Wednesday, June 28, 2017

संस्था के मुख्य उद्देश्य

.................................रैगर.समाज के लोगों को मजबूत बनाने के लिये निम्नलिखित कार्य करता है
1 -  समाज के हित में व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा कौशल विकास के कार्यक्रम को करना 
2 - समाज के लोगों को आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया के बारे में सरलतम तरीके से व्यवहारिक जानकारी देना 
3 - ऐसे कार्यकलापों का संचालन करना, जिनका लक्ष्य  समाज के लोगों का आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनैतिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास का संरक्षण सुनिश्चित करना हो 
4 - सरकारी, अर्ध सरकारी एवं निजी क्षेत्र में आरक्षण एवं समान भागीदारी को सुनिश्चित करवाना 
5 - अध्ययन और अनुसंधान के द्वारा और अंतर्निहित एकता के आधार पर विभिन्न संक्रतियो संस्कृतियों के माध्यम से एक दूसरे के साथ अधिकतम मधुर सम्बन्धों की स्थापना को सुनिश्चित करना 
6 - किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों की दोस्ती और स्नेह को प्रगाढ़ करने के लिए, उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं और क्षेत्रों में रुचि लेना, अध्ययन, शोध, अन्वेषण, सर्वेक्षण के जरिए उनके कल्याण के लिए उनकी समस्या ओं के निराकरण ढूंढने में उनकी हर सम्भव मदद और सहयोग करना 
7 -  समाज के हितार्थ अर्थव्यवस्था, संस्कृति और व्यवहारिक अनुभवों के अकादमिक अध्ययन और अनुसंधान के बीच चर्चा, संवाद अध्ययन और शोधकार्य शुरू करवाना 
8-  समाज के लोगों के मध्य मित्रवत व्यवहार को प्रोत्साहित करने के साथ उनमें भाई चारे एवं सहयोग स्थापित करना 
9-  समाज के लोगों के कार्यशैली एवं जीवनशैली में सुधार के साथ साथ उनके सामाजिक स्तर को राष्ट्र तथा समाज के बीच ऊंचा उठाने हेतु जो भी जरूरी हो कार्य करना 
10 - रैगर समाज के लोगों से सम्बंधित भारत सरकार और राज्य सरकारों की सामाजिक न्याय, लोक कल्याणकारी योजनाओं, कार्यक्रमों नीतियों का प्रचार प्रसार करना और रैगर समाज के लोगों को उन योजनाओं से अवगत कराना जोकि उनके लाभ व उत्थान के लिए बनाई गई है 
11 - लोकतंत्र, समाजवाद, सामाजिकन्याय, समानता और शिक्षा आदि का ज्ञान रैगर समाज के लोगों को देना और लगातार व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा इन सबके प्रति भरोसा बनाएं रखने के लिए प्रेरित करना 
12 - रैगर समाज के लोगों को प्रेरित कर रैगर समाज के विकलांग व कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से पीड़ितों की मदद और सेवा करने को आगे आये साथ ही विकलांग, गूगे व नेत्रहीनों को स्वावलंबी बनाने के लिए कार्य करना 
13 - अंगदान, नेत्रदान, रक्तदान के लिए प्रेरित करना और नेत्रहीन सहायता कोष स्थापित करके निःसहायो के नेत्र बनवाने के लिए कार्य करना तथा अंधों को घुघरुदार लाठियां उपलब्ध करवाना 
14 - तूफान, भूकम्प या प्राकृतिक आपदा, या महामारी आदि से पीड़ित रैगर समाज के लोगों का संगठन के माध्यम से हर संभव मदद करना 
15 - रैगर समाज के लोगों को के समग्र विकास चरित्र निर्माण के लिए और वांछित शिक्षा प्राप्त करने हेतु बालवाटिका, विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि की स्थापना करना व करवाना 
16 - रैगर समाज के लोगों को प्रफुल्लित और स्वस्थ जीवन प्रदान करने के लिए योग्य स्वास्थ्य रक्षक टीम तैयार करना, अस्पताल खोलना और उनका संचालन करना जिनके माध्यम से विशेष रूप से निर्धन और जरूरतमंद बच्चों व गर्भवती महिलाओं को हानिरहित दवा, पौष्टिक भोजन, मौसम के अनुकूल वस्त्रों आदि उपलब्ध करवाना 
17 - आपदा या महामारी से प्रभावित समाज के लोगों को भोजन, वस्त्र, औषधि आदि से तत्काल सहायता करना और विपत्ति से ग्रस्त हुए व्यक्तियों को अपेक्षित स्नेह, सहयोग और देखरेख दिलवाना 
18 - रैगर समाज के हित में बिभिन्न विषयों के राज्य क्षेत्र, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त और योग्य विशेषज्ञों को आमन्त्रित करके सेमिनार, वाद-विवाद, व्याख्यान, सम्मेलन, परिचर्चा, सामुहिक विवाह, वर वधू जान पहचान आदि का आयोजन व नियमित संचालन करके उनके रहन सहन व विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ावा देना 
19 - रैगर समाज के हित में समय समय पर विभिन्न सांस्कृतिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाना 
20 - रैगर समाज के लोगों को सामाजिक सुरक्षा दिलाने के लिए विशेष उपाय करना, जिसमें दुर्घटना, बिमारी, वृद्धावस्था आदि में जरूरी सहायता, बीमा और संरक्षण एवं रोजगार / स्वरोजगार, पुनर्वास जैसे विषय भी शामिल हैं 
21 - रैगर समाज के हित में समय समय पर विभिन्न सांस्कृतिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करना 
