आरक्षण क्यों
आरक्षण के संदर्भ में यह बात शुरू से ही उठती रही है कि आखिर आरक्षण की आवश्यकता क्या है. क्या पिछड़े लोगों को सुविधाएं देकर उन्हें मुख्य धारा में नहीं लाया जा सकता है. यह सवाल जायज हो सकता है, लेकिन ऐसे सवाल करने वालों को पहले यह जानना होगा कि आरक्षण दिया क्यों गया है.
आरक्षण दिए जाने के पीछे न्याय का सिद्धांत काम करता है, यानी राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी लोगों के साथ न्याय करे. न्याय को दो अर्थों में देखा जा सकता है. पहला कानून के स्तर पर और दूसरा समाज के स्तर पर. कानून के स्तर पर न्याय दिलाने के लिए न्यायपालिका का गठन किया गया, जिसमें खामियां हो सकती है, लेकिन उन खामियों को सुधारा जा सकता है, जिससे न्याय सभी को मिल सके. उसी तरह समाज के स्तर पर न्याय का अर्थ है, वितरणमूलक न्याय से यानी समाज में प्रतिष्ठा, राजनीतिक शक्ति और आर्थिक संसाधानों का वितरण ऐसे हो जिससे किसी वर्ग या समुदाय को ऐसा नहीं लगे कि उसके साथ अन्याय हो रहा है, उसे सही मौका नहीं मिल रहा है.
सामाजिक अन्याय भारत में सदियों से होता रहा और अभी भी जारी है. भारत में सामाजिक अन्याय का सबसे बड़ा कारण जातिय व्यवस्था रही और इसके कारण सामाजिक प्रतिष्ठा कर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जाति के आधार पर मिली. जाति के आधार पर कुछ वर्गों ने आर्थिक संसाधनों पर कब्जा किया और कुछ को आर्थिक संसाधनो से वंचित रखा गया. आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण योग्यता प्रभावित हुई और योग्यता के अभाव में पिछड़ापन आया और असमानता कम होने के बजाय बढ़ता ही गया. इसी असमानता को कम करने के लिए विकल्प की तलाश की गई. इस असानता को कम करने के लिए तीन विकल्प मौजूद थे. पहला विकल्प सुविधाओं का था यानी शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण आदि की सुविधाएं उन वर्गों को दी जाएं जिसे अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है. लेकिनcके पास इतना संसाधन नहीं था और न ही है कि वह सभी लोगों को इतनी ज्यादा और अच्छी सुविधाएं दे सके ताकि वह शारीरिक और मानसिक तौर पर उन वर्गों का मुकाबला कर सके, जिनके पास अपना संसाधन है, जो खुद के संसाधन से अपना विकास करने के योग्य हैं. राज्य ने वंचित वर्गों के लिए सुविधाएं दी है, लेकिन उस स्तर तक नहीं दे पायी है, जिस स्तर की सुविधाएं उच्च वर्गों के संसाधन युक्त लोगों को प्राप्त है. एक दूसरी बात यह भी है कि भारतीय समाज में निम्न जातीय लोगों को मानसिक तौर पर भी इतनी प्रताडऩा मिली है कि वे सामान्य वर्ग के लोगों के साथ समान सुविधाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने में पूरी तरह सक्षम नहीं थे और शायद उस समय तक नहीं हो पाएंगे, जब तक जातीय दंभ की भावना निम्नतम स्तर पर नहीं होगी. इसलिए सुविधाओं से समानता का सवाल ही नहीं उठता.
दूसरा विकल्प वरीयता है, यानी दो समान योग्यता वाले लोगों में पिछड़े को वरीयता दी जाए, जैसाकि अमेरिका आदि कई देशों में दी गई. लेकिन वरीयता समान योग्यता के बाद दी जा सकती है, जबकि यहां समान योग्यता तक पहुंचाने का रास्ता ही इतना कठिन है कि इसमें दशकों लग जाने के बाद भी मुश्किल से समान योग्यता आती क्योंकि यह सदियों से हो रहे शोषण का परिणाम रहा है. इसलिए भारत में इस विकल्प को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता था.
