Saturday, November 5, 2016

सामाजिक संगठन

'तूफानो से आंख मिलाओं, सैलाबो पर वार करो। 
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैरके दरिया पार करो।।

एक दिन ऐसा आयेगा, और भी आंखे देखेगी ।
एक दिन ऐसा आयेगा, और जुबाने बोलेगी ।।
एक दिन ऐसा आयेगा, जब ये आवाजें गूजेंगी ।

एक नयी दुनिया मुमकिन है ।
एक नयी दुनिया मुमकिन है।।

एकल नारी शक्ति संगठन

"राजस्थान, भारत में
गरीब विधवा, परित्यकता
व अन्य एकल महिलाओं
का जन-आधारित
विशाल संगठन
जो संगठन व जागरूकता के
माध्यम से आगे बढ़ता ही जा रहा है..."





यह ठीक है तुम अपनी जिंदगी जिओ, एक विधवा की तरह ही सही,
एक विधवा के रुप में भी यह जीवन जीने के लिये ठीक ही है ।

लड़ेंगे, जीतेगे। अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। ।

बन जा बहना झांसी रानी, खत्म करो यह जुल्म कहानी ।।

अब रुकेंगे ना किसी भी हाल में ...

- परामर्श
- जमीन और सम्पत्ति के अधिकार के लिये कार्य करना।
- सरकारी योजनाओं तक पहुँच बनाना।
- जिला, राज्य एवं केंद्र सरकार की एडवोकेसी करना।
- सामाजिक परिवर्तन।
- नाम सूचक शब्दों एवं लैंगिक उत्पीड़न पर रोक लगाना।
- रूढ़ियों एवं कुप्रथाओं में परिवर्तन लाना।
- नेतृत्वकर्ता के लिये साक्षरता कार्यक्रम।
- सदस्यों के लिये प्रशिक्षण, सम्मेलन एवं जागरूकता कार्यक्रम।
- समाचार पत्रिका एवं पेम्पलेट का संपादन।
- एकल नारी के मुद्दे व कारणों को प्रकाशित करना ।
- अन्य राज्यों में विस्तार करनें में सहायता करना।
- नए नेतृत्व को विकसित करना।
- वैकल्पिक परिवार का निर्माण करना।

परामर्श: ज्यादातर केसों (समस्याओं में एकल महिलाओं पर ससुराल पक्ष, बेटे-बहू या पड़ोसी अत्याचार करते हैं। ब्लॉक कमेटी, केस की जांच करती है एवं संबंधित पार्टी को परामर्श देती हैं। यदि आवश्यक हो तो पुलिस केस भी दर्ज कराती है। एकल नारी शक्ति संगठन के सदस्य पहले से भी अधिक शांति, सौहार्द व गरिमामय जीवन जीयें, इस हेतु कमेटी हर संभव प्रयास करती है।

जमीन व सम्पत्ति के अधिकार के लिये कार्य करना: यद्यपि विधवाओं का अपने स्वर्गीय पति की जमीन एवं सम्पत्ति पर कानूनन अधिकार होता है किंतु यह सम्पत्ति व्यावहारिक रुप से उनके अधिकार में नहीं होती। समाज सोचता है कि विधवा अकेली व असहाय है, वह क्या कर सकती हैघ् परिवार के अन्य सदस्य एवं पड़ोसी अवैधानिक रूप से उनकी सम्पत्ति व जमीन पर कब्जा कर लेते हैं । संगठन सदस्यों को अपनी जमीन एवं सम्पत्ति का अधिकार दिलाने के लिये कानूनी, प्रशासनिक, राजनीतिक तन्त्र एवं मीडिया की सहायता लेता है।

सरकारी योजनाओं तक पहुँच बनाना: सरकारी योजनाएं जैसे विधवा पेंशन, विधवाओं को अकेले प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है। निर्णायक ढाँचे का ज्ञान, सही अधिकारी के समक्ष संबंधित आवेदन पत्र जमा करना और नियम, कानून, नीतियो की जानकारी व जागरूकता, इन सभी में सहयोग की आवश्यकता होती है। संगठन इन सभी औपचारिकताओं को पूरा करने में और सदस्यों को सरकारी योजनाओं से लाभ दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिससे उन्हें जीवन जीने में मदद मिलती है।

जिला, राज्य, केंद्र सरकार की एडवोकेसी करना: वर्तमान कानूनों, नीतियों एवं योजनाओं में परिवर्तन करने के लिए नए कानून, नीति एवं नियम बनाने के लिये पंचायत, पंचायत समिति जिला, राज्य एवं केन्द्र स्तर पर एडवोकेसी करना।

