सेवामें
श्रीमान पुलिस
अधीक्षक महोदय
शाहजहांपुर।
विषय:- शारीरिक,
मानसिक, आर्थिक व सामाजिक शोषण कर जीवन बर्बाद करने वाले स्वामी
चिन्मयानंद सरस्वती के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कार्रवाई करबाने के संबंध में।
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महोदय, निवेदन है कि प्रार्थिनी साध्वी चिदर्पिता गौतम
हाल निवासिनी एफ-14, फेस-2 श्रीराम नगर कालोनी बदायूं उत्तर प्रदेश,
दिल्ली की मूल निवासिनी है। पारिवारिक पृष्ठ
भूमि व व्यक्तिगत रुचि आध्यात्मिक और राजनैतिक होने के कारण परिवार में आते-जाते
रहने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती निवासी मुमुक्षु आश्रम जनपद शाहजहांपुर उत्तर
प्रदेश राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान लेने को प्रेरित करने लगे। उनके उत्कृष्ट
विचारों का प्रार्थिनी के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वर्ष 2००1 से उनके संपर्क
में आने के बाद उनके दिल्ली स्थित सांसद निवास में रह कर राजनैतिक व आध्यात्मिक
ज्ञान अर्जित करने लगी। इस दौरान उनके साथ कई कमेटी दौरे और धार्मिक स्थलों की
यात्रा पर गई, जिससे प्रार्थिनी
को वास्तव में एक अलग अनुभव व ज्ञान मिला। वर्ष 2००4 तक वह गुरु की
ही तरह प्रार्थिनी को सिखाते रहे और प्रार्थिनी भी उन्हें संरक्षक मानते हुए
शिष्या की ही तरह सीखती रही, उन पर प्रार्थिनी
को भाई या पिता से भी अधिक विश्वास हो गया, तभी वर्ष 2००4 में वह प्रार्थिनी को जप-तप और धार्मिक
अनुष्ठान कराने के लिए पे्ररित कर हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में ले आये। यहां
उन्होंने ज्ञान बर्धक बातें सिखाई भीं, लेकिन अचानक प्रार्थिनी को उनकी नियत में परिवर्तन दिखने लगा, जिससे प्रार्थिनी किसी तरह से निकलकर भागने की
मन ही मन युक्ति सोच ही रही थी कि तभी वह वर्ष 2००5 में अपने
व्यक्तिगत अंगरक्षकों के बल पर अपनी गाड़ी में कैद कर शाहजहाँपुर स्थित मुमुक्षु
आश्रम ले आये और आश्रम के अंदर बने दिव्य धाम के नाम से बुलाए जाने वाले अपने
निवास में लाकर बंद कर दिया। यहाँ कई दिनों तक प्रार्थिनी पर शारीरिक सम्बन्ध
बनाने का दबाव बनाया गया, जिसका प्रार्थिनी
ने विरोध किया, तो उन्होंने
अज्ञात असलाहधारी लोगों की निगरानी में दिव्य धाम में ही कैद कर दिया, पर प्रार्थिनी शारीरिक सम्बन्ध बनाने को किसी
भी कीमत पर तैयार नहीं थी, लेकिन अपने
रसोईये के साथ साजिश कर खाने में किसी तरह का पदार्थ मिलबा कर उन्होंने प्रार्थिनी
को ग्रहण करा दिया, जिससे प्रार्थिनी
शक्तिहीन हो गयी। उसी रात शराब के नशे में धुत्त स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती
प्रार्थिनी पर टूट पड़े। विरोध करने के बावजूद वह प्रार्थिनी के साथ बलात्कार करने
में कामयाब हो गये, लेकिन उनके दिव्य
धाम स्थित निवास में कैद होने के कारण प्रार्थिनी कुछ नहीं कर पायी। बलात्कार करते
समय उन्होंने वीडियो फिल्म बना ली थी, जिसे दिखा कर बदनाम करने व जान से मारने की धमकी भी दी, तभी दहशत के चलते उनके कुकृत्य की किसी से चर्चा तक नहीं कर
पाई। उस एक दिन के बाद वह जब मन में आता, तब प्रार्थिनी का शारीरिक व मानसिक शोषण करते। यह सिलसिला अनवरत सालों-साल
चलता रहा और प्रार्थिनी नरक से भी बदतर वह जिंदगी मजबूरी में इसलिए जीती रही
