होगी। हमें कब किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका निर्णय अपने अनुभव के आधार पर अपनी बुध्दि व विवेक से करना होता है। सिर्फ बुध्दिमान होने से भी काम नहीं चलता हम व्यवहारिक रूप से तभी सफल हो सकते हैं। जब बुध्दि सजगसंयत एवं अनुभव संपन्न हो।
मन की शांति इस बात से प्राप्त होती हैवो कोई वैभव या संपन्नता से नहीं जिसका हृदय सदभावना से विशाल होता है। जो बात स्वयं अपने को कष्टप्रद प्रतीत उसे दूसरों के साथ भी न करें। क्षमा-दया से युक्त मन अपने आप सेवा त्यागप्रेमसाहनुभूति एवं अनुराग से परिपूर्ण होता है वह मनभेद आने नहीं देता।
जो मनुष्य मात्र से प्रेम करता है उससे सब प्रेम ही करेंगे यही तो हमारा लो नियम है आपके मन में किसी के प्रति कोई अनिष्ठ की भावना नहीं है तो आपको न दुष्टों से न दुश्मनों से भय होगा। इसका मतलब है कोई असाधूता पूर्ण व्यवहार करता भी है तो उसका निराकरण यथा संभव साधूता से ही करना चाहिए। आप चाहे कितने सभी धनी-मानी क्यों न हो पर दूसरों को तुच्छ न मानिये यही तो मनुष्यता है। दिन खोल अच्छी बुरी सभी बात करिये पर साथ ही बात-बात में अपना गर्वयुक्त व्यवहार दिखाने से बचिये।

मनभेद से बचकरमत-भेद पर स्वस्थ्य तर्क विर्तक करियेदूसरों की अच्छी बातों को समझेंजो ज्ञान आपके पास हैदूसरों के बीच प्रस्तुत करने का श्रेष्ठ तरीका है।

कुशासन की शिकायत सेवा नियमावली में कत्तई प्रतिबंधित नहीं है

सुप्रीम कोर्ट ने विजय शंकर पाण्डेय बनाम भारत सरकार में स्पष्ट कर दिया है कि कुशासन की शिकायत सेवा नियमावली में कत्तई प्रतिबंधित नहीं है. उसने कहा है कि जनहित में दायर याचिकाएं आचरण नियमावली के खिलाफ नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक मामलों में याचिका दायर करना हमारा संवैधानिक अधिकार है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसके ठीक उलटा मत दर्शाते हुए मेरे पीआईएल दायर करने को कदाचरण बताया था और सराकर की अनुमति के बाद ही पीआईएल दायर करने के आदेश दिए थे. देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा मेरे कदम को सही बताये जाने से मैं बहुत खुश हूँ.
Supreme Court order in Vijay Shankar Pandey vs Union of India makes it clear that allegations of mal-administration is not prohibited by Conduct Rules. It says that Writ petition filed in public interest before the highest court of the country are not against service rules. SC says that the right to judicial remedies for the redressal of either personal or public grievances is a constitutional right. Allahabad HC had made a completely opposite view on my filing of PIL calling it misconduct and asking me to seek govt permission before filing PILs. I feel truly happy to see my stand being vindicated by the highest court of this country.

