इतिहास गवाह है कि सामाजिक सुधार एवं उत्थान सदैव धन एवं पद विहीन लोगों ने ही किया है. हमारे सभी महापुरुष मेधा में अद्वितीय पर साधन विहीन ही थे. उनका संबल सिर्फ समाज था.
रैगर समाज में मिश्रित संस्कृति है जिसके कारण कोई एक धारा हमारे समाज में स्थान नहीं बना पायी है इसलिए जातिगत स्वाभिमान इसमे कहीं परिलक्षित नहीं होता. जातिगत स्वाभिमान बोलने से नहीं, व्यवहार से परिलक्षित होता है. और हमारा सामाजिक व्यवहार ही हमें कमजोर बना रहा है. हमें पहले इस व्यवहार को बदलना पड़ेगा तभी हम मजबूत होंगे और हमारा संगठन मजबूत होगा.
एक बहुत ही सरल बात कहता हूँ. इंजेक्शन शरीर के किसी एक भाग में दी जाती है पर उसका प्रभाव पुरे शरीर पर होता है. यह बात महासभा पर अक्षरशः सही उतरती है. कायस्थ महासभा के पिछले 15 वर्षों का कार्यकाल जिनके हाँथ में रहा उनका इंजेक्शन समाज को जहरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा. हर स्तर पर गिरावट का पर्याय बन गया महासभा.
इसके भंडाफोड़ करने का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह महासभा के 2010 से 2014 तक राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अध्यक्षता कर रहे व्यक्ति को जाता है, जो आज भी केस में उलझे हैं. उनको इस स्थिति में पहुँचानेवाले कोई अन्य नहीं, उन्ही के सहयोगी रहे. जाति से रैगर , कर्म से रैगर तथा उनके तथाकथित कर्मठ सहयोगी. मैं स्वयम भी पुरे एक वर्ष तक इस छल का शिकार रहा.
अभी व्हाट्स एप्प पर महासभा के ऊपर कुछ विचार एवं प्रतिक्रियाएं पढ़ी. सभी के अपने-अपने विचार हैं. मेरा मानना है की कमेन्ट करने के लिए कमेन्ट नहीं करना चाहिए. सुधार के तरफ कदम बढाए. विचारधारा को जन्म देते-देते विचारों के मकडजाल में फंसा व्यक्ति भ्रम के सिवा समाज को कुछ नहीं दे सकता.
मै बराबर यह कहता रहा हूँ और मेरी यह पञ्च लाइन रही है कि “सामाजिक सेवा के कंटीले पथ पर चलने के लिए गलत को गलत कहने का सामर्थ्य पैदा करो.” तभी सच्ची समाज सेवा हो सकती है. मेरे x ray मशीन पर कई लोग चढते रहे हैं और भविष्य में भी चढते रहेंगे, अगर गलत करने वाले लोग मेरी नजर में आये तो.
“बैंगन में कोई गुण नहीं, इसलिए उसका नाम बेगुन अर्थात बैंगन पड़ा और बैंगन सभी सब्जियों का राजा है इसलिए उसके सर पर ताज है” कहने वाले के अपने-अपने चश्मे हैं. हालांकि संगठन में जुड़े सभी लोग एक जैसे नहीं होते. महासभा में पूर्व एवं वर्तमान में अधिकतर लोग बहुत ही अच्छे, विनम्र, कुशल एवं सक्षम लोग भी हैं. कुछ तो निकल लेते हैं और कुछ तथाकथित मर्यादा के चादर ओढ़ सोये रहते हैं, जो मेरे दृष्टि से उचित नहीं है.
जागिये, संभलिये और संभालिए अपने विरासत को, कुल धर्म को, समाज को एवं आने वाली अगली पीढ़ी को.
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