क्योंकि चौबीस घंटे उनके द्वारा छोड़े गये असलाहधारी लोगों की निगरानी में रहती
थी। इस बीच दिव्य धाम से बाहर भी गयी तो उनके लोग साथ ही जाते थे, जिन्हें उनका स्पष्ट निर्देश रहता था कि किसी
से बात तक नहीं करने देनी है और न ही कहीं प्रार्थिनी की इच्छानुसार ले जाना है।
शहर में रहते हुए लंबे समय बाद प्रार्थिनी को लगने लगा कि अब उसकी जिंदगी यही है
तो स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती को मन से पति रूप में स्वीकार करते हुए प्रार्थिनी
भी उसी जिंदगी में खुश रहने का प्रयास करने लगी। महोदय इसी बीच प्रार्थिनी दो बार
गर्भवती भी हुई। प्रार्थिनी बच्चे को जन्म देना चाहती थी, लेकिन स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी की इच्छा
यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि उन्हें संत समाज बहिष्कृत कर देगा, जिससे सार्वजनिक तौर पर मृत्यु ही हो जायेगी।
ऐसा होने से पहले या तो वह आत्म हत्या कर लेंगे या फिर प्रार्थिनी को मार देंगे।
इतने पर भी प्रार्थिनी गर्भपात कराने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने अपने ऊँचे
राजनैतिक कद का दुरुपयोग करते हुए पहले बरेली स्थित अज्ञात अस्पताल में और दूसरी
बार लखनऊ स्थित अज्ञात अस्पताल में जबरन गर्भपात करा दिया, जिससे दोनों बार प्रार्थिनी को बेहद शारीरिक और मानसिक कष्ट
हुआ और महीनों बिस्तर पर पड़ी रही। उस समय प्रार्थिनी की देखभाल करने वाला तक कोई
नहीं था। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी को अपने लोगों की निगरानी में
छोडक़र हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में जाकर रहने लगे। प्रार्थिनी कुछ समय बाद
स्वत: ही स्वस्थ हो गयी और स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के वापस आने पर दोनों बार
प्रार्थिनी ने जबरन कराये गये गर्भपात का जवाब माँगा तो उन्होंने प्रार्थिनी को
दोनों बार बुरी तरह लात-घूंसों से मारा-पीटा ही नहीं, बल्कि एक दिन गले में रस्सी का फंदा डाल कर जान से मारने का
भी प्रयास किया और यह चेतावनी देकर जान बख्शी कि जीवन में पुन: किसी बात को लेकर
सवाल-जवाब किया तो लाश का भी पता नहीं चलने देंगे, तो दहशत में प्रार्थिनी मौन हो गयी और डर के कारण उसी
गुलामी की जिंदगी को पुन: जीने का प्रयास करने लगी। इसी तरह उनके अन्य दर्जनों
बालिग, नाबालिग व विवाहित
महिलाओं से नाजायज संबंध हैं।
प्रार्थिनी को
सामान्य देखकर स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी को कुछ समय पश्चात
मुमुक्षु आश्रम के साथ दैवी सम्पद संस्कृत महाविद्यालय का प्रबंधक व एसएस विधि
महाविद्यालय में उपाध्यक्ष बनवा दिया और पुन: प्रार्थिनी का भरपूर दुरुपयोग करने
लगे, क्योंकि वह प्रार्थिनी से
एक बार में लगभग सौ-डेढ़ सौ कोरे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करवाते और उनका अपनी
इच्छानुसार प्रयोग करते, जिस पर
प्रार्थिनी को आशंका है कि उन्होंने हस्ताक्षरों का भी दुरुपयोग किया होगा,
लेकिन प्रार्थिनी ने सभी दायित्वों का निष्ठा
से निर्वहन किया। इसके साथ ही स्वयं को व्यस्त रखने व मानसिक संतुलन बनाये रखने के
लिये प्रार्थिनी ने आगे की शिक्षा भी ग्रहण की। प्रार्थिनी को हालात से समझौता