22 - रैगर समाज के लोगों के स्वास्थ्य, खेलकूद, मनोरंजन और सांस्कृतिक उत्थान के लिए जरूरी कार्य करना 
23 - रैगर समाज के हित में व्यावसायिक पत्र, पत्रिका, किताब, न्यूज चैनल केंद्र, न्यूज़ एजेंसी, रेडियो आदि का प्रकाशन, प्रसारण, संचालन करना व समाज के लघु समाचार पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापन के माध्यम से सहयोग देना जिनका वास्तव में इस संगठन के लक्ष्य एवं उद्देश्यों की अभिवृद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो 
24 - रैगर समाज की एकता एवं भाषाई सौहार्द के उद्देश्य से अन्तर भाषायी सम्मेलनों, शिविरों का आयोजन करवाने और सदस्यों के हितों में पुस्तकालयों, शिक्षालयो, वाचनालयो, स्वास्थ्यालयो आदि का निर्माण करवाना 
25 - रोजगार परक कार्यक्रमों का आयोजन जिसमें कंम्प्यूटर, हिन्दी आशुलिपी, टंकण, प्रशिक्षण आदि भी शामिल हैं 
26 - संगठन के उद्देश्यों की आभिवृद्धी करने वाली उत्कृष्ट प्रदर्शन व कृतियों के प्रकाशन के लिए सदस्य लेखकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना जो किसी कारण से स्वंय अपनी कृतियों के प्रकाशन की व्यवस्था न कर सकते हो 
27 - रैगर समाज के लोगों के साथ भेद भाव, अन्याय, शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न अस्पृश्यता आदि की स्थिति में होने वाली घटनाएं घटने पर इस संगठन के द्वारा या इस संगठन के मार्ग दर्शन में सिविल, आपराधिक मुकदमे, शिकायत कायम करके या करवा करके यथा समय उचित कठोर कार्रवाई करवाना और पदाधिकारियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित कर पारंगत करना 
28- योग्य व्यक्तियों को रैगर महासंभा में पदांकित, पंजीकृत, मनोनीत, नियोजित, संगठित करना और संगठन के निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सदस्यता प्रदान करना और सदस्यों व पदाधिकारियों को सदस्यता व नियुक्ति के पत्र, प्रमाण पत्र, परिचयपत्र, पुरस्कार, सम्मान - पत्र आदि प्रदान करना 
29 - रैगर समाज के लोगों के हितों एवं सदस्यों को उनके आपसी विचारों, अनुभवों, ज्ञान आदि से लाभान्वित करवाने के लिए सभाओं, सम्मेलनों, कैम्पो, सेमिनारों, कार्यशालाओं, विचारशालाओं, प्रशिक्षणशालाओं आदि का आयोजन करना तथा इस संगठन द्वारा या इस संगठन के अनुरूप जैसे भी सम्भव हो पत्र पत्रिकाओं, पुस्तकें आदि का प्रकाशन, प्रसारण, प्रदर्शन, मंचन आदि करना 
30 - इस संगठन के सदस्यों को जनसंख्या वृद्धि, अशिक्षा, बालविवाह, बेमेलविवाह, दहेज, सट्टा, जुआ, मद्यपान, अंधविश्वास, अमानवी यव्यवहार, धूम्रपान आदि सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणामों आदि से अवगत करवा कर, यदुवंशीय समाज को इन सब बुराइयों से मुक्त कर सत्यनिष्ठ, विज्ञान सम्मत, तर्क सम्मत और प्रगतिशील जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करना तथा अपनी अपनी मौलिक पहचान को कायम रखते हुए सभ्य मानव समाज की स्थापना करना 
31 -रैगर समाज को सक्षम बनाने के लिए जरूरी संसाधन जुटाकर उनके लिए स्थायी, अस्थायी, स्वरोजगार और व्यापार हेतु लघु उद्योग इकाईयों की स्थापना करना व उनको जरूरी ज्ञान, प्रशिक्षण एवं अनुदान या लोन प्रदान करना 
32 - रैगरसमाज के हितार्थ उद्देश्यों के लिए कार्यरत, संचालित अन्य यदुवंशीय समाज के संगठनों के साथ सह-सम्बन्ध और समन्वय स्थापित कर राष्ट्रीय स्तर पर रैगर समाज के हित में संरक्षण एवं उत्थान के लिए नीतियां बनाना और या एक महासंघ की स्थापना करना 
33 - रैगर समाज के समाज सुधारक सेनानी एवं कार्यकारी, महान पूर्वजों, वर्तमान या पूर्व समाज सुधारको, प्रेरणा स्रोतों आदि के सामाजिक योगदान या उनके साहित्य या संघर्ष या कार्यो के बारे में रैगर समाज के लोगों को विभिन्न माध्यमों से जानकारी देना साथ ही उनके नाम से विभिन्न स्तरों पर, विभिन्न प्रकार के सम्मान, पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र या प्रतियोगिता आदि स्थापित या प्रारंभ कर योग्य व पात्र लोगों को पुरस्कृत करना 
34 - रैगर समाज के लोगों के शैक्षणिक विकास के लिए जगह जगह पर विशेष कर दूरदराज के पिछड़े क्षेत्रों में छात्र छात्राओं के लिए अलग अलग निशुल्क आवासीय सरकारी, पब्लिक, कान्वेंट स्कूल और तकनीकी प्रशिक्षण केंद्रो की स्थापना करने व करवाने के लिए समुचित कार्य वाही करना 
35 - रैगर समाज के लोगों के उत्थान के लिए उक्त वर्णित एवं भविष्य में निर्धारित किये जाने या जासकने वाले इस संगठन के सभी उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सरकारी, अर्धसरकारी, निजी आदि देशी विदेशी निकायों, उपक्रमों, सरकार, दानदाताओं, संस्थानों, आम लोगों आदि से चन्दा, सहयोग, शुल्क, आदि के रूप में धनादि प्राप्त करना

