Wednesday, November 30, 2016

असहिष्णुता राजनीतिक नहीं है, व्यक्तिगत भी है, सामाजिक भी है.

आप वो नहीं कह सकते जो उन्हें पसंद नहीं.  या फिर वो जिस से इस बात का शक हो कि आरोप शायद उनपर है,  फिर भले ही आप ने शायद अपने आप पर ही ग़लत होने का शक किया हो या अपनों पर. मुझे मेरे समाज की समीक्षा करने का अधिकार है.  मेरा समाज है, वो मुझ से है और मैं उस से. और सारी असहिष्णुता राजनीतिक नहीं है, व्यक्तिगत भी है, सामाजिक भी है.

सुबह साढ़े सात बजे या रात के दो बजे ट्रैफिक लाइट पर रुक जाओ तो लोग हॉर्न मारने लगते हैं, ये असहिष्णुता है. फ्लाइट लैंड होने पर पायलट की अनुमति के पहले अगर सारे यात्री खड़े होकर अपना सामान निकलने लगते हैं तो ये भी असहिष्णुता है. असहिष्णुता कोई राजनीतिक शब्द नहीं है. ये बीजेपी विरोधी शब्द नहीं है. ये मोदी विरोधी शब्द नहीं है.

कभी सोच के देखिये हवाई जहाज़ से सब साथ निकलेंगे, एक ही बस में अपने अपने सामान तक साथ जाएंगे, कमाल ये है कि बस में से निकलने तक एक दूसरे को धकियाने का प्रयास चलता रहता है, फिर भले सामान की बेल्ट पर साथ खड़े रहेंगे.  ये सब असहिष्णुता है और इसे बीजेपी ले कर नहीं आई है.

मेरी थोड़ी बहुत समझदारी से इस असहिष्णुता का गर्भ सामाजिक असमानता में है. होने और न होने के बीच की कई सतहों के बीच मुसलसल भागते लोग जो पाने और न पा लेने की रोज़ की लड़ाई में अक्सर ये भूलते रहते हैं कि पड़ोस में भी कोई खड़ा है जिसकी ज़रूरत मेरी ज़रूरत से भिन्न हो सकती है. ये भूलते रहते हैं कि हम सब एक समाज का हिस्सा हैं जो एक शहर का हिस्सा है जो एक देश का हिस्सा है और जो एक दुनिया का हिस्सा है. 

ये भूल जाना कि मेरे साथ और भी कोई सफर में है, और वो भी वहीं जा रहा है जहां मैं जा रहा  हूँ.  उसका घर हरा हो सकता है और मेरा गेरुआ पर हैं दोनों घर ही और थोड़ा शांति से सोचें तो दोनों घर पड़ोस में ही हैं.  ये भूल जाना असहिष्णुता है.  ये भूल जाना कि उसका सफर भी मेरे सफर जितना ही महत्वपूर्ण है, ये असहिष्णुता है. आमिर या शाह रुख़ के पीछे खड़े हो जाइये या उन के सामने ये आपका फैसला है.

असहिष्णुता की बहस में हम ग़लत सहिष्णुता सीख गए हैं.  उस सड़क से अपनी गाड़ी में बैठ के गुज़र जाना जिसके फुटपाथ पर बच्चे सोते हैं ये ग़लत सहिष्णुता है. अपने समाज से और अपनी सरकार से ये न पूछना कि इस इस देश के 40 प्रतिशत लोगों को खाना क्यों नहीं मिलता ये ग़लत सहिष्णुता है.  जय जवान जय किसान वाले इस देश में लाखों किसान हर साल आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ये न जानना ग़लत सहिष्णुता है, सिर्फ इसलिए कि आपका बच्चा स्कूल जाता है इस सवाल को भूल जाना कि मेरी गाड़ी के शीशे पर दस्तक देता बच्चा स्कूल क्यों नहीं गया ये ग़लत सहिष्णुता है. हम ग़लत चीज़ें सह कर असहिष्णुता की बहस में व्यस्त हैं.  असहिष्णुता व्यक्तिगत बीमारी है, सामाजिक बीमारी है. राजनीति में इसका सिर्फ इस्तेमाल होता है.

अखलाक़ के घर में गोमांस नहीं था ये बात साबित हो चुकी है.  चलिए माना कि उस रात भीड़ से ग़लती हो गयी. एक बेटा जो हिंदुस्तानी वायुसेना के लिए काम करता था उसके बाप को इस शक में मार दिया गया कि उसके फ्रिज में गोमांस था.  कृपया मेरी इस बात में कोई तंज़ न पढ़ें क्यूंकि नहीं है. भीड़ का कोई किरदार नहीं होता, एक जूनून होता है एक कोलाहल होता है. अचानक एक आवाज़ आई होगी कि 'मारो साले को' और एक हत्या हो गयी. पर आज सबको पता है कि गोहत्या नहीं हुयी थी, शायद उस परिवार को उसके पुश्तैनी घर से हटा कर कहीं और भेज दिया गया. कितने हिन्दुओं ने खड़े होकर कहा कि ये ग़लत हुआ? सरकार के किन नुमाइंदों ने कहा कि ये ग़लत हुआ?