Friday, December 23, 2016

रामनाम के दोहे

श्री राम अमृतवाणी ,,
परमात्मा श्री राम परम सत्य, प्रकाशरूप, परम ज्ञानानन्द स्वरूप, सर्वशक्तिमान,एकाहिवाद्वितिये परमेश्वर,परम पुरुष दयालु,देवादीदेव है, उसको बार-बार नमस्कार , नमस्कार , नमस्कार , नमस्कार अमृतवाणी अमृत वाणी रामामृत पद पावन वाणी, राम नाम धुन सुधा समानी। पावन पाठ राम गुण ग्राम, राम राम जप राम ही राम।।1।। परम सत्य परम विज्ञान, ज्योति-स्वरूप राम भगवान् । परमानन्द, सर्वशक्तिमान्, राम परम है राम महान् ।।2।। अमृत वाणी नाम उच्चारण, राम राम सुखसिद्धि-कारण। अमृत-वाणी अमृत श्री नाम, राम राम मुद मंगल-धाम।।3।। अमृतरूप राम-गुण गान, अमृत-कथन राम व्याख्यान। अमृत-वचन राम की चर्चा, सुधा सम गीत राम की अर्चा।।4।। अमृत मनन राम का जाप, राम राम प्रभु राम अलाप। अमृत चिन्तन राम का ध्यान, राम शब्द में शुचि समाधान।।5।। अमृत रसना वही कहावे, राम राम जहाँ नाम सुहावे। अमृत कर्म नाम कमाई, राम राम परम सुखदाई।।6।। अमृत राम नाम जो ही ध्यावे, अमृत पद सो ही जन पावे। राम नाम अमृत-रस सार, देता परम आनन्द अपार।।7।। राम राम जप हे मना, अमृत वाणी मान। राम नाम में राम को, सदा विराजित जान।।8।। राम नाम मुद मंगलकारी, विघ्न हरे सब पातक हारी। राम नाम शुभ शकुन महान् स्वस्ति शान्ति शिवकल कल्याण।।9।। राम राम श्री राम विचार, मानिए उत्तम मंगलाचार। राम राम मन मुख से गाना, मानो मधुर मनोरथ पाना।।10।। राम नाम जो जन मन लावे, उस में शुभ सभी बस जावे। जहां हो राम नाम धुन-नाद, भागें वहां से विषम विषाद।।11।। राम नाम मन-तप्त बुझावे, सुधा रस सींच शांति ले आवे। राम राम जपिए कर भाव, सुविधा सुविधि बने बनाव।।12।। राम नाम सिमरो सदा, अतिशय मंगल मूल। विषम-विकट संकट हरण, कारक सब अनुकूल।।13।। जपना राम राम है सुकृत, राम नाम है नाशक दुष्कृत। सिमरे राम राम ही जो जन, उसका हो शुचितर तन मन।।14।। जिसमें राम नाम शुभ जागे, उस के पाप ताप सब भागे। मन से राम नाम जो उच्चारे, उस के भागें भ्रम भय सारे।।15।। जिस में बस जाय राम सुनाम, होवे वह जन पूर्णकाम। चित्त में राम राम जो सिमरे, निश्चय भव सागर से तरे।।16।। राम सिमरन होवे सहाई, राम सिमरन है सुखदाई। राम सिमरन सब से ऊँचा, राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा।।17।। राम राम ही सिमर मन, राम राम श्री राम। राम राम श्री राम भज, राम राम हरि-नाम।।18।। मात-पिता बान्धव सुत दारा, धन जन साजन सखा प्यारा। अन्त काल दे सके न सहारा, राम नाम तेरा तारन हारा।।19।। सिमरन राम नाम है संगी, सखा स्नेही सुहृद शुभ अंगी। युग युग का है राम सहेला, राम भक्त नहीं रहे अकेला।।20।। निर्जन वन विपद् हो घोर, निबड़ निशा तम सब ओर। जोत जब राम नाम की जगे, संकट सर्व सहज से भगे।।21।। बाधा बड़ी विषम जब आवे, वैर विरोध विघ्न बढ़ जावे। राम नाम जपिए सुख दाता, सच्चा साथी जो हितकर त्राता।।