सामाजिक परिवर्तन: एक बार जब सदस्यों में सामूहिक भावना विकसित हो जाती हैं। सदस्य केवल विधवा व परित्यकता महिलाओं की विशिष्ठ (विशिष्ट समस्याओं पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करते बल्कि सूखा, मद्यनिषेध, जाति भेदभाव, उपभोक्तावाद के मुद्दो को भी उठाते हैं। महिलाएं सबल एवं शक्तिशाली तब होती है जब अन्य सामाजिक समूहों एवं प्रयासों से जुड़ जाती है यह सामुहिक शक्ति सामाजिक परिवर्तन लाने में गतिशील सिद्ध होती है।

नाम सूचक शब्दों एवं लैंगिक उत्पीड़न पर रोक लगाना: समाज की पुरुष प्रधान सत्ता प्रायः यह सोचती है कि औरते अकेली है एवं कोई भी उनकी सहायता करने वाला नहीं है। लैंगिक रूप से वह आसान लक्ष्य मानी जाती है। अनैच्छिक लैंगिक दबाव, उत्पीड़न एवं खास तौर पर एकल महिलाओं पर आक्रमण, नाम सूचक शब्दों का प्रयोग जैसे आम घटना हो गई हैं। गरीब विधवा महिलाओं के लिये डाकन, डायन, अपशगुनी, रांड या अन्य निंदात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं। इस विषय में संगठन प्रभावपूर्ण रूप से सदस्यों को कानूनी कार्यवाही, दण्ड आदि के बारे में ज्ञान एवं जानकारी देता है। संगठन में महिलाओं को यह महसूस होता है कि वे अकेली नहीं है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। ये आत्मविश्वास उनकी मदद करता है, जिससे वे स्वंय (स्वयं की व दूसरो की मदद करें, लैंगिक उत्पीड़न रोक सकें और नाम सूचक शब्दों के खिलाफ आवाज उठा सके।

रूढ़ियों एवं कुप्रथाओं में परिवर्तन लाना: रूढ़ियों एवं कुप्रथाओ ने एकल महिलाओं को समाज में सीमान्त पर खड़ा कर दिया है। विधवा महिलाओं को विवाह, मंगनी एवं गोद भराई इत्यादि उत्सवों में भाग लेने और चुड़ियां पहनने, बिंदी एवं हाथों में मेहंदी लगाने की अनुमति नहीं है। कुछ समुदायों ने विधवाओं के लिये विशेष रंग के वस्त्र निर्धारित किए हैं जैसे काला, सफेद और गहरा बैंगनी आदि। कुछ समुदायों में रंगीन वस्त्रों को पहनने पर प्रतिबंध है, और कुछ समुदायों में विधवाओं को स्वादिष्ट भोजन खाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। एकल नारी शक्ति संगठन इन कुप्रथाओं को तोड़ने में अपने सदस्यों की मदद करता है! विधवाओं का पुर्नविवाह नहीं होना लगभग सार्वभौमिक है जबकि आदिवासी व निम्न जातियों में नाता प्रथा को मान्यता दी जाती है किंतु महिलायें दूसरा विवाह नहीं कर सकती है। दूसरी ओर पुरुष पुनर्विवाह आसानी से कर सकते हैं। संगठन ऐसी महिलाओं की सहायता करती है जो पुर्नविवाह करना चाहती है। कुछ केसो में संगठन सदस्यों ने विधवा महिलाओं का स्वयं पुनर्विवाह करवाया है।

नेतृत्वकर्ताओ के लिये साक्षरता कार्यक्रम: संगठन अपने निरक्षर कमेटी सदस्य, नये नेतृत्वकर्ता व संगठन कार्यकर्ता के लिये कम समय में पूरे होने वाले संघनित (सघन आवासीय प्रशिक्षण आयोजित करता है। यह प्रशिक्षण आधारभूत पठन-पाठन की समझ एवं संख्या ज्ञान पर आधारित होता है। यदि संगठन के नेतृत्वकर्ता साक्षर होंगेतो संगठन के कार्यों में मजबूति आयेगी।

सदस्यों के लिये प्रशिक्षण, सम्मेलन एवं जागरूकता कार्यक्रम: नेतृत्वकर्ताओं के लिये क्षमतावर्धन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ग्राम पंचायत स्तर से राज्य स्तर तक के कमेटी सदस्यों के लिये बैठकों का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक वर्ष निर्धारित जिले में संगठन सदस्यों के लिये विशाल सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। "संगठन ताकत है, ज्ञान शक्ति है"