Sunday, June 25, 2017

राष्ट्रपति के नाम प्रधानमंत्री का अत्यंत गोपनीय पत्र (यह पत्र राष्ट्रपति कार्यालय की फाइल में मिला)

प्रधानमंत्री,
भारत सरकार
नयी दिल्ली, 25 जून 1975
आदरणीय राष्ट्रपति जी, जैसा कि कुछ देर पहले आपको बताया गया है कि हमारे पास जो सूचना आयी है उससे संकेत मिलता है कि आंतरिक गड़बड़ी की वजह से भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है। यह मामला बेहद जरूरी है। मैं निश्चय ही इस मसले को कैबिनेट के समक्ष ले जाती लेकिन दुर्भाग्यवश यह आज रात में संभव नहीं है। इसलिए मैं आप से इस बात की अनुमति चाहती हूं कि भारत सरकार (कार्य संपादन) अधिनियम 1961 संशोधित नियम 12 के अंतर्गत कैबिनेट तक मामले को ले जाने की व्यवस्था से छूट मिल जाय। सुबह होते ही कल मैं इस मामले को सबसे पहले कैबिनेट में ले जाऊंगी। इन परिस्थितियों में और अगर आप इससे संतुष्ट हों तो धारा 352-1 के अंतर्गत एक घोषणा किया जाना बहुत जरूरी हो गया है। मैं उस घोषणा का मसौदा आपके पास भेज रही हूं।
जैसा कि आपको पता है धारा-353 (3) के अंतर्गत इस तरह के खतरे के संभावित रूप लेने की स्थिति में, जिसका मैंने उल्लेख किया है, धारा-352 (1) के अंतर्गत आवश्यक घोषणा जारी की जा सकती है।
मैं इस बात की संस्तुति करती हूं कि यह घोषणा आज रात में ही की जानी चाहिए भले ही कितनी भी देर क्यों न हो गयी हो और इस बात की सारी व्यवस्था की जाएगी कि इसे जितनी जल्दी संभव हो सार्वजनिक किया जाएगा।
आदर सहित
भवदीय
(इंदिरा गांधी)


राष्ट्रपति अहमद द्वारा आपातकाल की घोषणा
संविधान के अनुच्छेद 352 के खंड 1 के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए मैं, फखरूद्दीन अली अहमद, भारत का राष्ट्रपति इस घोषणा के जरिए ऐलान करता हूँ कि गंभीर संकट की स्थिति पैदा हो गयी है जिसमें आंतरिक गड़बड़ी की वजह से भारत की सुरक्षा के सामने खतरा पैदा हो गया है।
नयी दिल्ली, राष्ट्रपति / 25 जून 1975
http://www.hastakshep.com/hindiopinion/remind-of-emergency---prime-ministers-highly-trusted-letter-to-the-president-14494

