Friday, February 10, 2017

प्रेस matter


किसी भी समाज के विकास एवं उत्थान में महिलाओं का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। बिना महिलाओं के योगदान के किसी भी समाज का विकास सम्भव नहीं है,चाहे वह कायस्थ जैसा बौद्धिक समाज ही क्यो न हो। वक्त की रफ्तार के साथ तादात्म्य न कर पाने के कारण पिछड गए हमारे कायस्थ समाज को आगे ले जाने के लिए सक्रिय कायस्थ महिलाओं का धनात्मक सहयोग अपेक्षित था, है और सदैव रहेगा।
ऐसे मे जब बडी संख्या मे कायस्थ महिलाये अपने समुदाय के प्रति उदासीन हो एवं शेष अपने समुदाय की अपेक्षा सम्पूर्ण समाज हेतु कार्य करने मे अत्यन्त सहजता की अनुभूति करती हो। इन परिस्थितियो मे जब कभी एकाध कायस्थ महिला अपने समाज को एक एवं विकसित करने के लिये प्रयासरत दिखती हो उसके बेडियो व संघर्षो की कल्पना सहज ही की जा सकती है
हम बात कर रहे है कुशल गृहिणी, मृदभाषी,मधुर वक्ता और कायस्थ समाज के लिए पूर्ण मनोयोग से काम करने वाली कायस्थ महिला लखनऊ की श्रीमती रमन सिन्हा जी की।
कायस्थ नेत्री के रूप में वे हमारे समाज की अन्य महिलाओं जो समाज तो छोडिये ,पडोस भी छोडिये अपने परिवार मे भीे सामंजस्य स्थापित नही कर पाती है ,के लिए अनुकरणीय उदाहरण हो सकती है।
उनका योगदान इसलिये भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि अनावश्यक चर्चा से दूर केवल कायस्थ महिलाओ को संगठित करना ही उन्होने अपना परम लक्ष्य बनाये रखा है।
व्यवहारिक धरातल पर कायस्थ महिलाओं को जोडने के प्रयास के साथ सोशल मीडिया पर "कायस्थवृन्द महिला संगठन"का सफलता से संघटन एवं संचालन उनके कौशल को बयां कर जाता है। "कायस्थखबर-संचालनमण्डल" द्वारा प्रदत्त अधिकारो का प्रयोग करते हुये मै
धीरेन्द्र श्रीवास्तव सक्रिय कायस्थ महिला लखनऊ की श्रीमती रमन सिन्हा जी को कायस्थ समाज हेतु उनके योगदानो को दृष्टिगत करते हुये उन्हे "कायस्थखबर-सक्रियकायस्थ" घोषित करता हूं।
बधाई हो रमन साहिबा। हमारी कामना है कि आपके द्वारा किये गये कार्य अन्य कायस्थों विशेषतया महिला कायस्थो के लिये उदाहरण बने।
यही "कायस्थखबर",
"जय चित्रांश आन्दोलन" है
एवं "कायस्थवृन्द " का लक्ष्य है।
हमे श्रीमती रमन सिन्हा जी से बहुत कुछ प्रेरणा मिलती है व हम उनसे बहुत कुछ सीखना चाहेंगे ।
श्रीमती रमन जी आपको आपके कुशल नेतृत्व की बधाइयां।
।।साधुवाद।।
आपका शुभेच्छु
यह आपातकाल नहीं, बल्कि लोकतंत्र की शक्ति की आहट है। यह शक्ति लोकतान्त्रिक है या नहीं, यह अलग प्रश्न है।
इंटरनेट भी क्या चीज है। सोशल मीडिया आने के पहले यदा-कदा कुछ वेबसाइट पर पाठकों के कमेंट मिला करते थे। जाहिर है वो पाठक थोड़े अध्ययनशील और शांत हुआ करते थे । उनके द्वारा उठायी गई आपत्तियों के जबाब बड़े लेखक शायद ही कभी देते ।
सोशल मीडिया ने इन पाठकों को एक स्थान दिया। वो आपस में लिखने समझने लगे। यहाँ भी वो कभी न जबाब देने वाले बड़े लेखक मौजूद थे। असल बदलाव आया जब संचार क्रांति के तहत मोबाइल और इंटरनेट गाँव-कस्बों से लेकर सुदूर क्षेत्रो तक पहुंच गए। गाँव के लल्लन के पास भी फेसबुक अकाउंट होने लगा । जाहिर है देश स्तर पर होती हर चर्चा को लेकर उसकी अपनी उत्सुकता होती। इस उत्सुकता को शांत किया विभिन्न समूहों द्वारा तैयार किये प्रचार साहित्य ने। वो प्रचार को सत्य समझने लगे। इसी तरह देशभक्त, देशद्रोही जैसे गाँवों की शब्दावली से गायब रहनेवाले शब्द नवपीढ़ी के दिलोदिमाग पर छा गए। प्रचारों के इसी परिणाम पर अब चुनाव लड़े जाने लगे। यह हथियार बन चुके हैं। जमीन पर असर दिखना भी स्वाभाविक ही है।