समाचार पत्रिका एवं पेम्पलेट सम्पादन: समाचार पत्र वर्ष में तीन बार प्रकाशित किए जाते हैं जो कि हमें संगठन से संबंधित कानूनी जानकारी, एकल महिलाओं से सम्बन्धित सरकारी योजनाएं व नियम रोजगार एवं स्वास्थ्य संबंधी बिंदू, संगठन के सदस्यों के संघर्ष की सफल केस स्टडी एवं सदस्यां की अपनी अनुभव व संदेश आवश्यकतानुसार अन्य महत्पूर्ण मुद्दे जैसे सूखा के समय सूखा राहत संबंधी जानकारी, आगामी चुनाव के विषय में सूचना आदि उपलब्ध कराते हैं। पेम्पलेट विशिष्ट मुद्दों पर सूचना प्रदान करते हैं आवश्यकतानुसार समय समय पर नये पेम्फलेट तैयार किये जाते है।

एकल नारी के मुद्दे एवं कारण को सम्पादित करना: संगठन ने मीडिया (समाचार पत्र एवं टी.वी.) के साथ अच्छा सम्बन्ध स्थापित किया है। समय, समय पर प्रेस नोट एवं प्रेस वार्ता आयोजित की जाती हैं। गरीब एकल महिलाओं के मुद्दों को उठाने, सफलता एवं शक्ति को आमजन तक पहुँचाने में मीडिया मदद करता है।

अन्य राज्यों में विस्तार करने में सहायता करना: एकल नारी शक्ति संगठन का गठन जनवरी 2000 में हुआ। जब अन्य राज्य, राजस्थान के एकल नारी शक्ति संगठन की सहायता से अपने राज्य की एकल महिलाओं का संगठन बनाना चाहते हैं तो राजस्थान संगठन के नेतृत्वकर्ता उनके राज्यों में आयोजित सम्मेलन, प्रशिक्षण, राज्य स्तरीय बैठकों एवं जनसुनवाई में संदर्भ व्यक्ति के रूप में भाग लेते हैं, साथ ही संगठन बनाने और मजबूत करने में सहयोग देते हैं।

नए नेतृत्व को विकसित करना: ब्लॉक स्तरीय कमेटी, संगठन में नये नेतृत्वकर्ता को तैयार करने में मुख्य भूमिका निभाती है। मार्च, 2013 तक 125 ब्लॉक स्तरीय एवं 10 शहर स्तरीय कमेटियां है। अतः प्रत्येक कमेटी के साथ लगभग 30 सदस्य जुड़े हुए हैं। इस तरह राज्य भर में 4,050 नेतृत्वकर्ता तैयार हुए हैं। राज्य के 125 ब्लॉक में ब्लॉक स्तरीय कमेटियां है। राज्य भर में संगठन का कार्यक्षेत्र 57 प्रतिशत से ज्यादा में फैला हुआ है। विस्तार सतत् रूप से जारी है। नेतृत्वकर्ताओं का क्षमतावर्धन प्रशिक्षण, भारत के अन्य राज्यों एवं जिलों में भ्रमण, राज्य सरकार के साथ एडवोकेसी, क्रिया-प्रतिक्रिया, समाज का विश्लेषण और अन्य गतिविधियों के माध्यम से किया गया।

वैकल्पिक परिवार का निर्माण करना: संगठन अपने सदस्यों के लिये बना है, यह एक ऐसा वैकल्पिक परिवार है जिसमें एकल महिलायें एक दूसरे का ध्यान रखती हैं, साथ मिलकर खुश रहती हैं, साथ मिलकर वे अपनी समस्याओं का समाधान करती है, साथ नाचती और साथ गाती है। साथ रहने से वे सीखती है और नई जानकारियां लेती हैं। महिलाएं जिन्हें, ससुराल पक्ष के रिश्तेदार, भाई-भाभी या बेटे-बहू नहीं चाहते, उनके लिये संगठन गरिमामय जीवन जीने के लिए स्नेह एवं शक्ति देने वाला दूसरा परिवार है।