Monday, June 19, 2017

निष्काम सेवा ही अपने आप में पुरस्कार है

• निष्काम सेवा ही सच्चा धर्म है –
हम देखते हैं कि जात-पांत, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, सज्जन-दुष्ट, अच्छे-बुरे आदि सभी प्रकार के भेद-भावों को मिटा कर, उन पर ध्यान दिए बिना ही, उनकी चिन्ता किये बिना ही –
• सूरज सभी को रोशनी, प्रकाश और उर्जा देता है,
• वसुंधरा माँ भी अपनी सभी संतानों को पोषण, आश्रय, विश्राम और ममत्व प्रदान करती है.
• चन्द्रमा सभी को शीतल किरणों से प्रफुल्लित करता है.
• पवन या हवा सभी को प्राणदायक वायु प्रदान करती है. हिटलर ने लाखों लोगो को मारा, फिर भी पवनदेव ने उसको आक्सीजन देना बंद नहीं किया.
• सभी नदियाँ प्यासे को पानी पिलाती हैं.
• सभी समुद्र नीलकंठ की भांति इस संसार की सभी तरह की गन्दगी को ग्रहण कर घनघोर मेघों की रचना कर अमृत जल की बारिश करवाते हैं.
• सभी वृक्ष प्राणघातक वायु को ग्रहण कर जीवनदायक आक्सीजन को छोड़ते हैं और पत्थर मारने पर भी मधुर फल देते हैं.
इस तरह से सभी महान लोग पात्र-अपात्र की चिंता किये बिना अपना-अपना कार्य निस्वार्थ भाव से करते रहते हैं,
सभी धर्मों की रचना करने वाले भगवान ने ही इन महान शक्तियों को जैसे कि सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, पवन, नदियाँ, समुद्र, वृक्ष आदि को बनाया है और उन्होंने आप को भी बनाया है.
अतः आपका यह कर्तव्य है कि आप भी निस्वार्थ भाव से अच्छे-बुरे की चिंता छोड़ अपना तन-मन-धन लगाकर दूसरों पर उपकार करें, दूसरों की मदद करें,
तभी आप भी इन महान शक्तियों के समतुल्य होकर पामर से परमात्मा बन सकेंगे.
बड़े आश्चर्य की बात है कि हम भगवान को भी हमारे ही तरह का स्वार्थी समझने लगते हैं कि वह हमारी पूजा-पाठ, भक्ति, जप-तप आदि के रूप में की जाने वाली खुशामद, प्रशंसा या दान के रूप में दी जाने वाली रिश्वत से प्रसन्न हो जावेंगे.
वास्तव में तो भगवान भी उनकी बनायी हुई इन महान शक्तिओं की तरह ही दीन-हीन और सताए हुए लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से ही प्रसन्न होते हैं.
1. यही निष्काम योग है,
2. यही सच्चा धर्म है,
3. यही मानव धर्म है.

