कैसा यह सम्मेलन हुआ, रैगर खुद ही शर्मसार
हुआ।
खंडित हुई समाज की एकता, अखंडता पर वार
हुआ।
कोसते थे आलोचकों को, संयोजक खुद लाचार
हुआ।
सोचा ना एक पल भी, कैसा समाज में
व्यवहार हुआ।
रैगर खुश हुए या नाराज, ना इस बात पर
विचार हुआ।
लोगों में आई नहीं जागृति, रघुबीर लिखना
बेकार हुआ।
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