संगठन की आवश्यकता

सदियों से, भारत में विधवा व एकल महिलाओं का जीवन शोषित, पीड़ित, क्रूर प्रथाओं एवं परम्पराओं से जकड़ा हुआ है। महिलाओं तथा विषेष रुप से गरीब अकेली रह रही एकल महिलाओं को बहुत कम ही अवसर मिलते हैं कि वे सुधार एवं गरिमामय जीवन जी सकें। महिलाओं में शिक्षा का कम स्तर, समाज में व्यापक रूप से फैली हुई पितृसत्तात्मक मूल्य, एकल महिलाओं का संगठित ना होना यह कुछ ऐसे कारण है जिसकी वजह से भारत में एकल महिलाओं की स्थिति निरंतर शोचनीय रही है। आँकलन है कि भारत की समस्त महिलाओं में से 8 प्रतिशत महिलाएं विधवा है। यह संख्या 2008 में लगभग 56,000,000 है। ऐसा नही है कि ये सभी इज्जत से नहीं जी रही हैं लेकिन इनमें से आधी महिलाएं तो इस अधिकार से वंचित है। और यदि हम इस संख्या में तलाकशुदा, परित्यकता व अन्य एकल महिलाओं की संख्या जोड़ दें तो भारत में एकल महिलाओं का प्रतिशत कम से कम 10 प्रतिशत हो जायेगा।

कुछ समाज सुधारकों ने विधवा महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने का कार्य किया था जैसे राजा राममोहन राय (1772-1833), गांधीजी जिन्होंने विधवाओं के गरिमामय जीवन जीने के अधिकार को प्राथमिकता दी तथा प्रयास भी किये। परन्तु इस सूची में ज्यादा नाम नहीं है। समाज धीरे-धीरे परिवर्तित हो रहा है। सरकार ने एकल महिलाओं के पक्ष में कुछ कानून व योजनाएं बनाई है जैसे विधवा पेंशन। किंतु गरीब एकल महिलाओं को ये लाभ लेने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है एवं अधिकांशतः राज्यों में परित्यकता महिलाओं के लिये पेंशन की कोई व्यवस्था ही नहीं है। और 35 वर्ष से अधिक उम्र की अविवाहित महिलाओं की समस्याओं के बारे में तो अभी तक सरकार व समाज का ध्यान गया ही नहीं हैं।
एकल महिलाओं के लिये कुछ करने की आवश्यकता थी, लेकिन क्या किया जाये? क्या एकल महिलाओं के लिये आश्रम की व्यवस्था करना, उनकी समस्याओं का खत्म करके उन्हें सम्मानपूर्ण जीवन दे सकता है। शायद नहीं, लेकिन विधवा व अन्य एकल महिलाओं का संगठन जो एक दूसरे के अधिकारों के लिये लड़े तथा सहयोग करे समस्या सुलझाने के लिये विकल्प हो सकता है। इसी सोच के साथ जनवरी 2000 में राजस्थान एकल नारी शक्ति संगठन का गठन हुआ। वर्तमान (मार्च 2013) में राज्य के 32 जिलों के 135 ब्लॉक में 42,472 सदस्य संगठन से जुड़े हुए है।

संगठन का लक्ष्य
सभी समाज की गरीब, एकल महिलाएं पारस्परिक सहयोग से अपनी शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं कानूनी स्थिति में सुधार लाकर सशक्त नागरिक बने और गुणवत्तापूर्ण जीवन जीयें। इस संघर्ष की प्रक्रिया से अपने में और समाज में शक्ति का संचार करे।

संगठन का उद्देश्य

  • एकल महिलाओं को सम्मान से जीने का अधिकार दिलाना।
  • एकल महिलाओं को सम्पत्ति और जमीन का अधिकार दिलाना और उन्हें अत्याचार से मुक्ति दिलाना।
  • एकल महिलाओं में शक्ति का संचार हो सके इसलिये एकल नारी शक्ति संगठन से जोड़ना।
  • एकल महिलाओं का संगठन में ऐसा समन्वयन स्थापित करना जिससे वे एक दूसरे की आवश्यकतानुसार मदद कर सकें।
  • संगठन से जुड़े सदस्यों के साथ मिलकर पारंपरिक कुरीतियों एवं रूढ़ियों को बदलना। 
  • एकल नारी हितैषी योजना, कानून लागू करवाना एवं उनका बेहतर क्रियान्वयन करवाना।
  • कानून की नीतियों एवं सरकारी योजनाओं से लाभान्वित करने के लिये संगठन सदस्यों की मदद करना।
  • सामूहिक प्रयास से आय संवर्धन योजनाओं को लागू करवाना, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिल सके। 

No comments:

Post a Comment