हमने माना कि याकूब मेमन को टीवी स्टार बना दिया गया था और उसके जनाज़े की अथाह भीड़ में ज़्यादातर लोग कौतूहल के कारण थे सम्मान के कारण नहीं. पर सच ये है की उसके जनाज़े में हज़ारों मुसलमानों ने शिरकत की. कितने मुसलामानों ने कह दिया कि ये ग़लत था? हमसफ़र हैं हम और हमें ख्याल रखना पड़ेगा कि हमारे साथ कौन खड़ा है और उसकी ज़रूरतें क्या हैं.  दादरी के बाद मुसलमानों को अच्छा लगता अगर सब हिन्दू मिल के कहते कि ग़लती हुयी. याकूब के जनाज़े के बाद हिन्दुओं को अच्छा लगता अगर मुसलमान खड़े होकर मानते की ग़लती हुयी. याकूब को बम्बई बम धमाकों के लिए अदालत ने मौत की सजा दी.  अदालत ने फांसी की सुबह चार बजे तक बहस की पर फिर भी माना कि वो दोषी था, इतना दोषी कि उसे फांसी दे दी जाय तो फिर हमें उस फैसले का सम्मान करना होगा. वो अदालत हमारे समाज में न्याय करने की व्यवस्था है. ऐसे और कई मौके हैं जब हिन्दू और मुसलमान दोनों ने अपने अपने फ़र्ज़ नहीं निभाए.  दोनों ने अपने पड़ोसियों का ख्याल नहीं रखा. ये अलग बहस है कि क्यों नहीं रखा. और यहाँ से राजनीति का अपना किरदार शुरू होता है.

ये हमेशा याद रखने वाली बात है कि जो मुसलमान हिन्दुस्तान में रहते हैं वो वो मुसलमान हैं जिन्होंने 1947 में इस देश को अपना वतन माना था.  उनके पास मौक़ा था कि वो एक 'मुसलमान देश' चले जाते.  वो नहीं गए क्योंकि वो एक धर्मनिरपेक्ष देश में अल्पसंख्यक बन के रहने को तैयार थे बनिस्बत इस के कि वो एक बहुसंख्यक मुसलमान समाज में पाकिस्तान में रहते. इस बात का सम्मान होना चाहिए.  कम से कम ये तो तय है कि देश के लिए उनका प्यार हमारे प्यार से कम नहीं है. हाँ खराब लोग हर धर्म में हैं, हिन्दुओं में भी और मुसलमानों में भी. असल अल्पसंख्यक दरअसल वो हैं. 1984 ग़लत था, 1992 ग़लत था, गोधरा, मुज़फ्फरनगर, अयोध्या, कश्मीर सब ग़लत था और अलग अलग वक़्त अलग अलग लोगों ने इन सभी हत्याओं का विरोध किया और अगर नहीं किया तो वो भी ग़लत है, करना चाहिए था.  पर ये भी सही नहीं  है कि जो आज पहली बार बोल रहे हैं, अगर पहली बार बोल रहे हैं तो उनको इस वजह से खामोश कर दिया जाय क्योंकि वो पहली बार बोल रहे हैं.

प्रभुत्व इंसान की कमज़ोरी है और इंसान से ही समाज है, लिहाज़ा ये सामाजिक कमज़ोरी भी है.  समाज ग़लतियाँ करते रहे हैं करते रहेंगे, इस यूटोपियन ख़याली पुलाव से बच निकलना चाहिए कि असहिष्णुता खत्म हो जायेगी. ये बहुरंगी समाज की समस्या है. पर इस से भी बड़ी समस्या राजनीतिक है. 

इस से भी बड़ी समस्या ये है क्या राजनीति सामाजिक असहिष्णुता का प्रयोग अपने लाभ के लिए करेगी. अगर आप 1992, गोधरा, कश्मीर याद रखते हैं तो आपसे ये अपेक्षा है कि आपको याद हो कि सामाजिक असहिष्णुता का राजनीति ने हमेशा इस्तेमाल किया है. 47 के पहले से, अब भी कर रही है, लड़ाई इस बात से होनी चाहिए और शायद है भी कि सरकारी तंत्र में असहिष्णुता कैसे हो सकती है.

वो लोग जो संसद में बहुसंख्यक सरकार का हिस्सा हैं वो कैसे असहिष्णुता का प्रचार कर सकते हैं.  वो लोग कैसे बच के निकल जाते हैं अमानवीय और असंवेदनशील बयानों और तकरीरों के बाद. क्यों आये दिन हिन्दू राष्ट्र का तस्करा होता रहता है, ये असंवैधानिक बहस है और सरकार की ज़िम्मेदारी है की इस बहस को बंद किया जाय, या कम से कम किसी एक तक़रीर में स्पष्टतः कह दिया जाय कि सरकार इस बहस  में किस तरफ है.

Good Cop, Bad Cop का खेल अब बेहद पारदर्शी हो चुका है. कैसे बनेगा हिन्दू राष्ट्र? क्या सारे मुसलमान, सिख, ईसाई सब हिन्दू बन जाएंगे? या फिर वो सब अपने अपने धर्मों को मानते हुए हिंदुत्व के प्रभुत्व को स्वीकार कर लेंगे? या फिर कुछ और छोटे छोटे पाकिस्तान, खालिस्तान और एंग्लोस्तान बनेंगें? ये बात समझ नहीं आती है. समझ में आती है तो सिर्फ ये बात कि असहिष्णुता समाज में है, सिर्फ समाज में और अगर हम इस से निजात पा लें तो कोई भी राजनीति कभी भी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकेगी.

ज़रूरत है कि हम अपनी सरकारों से सही सवाल पूछें.  सिर्फ बीजेपी से सिर्फ मोदी मोदी (टाइपिंग एरर नहीं है, उनका नाम मुझे हमेशा दो बार ही सुनाई देता है) जी से नहीं,  नहीं अखिलेश, नीतीश, केजरीवाल, जयललिता, ममता सबसे कि मेरे बच्चे का स्कूल कहाँ है और मेरे पडोसी की माँ का अस्पताल कहाँ है? रोटी कमाने अपने परिवार को छोड़ के बम्बई क्यों जाना पड़ता है? मेरे खेतों में पानी क्यों नहीं आता?

