Sunday, January 1, 2017

अतीत , वर्तमान और भविष्य

नारी समाज का अतीत , वर्तमान और भविष्य
किसी संस्कृति को अगर समझना हो तो सबसे आसान तरीका हैं कि हम उस संस्कृति में नारी के हालात को समझने की कोशिश करे स्त्रिया समाज के सांस्कृतिक चेहरे का दर्पण होती हैं ! अगर किसी देश में स्त्रियों का जीवन उन्मुक्त हैं तो इसका सीधा आशय यह निकलता हैं कि उस देश का समाज एक उन्मुक्त समाज हैं !वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, ममता, त्याग, बलिदान जैसे आधार पर ही सृष्टि खड़ी है। और ये सभी गुण-एक साथ नारी में समाहित हैं। नारी-प्रेम त्याग का प्रतिबिंब है। नारी के अभाव में मानव जीवन शुष्क है और समाज अपूर्ण। नारी, संसार की जननी है। मातृत्व, उसकी सबसे बड़ी साधना है। निर्विवाद रूप में नारी की यह विशेषता है कि वह जन्मदात्री है, सृष्टि सृजन करती है, जीवन की समूची रस-धार उसी पर आधारित है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, नारी संदर्भ में भारतीय समाज में भी, अब दूर से ही पहचाना जा सकता है। वर्तमान सामाजिक संदर्भ में, व नारी की दशा और दिशा में, क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है कोई भी समाज एक जगह स्थिर नहीं रहता हर पल बदलता रहता हैं ! हर पल बदलते समाज में महिलाओ की असल सूरत को पहचान पाना मुश्किल हैं ! वर्तमान युग, चेतना का युग है। तकनीकी उपलब्धियों का युग है तथा प्राचीन मूल्यों में परिवर्तन कायुग है। गत शताब्दी ‘महिला जागरण का युग’ रही। 8 मार्च ‘विश्व महिला दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। नारियों को प्रगति पथ पर प्रेरित करने हेतु राजाराम मोहन राय, महात्मा गांधी, जो महती योगदान किया, उसी कारण वर्तमान ‘नारी- में नारी की स्थति में सुधार हुआ हैं !इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी अपनी लक्ष्मण रेखाओं को छोड़ अबलापन की भावना से हटकर विकास के पथ पर चढ़ रही है। वह किरण बेदी है, तो साथ ही कल्पना चावला भी है, । जहां-जहां, उसका दिशा बोध डगमगाया है, वहीं उसका पतन भी चरम पर पहुंचा है। पश्चिमी सभ्यता के संक्रमण के कारण जहां नारी-जीवन में विविध बदलाव आये हैं, वहां यौन शुचिता भी संक्रमित हुई है। यथार्थ के नाम पर नग्नता को अपनाया जा रहा है। टी.वी. चैनलों पर प्रसारित धारावाहिकों में नारी को अलग रूप में दिखाया जा रहा हैं जो धीरे-धीरे पूर्ण समाज का सत्य बनता जा रहा है। षड्यंत्रकारी भूमिका में नारी का के पर्दे चित्रण हो रहा है ! जो वास्तविक जीवन में अपने पांव पसार चुका है। निःसंदेह आज नारी को समानाधिकार प्राप्त हैं लेकिन फिर भी वह दहेज की खातिर, जलाई जाती है । कदम-कदम पर तिरस्कृत होती है। प साहित्यकार अमृता प्रीतम के शब्दों में-
‘...मैं नहीं मानती कि यह सभ्यता का युग है... सभ्यता का युग तब आयेगा, जब औरत की मर्जी के बिना उसका नाम भी होठों पर नहीं आयेगा, ! शिक्षा प्रसार के साथ-साथ नारी की जड़-मानसिकता में तीव्र परिवर्तन हुआ है। नारी ने शुष्क व्यवहार उपेक्षा की मार झेलते हुए भी अपने सौंदर्य और सहजता को किस ख़ूबसूरती के साथ बनाए रखा हैं ! खूबसूरत नारी खुद अपनी अनुयाई होती हैं ! प्राचीन काल में स्त्रियों को आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा प्राप्त थी और घर के बाहर आने जाने और घुमने पर प्रतिबन्ध नहीं था ! महिलाए तीज त्योहारों में सम्मिलित होती थी ! उनकी नैतिकता का स्तर भी ऊचा था ! विदुषी स्त्रिया समाज में दार्शनिक विचार विमर्श और तर्क वितर्क मैं भाग लेती थी ! लेकिन मध्य काल में नारी की दशा बिगडती चली गयी ! मुग़ल काल मैं भारतीय नारी ने अपने सतीत्व के साथ अपने प्राणों की आहुति देने का कार्य किया ! आज़ाद भारत में महिलाओ ने सामाजिक व शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से तरक्की हासिल की ! वर्तमान मैं भी राजनीतिक क्षेत्र में महिला शक्ति का वर्चस्व कायम है ! शिक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता ने नारी को नवीन चेतना दी है। पुरुष नियंत्रित समाज में नारी, आज आत्मविश्वास से भरी हुई हैं !। यदि नारी में निर्भीकता और स्पष्टवादिता है, तो वह कहीं पर भी और कभी भी कुंठाग्रस्त नहीं होती। आज हम महिला दिवस को व्यापक रूप में मानते है ! महिलाओ के विकास की बात करते है ! समाज राजनीति , फिल्म और साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओ को सम्मानित किया जाता है ! धीरे धीरे परिस्थतिया बदल रही है और महिलाएँ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है ! माता पिता अब बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं करते है ! महिलाओ को सशक्त करना जरुरी होगा क्युकि महिलाएँ ही देश के विकास में महत्व पूर्ण भागीदारी निभाएंगे ! लेकिन आज हम देखते है कि गाँवों में नारी की दशा आज भी बेहद ख़राब है गाँवों में नारी शिक्षा का प्रचार प्रसार होने के बावजूद अज्ञान की कालिमा नहीं मिटी है ! अशिक्षित महिलाओ को अपने अधिकारों की जानकारी न होना और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना महिला पीड़ा का सबसे बड़ा कारण है! यह सही बात है कि बिना शिक्षा और क़ानूनी जागरूकता के वर्तमान युग मैं महिलाओ को अधिकार और सम्मान मिलना मुश्किल है !! भूमण्डलीकरण, नारियों के लिए एक ऐसी चक्की है, जिसमें उन्हें पीसा जा रहा है। इसका एक चेहरा बेबस, गरीब नारी है, जिसकी आंखों में उसके भूखे बच्चे के प्रति उसकी वेदना समाई हुई है, तो उसका दूसरा चेहरा, उस लड़की का है- जिसका मुंह गुस्से से तमतमाया हुआ है। । नारी का छद्म रूप दिखाकर उन असंख्य नारियों की वेदना नहीं छिपाई जा सकती, जो गांवों में रहती हैं। नारियों का वास्तविक स्वरूप वही है, जो गांवों में अभावों से जूझती और रूढि़यों में जकड़ी नारियों में, दिखाई देता है
नारी में भी नैतिकता का भारतीय परम्परागत भाव तिरोहित हो रहा है। समय और स्थान के अनुसार मान्यताओं में शीर्षासन होता रहा है, लेकिन प्रदर्शन की होड़ में, वर्तमान नारी स्वयं चीरहरण में लगी है। सात्विक रूचि और कलात्मकता, उदारीकरण की बयान में बह गई है। संबंधों के बीच से प्रेम और स्नेह गायब हो रहा है। नारी भी, आत्मकेन्द्रित हो रही है। इसी के अनुरूप बदल रहा है - आधुनिक नारी का-मूल भाव। पिछली सदी में जब हम लड़कियों की बात करते हैं तो हर तरफ लगभग एक ही सूरत नजर आती थी !पहनावे जरुर अलग थे लेकिन जमीनी तौर पर पुरे देश मैं महिलाओ की स्थिति एक सी थी ! उनका चेहरा सामाजिक गतिशीलता की एक कहानी सुनाता था ! लड़कियों के कई तरह के चेहरों का आना शुरू हुआ ! आज भारत में लड़कियों की तीन तरह की सूरते हैं पहली सूरत गॉंव और कस्बो में जन्मी पली बढ़ी और गुजर बसर करने वाली लडकियों की ! इनका चेहरा खुली किताब हैं ! दूसरा चेहरा महानगरो की लडकियों का जिनका आधुनिक होना बहुत सहज हैं उनके मन में परम्पराओं की कोई गाँठ शेष नहीं हैं ! इन लडकियों ने जनम से ही उन्मुक्त जीवन जिया हैं उनकी स्वतंत्रता नेसर्गिक हैं ! तीसरी सूरत मध्य वर्ग की उन लडकियों की जिसकी जड़े अब तक तथा कथित अविकसित इलाको से ही जुडी हैं पर जिन्दगी का सफ़र महानगरों तक फ़ैल गया ! बचपन से एसी लड़कियों को पारिवारिक संस्कार दिए जाते हैं उन्हें बताया जाता हैं क्या हैं एक स्त्री का फर्ज !उनका चरित्र और व्यक्तित्व इस तरह से गढा जाता हैं कि वह समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदार बने ! इन चेहरों पर आत्म विश्वास झलकना चाहता हैं लेकिन मन में अद्रशय शक्तियों का भय अब तक हैं ! इनके ख़ुशी की लालसा भी हैं !