तीसरा विकल्प आरक्षण का था, जिसे भारत सरकार ने स्वीकार किया, क्योंकि सामाजिक न्याय दिलाने के लिए, कोई अन्य विकल्प नहीं था. हालांकि आरक्षण से योग्यता का ह्रास जरूर होता है और कुछ वर्गों के साथ इसे अन्याय भी कहा जा सकता है, लेकिन यह अन्याय उस अन्याय की अपेक्षा काफी कम है, जो हजारों सालों से होता रहा है और जिसके परिणाम स्वरूप इस व्यवस्था को अपनाया जाना नितांत जरूरी हो गया. यह भी सच है कि आरक्षण से सवर्ण हिंदुओं में विद्रोह की भावना पनपती है, लेकिन अगर आरक्षण नहीं दिया गया तो इससे उन वर्गों में इससे काफी तीव्र विद्रोह की भावना पनपेगी और जो विस्फोटक रूप धारण कर सकता है, क्योंकि उनके पास सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक संसाधनों का अभाव है, जबकि सवर्णों के पास सामाजिक प्रतिष्ठा भी है और अपेक्षाकृत आर्थिक संसाधन भी इन लोगों से अधिक है. इसलिए आरक्षण की आवश्यकता पर किसी तरह का कोई संदेह होना ही नहीं चाहिए.
किसके लिए हो आरक्षण
आरक्षण से संबंधित सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर आरक्षण किसे दिया जाना चाहिए और इसका आधार क्या हो. आरक्षण लागू करने का मुख्य कारण सामाजिक अन्याय या वितरण मूलक अन्याय को कम करना रहा है. इसलिए यह जरूरी है कि इसे देने से पहले इस बात को समझा जाए कि आखिर अन्याय हुआ किसके साथ है. संविधान में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को इसके दायरे में रखने की बात की गई है, जिसे आधार बनाकर पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि यह तर्क देते हैं, कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संविधान विरोधी है. लेकिन यहां इस बात को समझना जरूरी है कि क्या भारतीय संविधान में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की बात कही गई है, तो इसमें आर्थिक पिछड़ापन नहीं जोड़ा जा सकता है. भारतीय संविधान का स्वरूप लचीला है, इसमें संशोधन किया जा सकता है और किया भी गया है. इसलिए संविधान में अगर आर्थिक पिछड़ापन के आधार पर आरक्षण की बात नहीं की गई है, तो इसमें संशोधन कर इसे जोड़ा जा सकता है. अत: यह तर्क सही नहीं है. फिर आर्थिक आधार पर आरक्षण क्यों नहीं दिया जाना चाहिए. इसके पीछे का कारण कुछ और है. पिछड़ापन दो कारणों से होता है. पहला कारण स्वयं अपनी क्षमता का विकास समय की मांग के अनुसार नहीं करना और दूसरा उस क्षमता के विकास को समाज और शासन द्वारा अवरूद्ध कर दिया जाना. जिन लोगों के पिछड़ेपन का कारण स्वयं वह है, उसे आरक्षण देना एक बड़ी भूल होगी क्योंकि इससे विकास करने की भावना प्रभावित होगी और कोई भी व्यक्ति आरक्षण का लाभ उठाने के लिए अपने आर्थिक संसाधनों में कमी कर सकता है. इसलिए आरक्षण उन वर्गों को दिया जाना चाहिए, जिसके पिछड़ेपन का कारण समाज रहा है. भारत में दलितों, आदिवासियों तथा पिछड़ी जातियों के पिछड़ेपन का कारण समाज तथा शासन रहा है, क्योंकि जाति के आधार पर बंटे समाज में जाति को पेशा का आधार बनाया गया और कुछ जातियों को वैसे कामों से वंचित रखा गया, जिससे उसका सामाजिकआर्थिक विकास हो सकता था. इस जाति व्यवस्था को स्थापित करने तथा कुछ वर्गों को विकास करने से रोकने में शासन का भी बराबर का योगदान रहा है, क्योंकि राजशाही में इस व्यवस्था को कठोरता से लागू किया गया. इसलिए भारत में आरक्षण का आधार जाति ही हो सकता है, क्योंकि उच्च जाति के किसी व्यक्ति के विकास में न तो समाज रोड़ा बना है और न ही शासन.