22।। मन जब धैर्य को नहीं पावे, कुचिन्ता चित्त को चूर बनावे। राम नाम जपे चिन्ता चूरक, चिन्तामणि चित्त चिन्तन पूरक।।23।। शोक सागर हो उमड़ा आता, अति दुःख में मन घबराता। भजिए राम राम बहु बार, जन का करता बेड़ा पार।।24।। कड़ी घड़ी कठिनतर काल, कष्ट कठोर हो क्लेश कराल। राम राम जपिए प्रतिपाल, सुख दाता प्रभु दीनदयाल।।25।। घटना घोर घटे जिस बेर, दुर्जन दुखड़े लेवें घेर। जपिए राम नाम बिन देर, रखिए राम राम शुभ टेर।।26।। राम नाम हो सदा सहायक, राम नाम सर्व सुखदायक। राम राम प्रभु राम की टेक, शरण शान्ति आश्रय है एक।।27।। पूंजी राम नाम की पाइये, पाथेय साथ नाम ले जाइये। नाशे जन्म मरण का खटका, रहे राम भक्त नहीं अटका।।28।। राम राम श्री राम है, तीन लोक का नाथ। परम पुरुष पावन प्रभु, सदा का संगी साथ।। 29।। यज्ञ तप ध्यान योग ही त्याग, बन कुटी वास अति वैराग। राम नाम बिना नीरस फोक, राम राम जप तरिए लोक।।30।। राम जाप सब संयम साधन, राम जाप है कर्म आराधन। राम जाप है परम अभ्यास, सिमरो राम नाम ‘सुख-रास’।।31।। राम जाप कही ऊँची करणी, बाधा विघ्न बहु दुःख हरणी। राम राम महा-मन्त्र जपना, है सुव्रत नेम तप तपना।।32।। राम जाप है सरल समाधि, हरे सब आधि व्याधि उपाधि । ऋद्धि सिद्धि और नव निधान, दाता राम है सब सुख खान।।33।। राम राम चिन्तन सुविचार, राम राम जप निश्चय धार। राम राम श्री राम ध्याना है परम पद अमृत पाना।।34।। राम राम श्री राम हरि, सहज परम है योग। राम राम श्री राम जप, दाता अमृत भोग।।35।। नाम चिन्तामणि रत्न अमोल, राम नाम महिमा अनमोल। अतुल प्रभाव अति प्रताप, राम नाम कहा तारक जाप।।36।। बीज अक्षर महा-शक्ति-कोष, राम राम जप शुभ सन्तोष। राम राम श्री राम राम मंत्र, तन्त्र बीज परात् पर यन्त्र।।37।। बीजाक्षर पद पद्म प्रकाशे, राम राम जप दोष विनाशे। कुँडलिनी बोधे शुष्मणा खोले, राम मंत्र अमृत रस घोले।।38।। उपजे नाद सहज बहु भांत, अजपा जाप भीतर हो शान्त। राम राम पद शक्ति जगावे, राम राम धुन जभी रमावे।।39।। राम नाम जब जगे अभंग, चेतन भाव जगे सुख-संग। ग्रन्थी अविद्या टूटे भारी, राम लीला की खिले फुलवारी।।40।। पतित पावन परम पाठ, राम राम जप याग। सफल सिद्धि कर साधना, राम नाम अनुराग।।41।। तीन लोक का समझिए सार, राम नाम सब ही सुखकार। राम नाम की बहुत बड़ाई, वेद पुराण मुनि जन गाई।।42।। यति सती साधु-संत सयाने, राम नाम निशा दिन बखाने। तापस योगी सिद्ध ऋषिवर, जपते राम राम सब सुखकर।।43।। भावना भक्ति भरे भजनीक, भजते राम नाम रमणीक। भजते भक्त भाव भरपूर, भ्रम भय भेद-भाव से दूर।।44।। पूर्व पंडित पुरुष प्रधान, पावन परम पाठ ही मान। करते राम राम जप ध्यान, सुनते राम अनाहद तान।।45।। इस में सुरति सुर रमाते, राम राम स्वर साध समाते। देव देवीगण दैव विधाता, राम राम भजते गणत्राता।।