सही सवाल पूछो उनसे ताकि वो तुम्हें तुम्हारे ग़लत सवालों में न उलझाये रखें.  असहिष्णुता तुम में है, उन में नहीं वो तो उनका हथियार मात्र है. उनसे कह दो कि बाक़ी हम आपस में संभाल लेंगे. पड़ोसी दिन में पांच बार लाउडस्पीकर पर शोर मचाते हैं तो हम भी साल में आठ दस बार सड़कें जाम कर देते हैं. हम उनसे बात करके मामले सुलझा लेंगे. आखिर वो पडोसी हैं हमारे, फिर क्या हुआ कि हमारे घरों के रंग अलग हैं.

ग़ालिब मेरे कज़न थे शायद पिछले जनम में, जब भी समझदारी की कोई भी बात करता हूँ वो याद आ जाते हैं, 


बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ, कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई.

sample अभिनन्दन पत्र


Tuesday, November 29, 2016

महिलाओं के कानूनी अधिकार

हमारे समाज में महिलाएं शिक्षित होने के बावजूद भी अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं, सभी शिक्षित या अशिक्षित महिलाएं नहीं पर हाँ भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी अपने कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं इसलिए लेखिका उषा गुप्ता जी का एक उपयोगी लेख जागरण मंच पर साझा कर रही हूँ| मंच पर सभी लोग बुद्धिजीवी हैं, इस लेख में लिखित जानकारी कुछ समय पहले की है अगर इनमें कोई संशोधन हुआ है या और भी महिलाओं के कानूनी अधिकारों के बारे में आपलोगों को जानकारी हो तो कृपया साझा करें|
आज महिलाएं कामयाबी की बुलंदियों को छू रही हैं| हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं| इन सबके बावजूद उन पर होने वाले अन्याय, बलात्कार, प्रताड़ना, शोषण आदि में कोई कमी नहीं आई है और कई बार तो उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी तक नहीं होती| इसी सिलसिले में हमने एडवोकेट संपूर्णानंद पाठक से बात की| आइये उनके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर महिलाओं के अधिकारों से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलुओं के बारे में जाने|
महिलाओं के कानूनी अधिकार
घरेलू हिंसा
[डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट २००५]
१. शादीशुदा या अविवाहित स्त्रियाँ अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रताड़ना को घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत दर्ज कराकर उसी घर में रहने का अधिकार पा सकती हैं जिसमे वे रह रही हैं|
२. यदि किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध उसके पैसे, शेयर्स या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किया जा रहा हो तो इस कानून का इस्तेमाल करके वह इसे रोक सकती है|
३. इस कानून के अंतर्गत घर का बंटवारा कर महिला को उसी घर में रहने का अधिकार मिल जाता है और उसे प्रताड़ित करने वालों को उससे बात तक करने की इजाजत नहीं दी जाती|
४. विवाहित होने की स्थिति में अपने बच्चे की कस्टडी और मानसिक/शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा मांगने का भी उसे अधिकार है|
५. घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती है, इसके लिए वकील को लेकर जाना जरुरी नहीं है| अपनी समस्या के निदान के लिए पीड़ित महिला- वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है|
६. भारतीय दंड संहिता ४९८ के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है| अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा पाने की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है|
७. हिन्दू विवाह अधिनियम १९९५ के तहत निम्न परिस्थितियों में कोई भी पत्नी अपने पति से तलाक ले सकती है- पहली पत्नी होने के वावजूद पति द्वारा दूसरी शादी करने पर, पति के सात साल तक लापता होने पर, परिणय संबंधों में संतुष्ट न कर पाने पर, मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने पर, धर्म परिवर्तन करने पर, पति को गंभीर या लाइलाज बीमारी होने पर, यदि पति ने पत्नी को त्याग दिया हो और उन्हें अलग रहते हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका हो तो|
८. यदि पति बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कोर्ट में पत्नी से पहले याचिका दायर कर दे, तब भी महिला को बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है|
९. तलाक के बाद महिला को गुजाराभत्ता, स्त्रीधन और बच्चों की कस्टडी पाने का अधिकार भी होता है, लेकिन इसका फैसला साक्ष्यों के आधार पर अदालत ही करती है|
१०. पति की मृत्यु या तलाक होने की स्थिति में महिला अपने बच्चों की संरक्षक बनने का दावा कर सकती है|