करते देख वर्ष 2०1० में श्री शंकर मुमुक्षु विद्यापीठ का
प्रधानाचार्य भी नियुक्त कर दिया गया। प्रार्थिनी मन से दायित्व का निर्वहन करने
लगी थी तो अब उनके असलाहधारी लोगों की निगरानी पहले की तुलना में कम हो गयी और
प्रार्थिनी मोबाईल आदि पर इच्छानुसार व्यक्तियों से बात करने लगी। इस बीच बदायूं
निवासी पत्रकार बीपी गौतम और प्रार्थिनी के बीच संपर्क स्थापित हुआ। प्रकृति व
व्यवहार मिलने के कारण विवाह कर लिया, जिससे स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती बेहद आक्रोशित हैं, जिसके चलते वह प्रार्थिनी को धमका रहे हैं और उसका बकाया
वेतन भी नहीं दे रहे हैं।
प्रार्थिनी ने जब
उनसे मोबाईल पर वेतन देने की बात कही तो काफी दिनों तक वह आश्वासन देते रहे,
लेकिन बाद में स्पष्ट मना करते हुए धमकी भी
देने लगे कि वह उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगे और पति को सब कुछ बताकर वैवाहिक जीवन
तहस-नहस करा देंगे, साथ ही चेतावनी
दी कि किसी से उनके बारे में चर्चा तक की तो चाहे तुम धरती के किसी कोने में जाकर
छिप जाना, छोडेंगे नहीं। महोदय
स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती के पास आपराधिक प्रवृति के लोगों का भी आना-जाना है,
जिससे प्रार्थिनी उनकी धमकी से बेहद डरी-सहमी
है, क्योंकि वह कभी भी कुछ भी
करा सकते है, इसलिए प्रार्थिनी
को सुरक्षा मुहैया कराते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कड़ी कानूनी कार्रवाई
करबाने की कृपा करें।
प्रार्थिनी
(साध्वी चिदर्पिता
गौतम)
पत्नी श्री बीपी गौतम
निवासी-एफ-14, फेस-2
श्रीराम नगर कालोनी-बदायूं।
http://gautamsandesh.blogspot.in/2011/12/blog-post_07.html
पूर्व गृह
राज्यमंत्री और भ्रम के चलते देश के बड़े संतों में गिने जाने वाले स्वामी
चिन्मयानंद सरस्वती से जुडऩे वाली लड़कियां गृहणियां बन कर ही क्यूं रह जाती हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि उनके पास रहने वाली अधिकांश लड़कियों का उन्होंने
ही अपने कर्मचारियों से विवाह करा दिया है या फिर परेशान होकर युवतियों ने स्वयं
ही प्रेम विवाह कर लिया है, जो धार्मिक या राजनैतिक महत्वकांक्षाओं को
तिलांजलि देकर परिवार के साथ किसी तरह जीवन गुजार रही हैं।
कथित स्वामी
चिन्मयानंद के बारे में कहा जाता है कि वह लड़कियों के प्रति शुरू से ही बेहद उदार
रहे हैं, तभी उनके आसपास शुरू से ही लड़कियां देखी जाती रही हैं।
अधिकांश लड़कियों का परिचय वह भतीजी कह कर ही कराते रहे हैं। ऐसी लड़कियों की
संख्या निश्चित नहीं है, क्योंकि उनसे जुड़े लोग एक नई लडक़ी का खुलासा
कर स्तब्ध कर देते हैं। फिलहाल उनके आसपास दिख रही लड़कियों की ही बात करें तो
रानी (काल्पनिक नाम) नाम की लडक़ी को भी भतीजी बता कर परिचय कराते रहे हैं, पर तीन साल पहले उसका विवाह अपने गनर के साथ करा दिया, जो उत्तराखंड में परिवार के साथ रह रही है। सीता (काल्पनिक नाम) भी साथ देखी
जाती थी, इसे भी भतीजी बताया जाता था, पर एक साल के बाद इसका भी
विवाह कर दिया, जो आज कल परिवार के साथ बरेली में रहती है।
लक्ष्मी (काल्पनिक नाम) को भी यह कथित स्वामी भतीजी बताता रहा है, पर इसको भी एक गरीब ब्राह्मण परिवार के लडक़े के पल्ले बांध दिया, जो आज कल कनखल स्थित आश्रम में परिवार के साथ रह रही है, यहां पति आचार्य का दायित्व निभा रहा है। यह लडक़ी बेहद सुंदर व बुद्धिमान बताई