46।। राम राम सुगुणी जन गाते, स्वर संगीत से राम रिझाते। कीर्तन कथा करते विद्वान, सार सरस संग साधनवान्।।47।। मोहक मंत्र अति मधुर, राम राम जप ध्यान। होता तीनों लोक में, राम नाम गुण गान।।48।। मिथ्या मन-कल्पित मत-जाल, मिथ्या है मोह कुमद बैताल। मिथ्या मन मुखिया मनोराज, सच्चा है राम नाम जप काज।।49।। मिथ्या है वाद विवाद विरोध, मिथ्या है वैर निंदा हठ क्रोध। मिथ्या द्रोह दुर्गुण दुःख खान, राम नाम जप सत्यनिधान।।50।। सत्य मूलक है रचना सारी, सर्व सत्य प्रभु राम पसारी। बीज से तरु मकड़ी से तार, हुआ त्यों राम से जग विस्तार।।51।। विश्व वृक्ष का राम है मूल, उस को तू प्राणी कभी न भूल। साँस साँस से सिमर सुजान, राम राम प्रभु राम महान् ।।52।। लय उत्पत्ति पालना रूप, शक्ति चेतना आनंद स्वरूप। आदि अन्त और मध्य है राम, अशरण शरण है राम विश्राम।।53।। राम नाम जप भाव से, मेरे अपने आप। परम पुरुष पालक प्रभु, हर्ता पाप त्रिताप।।54।। राम नाम बिना वृथा विहार, धन धान्य सुख भोग पसार। वृथा है सब सम्पद सम्मान, होवे तन यथा रहित प्राण।।55।। नाम बिना सब नीरस स्वाद, ज्यों हो स्वर बिना राग विषाद। नाम बिना नहीं सजे सिंगार, राम नाम है सब रस सार।।56।। जगत् का जीवन जानो राम, जग की ज्योति जाज्वल्यमान। राम नाम बिना मोहिनी माया, जीवन-हीन यथा तन छाया।।57।। सूना समझिए सब संसार, जहां नहीं राम नाम संचार। सूना जानिए ज्ञान विवेक, जिस में राम नाम नहीं एक।।58।। सूने ग्रंथ पन्थ मत पोथे, बने जो राम नाम बिन थोथे। राम नाम बिन वाद विचार, भारी भ्रम का करे प्रचार।।59।। राम नाम दीपक बिना, जन-मन में अन्धेर। रहे, इससे हे मम मन, नाम सुमाला फेर।।60।। राम राम भज कर श्री राम, करिए नित्य ही उत्तम काम। जितने कर्तव्य कर्म कलाप, करिए राम राम कर जाप।।61।। करिए गमनागम के काल, राम जाप जो करता निहाल। सोते जगते सब दिन याम, जपिए राम राम अभिराम।।62।। जपते राम नाम महा माला, लगता नरक द्वार पै ताला। जपते राम राम जप पाठ, जलते कर्मबन्ध यथा काठ।।63।। तान जब राम नाम की टूटे, भांडा भरा अभाग्य भय फूटे। मनका है राम नाम का ऐसा, चिन्ता-मणि पारस-मणि जैसा।।64।। राम नाम सुधा-रस सागर, राम नाम ज्ञान गुण-आगर। राम नाम श्री राम महाराज, भव-सिन्धु में है अतुल जहाज।।65।। राम नाम सब तीर्थ स्थान, राम राम जप परम स्नान। धो कर पाप-ताप सब धूल, कर दे भय-भ्रम को उन्मूल।।66।। राम जाप रवि-तेज समान, महा मोह-तम हरे अज्ञान। राम जाप दे आनन्द महान् । मिले उसे जिसे दे भगवान् ।।67।। राम नाम को सिमरिये, राम राम एक तार। परम पाठ पावन परम, पतित अधम दे तार।।68।। माँगू मैं राम-कृपा दिन रात, राम-कृपा हरे सब उत्पात। राम-कृपा लेवे अन्त सम्हाल, राम प्रभु है जन प्रतिपाल।।69।। राम-कृपा है उच्चतर योग, राम-कृपा है शुभ संयोग। राम-कृपा सब साधन-मर्म, राम-कृपा संयम सत्य धर्म।।