११. भारतीय कानून के अनुसार, गर्भपात कराना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन गर्भ की वजह से यदि किसी महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो तो वह गर्भपात करा सकती है| ऐसी स्तिथि में उसका गर्भपात वैध माना जायेगा| साथ ही कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे गर्भपात के लिए बाध्य नहीं कर सकता| यदि वह ऐसा करता है तो महिला कानूनी दावा कर सकती है|
१२. तलाक की याचिका पर शादीशुदा स्त्री हिन्दू मैरेज एक्ट के सेक्शन २४ के तहत गुजाराभत्ता ले सकती है| तलाक लेने के निर्णय के बाद सेक्शन २५ के तहत परमानेंट एलिमनी लेने का भी प्रावधान है| विधवा महिलाएं यदि दूसरी शादी नहीं करती हैं तो वे अपने ससुर से मेंटेनेंस पाने का अधिकार रखती हैं| इतना ही नहीं, यदि पत्नी को दी गई रकम कम लगती है तो वह पति को अधिक खर्च देने के लिए बाध्य भी कर सकती है| गुजारेभत्ते का प्रावधान एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट में भी है|
१३. सीआर. पी. सी. के सेक्शन १२५ के अंतर्गत पत्नी को मेंटेनेंस, जो कि भरण-पोषण के लिए आवश्यक है, का अधिकार मिला है|
यहाँ पर यह जान लेना जरुरी होगा कि जिस तरह से हिन्दू महिलाओं को ये तमाम अधिकार मिले हैं, उसी तरह या उसके समकक्ष या सामानांतर अधिकार अन्य महिलाओं [जो कि हिन्दू नहीं हैं] को भी उनके पर्सनल लॉ में उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग वे कर सकती हैं|
लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े अधिकार
१४. लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है, जो किसी विवाहिता को मिलता है|
१५. लिव इन रिलेशनशिप संबंधों के दौरान यदि पार्टनर अपनी जीवनसाथी को मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना दे तो पीड़ित महिला घरेलू हिंसा कानून की सहायता ले सकती है|
१६. लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुई संतान वैध मानी जाएगी और उसे भी संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार होगा|
१७. पहली पत्नी के जीवित रहते हुए यदि कोई पुरुष दूसरी महिला से लिव इन रिलेशनशिप रखता है तो दूसरी पत्नी को भी गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है|
बच्चों से सम्बंधित अधिकार
१८. प्रसव से पूर्व गर्भस्थ शिशु का लिंग जांचने वाले डॉक्टर और गर्भपात कराने का दबाव बनानेवाले पति दोनों को ही अपराधी करार दिया जायेगा| लिंग की जाँच करने वाले डॉक्टर को ३ से ५ वर्ष का कारावास और १० से १५ हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है| लिंग जांच का दबाव डालने वाले पति और रिश्तेदारों के लिए भी सजा का प्रावधान है|
१९. १९५५ हिन्दू मैरेज एक्ट के सेक्शन २६ के अनुसार, पत्नी अपने बच्चे की सुरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए भी निवेदन कर सकती है|
२०. हिन्दू एडॉप्शन एंड सेक्शन एक्ट के तहत कोई भी वयस्क विवाहित या अविवाहित महिला बच्चे को गोद ले सकती है|
२१. यदि महिला विवाहित है तो पति की सहमति के बाद ही बच्चा गोद ले सकती है|
२२. दाखिले के लिए स्कूल के फॉर्म में पिता का नाम लिखना अब अनिवार्य नहीं है| बच्चे की माँ या पिता में से किसी भी एक अभिभावक का नाम लिखना ही पर्याप्त है|
जमीन जायदाद से जुड़े अधिकार
२३. विवाहित या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है| इसके अलावा विधवा बहू अपने ससुर से गुजराभात्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है|
२४. हिन्दू मैरेज एक्ट १९५५ के सेक्शन २७ के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है| इसके अलावा पत्नी के अपने ‘स्त्री-धन’ पर भी उसका पूरा अधिकार रहता है|
२५. १९५४ के हिन्दू मैरेज एक्ट में महिलायें संपत्ति में बंटवारे की मांग नहीं कर सकती थीं, लेकिन अब कोपार्सेनरी राइट के तहत उन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है| यह कानून सभी राज्यों में लागू हो चुका है|
कामकाजी महिलाओं के अधिकार
२६. इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट रूल- ५, शेड्यूल-५ के तहत यौन संपर्क के प्रस्ताव को न मानने के कारण कर्मचारी को काम से निकालने व एनी लाभों से वंचित करने पर कार्रवाई का प्रावधान है|
२७. समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने का अधिकार है|
२८. धारा ६६ के अनुसार, सूर्योदय से पहले [सुबह ६ बजे] और सूर्यास्त के बाद [शाम ७ बजे के बाद] काम करने के लिए महिलाओं को बाध्य नहीं किया जा सकता|
२९. भले ही उन्हें ओवरटाइम दिया जाए, लेकिन कोई महिला यदि शाम ७ बजे के बाद ऑफिस में न रुकना चाहे तो उसे रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता|
३०. ऑफिस में होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ महिलायें शिकायत दर्ज करा सकती हैं|
३१. प्रसूति सुविधा अधिनियम १९६१ के तहत, प्रसव के बाद महिलाओं को तीन माह की वैतनिक [सैलरी के साथ] मेटर्निटीलीव दी जाती है| इसके बाद भी वे चाहें तो तीन माह तक अवैतनिक [बिना सैलरी लिए] मेटर्निटी लीव ले सकती हैं|