Sunday, June 18, 2017

अति सुंदर कविता जो जीवन उपयोगी है

पृथ्वी पर है यह कौन ! खोयी सी आभा जिस पर दमक रही है !
मानो कीचड़ में कमल की पंखुडियां जैसी चमक रही है !१!
यह अरुणाई जो महलों में थी, क्यों धक्के खा रही है ?
दानवीर बनकर भी सहारा जीनेका, औरोसे क्यों पा रही है ?2
काँटों में राह बना कर, आगे बढ़ता जाता है !
रक्षक है प्रजा को अमृत दे कर, खुद जहर पिता जाता है !3!
रजपूती हुई लाचार, शक्ति की हार, भारत रोता !
वीरता हुई बेकार, कायरता का अंत यही तो होता !4!
अरे दोष देने वालो, तरुवर कब फल खाता है !
दोष इसे सब देते, अपना ध्यान किसे आता है !५!
कुर्सियों पर वाचाल, सडकों पर यह वीर राजपूत !
स्वार्थ हुए नेता, भारत के तक़दीर में थे ये वानीदूत !६!
सूर्य अमर हुआ तप-तपकर, क्या अग्नि से होगा ?
करते रहो शासन, कष्ट तो क्षत्रिय ही ने भोगा !७!
कष्टों में साहस भी होता, मत हमसे यूँ अटको !
शोषण करने वालो जागो, मत मदसे हूँ भटको !८!
यदि रजपूती को लल करोगे, तो लौटेगा चन्द्रगुप्तवीर !
हेलन लेकर, भगा यूनान अपमानित कर देगा वह रणवीर !९!
क्षत्रियों को पद दलित, हाय! यह त्रुटि हो गई है भारी !
रोती है, तड़फती है, भारत माता फिरती देश-देश मारी !१०!
दुर्गे कहों क्यों शत्रु मारे, क्यों फिरंगी अंग्रेज भगाए ? 
क्यों आजाद किया राष्ट्र को, क्यों भगत जैसे फंसी चाहिए !११! 
अंग्रेजों ने किया शासन,नैतिकता को नहीं इतना तोडा!
कष्टों में नहीं आजकी तरह,कर्त्तव्य से यूँ मुंह मोड़ा !१२!
बना रहे थे अंग्रेज भारत को,आर्थिक शक्ति और धन संपन्न!
स्वराज्य ने!डंकल अपना कर,भारत को किया विपन्न !१३!
नहीं चाँद में दाग, वह समय के दर्द की है परछाई !
क्षत्रिय ने शोषण नहीं किया,गर्दन भी कहाँ झुकाई!१४!
प्रजातंत्र में दुखी प्रजा, क्या क्या कष्ट उठा रही है ?
जिसकेहित घोड़े कीपीठ पर मरा,वहीभू इज्जत लुटा रही है! १५!
क्षत्रिय तो हट गया भारत माता!कर लेने दो इनको मन मानी!
जो गया पतालो में,तलवारों का,तड़फ रहा अब वह पानी !१६!
झूंठे आश्वाशन देकर,चुनाव लड़कर,कुर्सी ले सकता है !
तोड़कर वोट बैंक इनके, ऊपर शासन कर सकता है ! १७!
किन्तु जनता इसकी अपनी है, कैसे उसे यह बहकाए?
गर्दन उठा कर जो चलता आया,कैसे सर आज झुकाए?१८ 
जितना प्यार जनता से है मुझको क्या नेताजी को होगा?
तेरे लिए सीता त्यागी, पुत्र छोड़े, हर कष्ट को भोगा !१९!
तेरे लिए मित्रता भुला कर , बाबर से भी हारा !
भारतीयता सेथा प्यार मुझको राज्य कब था प्यारा!२०!
राज्य करते हो तुम, इसीलिए तो जनता डरती है!
क्षत्रिय पराधीन नहीं मुक्त है,प्रजा उसकी पूजा कराती है!२१!
नेताओ की चापलूसी, कर-कर पुल बाँधने वालो! 
खुले जनालय में ,कोई क्षत्रिय से आंख मिलालो !२२!
त्याग नेहरु परिवार का नहीं, कुंवर सिंह का त्याग हुआ है भारी !
त्यागी थे गाँधी, सुभाष, चन्द्र, भगत सिंह कांग्रेस पर है भारी !२३!
क्षत्रियों को पदच्युत, भारत के लिए हम दुःख सुख सहते !
जल रहा है जिगर, आँखों से आंसू भी अब नहीं बहते !२४!
भारत वर्ष की रक्धा का भार,नयन नीर से भर आते !
इसीलिए मुंह तक आकर भी, प्राण फिर लौट जाते !२५!
वहां रहूँ क्यों जहाँ अन्यायी को, पूजा जाता हो !
तलवार लूँ हाथमे सिर काटूं, उसका जो जनताको बहकता हो!२६!
नेता का अंत करो अब, बोल उठी है तलवार !
नहीं बढ़ेगी,नहीं बढ़ेगी,अब नेताओ की यह क़तर!२७!
तड़फ उठा भूमंडल क्षत्रियने,जब क्षत्रित्वता छोडनी चाही!
रोया भारत,रोई प्रजा, सिंह छोड़ दुर्गा बढ़ी जग माहीं!२८!
"क्षत्रिय युवक संघ"की सत्य वाणी, धर्मं बचाने आई !
मिटने का था भारत, एक विचार आ जिंदगी बनाई !२९!
कौन एक संघ, क्षत्रिय के आगे, नया विचार लाया !
समर्थ बनो, समर्थ बनाओ, का नया दीप जलाया !३०!
बहुत लादे हो, और भी लड़ना, युद्ध में ही सुख है !
अपना जीवन देकर, तुम लेलो,जो अमर सुख है !३१!
इसे चलो इस भूपर,कदम तुमारे मिट न पाये !
जिसने हटाया तुम्हे,वाही स्वागत करने आये !३२!
निराश हुआ जब क्षत्रिय ही तो, औरो का क्या कहना !
सागर ही सूख गया तो, अब नदियों का क्या बहाना !३३!
मुर्गा ही यदि सो गया तो, औरो को क्या कहते हों !
क्षत्रियही यदि हाथ पसारे, तो भिखारियों को क्या कहते हो!३४!
जो सब का अन्न दाता है, यदि वही अन्न को तरसे !
यज्ञ ही न हो तो फिर , इन्द्र बादल बन क्यों बरसे !३५! 
कहाँ गयी वह शक्ति, जिससे जग जय करना था ?
कहाँ गया वह हिमालय, जिससे गंगामाँ को बहना था!३६!
किस्मत के फेरे देखो, भूले ही अब नहीं मिलती !
जलना ही जिसका कम है, वह तीली ही नहीं जलती !३७!
सब कुछ लुटा कर, अब क्या बटोरने चले हो ?
पहिचाने बिना ही, हर किसी से मिलेते गले हो !३८!
अपना मार्ग भूल कर, औरो के पर क्यों चल रहे हो !
प्रजा पालक थे, अब औरो के टुकडो पर पल रहे हो !३९!