70।। राम नाम को मन में बसाना, सुपथ राम-कृपा का है पाना। मन में राम-धुन जब फिरे, राम-कृपा तब ही अवतरे।।71।। रहूँ मैं नाम में हो कर लीन, जैसे जल में हो मीन अदीन। राम-कृपा भरपूर मैं पाऊँ, परम प्रभु को भीतर लाऊँ।।72।। भक्ति-भाव से भक्त सुजान, भजते राम-कृपा का निधान। राम-कृपा उस जन में आवे, जिसमें आप ही राम बसावे।।73।। कृपा-प्रसाद है राम की देनी, काल-व्याल जंजाल हर लेनी। कृपा-प्रसाद सुधा-सुख-स्वाद, रामनाम दे रहित विवाद ।।74।। प्रभु-प्रसाद शिव शान्ति दाता, ब्रह्म-धाम में आप पहुँचाता। प्रभु-प्रसाद पावे वह प्राणी, राम राम जपे अमृत वाणी।।75।। औषध राम नाम की खाइये, मृत्यु जन्म के रोग मिटाइये। राम नाम अमृत रस-पान, देता अमल अचल निर्वाण।।76।। राम राम धुन गूँज से, भव भय जाते भाग। राम नाम धुन ध्यान से, सब शुभ जाते जाग।।77।। माँगू मैं राम नाम महादान, करता निर्धन का कल्याण। देव द्वार पर जन्म का भूखा, भक्ति प्रेम अनुराग से रूखा।।78।। ‘पर हूँ तेरा’ - यह लिये टेर, चरण पड़े की रखियो मेर। अपना आप विरद विचार, दीजिए भगवन् ! नाम प्यार।।79।। राम नाम ने वे भी तारे, जो थे अधर्मी अधम हत्यारे। कपटी कुटिल कुकर्मी अनेक, तर गये राम नाम ले एक।।80।।। तर गये धृति धारणा हीन, धर्म-कर्म में जन अति दीन। राम राम श्री राम जप जाप, हुए अतुल विमल अपाप।। 81।। राम नाम मन मुख में बोले, राम नाम भीतर पट खोले। रामनाम से कमल विकास, होवें सब साधन सुख-रास।।82।। राम नाम घट भीतर बसे, साँस साँस नस नस से रसे। सपने में भी न बिसरे नाम, राम राम श्री राम राम राम।।83।। राम नाम के मेल से, सध जाते सब काम। देव-देव देवे यदा, दान महा सुख धाम।।84।। अहो, मैं राम नाम धन पाया, कान में राम नाम जब आया। मुख से राम नाम जब गाया, मन से राम नाम जब ध्याया।।85।। पा कर राम नाम धन-राशि, घोर अविद्या विपद् विनाशी। बढ़ा जब राम प्रेम का पूर, संकट संशय हो गये दूर।।86।। राम नाम जो जपे एक बेर, उस के भीतर कोष कुबेर। दीन दुखिया दरिद्र कंगाल, राम राम जप होवे निहाल।।87।। हृदय राम नाम से भरिए, संचय राम नाम धन करिए। घट में नाम मूर्ति धरिए, पूजा अन्तर्मुख हो करिए।।88।। आँखें मूँद के सुनिए सितार, राम राम सुमधुर झंकार। उसमें मन का मेल मिलाओ, राम राम सुर में ही समाओ।।89।। जपूँ मैं राम राम प्रभु राम, ध्याऊँ मैं राम राम हरे राम। सिमरूँ मैं राम राम प्रभु राम, गाऊँ मैं राम राम श्री राम।।90।। अणृत वाणी का नित्य गाना, राम राम मन बीच रमाना। देता संकट विपद् निवार, करता शुभ श्री मंगलाचार।।91।। राम नाम जप पाठ से, हो अमृत संचार। राम-धाम में प्रीति हो, सुगुण-गण का विस्तार।।92।। तारक मंत्र राम है, जिस का सुफल अपार। इस मंत्र के जाप से, निश्चय बने निस्तार।।93।। धुन 1. बोलो राम, बोलो राम, बोलो राम राम राम। 2. श्री राम, श्री राम, श्री राम राम राम। 