३२. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६ के तहत, विधवा अपने मृत पति की संपत्ति में अपने हिस्से की पूर्ण मालकिन होती है| पुनः विवाह कर लेने के बाद भी उसका यह अधिकार बना रहता है|
३३. यदि पत्नी पति के साथ न रहे तो भी उसका दाम्पत्य अधिकार कायम रहता है| यदि पति-पत्नी साथ नहीं भी रहते हैं या विवाहोत्तर सेक्स नहीं हुआ है तो दाम्पत्य अधिकार के प्रत्यास्थापन [रेस्टीट्यूशन ऑफ़ कॉन्जुगल राइट्स] की डिक्री पास की जा सकती है|
३४. यदि पत्नी एचआईवी ग्रस्त है तो उसे अधिकार है कि पति उसकी देखभाल करे|
३५. बलात्कार की शिकार महिला अपने सेक्सुअल बिहेवियरमें प्रोसिंक्टअस [Procinctus] तो भी उसे यह अधिकार है कि वह किसी के साथ और सबके साथ सेक्स सम्बन्ध से इनकार कर सकती है, क्योंकि वह किसी के या सबके द्वारा सेक्सुअल असॉल्ट के लिए असुरक्षित चीज या शिकार नहीं है|
३६. अन्य समुदायों की महिलाओं की तरह मुस्लिम महिला भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ के तहत गुजाराभत्ता पाने की हक़दार है| मुस्लिम महिला अपने तलाकशुदा पति से तब तक गुजाराभत्ता पाने की हक़दार है जब तक कि वह दूसरी शादी नहीं कर लेती है| [शाह बानो केस]
३७. हाल ही में बोम्बे हाई कोर्ट द्वारा एक केस में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया कि दूसरी पत्नी को उसके पति द्वारा दोबारा विवाह के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह बात नहीं कल्पित की जा सकती कि उसे अपने पति के पहले विवाह के बारे में जानकारी थी|
अधिकार से जुड़े कुछ मुद्दे ऐसे भी
३८. मासूम बच्चियों के साथ बढ़ते बलात्कार के मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर महत्वपूर्ण निर्देश दिया है| अब बच्चियों से सेक्स करनेवाले या उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलने वाले लोगों के खिलाफ बलात्कार के आरोप में मुकदमें दर्ज होंगे, क्योंकि चाइल्ड प्रोस्टीट्यूशान बलात्कार के बराबर अपराध है|
३९. कई बार बलात्कार की शिकार महिलायें पुलिस जाँच और मुकदमें के दौरान जलालत व अपमान से बचने के लिए चुप रह जाती है| अतः हाल ही में सरकार ने सीआर. पी. सी. में बहुप्रतीक्षित संशोधनों का नोटिफिकेशान कर दिया है, जो इस प्रकार है-
बलात्कार से सम्बंधित मुकदमों की सुनवाई महिला जज ही करेगी|
ऐसे मामलों की सुनवाई दो महीनों में पूरी करने के प्रयास होंगे|
बलात्कार पीडिता के बयान महिला पुलिस अधिकारी दर्ज करेगी|
बयान पीडिता के घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में लिखे जायेंगे|
४०. रुचिका-राठौड़ मामले से सबक लेते हुए कानून मंत्रालय अब छेड़छाड़ को सेक्सुअल क्राइम्स [स्पेशल कोटर्स] बिल २०१० नाम से एक विधेयक का एक मसौदा तैयार किया| इसके तहत छेडछाड को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जायेगा| यदि ऐसा हुआ तो छेड़खानी करने वालों को सिर्फ एक शिकायत पर गिरफ्तार किया जा सकेगा और उन्हें थाने से जमानत भी नहीं मिलेगी|
४१. यदि कोई व्यक्ति सक्षम होने के बावजूद अपनी माँ, जो स्वतः अपना पोषण नहीं कर सकती, का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं लेता तो कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर सेक्शन १२५ के तहत कोर्ट उसे माँ के पोषण के लिए पर्याप्त रकम देने का आदेश देता है|
४२. हाल में सरकार द्वारा लिए गए एक निर्णय के अनुसार अकेली रहने वाली महिला को खुद के नाम पर राशन कार्ड बनवाने का अधिकार है|
४३. लड़कियों को ग्रेजुएशन तक फ्री-एजुकेशन पाने का अधिकार है|
४४. यदि अभिभावक अपनी नाबालिग बेटी की शादी कर देते हैं तो वह लड़की बालिग होने पर दोबारा शादी कर सकती है, क्योंकि कानूनी तौर पर नाबालिग विवाह मान्य नहीं होती है|
पुलिस स्टेशन से जुड़े विशेष अधिकार
४५. आपके साथ हुआ अपराध या आपकी शिकायत गंभीर प्रकृति की है तो पुलिस एफआईआर यानी फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट दर्ज करती है|
४६. यदि पुलिस एफआईआर दर्ज करती है तो एफआईआर की कॉपी देना पुलिस का कर्तव्य है|
४७. सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किसी भी तरह की पूछताछ के लिए किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन में नहीं रोका जा सकता|
४८. पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला कॉन्सटेबल का होना जरुरी है|
४९. महिला अपराधी की डॉक्टरी जाँच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति के दौरान कोई पुरुष डॉक्टर|
५०. किसी भी महिला गवाह को पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता| जरुरत पड़ने पर उससे पूछताछ के लिए पुलिस को ही उसके घर जाना होगा|