तुम दुखड़ा अपना रोते, रोने ही अब रह गया !
पानी जो था तलवारों में, वह कहाँ अब बह गया !४०!
तुम्हे पद-दलित किया है , सहानुभूति मुझे तुमसे !
किन्तु क्या तुम लायक थे, क्या शासन होता तुमसे !४१! 
विधना ने परीक्षा ली तुम्हारी, दुष्टों ने मांगी नारी !
पृथ्वी औरो की माता है, किन्तु तेरी तो थी नारी !४२!
तुमने कायरता अपना कर , साथ छोड़ा इसका !
स्वार्थो का नाता है ! है कौन यहाँ प्यारा किसका !४३!
अब क्या करना है, मै तुमसे कुछ नहीं कहता !
किसी के कहने से कौन, सही रास्ते पर चलता !४४!
तुझे क्या करना है , यह तू ही जाने !
पर जीते है वही जो मौत को ही जिंदगी माने !४५!
मै इतना अवश्य कहता हूँ, लड़ने वाले ही जीते है !
मरना तो है ही पर, यहाँ मरने वाले ही जीते है !४६!
इतना सुना कर, अपना केशरिया लिए बड़ा वह आगे !
कुछ मौन रह कर, क्षत्रिय भी, नंगे पैर आयें भागे !४७!
प्यार जो सबको देता, वही संघ बाहें फैलाये खड़ा !
मिलन अदभुत देख कर, भ्रातृत्व प्रेम भी रो पड़ा !४८!
कैंप लगने लगे , एक से एक बढ़ - बढ़ कर !
क्षत्रिय का बाल , उमड़ने लगा चढ़ - चढ़ कर !४९!
शिविरों में मिट्ठी में, बैठ कर दाल रोटी खाते है !
जो नहीं स्वर्ग में भी , ऐसा सूख ये पाते है !५०! 
प्रात: काल सीटी बजने पर, इक्कठे होते है जगकर !
बुलाओ एक को, चार आते है भग भगकर !५१!
प्रेम यहाँ का देख कर, भरत मिलाप याद आता है !
जीवन यहाँ का देख कर, ऋषियों का आश्रम सरमाता है !५२!
कौन सूर्य वंशी? कौन चन्द्र वंशी? सब धरती पर लेटे है !
सबका धर्मं एक , सब ही एक माँ दुर्गे के बेटे है !५३! 
उधर भ्रष्ट - तंत्र के कुचक्र से , भारत देश रोता है !
इधर खेल खेल में ही , कभी उपदेश होता है !५४!
खेल खेल में क्षत्रिय, लगा शस्त्र चलाने !
क्षत्रित्वता से ओत-प्रोत, होने लगा इसी बहाने !५५!
रुखी सुखी खाकर , अतुलित आनंद पाता !
राजपुत्रो के जीवन में, संघ इतिहास नया बनाता !५६! 
कभी कभी राजे महाराजे, मनोरंजन के लिए आते !
स्वयं के वैभव को देख, स्वजीवन पर वे शरमाते !५७!
सोचते और कभी कहते, धन्य धन्य जीवन इनका !
कोई क्या कर सकता है, युद्ध स्वागत करता जिनका !५८!
इसी तरह संघ, बढता चला अगाड़ी !
खेल खेलने में क्षत्रिय था बहुत खिलाडी !५९! 
कहते थे संघप्रमुख, कभी न उठाओ बैसाखी !
घूमों घर-घर, क्षत्रिय का अंग रहे न बाकी !६०!
स्वाभाव वनराज सा,इसीलिए एक न होंगे कभी!
पल-दोपल की एकता है.सोचने लगे ऐसा सभी!६१!
संघ-प्रमुख भी बेखबर न थे, मानते थे इनको मोती!
लाख कोशिश करो, पर इनकी भी ढेरी कहाँ होती !६२!
जितना पास लाते है,उतने ही दूर होते है भाग कर !
किन्तु वे उदास न थे,विचार दिया स्थिति को भांप कर!६३!
जल धरा जिधर बहना चाहती है, बहाने दो !
मोती जहाँ पड़ा है, उसे वहीँ पड़ा रहने दो !६४!
जगह-जगह जा कर मोती ही में छेड़ करो !
जिस में हो सके न छेड़,उस पर ही खेद करो!६५!
यह काम करेगा "क्षत्रिय युवक संघ " हमारा !
"जय संघ शक्ति"बोल उठी है, जल धारा !६६!
सुई धागा हाथ में लेकर, "क्षत्रिय वीर ज्योति " आयी !
छिद्र पहले से ही थे, इसीलिए यह सबको भायी !६७!
घृणा अश्व, अपमान कवच, वेद ढाल बन गये !
वीरता के अस्त्र, सहस का बना शस्त्र, सब तन गये !६८!
इसी तरह, " क्षत्रिय वीर ज्योति" ने कटक बनाई !
दशहरा ही नहीं, दिवाली, होली भी खूब मनाई !६९!
भारतीयता को पदाक्रांत देख, वीर ज्योति हुंकारी !
पग-पग पर आक्रान्ता, है नेता बनने वाले !
भूमि तुम्हारी ही होगी, लेकिन होंगे डंकल के ताले !७१!
कदम कदम पर बंधन, है प्रजातंत्र यह कैसा ! 
हमारी "माता" को खरीदता है, विदेशियो का पैसा !७२!
जब पैसे का मद, आँखों में आग भर देता है !
तभी पराया वैभव, मन को पागल कर देता है !७३!
कृषकों के खेतो पर, खाद बीज विदेशियो के चलते है !
बीज स्वयंके ही होगे पर, विदेशियो के आदेश से डलते है!७४!
भेज कर अतंकवादियो को, अमेरिका ने क्षत्रियो को ललकारा !
पाकिस्तान ने कहा, तुम्हारी कश्मीर पर है अधिकार हमारा !७५!
पाक ध्वज के नीचे, कश्मीरियो को रहना होगा !
मै नेता हूँ मेरा अन्याय, तुम को सहना होगा !७६!
धधक उठी भारत पर, एटम बम की ज्वाला !
मानो तूफान आया हो, तम छा गया काला !७७!
ऐसे में भारत के पतियो ने, चुप्पी साधी जान प्यारी थी !
चीर-हरण हो रहा था जिसका, वह क्षत्रियो कीभी नारी थी !७८!
प्रजातंत्र प्रजा को हो कर भी, क्यों जीवन का प्यारा है !
यह कैसा तंत्र है , इसका सिद्धांत सबसे न्यारा है !७९!
स्थिति अनुकूल जान कर, क्षत्रिय वीर ज्योति बढ़ी अगाड़ी !
बम बनाना सीख रहे थे, संघ में क्षत्रिय खिलाडी !८०!
हमें पराधीनता नहीं चाहिए, जीवन की कीमत पर !
रहना नहीं सिखाया क्षत्राणी ने, जंजीरों में बंध कर !८१!
हम तढ़फे तुम कड्को तद्फन पर, कब तक ऐसा होगा !
प्रजतान्त्रियो के बहकावे में, भारत ने बहुत दुःख भोगा !८२