3. जय जय राम, जय जय राम, जय जय राम राम राम। 4. जय राम जय राम, जय जय राम, राम राम राम राम, जय जय राम। 5. पतित पावन नाम, भज ले राम राम राम। भज ले राम राम राम, भज ले राम राम राम।। 6. मुझे भरोसा तेरा राम, मुझे भरोसा तेरा राम। मुझे भरोसा तेरा राम, मुझे भरोसा तेरा राम। 7. रामाय नमः श्री रामाय नमः रामाय नमः श्री रामाय नमः। 8. अहं भजामि रामं, सत्यं शिवं मंगलम् । सत्यं शिवं मंगलं, सत्यं शिवं मंगलम् ।। वृद्धि – आस्तिक भाव की, शुभ मंगल संचार। अभ्युदय सद्धर्म का, राम नाम विस्तार।। (2) प्रार्थना भाने तेरे से प्रभु, भला भद्र हो जाय। जग में सब नर-नगरी का, कष्ट न कोई पाय।। मार्ग सत्य दिखाइए, सन्त सुजन का पाथ। पाप से हमें बचाइए, पकड़ हमारा हाथ।। सन्त की सेवा दान कर, जो हो और अनाथ। दुर्बल दुखिया दीन की, दे सेवा मम नाथ।। हाथ जोड़ मांगू हरे, सेवा कृपा प्यार। विनय नम्रता देन दे, देना सब कुछ वार।। दीन दास हूँ द्वार का, सेवा देकर दान। सेवा सदन बनाइए, मुझको हे भगवान।।

Tuesday, December 20, 2016

कोर्ट ने कहा, घर आते ही पूछो ‘कैसी हो डार्लिंग’

मध्य प्रदेश में एक कोर्ट ने शराबी पति और उसकी पत्नी को अलग होने से बचाने के लिए आदेश दिया है कि पति को रोज घर आते ही अपनी पत्नी से ‘कैसी हो डार्लिंग’ कहना होगा। दरअसल, खरगोन की हेमलता (23) की शादी धार निवासी अभिषेक (25) से 2013 में हुई थी। छह महीने बाद ही दोनों के बीच झगड़े होने लगे। पत्नी का आरोप है कि अभिषेक आए दिन शराब पीकर घर लौटता है और उसके साथ मारपीट भी करता है। इस काम में उसकी सास भी साथ देती है। इससे परेशान होकर उसे ससुराल छोड़ना पड़ा और वह छह महीने पहले अपने मायके आ गई। इस बीच अभिषेक ने खरगोन और धार कोर्ट में तलाक का केस लगा दिया। वहीं पति अभिषेक ने आरोप लगाया कि हेमलता उससे छोटी-छोटी बात पर झगड़ा करने लगती है, जिस वजह से घर का महौल भी खराब हो जाता है। इस मामले में कोर्ट ने दोनों के बीच काउंसिलिंग करवाई। इसके बाद उनके बीच समझौता करवाया गया। कोर्ट ने अभिषेक को निर्देश दिए कि अब से उसे रोजाना घर लौटते ही अपनी पत्नी से ‘कैसी हो डार्लिंग’ कहना होगा। कोर्ट ने तर्क दिया कि इस तरह से पति-पत्नी के बीच का रिश्ता मजबूत होगा। जज के इस आदेश को मानने के लिए अभिषेक राजी हो गया। इसके बाद दंपति वापस साथ में रहने को तैयार हो गया।

“हाय डार्लिंग कैसी  हो ? क्या कर रही हो? हर रोज़ शाम को अपनी पत्नी से ऐसा कहें तो पति पत्नी के बीच कोई कलह और झगड़ा नहीं होगा.”अरे भाई यह हम नहीं पिछले दिनों खरगोन  (मध्य प्रदेश) की एक कोर्ट ने एक शादीशुदा जोड़े के बीच हो रही रोज़ रोज़ की कलह को सुलझाने के लिए फैसला देते हुए ऐसा कहा. और आप यकीन मानिये कोर्ट के इस अनूठे फैसले के बाद शादीशुदा जोड़े के बीच का कलह खत्म हो गया और दोनों फिर से एक हो गए.