महिलाओ की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिये कानून

जमीन जायदाद में हक
पिता की संपत्ति पर हक
महिलाओ की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिये इतने ज्यादा कानून बन चुके हैं की कोई भी महिला आसानी से इनका दुरुपयोग कर सकती है.
महिलाओं को अपने पिता और पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार मिला हुआ है। अगर लड़की के पिता ने खुद बनाई संपति के मामले में कोई वसीयत नहीं की है, तब उनके बाद प्रॉपर्टी में लड़की को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना लड़के को और उनकी मां को। जहां तक शादी के बाद इस अधिकार का सवाल है तो यह अधिकार शादी के बाद भी कायम रहेगा।
पति से जुड़े हक
संपत्ति पर हक शादी के बाद पति की संपत्ति में महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता दिया जाता है। महिला को यह अधिकार है कि उसका भरण-पोषण उसका पति करे और पति की जो हैसियत है, उस हिसाब से भरण पोषण होना चाहिए। वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनके जरिए पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है।
कानूनी जानकार बताते हैं कि सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है। अगर पति ने कोई वसीयत बनाई है तो उसके मरने के बाद उसकी पत्नी को वसीयत के मुताबिक संपत्ति में हिस्सा मिलता है। लेकिन पति अपनी खुद की अर्जित संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है। पैतृक संपत्ति की अपनी पत्नी के फेवर में विल नहीं कर सकता। अगर पति ने कोई वसीयत नहीं बनाई हुई है और उसकी मौत हो जाए तो पत्नी को उसकी खुद की अर्जित संपत्ति में हिस्सा मिलता है, लेकिन पैतृक संपत्ति में वह दावा नहीं कर सकती।
अगर हो जाए अनबन
अगर पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर अनबन हो जाए और पत्नी पति से अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता चाहे तो वह सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता के लिए अर्जी दाखिल कर सकती है। साथ ही हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस ऐक्ट की धारा-18 के तहत भी अर्जी दाखिल की जा सकती है। घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग पत्नी कर सकती है। अगर पति और पत्नी के बीच तलाक का केस चल रहा हो तो वह हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता मांग सकती है। पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो तलाक के वक्त जो मुआवजा राशि तय होती है, वह भी पति की सैलरी और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर ही तय होती है।
मिलेंगे और अधिकार
हाल ही में केंद्र सरकार ने फैसला लिया है कि तलाक होने पर महिला को पति की पैतृक व विरासत योग्य संपत्ति से भी मुआवजा या हिस्सेदारी मिलेगी। इस मामले में कानून बनाया जाना है और इसके बाद पत्नी का हक बढ़ने की बात कही जा रही है। अगर पत्नी को तलाक के बाद पति की पैतृक संपत्ति में भी हिस्सा दिए जाने का प्रावधान किया गया तो इससे महिलाओं का हक बढ़ेगा। वैसी स्थिति में पति इस बात का दावा नहीं कर सकता कि उसके पास अपनी कोई संपत्ति नहीं है या फिर उसकी नौकरी नहीं है। पैतृक संपत्ति में हक मिलने से तलाक के वक्त जब मुआवजा तय किया जाएगा, तो पति की सैलरी, उसकी अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति के आधार पर गुजारा भत्ता और मुआवजा तय किया जाएगा।
खुद की संपत्ति पर अधिकार
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को चाहे तो वह बेच सकती है। इसमें कोई दखल नहीं दे सकता। महिला इस संपत्ति का वसीयत कर सकती है और चाहे तो महिला उस संपति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है।
घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता के घर या फिर अपने पति के घर सुरक्षित रखने के लिए डीवी ऐक्ट (डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट) का प्रावधान किया गया है। महिला का कोई भी डोमेस्टिक रिलेटिव इस कानून के दायरे में आता है।
क्या है घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना। अगर महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक प्रताड़ना दी गई हो तो वह डीवी ऐक्ट के तहत कवर होगा। महिला के साथ मानसिक प्रताड़ना से मतलब है ताना मारना या फिर गाली-गलौज करना या फिर अन्य तरह से भावनात्मक ठेस पहुंचाना। इसके अलावा आर्थिक प्रताड़ना भी इस मामले में कवर होता है। यानी किसी महिला को खर्चा न देना या उसकी सैलरी आदि ले लेना या फिर उसके नौकरी आदि से संबंधित दस्तावेज कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है। इन तमाम मामलों में महिला चाहे वह पत्नी हो या बेटी या फिर मां ही क्यों न हो, वह इसके लिए आवाज उठा सकती है और घरेलू हिंसा कानून का सहारा ले सकती है। किसी महिला को प्रताड़ित किया जा रहा हो, उसे घर से निकाला जा रहा हो या फिर आर्थिक तौर पर परेशान किया जा रहा हो तो वह डीवी ऐक्ट के तहत शिकायत कर सकती है।
क्या है डोमेस्टिक रिलेशन
एक ही छत के नीचे किसी भी रिश्ते के तहत रहने वाली महिला प्रताड़ना की शिकायत कर सकती है और वह हर रिलेशन डोमेस्टिक रिलेशन के दायरे में आएगा। डीवी ऐक्ट के तहत एक महिला जो शादी के रिलेशन में हो तो वह ससुराल में रहने वाले किसी भी महिला या पुरुष की शिकायत कर सकती है लेकिन वह डोमेस्टिक रिलेशन में होने चाहिए। अगर महिला शादी के रिलेशन में नहीं है और उसके साथ डोमेस्टिक रिलेशन में वॉयलेंस होती है तो वह ऐसी स्थिति में इसके लिए केवल जिम्मेदार पुरुष को ही प्रतिवादी बना सकती है। अपनी मां, बहन या भाभी को वह इस ऐक्ट के तहत प्रतिवादी नहीं बना सकती।
डीवी एक्ट की धारा-12
इसके तहत महिला मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत पर सुनवाई के दौरान अदालत प्रोटेक्शन ऑफिसर से रिपोर्ट मांगता है। महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेलू हिंसा हुई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं, वहां शिकायत की जा सकती है। प्रोटेक्शन ऑफिसर इंसिडेंट रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत प्रतिवादी को समन जारी करता है। प्रतिवादी का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसी घर में रहने देने, खर्चा देने या फिर उसे प्रोटेक्शन देने का आदेश दे सकती है। अगर अदालत महिला के फेवर में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी उस आदेश का पालन नहीं करता है तो डीवी ऐक्ट-31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है। इस एक्ट के तहत चलाए गए मुकदमे में दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। साथ ही, 20 हजार रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान है। यह केस गैर जमानती और कॉग्नेजिबल होता है।
लिव-इन रिलेशन में भी डीवी ऐक्ट
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। डीवी ऐक्ट के प्रावधानों के तहत उन्हें मुआवजा आदि मिल सकता है। कानूनी जानकारों के मुताबिक लिव-इन रिलेशनशिप के लिए देश में नियम तय किए गए हैं। ऐसे रिश्ते में रहने वाले लोगों को कुछ कानूनी अधिकार मिले हुए हैं।

