Wednesday, February 22, 2017

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के प्रावधानों

राजस्थान मे गुर्जर आंदोलन पुरी तरह आरक्षण के उन लाभों पर केन्द्रित है जिसकी भारतीय संविधान में विशेष व्याख्या की गई है । अनुसूचित जनजाति के उत्थान के लिए भारत सरकार समय समय पर विशेष कार्यक्रम और योजना प्रस्तावित करती रहती है ।
भारत में सैकड़ो जनजातियां पाई जाती है । एक जनजाति परिवारों या परिवारों के समूह का संकुल होती है, जिसका एक नाम होता है, जिसके सदस्य एक ही क्षेत्र में रहते हैं, विवाह और व्यवसाय से संबंधित कुछ निश्चित निषेधों का पालन करते हैं, एक ही भाषा बोलते हैं तथा लेन देन एवंर् कत्तव्यों के द्वारा बंधे हुए होते हैं । प्रत्येक जनजाति का अपना एक नाम होता है, सामान्य क्षेत्र, सामान्य भाषा और संस्कृति होती है ।
अनुसूचित जनजाति क्या है ? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति के आदेशों द्वारा अनुसूचित जनजाति का निर्धारण किया जाता है । 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 8.2 प्रशित है । भारत के संविधान के अनच्छेद 366 (25) में अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित किया गया है।
अनुच्छेद 342 (1) के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य केन्द्र शासित प्रदेश के संदर्भ में और राज्य के मामले में राज्यपाल से परामर्श के बाद जनजातियों या जनजातीय समुदायों या उसके समूहों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में अधिसूचित कर सकते हैं । यह अनुच्छेद जनजाति या उसके समूह को उनके राज्य केन्द्र शासित प्रदेश में इन समुदायों को उनके लिए संविधान में प्रदत्त संरक्षण उपलब्ध करवाकर संवैधानिक हैसियत प्रदान करता है । इस सूची में किसी तरह का संशोधन संसदीय कानून की धारा 342 (2) के जरिए ही किया जा सकता है । संसद कानून बनाकर किसी भी जनजाति या जनजातीय समुदाय या उसके किसी समूह को अनुसूचित जनजाति या उसके किसी समूह को अनुसूचित जनजातियों की सूची में जोड़ सकती है । अथवा उससे हटा सकती है ।
किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति घोषित करने के कुछ आधार होते हैं, जो इस प्रकार है आदिम विशेषता, भिन्न सभ्यता, सार्वजनिक समाज से दूरी या संपर्क का अभाव, भौगोलिक अलगाव ।
अगर कोई जनजाति इन मापदण्डों पर ख्री उतरती है तो उसे संबंधित राज्य की सरकार से परामर्श करके राष्ट्रपति के आदेश से अधिसूचना मे ंजोड़ा जा सककता है । जनजातियों को सूची से निकालने के लिए भी इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है । हरियाणा, पंजाब तथा केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, दिल्ली तथा पांडिेरी में किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं किया गया है ।
अनुसूचित जनजातियों को सूची में शामिल करने या सूची से हटाने के दावों का फैसला करने के तौर तरीकों को सरकार ने जून 1999 में मंजूरी दे दी । भारत के संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिए दो प्रकार के प्रावधान है । पहले तरीके के प्रावधान के संरक्षण पर काम करते हैं और दूसरे प्रकार के प्रावधान उनके विकास से संबंधित है ।
अनुच्छेद 15- इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य किसी नागरिक के विरूध्द केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा ।
अनुच्छेद 16 (4) संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार ऐसे किसी भी वर्ग को आरक्षण देने का प्रावधान है , जिसके बारे में राज्य को यह लगता है कि उसे सरकारी नौकिरोयं में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है । इसके अंतर्गत खुली प्रतियोगिता को छोड़कर अन्य तरीके से अखिल भारतीय आधार पर सीधी भर्ती से भरे जाने वाले पदों में अनुसूचित जातियों के लिए 16 प्रतिशत एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है ।
अनुच्छेद 17- असपृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया और इसे अमानवीय अपराध घोषित किया गया ।
अनुच्छेद - 46- अनुसूचित जातियो और जनजातियोंकी शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों की रक्षा की जाए और इन्हें सभी प्रकार के शोषण तथा सामाजिक अन्याय से बचाया जाए ।
अनुच्छेद 330, 332 और 334 इनके द्वारा संसद और राज्य के विधान मंडलों में 20 वर्ष तक के प्रतिनिधित्व की सुविधाएं देने की व्यवस्था की गई है ।
अनुच्छेद 164- इसके अनुसार अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े हुए वर्गों के कल्याण के सभी विभागों और पृथक सलाहकार परिषदों की व्यवस्था की गई है । एक सैवधानिक प्रावधानों के अनुसार भारत शासन उन वर्गों के उत्थान ....
इस वर्ग के उल्लेख से यह आधार पर हमें अध्यनय कर अपने लिए आने वाले कल को सुनिश्चित करने की दिशा में सफलता मिलेगी ।
ऐसे प्रावधानों और अनुसूचि 15 के सभी को समान अधिकार प्राप्त है जिसका लाभ लेकर इस सामाजिक फैसला, असमानता को रोकना होगा ।

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