पति-पत्नी का रिश्ता बहुत ही खास होता है. यहाँ शुरूआती दौर में तो सब अच्छा अच्छा होता है , दोनों के बीच प्यार मनुहार सब होता है लेकिन समय बीतने के साथ जीवन की आपाधापी और जिम्मेदारियों के बीच रिश्ते का नयापन खोने सा लगता है. पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर लिए गए वचन प्यार, संयम, समझदारी के साथ जिंदगी भर साथ निभाने का वादा न जाने कहाँ खो जाता है. इस रिश्ते में नयापन, प्यार और विश्वास ताउम्र बना रहे इसके लिए करने होंगे कुछ छोटे छोटे प्रयत्न जो इस रिश्ते की उम्र को बढ़ाएंगे.
छोटी छोटी बातों में बड़ी बड़ी खुशियां
कहते हैं कि खुशियां हमारे आस-पास ही होती हैं,बस उन्हें ढूंढने की जरूरत होती है इसलिए पति पत्नी दोनों को ही जीवन के हर पल में  ढूंढनी होंगी खुशियां. ज्यादातर देखने में यही आता है कि दो लोगों के बीच प्यार तो  बड़ी आसानी से हो जाता है लेकिन उस प्यार को निभाना बहुत मुश्किल होता है.  बहुत से लोग इस तरह के संबंधों में रूटीन लाइफ जीने लगते हैं और उनकी जिंदगी से प्यार और रोमानियत कहीं खो सी जाती है. अगर आप हैप्पी मैरिड लाइफ जीना चाहते हैं, तो यह कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं है. इसके लिए बस आपको कुछ बातों का ख़्याल रखना होगा. पति पत्नी का रिश्ता एक-दूसरे के लिए कई छोटी-छोटी चीज़ें करने से मजबूत होता है. जैसे प्यार-से गले लगाना, उसकी सराहना करना,उसके लिए कुछ खास करना, उसकी तरफ देखकर मुसकराना या सच्चे दिल से यह पूछना, “आज तुम्हारा दिन कैसा रहा?”यही छोटी-छोटी चीज़ें शादीशुदा ज़िन्दगी में बड़ीबड़ी  खुशियाँ ला सकती हैं.
प्यार वाली झप्पी
शादी में प्यार और खुशियाँ बनी रहें इसके लिए उसे हर समय प्यार के खादपानी से सींचते रहना होगा. शायद आप नहीं जानते कि पतिपत्नी के बीच वह पल सबसे खुशनुमा होता है जब वे एक दुसरे को  प्यार से गले लगाते हैं या प्यार से सहलाते हैं. उनका एक दूसरे प्रति यह व्यवहार दर्शाता है कि वे एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं. दरअसल,ऐसा करते समय वे दोनों एकदूसरे के साथ इमोशनली अटैच होते हैं. प्यार की छोटी सी झप्पी पतिपत्नी के रिश्ते में बड़ेबड़े कमाल दिखाती है. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब हम झगडे के दौरान  सामने वाले को गले लगाते हैं, तो उसके शरीर से गुस्से को बढ़ाने वाले हारमोन तेजी से कम होने लगते हैं और सामने वाला गुस्से को भूल कर आप के प्यार को महसूस करने लगता  है यानी आप की प्यार की झप्पी उस के गुस्से को पल भर में दूर कर देती है.
दिन की शुरुआत किस ऑफ़ लव से
पति और पत्नी दिन की शुरुआत  किस ऑफ़ लव से कर के  अपने डगमगाते रिश्तों में सुधार लाने के साथ-साथ अपने प्यार को फिर से जवान बना सकते है. एक दूसरे को गले लगाना और किस करना पति पत्नी के बीच दिन की शुरुआत के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है. यह पति पत्नी के रिश्ते के बीच रोमांस के जुनून को बनाए रखता है.