लिव-इन में अधिकार
सिर्फ उसी रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप माना जा सकता है, जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पत्नी की तरह रहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों बालिग और शादी योग्य हों। यदि दोनों में से कोई एक या दोनों पहले से शादीशुदा है तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। अगर दोनों तलाक शुदा हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं तो इसे लिव-इन रिलेशन माना जाएगा। लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ इस ऐक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। ऐसे संबंध में रहते हुए उसे राइट-टु-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का भी अधिकार है। हालांकि पार्टनर की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता। लेकिन पार्टनर के पास बहुत ज्यादा प्रॉपर्टी है और पहले से गुजारा भत्ता तय हो रखा है तो वह भत्ता जारी रह सकता है, लेकिन उसे संपत्ति में कानूनी अधिकार नहीं है। यदि लिव-इन में रहते हुए पार्टनर ने वसीयत के जरिये संपत्ति लिव-इन पार्टनर को लिख दी है तो तो मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पार्टनर को मिल जाती है।
सेक्शुअल हैरेसमेंट से प्रोटेक्शन
सेक्शुअल हैरेसमेंट, छेड़छाड़ या फिर रेप जैसे वारदातों के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। महिलाओं के खिलाफ इस तरह के घिनौने अपराध करने वालों को सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। 16 दिसंबर की गैंग रेप की घटना के बाद सरकार ने वर्मा कमिशन की सिफारिश पर ऐंटि-रेप लॉ बनाया। इसके तहत जो कानूनी प्रावधान किए गए हैं, उसमें रेप की परिभाषा में बदलाव किया गया है। आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है। साथ ही प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है। अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट पार्ट या फिर अन्य तरीके से पेनिट्रेशन करता है तो वह रेप होगा। अगर कोई शख्स महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का अंग या फिर अन्य चीज डालता है तो वह रेप होगा।
बलात्कार के वैसे मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए, तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया। रेप में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप के कारण लड़की कोमा में चली जाए या फिर कोई शख्स दोबारा रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो वैसे मामले में फांसी तक का प्रावधान किया गया है।

नए कानून के तहत छेड़छाड़ के मामलों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। इसके तहत आईपीसी की धारा-354 को कई सब सेक्शन में रखा गया है। 354-ए के तहत प्रावधान है कि सेक्शुअल नेचर का कॉन्टैक्ट करना, सेक्शुअल फेवर मांगना आदि छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्शुअल कॉमेंट करता है तो एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। 354-बी के तहत अगर कोई शख्स महिला की इज्जत के साथ खेलने के लिए जबर्दस्ती करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है तो 3 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। 354-सी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की तस्वीर लेता है और उसे लोगों में फैलाता है तो ऐसे मामले में एक साल से 3 साल तक की सजा का प्रावधान है। अगर दोबारा ऐसी हरकत करता है तो 3 साल से 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। 354-डी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। जो भी मामले संज्ञेय अपराध यानी जिन मामलों में 3 साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है, उन मामलों में शिकायती के बयान के आधार पर या फिर पुलिस खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है।
वर्क प्लेस पर प्रोटेक्शन
वर्क प्लेस पर भी महिलाओं को तमाम तरह के अधिकार मिल हुए हैं। सेक्शुअल हैरेसमेंट से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विशाखा जजमेंट के तहत गाइडलाइंस तय की थीं। इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की यह गाइडलाइंस तमाम सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। इसके तहत एंप्लॉयर की जिम्मेदारी है कि वह गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई करे।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं। एंप्लॉयर या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह सेक्शुअल हैरेसमेंट को रोके। सेक्शुअल हैरेसमेंट के दायरे में छेड़छाड़, गलत नीयत से टच करना, सेक्शुअल फेवर की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से आपत्तिजनक व्यवहार करना या फिर इशारा करना आता है। इन मामलों के अलावा, कोई ऐसा ऐक्ट जो आईपीसी के तहत ऑफेंस है, की शिकायत महिला कर्मी द्वारा की जाती है, तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे।

कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि विक्टिम अपने दफ्तर में किसी भी तरह से पीड़ित-शोषित नहीं होगी। इस तरह की कोई भी हरकत दुर्व्यवहार के दायरे में होगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। प्रत्येक दफ्तर में एक कंप्लेंट कमिटी होगी, जिसकी चीफ महिला होगी। कमिटी में महिलाओं की संख्या आधे से ज्यादा होगी। इतना ही नहीं, हर दफ्तर को साल भर में आई ऐसी शिकायतों और कार्रवाई के बारे में सरकार को रिपोर्ट करना होगा। मौजूदा समय में वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हैरेसमेंट रोकने के लिए विशाखा जजमेंट के तहत ही कार्रवाई होती है। इस बाबत कोई कानून नहीं है, इस कारण गाइडलाइंस प्रभावी है। अगर कोई ऐसी हरकत जो आईपीसी के तहत अपराध है, उस मामले में शिकायत के बाद केस दर्ज किया जाता है। कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई होती है।
मेटरनिटी लीव
गर्भवती महिलाओं के कुछ खास अधिकार हैं। इसके लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद-42 के तहत कामकाजी महिलाओं को तमाम अधिकार दिए गए हैं। पार्लियामेंट ने 1961 में यह कानून बनाया था। इसके तहत कोई भी महिला अगर सरकारी नौकरी में है या फिर किसी फैक्ट्री में या किसी अन्य प्राइवेट संस्था में, जिसकी स्थापना इम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस ऐक्ट 1948 के तहत हुई हो, में काम करती है तो उसे मेटरनिटी बेनिफिट मिलेगा। इसके तहत महिला को 12 हफ्ते की मैटरनिटी लीव मिलती है जिसे वह अपनी जरूरत के हिसाब से ले सकती है। इस दौरान महिला को वही सैलरी और भत्ता दिया जाएगा जो उसे आखिरी बार दिया गया था। अगर महिला का अबॉर्शन हो जाता है तो भी उसे इस ऐक्ट का लाभ मिलेगा। इस कानून के तहत यह प्रावधान है कि अगर महिला प्रेग्नेंसी के कारण या फिर वक्त से पहले बच्चे का जन्म होता है या फिर गर्भपात हो जाता है और इन कारणों से अगर महिला बीमार होती है तो मेडिकल रिपोर्ट आधार पर उसे एक महीने का अतिरिक्त अवकाश मिल सकता है। इस दौरान भी उसे तमाम वेतन और भत्ते मिलते रहेंगे। इतना ही नहीं डिलिवरी के 15 महीने बाद तक महिला को दफ्तर में रहने के दौरान दो बार नर्सिंग ब्रेक मिलेगा। केन्द्र सरकार ने सुविधा दी है कि सरकारी महिला कर्मचारी, जो मां हैं या बनने वाली हैं तो उन्हें मेटरनिटी पीरियड में विशेष छूट मिलेगी। इसके तहत महिला कर्मचारियों को अब 135 दिन की जगह 180 दिन की मेटरनिटी लीव मिलेगी। इसके अलावा वह अपनी नौकरी के दौरान दो साल (730 दिन) की छुट्टी ले सकेंगी। यह छुट्टी बच्चे के 18 साल के होने तक वे कभी भी ले सकती हैं। यानी कि बच्चे की बीमारी या पढ़ाई आदि में, जैसी जरूरत हो।
मेटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर महिला का एम्प्लॉयर इस बेनिफिट से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इसकी शिकायत कर सकती है। महिला कोर्ट जा सकती है और दोषी को एक साल तक कैद की सजा हो सकती है।
ससुराल में कानूनी कवच
अबॉर्शन के लिए महिला की सहमति अनिवार्य
महिला की सहमित के बिना उसका अबॉर्शन नहीं कराया जा सकता। जबरन अबॉर्शन कराए जाने के मामलों से निबटने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। कानूनी जानकार बताते हैं कि अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है, जब गर्भ की वजह से महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971 में इसके लिए एक अलग कानून बनाया गया- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट। ऐक्ट के तहत यह प्रावधान किया गया है कि अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी पैदा करने वाले हों या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। इसके अलावा, अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर इसके लिए सक्षम न हो भी तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो या फिर महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए जो वर्जित संबंध में हों और महिला गर्भवती हो गई हो तो महिला का अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
दहेज निरोधक कानून
दहेज प्रताड़ना और ससुराल में महिलाओं पर अत्याचार के दूसरे मामलों से निबटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए हैं। महिलाओं को उसके ससुराल में सुरक्षित वातावरण मिले, कानून में इसका पुख्ता प्रबंध है। दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा 498-ए का प्रावधान किया गया है। इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया है। अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध है। दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।
सजा: इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थिति में होती है और यह मौत शादी के 7 साल के दौरान हुआ हो तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के तहत केस दर्ज करती है। 1961 में बना दहेज निरोधक कानून रिफॉर्मेटिव कानून है। दहेज निरोधक कानून की धारा 8 कहता है कि दहेज देना और लेना संज्ञेय अपराध है। दहेज देने के मामले में धारा-3 के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा के तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है। धारा-4 के मुताबिक, दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर लड़का पक्ष दहेज की मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है।
स्त्रीधन पर महिला का अधिकार
स्त्री धन वह धन है तो महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर मिलते हैं। इन पर लड़की का पूरा हक माना जाता है। इसके अलावा, वर-वधू को कॉमन यूज की तमाम चीजें दी जाती हैं, ये भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं। स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार होता है। अगर ससुराल ने महिला का स्त्रीधन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा-406(अमानत में खयानत) की भी शिकायत कर सकती है। इसके तहत कोर्ट के आदेश से महिला को अपना स्त्रीधन वापस मिल सकता है।
ऐसे निपटें पुलिस से
पुलिस हिरासत में भी महिलाओं को कुछ खास अधिकार हैं:
- महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है।
- महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती।
- अगर महिला को कभी लॉकअप में रखने की नौबत आती है, तो उसके लिए अलग से व्यवस्था होगी।
- बिना वॉरंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होगा और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है।
- गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को सूचित करना पुलिस की ड्यूटी है।
- सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में कहा गया है कि जिस जज के सामने महिला को पहली बार पेश किया जा रहा हो, उस जज को चाहिए कि वह महिला से पूछे कि उसे पुलिस हिरासत में कोई बुरा बर्ताव तो नहीं झेलना पड़ा।
मुफ्त कानूनी सहायता
महिलाओं को फ्री लीगल ऐड दिए जाने का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो वह फ्री कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से गुहार लगा सकती है कि उसे मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील चाहिए। महिला की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, लेकिन महिला को यह अधिकार मिला हुआ है कि उसे फ्री में वकील मुहैया कराई जाए। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करेगी और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित करेगी। लीगल ऐड कमिटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देगी।
पोक्सो कानून
बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराध को रोकने के लिए और बच्चों को ऐसे अपराधों से संरक्षण देने के लिए सरकार ने 14 नवंबर 2012 में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्शुअल ऑफेंसेस (पोक्सो) ऐक्ट बनाया था। ऐसे मामलों का जल्द से जल्द निपटारा हो और दोषियों को सजा सुनाए जाने से अपराध पर लगाम लगे। ये मामले संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं। नाबालिग बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए यह कानून बनाया गया है। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज (पोक्सो) ऐक्ट जेंडर न्यूट्रल कानून है और पिछले साल 14 नवंबर से प्रभावी है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों (लड़का या लड़की) के साथ किसी तरह का सेक्शुअल ऑफेंस पोक्सो कानून के तहत अपराध होगा। इसमें पेनेट्रेटिव या नॉन पेनेट्रेटिव दोनों तरह के ऐक्ट के लिए सजा का प्रावधान है। बच्चों को अगर किसी भी तरह से सेक्शुअली अब्यूज किया जाता है, जिनमें पॉरनॉग्रफी आदि के जरिये शोषण भी शामिल है, तो इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून में सजा का प्रावधान, अपराध की गंभीरता के हिसाब से किया गया है लेकिन गंभीर मामलों में उम्रकैद तक की सजा भी दी जा सकती है।
यहां मिलेगी मदद
राष्ट्रीय महिला आयोग
फोनः 011-23237166, 23236988
कंप्लेंट सेलः 23219750
दिल्ली राज्य महिला आयोग
फोनः 011- 23379150, 23378044
यूपी राज्य महिला आयोग
फोनः 0522-2305870
ईमेलः up.mahilaayog@yahoo.com