ऋषि मुनि कभी तपस्या करने हिमालय पर जाया करते थे। यहाँ भी हो सकती थी तपस्या पर वह शांति नहीं थी। कितने चिंतकों के भविष्य घरेलु झंझटों की वजह से बिगड़ गए। आज माहौल अलग है। अब सामाजिक, राजनैतिक श्रेणियों के चिंतक होने लगे हैं जिनको रहना इसी समाज में है। इनकी अपनी दुनिया थी जिसमे सारे इन्हीं के जैसे थे। सोशल मीडिया ने यह दुनिया विस्तृत कर दी। इस विस्तृत होती दुनिया में जब प्रचारजनित एकोन्मुखी इकाइयों का प्रवेश हुआ तब इनकी सीमित दुनिया में खलबली मचना स्वाभाविक था। इन इकाइयों की भाषा भी भदेश थी जो इनके सर्किल में नहीं चलती। इसी खलबली ने असहिष्णुता का रूप धारण किया। स्वयं में प्रतिक्रियावश जन्मी असहिष्णुता दूसरे में दिखने लगी जो वास्तव में थी पर जिनके विरुद्ध यह प्रतिक्रिया थी, उनके लिए यह सामान्य था। प्रचारतंत्र उनकी इसी सामान्य लगनेवाली असहिष्णुता का ही लाभ उठाते हैं।
यही दबाब है जो स्वतंत्र सोंच को रोकता है । कुछ बोलने से रोकता है। वास्तव में यह एक अक्षमता है जो भीड़ के समक्ष विवश है। ऐसे में आपातकाल न होते हुए भी आपातकाल प्रतीत होना स्वाभाविक है।
वास्तव में आपातकाल अब लग ही नहीं सकता, प्रतीत मात्र हो सकता है।
यह लोकतंत्र है जो निश्चित ही लोकतान्त्रिक नहीं। हो भी नहीं सकता। जिम्मेवारी से कोई अछूता नहीं। यही इसकी नियति है जिसे किसी एक सरकार पर थोपा नहीं जा सकता।
कुछ अन्य पहलुओं पर विचार फिर कभी
कांस्पीरेसी थ्योरी में यकीन नहीं।
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एनसीआर खबर डेस्क I गौतमबुद्ध नगर की नॉएडा विधानसभा की सीट पर जैसे ही कल भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह का ऐलान हुआ वैसे ही चारो और से खशी कम विरोध ज्यदा होने लगा I गौतम बुध नगर की राजनीती को थोडा सा भी समझने वाले लोगो की पहली प्रतिक्रया यही थी की आखिर पंकज ही को क्यूँ ? क्या पंकज सिंह नॉएडा के लिए इतने बेगाने हैं की लोग उनसे कनेक्ट नहीं कर पा रहे है या फिर ये सिर्फ भाजपा में राजनाथ सिंह और डा महेश शर्मा के अधिकार की लड़ाई है ? इसको समझने से पहले ज़रूरी है की नॉएडा विधान सभा सीट का एक आंकलन समझा जाए
नोएडा की लोकेशन
हिंडन और यमुना नदी के बीच बसे दोआब इलाके में बड़े संवेदनशील वोटर हैं। यहां फ्लो पॉपुलेशन रहती है। 50 पर्सेंट वोटर ऐसे हैं जो दिल्ली में काम करते हैं और नोएडा में रहते हैं। लगभग 40 पर्सेंट वोटर ऐसे हैं जो दिल्ली में रहते हैं और नोएडा में सिर्फ काम करने आते हैं। ऐसे माहौल में नोएडा के वोटरों पर दिल्ली व राष्ट्रीय राजनीति की छाप हावी है। केंद्रीय सेवाओं में काम करने वाले या रिटायर कर्मचारियों से जुड़े परिवारों की तादाद नोएडा में करीब 2 लाख है। इसी तरह सैन्य सेवाओं से जुड़े 5 हजार परिवारों के 25 से 30 हजार वोटर भी इन चुनावों में अहम भूमिका निभाएंगे। इसके एक तरफ इंदरापुरम जैसा इलाका तो दूसरी तरफ दक्षिण दिल्ली व पूर्वी दिल्ली का बॉर्डर आता है।
नॉएडा की राजनीती 