कनेक्टिविटी जोड़े दिल के तार
भले ही आप कितने ही बिजी क्यों न हों, एक-दूसरे को दिन में फोन करें, मैसेज भेजें बस यह जानने के लिए कि सब कैसा चल रहा है, लंच किया कि नहीं. ऐसी छोटी छोटी बातें पतिपत्नी को एक दुसरे से जोडती हैं और एक कामयाब शादी को गुज़रते समय के साथ और भी खूबसूरत, और भी मज़बूत बनाती है. इसके अलावा जब भी खाली समय मिले इस बात पर विचार करें कि क्या आप अपने पार्टनर की सोच और उसकी भावनाओं को समझते हैं  कितनी बार उसकी तारीफ करते हैं? उस के उन गुणों के बारे में सोचते हैं जिन्हें  देखकर आप  उन की तरफ आकर्षित हुए थे? जिन गुणों को देख कर आपने उन्हें अपना जीवन साथी बनाने का निर्णय लिया था.
प्लीज ,सॉरी ,थैंक्यू  जैसे शब्दों से चलायें जादू.
आप किसी से मेट्रो में टकरा जाने पर भी सॉरी कह देते हैं , ऐसे लोग जो हमें ज़िन्दगी के मोड़ पर शायद ही दोबारा मिलें जब हम उन्हें छोटी सी बात पर सॉरी बोल देते हैं तो घर में पति या पत्नी एक दुसरे को इमोशनली हर्ट करने के बाद भीं सॉरी कहना ज़रूरी क्यों नहीं समझते ? ऐसा हरगिज न करें, गलती होने पर माफी जरूर मांगे.  सॉरी कहना बुरी बात नहीं है और ना ही माफ करना मुश्किल काम है, माफी मांगने से झगडा आगे नही बढता, इसलिए माफी मांगने में कंजूसी ना करें. इसी तरह अगर आपके पार्टनर ने आपके घर व आपके लिए कुछ स्पेशल किया है तो उसे  थैंक्यू जरूर कहें.आपके द्वारा कहा गया थैंक्यू उनको कितनी खुशी देगा उसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते. थैंक्यू शब्द रिश्तों में जादू का काम करता है. 
ख़ास पलों को याद रखें
पति पत्नी एक दुसरे की लाइफ से जुड़े खास पलों को याद रखें. एक दूसरे का बर्थडे एनिवेर्सरी, पहली मुलाकात, प्रमोशन आदि. साथ ही इन खास अवसरों पर एक दूसरे के लिए कुछ खास सरप्राइज भी प्लान करें. यह कोई मुश्किल काम नहीं लेकिन इस छोटे से काम से आप अपने लाइफ पार्टनर की ज़िन्दगी में अपनी एक खास जगह ज़रूर बना सकते हैं.
तारीफ से जीतें दिल
आपके पार्टनर  ने कोई नयी डिश बनायी, कोई नयी ड्रेस पहनी,नया हेयर स्टाइल बनाया तो उसकी तारीफ़ करना न भूलें. इस तारीफ को हो सके तो घर वालों, दोस्तों के सामने भी कहें. इससे आपके लाइफ पार्टनर के दिल में आपके लिए प्यार बढेगा. अगर आपके पार्टनर ने कुछ नया किया है तो उसकी तारीफ़ जरूर करें, इस से उसका हौसला बढेगा और वह अपनी कामयाबी का क्रेडिट आपको देगा.
अपशब्दों से रखें दूरी
आपसी बातचीत के दौरान हमेशा तहजीब व शिष्टाचार रखें. कभी भी अपशब्दों या दिल दुखाने वाली बातें ना करें. बहस करते समय खुद पर कंट्रोल रखें क्योंकि झगड़े के दौरान कहे गए अपशब्द दिलों को आहत कर देते है और रिश्तों में दूरियां पैदा करते हैं.