आरक्षण का स्याह पक्ष
भारत की वर्तमान आरक्षण व्यवस्था पर समय-समय पर यह सवाल उठता रहता है कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को कम मिल रहा है, जो इसके वास्तविक हकदार हैं, बल्कि उन लोगों को अधिक मिल रहा है, जिन्हें अब इसकी जरूरत नहीं रह गई है. भारत में आरक्षण का राजनीतिकरण हो गया है और इसे वोट बैंक का आधार बना लिया गया है, जिसके कारण सही तरीके से इसकी समीक्षा नहीं हो पाती है और इसके दायरे में आने वाले वर्गों की संख्या तो लगातार बढ़ायी जा रही है, लेकिन इसमें कटौती नहीं की जा रही है. यह संदेह जायज है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसका राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है. लेकिन इसके साथ यह भी समझना होगा कि आरक्षण का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ देना नहीं है और न ही केवल आर्थिक उद्धार है. आरक्षण का एक सबसे बड़ा उद्देश्य प्रदर्शनात्मक प्रभाव उत्पन्न करना है, जिससे उस वर्ग के लोगों को प्रोत्साहन मिले, जिस वर्ग का व्यक्ति आरक्षण का लाभ उठाकर शासन में बड़े पदों पर पहुंचा है. इससे उस वर्ग के लोगों का शासन के प्रति भरोसा बढ़ता है और उसमें मेहनत की प्रवृति का विकास होता है, जिसका लाभ उस वर्ग के अन्य सदस्यों को कम या अधिक जरूर मिलता है.
हालांकि आरक्षण में निहित दोषों को दूर करना निहायत जरूरी है और इसके लिए समय-समय पर इसकी समीक्षा की जानी चाहिए ताकि सही लोगों को इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके. इसके लिए राजनीति से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोग कदम नहीं उठाएंगे, क्योंकि उन्हें इससे वोट खिसकने का खतरा महसूस होता है, इसलिए यह जरूरी है कि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के उन प्रतिनिधियों को आगे आकर इसके लिए आवाज उठाना पड़ेगा. उच्च वर्गीय लोगों के ऐसे सवालों से आरक्षण के लाभार्थी वर्गों को इसमें उनका अपना स्वार्थ दिखाई देता है, इसलिए उन्हीं के वर्ग के जागरूक लोगों को इसकी जिम्मेदारी उठानी होगी और अनुसूचित जाति-जनजाति में भी क्रीमिलेयर की अवधारणा लागू करने, केवल एक बार आरक्षण का लाभ मिलने, आरक्षण में आरक्षण दिए जाने जैसे मुद्दों को उठाना होगा ताकि आरक्षित वर्गों में इसके लाभ से वंचित लोग एक मंच पर आ सकें और राजनीतिक दलों पर इसका दबाव पड़े.
क्रीमीलेयर
क्रीमीलेयर का मतलब होता है, मलाईदार परत यानी आरक्षण पाने वाले वर्गों के वे लोग जो सरकार के द्वारा बनाए गए मापदंड( आय तथा सरकारी नौकरी में उच्च स्थान) के अनुसार आरक्षण के अधिकारी नहीं है. पिछड़े वर्ग में तो क्रीमीलेयर का प्रावधान है, लेकिन अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति में इसका प्रावधान नहीं है, जिसे लागू करने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि आरक्षण का लाभ कुछ लोगों तक सीमित न रह पाए.
एक बार आरक्षण
एक बार आरक्षण से तात्पर्य है कि अगर किसी व्यक्ति को एक बार आरक्षण मिल चुका है, तो उसके बेटा या बेटी को आरक्षण न मिले क्योंकि आरक्षण का लाभ उठा लेने के बाद व्यक्ति की स्थिति सामान्य वर्ग के लोगों की तरह हो जाती है और उसे सुविधाएं दी जा सकती है, आरक्षण नहीं. इससे उस वर्ग के दूसरे लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा और आरक्षण के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति की संभावना बढ़ जाएगी.
आरक्षण में आरक्षण
आरक्षण में आरक्षण का तात्यपर्य यह है कि जिन वर्गों को आरक्षण दिया जा रहा है, उसमें भी यह देखा जाए कि कौन सी जाति ज्यादा पिछड़ी है और कौन कम. इसके बाद यह व्यवस्था की जाए कि अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्ग(ओबीसी) के अंतर्गत जिन जातियों की स्थिति ज्यादा खराब है, उन्हें उसके अंदर ज्यादा आरक्षण दिया जाए ताकि इसका लाभ भी आनुपातिक तरीके से वितरित हो और आरक्षण का लाभ सही लोगों को मिल सके.