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पर-ब्रह्म परमेश्वर ने सृष्टि को रच दिया !
क्षरण से इसकी रक्षा का भार किसे दिया ?१?

कौन इसे क्षय से बचा  कर जीवन देगा ?
कौन इसे पुष्प दे कर स्वयं काँटे लेगा ?२?

नारायण ने ह्रदय से क्षत्रिय ,को पैदा किया है !
सृष्टि को त्राण क्षय से ,कराने का काम दिया है !३!

शौर्य, तेज़, धैर्य, दक्षता,और संघर्ष से न भागो !
दान-वीरता ,और ईश्वरीय भाव अब तो जागो !४!

इतने सारे स्वभाविक गुण ,दे दिए भर-कर !
हर युग,हर संघर्ष में जीवित रहो ,मर मर-कर!५!

हर क्षेत्र,हर काल में हमने चरम सीमा बनायीं !
चिल्ला चिल्ला-कर ,इतिहास दे रहा है, गवाही !६!

खता उसी फल को सारा जग,जिसे तू बोता था !
अखिल भूमि पर, तेरा ही शासन तो होता था !७!

किन्तु महाभारत के बाद ,हमने गीता को छोड़ दिया !
काल-चक्र ने इसीलिए ,हमे अपनी गति से मोड़ दिया!८!

जाने कहाँ गया वह गीता का ज्ञान जो हमारे पास था ?
समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान, उस समय हमारा दास था !९!

यवनों के आक्रमण पर इसीलिए रुक गया हमारा विकास !
अश्त्र-सशत्र सब पुराने थे ,फिर भी हम हुए नहीं निराश !१०!

उस समय हमारे भी अश्त्र समयानुकूल होते काश !
तो फिर अखिल विश्व हमारा होता,हम होते नहीं दास !११!

यवन, मुग़ल, और मलेच्छ , इस देश पर चढ़े थे !
हम भी कम न थे ,तोप के आगे तलवार से लड़े थे !१२! 

किन्तु कुछ तकनिकी ,कुछ दुर्भाग्य ने हमारा साथ निभाया !
अदम्य सहस और वीरता को ,अनीति और छल ने झुकाया !१३! 

विदेशी अपने साथ अनीति और अधर्म को साथ लाये थे !
मेरे भोले भारत को छल कपट और अन्याय सिखाये थे !१४!

तब तक हम भी, क्षत्रिय से ,हो गये थे राजपूत !
गीता ज्ञान के आभाव में नहीं रहा था शांतिदूत !१५!

हिन्दू ,राजपूत और सिंह जैसे संबोधन होने लगे !
अपने ही भाईयों को,क्षत्रिय इस चाल से खोने लगे !१६! 

कुछ राजा और राजपूत अलग हो गये छंट-कर !
पूरा क्षत्रिय समाज छोटा होता गया बंट बंट-कर !१७! 

फिर फिरंगी, अंग्रेज, भारत में आये धोखे से !
हम राज्य उन्हें दे बैठे , व्यापर के मौके से !१८!

लॉर्ड मेकाले ,सोच समझ कर सिक्षा निति लाई !
क्षत्रियो के संस्कार पर अंग्रेज संस्कृति खूब छाई !१९!

क्या करे और कैसे कहे ,वह पल है दुःख दायी !
सबसे पहले एरे ही अलवर को वो सिक्षा भायी !२०!

हमने अपना कर विदेशी संस्कृति को क्षत्रियता छोड़ दी !
अपने साथ उसी समय ,भारत की किस्मत भी फोड़ दी !२१!

आज उसी का फल सारा जग हा हा कार कर रहा है !
धर्मं, न्याय ,और सत्य हर पल ,हर जगह मर रहा है !२२! 

अधर्म, अन्याय ,और असत्य का नंग नाच हो रहा है !
हर नेता ,हर जगह ,हर पल ,भेद के बीज बो रहा है!23!

कहीं जाति के नाम ,कहीं आतंक के नाम शांतिको लुटा दिया !
धर्मं, न्याय और सत्य का ध्वज हर जगह झुका दिया !24!

वायु से लेकर जल तक ,हर जगह गंध मिला दिया !
सारे ब्रह्माण्ड का गरल ,मेरी जनता को पिला दिया !२५!

जिसकी रक्षा के लिए क्षत्रिय बने , उसी को रुला दिया !
फिर भी क्षत्रिय को ,न जाने किस नशे ने, सुला दिया !२६!

स्वार्थी नेताओ ने ,जनता को खूब भरमाया है !
हमारे विरुद्ध न जाने, क्या-क्या समझाया है !27!

इतिहास को तोड़-मरोड़ ,नेहरु और रोमिला ने भ्रष्ट कर दिया !
जन-बुझ कर, उसमे से ,क्षत्रिय गौरव को नष्ट कर दिया !२८!

क्योंकि वे जानते थे ,कि इनकी हार में, भी थी शान !
और जनता भी बेखबर, न थी ,उसे भी था भान !२९!