नोएडा जिले के अंतर्गत आने वाली विधानसभा संख्या 61 और सदर सीट है नोएडा। साल 2012 के आंकड़ों के मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या  4 लाख 28 हजार 259 है। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 2 लाख 49 हजार 289 है। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 78 हजार 970 है। सीट पर पहली बार विधानसभा चुनाव साल 2012 में हुए। जिसमें बीजेपी के वर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने जीत दर्ज की थी। लेकिन महेश शर्मा ने 2014 में सीट छोड़ दी। और राष्ट्रीय राजनीति में चले गए। केंद्र में उन्हें मंत्री बना दिया गया। वे यहां के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं।
नोएडा विधानसभा का जातीय गणित 
एक आंकलन के अनुसार नोएडा विधानसभा एरिया के लगभग 50 पर्सेंट वोटर शहरी, करीब 50 पर्सेंट ग्रामीणइलाके व झुग्गी एरिया में रहते हैं। इनके बावजूद यहांं 23 % ब्राह्मण, 8 %ठाकुर, 5 % वैश्य, 4 %सिख, 7 % मुस्लिम, 16 % गुर्जर, एक 1% जाट, 6 % यादव, 3 % सैनी, 3 % ईसाई, 4 % कायस्थ  व १% कुम्हार के अलावा आधा-आधा पर्सेंट नाई-धोबी, 12 पर्सेंट एससी-एसटी व 6 पर्सेंट अन्यजातियां शामिल हैं।
कौन कौन है मैदान में , क्या है गणित 
नॉएडा में मुख्य रूप से 3 दलों की लड़ाई है जिनमे भाजपा अब तक १ लाख के करीब वोट पाती रही है वही समाजवादी पार्टी से सुनील चौधरी उम्मीदवार है, सपा को पिछले दो चुनावों में ४२ हजार के करीब वोट मिले थे I वही बसपा से रविकांत मिश्रा मैदान में है I बसपा कभी भी तीसरे स्थान से आगे नहीं बढ़ी हैं लेकिन ब्राह्मण वोट अगर ब्ज्पा से बसपा जाए और ठाकुर वोट सपा  और भाजपा में बटेगा तो पंकज सिंह को भाजपा को मिलने वाले १ लाख वोट को पाना आसान नहीं रहेगा
बदले हालत से क्या होगा 
मौजूदा हालात में पंकज सिंह के लिए जीत मायने रखती है I नॉएडा में शहरी वोटर भाजपा का समर्थक है I लेकिन १ लाख ब्राह्मण वोट के लिए पंकज सिंह को डा महेश शर्मा पर निर्भर रहना पड़ेगा I २०१२ से ही डा महेश शर्मा ने नॉएडा की राजनीती में अपनी पकड़ बनाए रक्खी है ,इसलिए बिना उनके सीट पर आगे आ पाना इतना आसान नहीं होगा I पंकज सिंह की जीत से नॉएडा के नेताओं के भविष्य पर भी एक सवाल खड़ा होगा क्योंकि ब्राह्मण और ठाकुर की राजनीती में पंकज अगर इस जीत से आगे निकलेंगे तो ये बाकियों के लिए पचा पाना आसान नहीं होगा I संजय बाली , कैप्टन विकास गुप्ता जैसे चेहरों को साधाना भी पंकज सिंह के लिए एक महत्वपूर्ण घटक होगा I हालाँकि पिटा राजनाथ सिंह की मजबूत छवि का प्रभाव उन्हें इनको साधने में आसानी दे एकता है I लेकिन बेहद कम समय में नॉएडा की स्थानीय कैडर का कितना साथ पंकज को मिल पायेगा ये वक्त ही बताएगा
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गाँव  में एक अहम् पंचायत हुई, जिसमें भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ वोट करने का निर्णय लिया गया। पंचायत का आयोजन राम के आवास पर उनके ही आह्वान पर किया गया। ग्रामीणों ने श्याम  पर आरोप लगाया कि गाँव के कई मामलो में उन्होंने असामाजिक तत्वों का समर्थन किया है, उन्होंने यह भी आरोप लगाये कि बीजेपी प्रत्याशी गलत प्रवृत्ति के लोगों को भी संरक्षण प्रदान करते हैं।
हालाँकि पंचायत में इस बात पर कोई चर्चा नहीं हुई कि किस प्रत्याशी को समर्थन दिया जाये। पंचायत में राम प्रधान, छोटे  ठेकेदार, दया, सतेंद्र, भगवत, सहित दर्जनों गांववासी मौजूद रहे।
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