जाती है, इसी के पति को शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम स्थित संस्कृत
महाविद्यालय में नौकरी दे रखी है,
जो घर बैठे वेतन ले रहा
है। इसी तरह एक अन्य राजवती (काल्पनिक नाम) की लडक़ी को भी भतीजी बता कर प्रचारित
करता था, पर तीन साल के बाद इसका विवाह अपने दूसरे गनर के साथ करा
दिया, जो आज कल आश्रम में ही रह रही है। इसी तरह एक और लता
(काल्पनिक नाम) नाम की लडक़ी को भी अपने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के साथ बंधन में
बांध चुका है। इनके अलावा गीता (काल्पनिक नाम) नाम की लडक़ी ने प्रेम विवाह कर लिया
है, जो आज कल दिल्ली में अपने परिवार के साथ खुश है, इसी तरह पिछले दिनों प्रेम विवाह करने वाली सुमित्रा (काल्पनिक नाम) भी
उत्तराखंड में कहीं रहती है, जिसके अभी कोई बच्चा नहीं है।
सवाल यह है कि यह
सब लड़कियां इस कथित स्वामी के पास क्यूं आईं? अगर सन्यास के लिए आईं, तो फिर गृहस्थ क्यूं बन गयी और अगर राजनीति के लिए आईं तो फिर एक भी लडक़ी को
राजनीति में स्थापित क्यूं नहीं किया? अगर इन सबको कथित स्वामी
शिष्या या बेटी की तरह ही रखते थे,
तो फिर उनके विवाह अपने
स्टेटस के अनुसार क्यूं नहीं किये?
जाति, वर्ण या गोत्र आदि का ध्यान क्यूं नहीं रखा? इन सवालों का कथित स्वामी
के पास शायद ही कोई जवाब हो, क्योंकि भुक्तभोगी साध्वी चिदर्पिता बताती हैं
कि कथित स्वामी लड़कियों को शुरू में निश्छल भाव से ही साथ रखता है, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अपने रंग में ढाल लेता है। संबंध स्थापित हो जाने के
बाद लडक़ी में अधिकार भाव आना शुरू होता है तो उसकी शादी करा देता है, लेकिन उससे पहले एक नया शिकार फांस चुका होता है। इस कथित स्वामी का यह क्रम
दशकों से चल रहा है। अधिकांश लड़कियां गरीब परिवारों की रही हैं या घर से विद्रोह
कर कथित स्वामी के पास आ गयी थीं,
जिससे इस कथित स्वामी के
विरुद्ध नहीं बोल पायीं, साथ ही शादी के बाद बच्चे हो जाने के कारण वह
अपना अच्छा-भला जीवन बर्बाद करने का जोखिम भी नहीं उठा सकती? अपार धन और विशाल राजनीतिक कद के चलते
वह सब भयभीत हैं। हालांकि उनके पति भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी पत्नी किस जीवन
से निकल कर आई है, पर भय और शर्म के चलते वह सब मौन हैं, जबकि उनके पास भी खुल कर बोलने का उत्तम समय है, क्योंकि इस समय शांत रह
गये, तो अपराध बोध से मुक्त होने का उन्हें आगे शायद ही अवसर
मिले।
लड़कियों को
भतीजी बताने के पीछे भी सटीक कारण है। समाज के लोग भले ही नहीं जानते हों, पर संत समाज जानता है कि सरस्वती संप्रदाय में लड़कियां सन्यास धारण नहीं कर
सकतीं, इसीलिए यह किसी को शिष्या नहीं बताता है। अगर यह शिष्या
बतायेगा तो संत सवाल कर सकते हैं कि जब सन्यास से कोई लेना-देना नहीं है, तो लड़कियों को आश्रम में क्यूं रखता है?, इसीलिए शुरू में साध्वी
चिदर्पिता को भी भतीजी ही बताता था। इसी तरह अमिता सिंह नाम की लडक़ी के बारे में
अब किसी को कोई जानकारी नहीं है,
जबकि उसका नाम बायोडाटा
में पत्नी के स्थान पर भी लिखा हुआ है। कथित स्वामी तकनीकी भूल बता कर पल्ला झाडऩे
का प्रयास कर रहा है, जबकि यह गहन जांच का विषय होना चाहिए।
कथित स्वामी के