गुण-विहीन ,तप-विहीन ,धर्म-हीन कोई क्षत्रिय हो नहीं सकता !
क्षत्राणी कि कोख मात्र से, पैदा होकर क्षत्रिय हो नहीं सकता !३०!

जब तक न गीता का रसपान करेगा जीत न सकेगा समर !
रण-चंडी बलिदान मांग रही है ,तू कस ले अपनी कमर !३१!

कभी प्रगति ,कभी स्वराज्य का सपना दिखा खूब की है मनमानी !
प्रगति तो खाक की है ,चारोओर आतंक है पीने को नहीं है पानी !३२!

फिर भी कभी कर्जे माफ़ी ,कभी आरक्षण के सहारे होता है चयन !
राष्ट्र जाये भाड़ में ,शांति जाये पाताल में , वोटो पर होते है नयन !३३!

कभी बोफोर्स, कभी चारा, कभी तेल घोटाले से बनता है पेशा !
खूब लुटा है भोली जनता को ,यह प्रजातंत्र चलता है कैसा !३४!

यों तो कुकुमुत्ते की तरह गली-गली में दल है अनेक !
लूटने में भारत माता को, भ्रष्टाचार में लिप्त है हरेक ! ३५!

गरीब का बसेरा सड़क पर , और नंगे पैर चलता है !...
सकल-घरेलु उत्पाद का अधिकांश धन,विदेशी बैंकोमें डलता है ! ३६!

भारतीयता से घृणा कर, हर चीज ...,विदेशी खाते है !
भारत की जनता को लूटने में फिर भी वो नहीं शरमाते है !३७ !

हर त्यौहार ,हर ख़ुशी में बच्चो को सौगात विदेशी लाते है !
हद तो तब होती है, जब चीज ही नहीं बहू भी विदेशी लाते है! ३८!

स्वतंत्रता के नाम पर हमने ...जला दिए विदेशी परिधान !
किन्तु आजादी के बाद हमने लागु कर दिया विदेशी विधान!३९ !

अपराध -संहिता ,दंड-संहिता,अंग्रेजो का चल रहा है विधान !
६३ वर्ष गवाँ दिए हमने फिर भी खोज नहीं सके निधान !४०! 

चारोऔर तांडव महा -विनाश का, तेजी से चल रहा है !
हर बच्चा ,हर माँ रो रही ,मेरा सारा भारत जल रहा है ! ४१! 

सब कुछ खो कर ,मृत जैसा आराम से क्षत्रिय सोया है !
महा पतन का कारण एक ही,क्षत्रिय ने राज्य खोया है !४२!

न जाने किस धर्म की ओट लेकर, क्षत्रिय कहाँ भटक गया ? 
किस जीवन स्तर,किस विकास के चक्कर में अटक गया !४३?

दुनिया के अन्धानुकरण ने ,क्षात्र-धर्मं को दे दिया झटका !
जाट,गुजर,अहीर मीणा ही नहीं,अब तो राजपूत भी भटका !४४!

अपना धर्मं. अपना कर्म छोड़ चा रहा है ,झूंठा विकास !
बहाना लेकर , कर्म छोड़ कर, हो रहा है समय का दास !४५!

समय का दास बन ,अपने आपको बदल कर होरहा है प्रसन्ना !
भूल रहा है तेरी इसी ही हरकत से भारत हो गया है विपन्न !४६!

जग में हो कितना ही दर्द ,क्षत्रिय ही को तो हरना है !
अपने मरण पर जीवन देता, क्षत्रिय ऐसा ही तो झरना है!४७!

रास्ता बदल दे सूर्य देव ,अपनी शीतलता चाँददेव छोड़ दे !
है सच्चा क्षत्रिय वही , जो वेग से समय का मूंह मोड़ दे !४८!

जितना मन रखा ,उतना ताकतवर है नहीं समय का दानव !
समय की महिमा गाने वालो,ज्यादा ताकत रखता है मानव !४९! 

प्राण शाश्वत है ,मरता नहीं ,किसी के काटे कटता नहीं ! 
प्राण बल को प्रबल करो, प्राणवान संघर्ष से हटता नहीं !५०!

अर्जुन भी हमारी ही तरह, पर-धर्मं को मानते थे !
भलीभांति श्री कृष्ण इस गूढ़ रहस्य को जानते थे !५१!

इसीलिए साड़ी गीता में नारायण ने ,उसको धर्म बताया !
उस सर्वश्रेष्ट धनुर्धर को, क्षत्रिय का क्षात्र-धर्म बताया !५२!

जब तक सत्य-असत्य,धर्मं-अधर्म का अस्तीत्व बना रहेगा !
इस ब्रहामंड की रक्षा के लिए हमारा भी क्षत्रित्व बना रहेगा !५३!

जब आज अधर्म,अन्याय ,असत्य और बुराई का राज है !
तो फिर पहले से कहीं ज्यादा, जरुरत क्षत्रिय की आज है !५४!

मरण पर मंगल गीत गा कर ,क्षत्राणी सदा बचाती धर्मं !
हम सब का एक ही कर्म फिर से जीवित हो क्षात्र-धर्मं !५५!