Monday, June 19, 2017

निष्काम सेवा ही अपने आप में पुरस्कार है

• निष्काम सेवा ही सच्चा धर्म है –
हम देखते हैं कि जात-पांत, ऊँच-नीच, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, सज्जन-दुष्ट, अच्छे-बुरे आदि सभी प्रकार के भेद-भावों को मिटा कर, उन पर ध्यान दिए बिना ही, उनकी चिन्ता किये बिना ही –
• सूरज सभी को रोशनी, प्रकाश और उर्जा देता है,
• वसुंधरा माँ भी अपनी सभी संतानों को पोषण, आश्रय, विश्राम और ममत्व प्रदान करती है.
• चन्द्रमा सभी को शीतल किरणों से प्रफुल्लित करता है.
• पवन या हवा सभी को प्राणदायक वायु प्रदान करती है. हिटलर ने लाखों लोगो को मारा, फिर भी पवनदेव ने उसको आक्सीजन देना बंद नहीं किया.
• सभी नदियाँ प्यासे को पानी पिलाती हैं.
• सभी समुद्र नीलकंठ की भांति इस संसार की सभी तरह की गन्दगी को ग्रहण कर घनघोर मेघों की रचना कर अमृत जल की बारिश करवाते हैं.
• सभी वृक्ष प्राणघातक वायु को ग्रहण कर जीवनदायक आक्सीजन को छोड़ते हैं और पत्थर मारने पर भी मधुर फल देते हैं.
इस तरह से सभी महान लोग पात्र-अपात्र की चिंता किये बिना अपना-अपना कार्य निस्वार्थ भाव से करते रहते हैं,
सभी धर्मों की रचना करने वाले भगवान ने ही इन महान शक्तियों को जैसे कि सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, पवन, नदियाँ, समुद्र, वृक्ष आदि को बनाया है और उन्होंने आप को भी बनाया है.
अतः आपका यह कर्तव्य है कि आप भी निस्वार्थ भाव से अच्छे-बुरे की चिंता छोड़ अपना तन-मन-धन लगाकर दूसरों पर उपकार करें, दूसरों की मदद करें,
तभी आप भी इन महान शक्तियों के समतुल्य होकर पामर से परमात्मा बन सकेंगे.
बड़े आश्चर्य की बात है कि हम भगवान को भी हमारे ही तरह का स्वार्थी समझने लगते हैं कि वह हमारी पूजा-पाठ, भक्ति, जप-तप आदि के रूप में की जाने वाली खुशामद, प्रशंसा या दान के रूप में दी जाने वाली रिश्वत से प्रसन्न हो जावेंगे.
वास्तव में तो भगवान भी उनकी बनायी हुई इन महान शक्तिओं की तरह ही दीन-हीन और सताए हुए लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से ही प्रसन्न होते हैं.
1. यही निष्काम योग है,
2. यही सच्चा धर्म है,
3. यही मानव धर्म है.

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