चरित्र या कारनामों की जानकारी शुरू से ही अधिकांश लोगों को है, पर कद और धन के सामने सब मौन ही रह गये और अब उसे घेरने की बजाये साहसी साध्वी
चिदर्पिता को ही दोषी ठहराने का प्रयास कर रहे हैं और सवाल कर रहे हैं कि अब तक
चुप क्यूं थीं? साध्वी चिदर्पिता ने विश्वास कर कुछ लोगों को
अपने जीवन के बारे में विस्तार से बताया था, जिनमें दिल्ली और लखनऊ
में बैठे बड़े पत्रकार भी हैं, लेकिन मदद करने की बजाये ऐसे लोगों का साध्वी
चिदर्पिता के प्रति भाव ही बदल गये। साध्वी को श्रद्धेय और आप कहने वाले तुम कहने
लगे, साथ ही सीमा पार करने का प्रयास करने लगे, तो ऐसे लोगों से साध्वी ने झटके से किनारा कर लिया, जबकि उन्हें इस समय खुल कर बोलना चाहिए।
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बहुत कम लोग
जानते हैं कि कथित स्वामी चिन्मयानंद संयोग से गेरूआ वस्त्र धारण किये हुए है और
प्रकृति से ही चरित्रहीन है। वकौल साध्वी 3 मार्च 1947 को जन्मे कृष्ण पाल सिंह
उर्फ कथित स्वामी चिन्मयानंद चौदह-पन्द्रह साल की ही उम्र में रिश्ते की एक सगी
बहन से अश्लील हरकतें करते हुए पकड़ा गया था, जिस पर परिजनों ने पिटाई
लगाई तो शर्म के चलते भाग गया। अचानक घर से भागने और जेब खाली होने के कारण
फुटपाथों पर किसी तरह जिंदगी गुजार रहा था, तभी वृन्दावन के संतों के
संपर्क में आ गया, यहाँ आकर नाम कृष्णानंद रख लिया...यहाँ इसे
गुरु के कपड़े धोने का काम मिला जो बहुत अखरा तो वहाँ से भागकर हरिद्वार आ गया और
परमार्थ आश्रम की गौशाला में रहने लगा...स्वामी धर्मानंद सरस्वती जी महाराज की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत
के बाद परमार्थ आश्रम की श्रृंखलाओं का मालिक बन बैठा, पर सालों तक परिजनों को कुछ नहीं बताया। गेरूआ वस्त्र धारण करने के बाद मिले
अपार सम्मान और अपार धन के बाद कृष्ण पाल सिंह की अश्लील हरकत को परिजनों ने भुला
दिया। संत होते हुए वर्तमान में एक भतीजा मुमुक्षु आश्रम में ही नियुक्त है और
वेतन लेते हुए जिंदगी की मौज ले रहा है, इसी तरह रिश्ते की दो
पोतियां हरिद्वार स्थित आश्रम में रह कर इस कथित संत के वैभव का सुख भोग रही हैं।
सभी जानते हैं कि
शुरू से ही मुमुक्षु आश्रम में लड़कियां रहती रही हैं, पर वर्षों पहले सुनीता (काल्पनिक नाम) नाम की एक लडक़ी को मुमुक्षु आश्रम में
रखा गया, जिसके साथ भी इस कथित स्वामी के अवैध संबंध थे। वह गर्भवती
रह गयी, तो उसका आनन-फानन में कथित स्वामी चिन्मयानंद ने एक गरीब घर
के ब्राह्मण लडक़े से विवाह करा दिया। शादी के बाद वही बच्चा पैदा भी हुआ, जिसे कथित स्वामी का ही बताया जाता है, जिसका खुलासा डीएनए टेस्ट
में हो सकता है। कथित स्वामी ने प्रेमिका के पति को दबाये रखने के लिए पूरे परिवार
को अपने परमार्थ श्रृंखला से जुड़े कनखल स्थित आश्रम में रख दिया है, जिनका पूरा खर्च उठाने के साथ प्रेमिका के पति को कनखल आश्रम का आचार्य भी बना
रखा है और इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि उसे मुमुक्षु आश्रम स्थित संस्कृत
विद्यालय में नौकरी भी दे रखी है,
जो प्रति माह घर बैठे
वेतन लेता है। ऐसे भ्रष्ट चिन्मयानंद के पक्ष में बोलने वालों को क्या कहा जाये? यह निर्णय भी जनता पर ही छोड़ा।
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