‘ शीर्ष पदों पर पहुँचकर महिलाएँ महिला शक्ति का परचम लहरा रही है ! परन्तु आज भी परिवार में महिला अपनी जिम्मेदारियों और घरेलु हिंसा व पाटो के बीच पिसती चली जा रही है महिलाओ के प्रति अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे ! महिलाओ पर होने वाले अत्याचारों में महिलाओ की भी अहम् भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता !! कन्याओ को कोख में मारे जाने में महिलाओ की भूमिका ज्यादा होती है ! महिलाओ पर होने वाले घरेलू अत्याचारों में भी महिलाओ की भूमिका अहम् होती है ! महिलाओ को बराबरी का दर्जा दिलाना है तो खुद महिलाओ को इस दिशा में प्रयास करना होगा और सकारात्मक कदम उठाना होगा ! आज वर्तमान में नारी की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा हैं ! आज समाज को स्वामी को दयानंद सरस्वती , गोखले , तिलक जैसे महान सुधारको की जरुरत हैं जो समाज मैं जनजागरण ला सके ! समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करनी होगी ! वर्तमान में समाज को सही दिशा देने वाले नेताओं की कमी खल रही हैं ! समाज में संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओ के समानाधिकार और सुरक्षा देने के लिए विश्व भर में कुछ नीतियाँ ,कार्य क्रम और मानदंड निर्धारित किये गए है ! किसी भी समाज में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का निराकरण महिलाओ की साझेदारी के बिना नहीं हो सकता इसलिए समाज में महिलाओ की स्थति को मजबूत करना बहुत ज़रुरी है ! महिलाओ के प्रति भेदभाव करने के मामले समाज के लिए नए नहीं है !सालो से चल रहे महिला सशक्तिकरण के अभियानों के बावजूद भी महिलाए उपेक्षा का शिकार हो रही है ! विज्ञापन में नारी-देह का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। नारी का नंगापन, उसकी स्वतंत्रता का सूचक नहीं है। वर्तमान समय में भी समाज में नारी का स्थान कुछ वैसा ही है, जैसा-किसी दुकान, मकान, आभूषण अथवा चल-अचल सम्पत्ति हो। वर्तमान प्रधान समाज को अपनी सामंती सोच एवं संकीर्ण मानसिकता, सड़ी-गली व्यवस्था, रूढि़गत कुप्रथा को नारी-उत्कर्ष हेतु तिलांजलि देनी ही होगी। पुरुषों को इस प्रकार का वातावरण तैयार करना होग, जिससे नारी को एक जीवंत-मानुषी, जन्मदात्री एवं राष्ट्र की सृजनहार समझा जाये, न कि मात्र भोग्य की वस्तु !
दैनिक जीवन में महिलाओ द्वारा कठिनाई झेलने के बावजूद भी चीज़े बेहतर हुई हैं ! और एक ऐसी गति भी आई हैं जिसकी उम्मीद दो दशक पहले तक नहीं की जा सकती ! पिछली सदी में जब हम लड़कियों की बात करते हैं तो हर तरफ लगभग एक ही सूरत नजर आती थी !पहनावे ज़रुर अलग थे लेकिन ज़मीनी तौर पर पूरे देश मैं महिलाओ की स्थिति एक सी थी ! उनका चेहरा सामाजिक गतिशीलता की एक कहानी सुनाता था ! लड़कियों के कई तरह के चेहरों का आना शुरू हुआ ! आज भारत में लड़कियों की तीन तरह की सूरत हैं पहली सूरत गॉंग और कस्बों में जन्मी पली बढ़ी और गुजर बसर करने वाली लड़कियों की ! इनका चेहरा खुली किताब हैं ! दूसरा चेहरा महानगरों की लड़कियों का जिनका आधुनिक होना बहुत सहज हैं उनके मन में परम्पराओं की कोई गाँठ शेष नहीं हैं ! इन लड़कियों ने जन्म से ही उन्मुक्त जीवन जिया हैं उनकी स्वतंत्रता नेसर्गिक हैं ! तीसरी सूरत मध्य वर्ग की उन लड़कियों की जिसकी जड़े अब तक तथा कथित अविकसित इलाक़ो से ही जुड़ीं हैं पर जिंदगी का सफ़र महानगरों तक फैल गया ! बचपन से एसी लड़कियों को पारिवारिक संस्कार दिए जाते हैं उन्हें बताया जाता हैं क्या हैं एक स्त्री का फर्ज !उनका चरित्र और व्यक्तित्व इस तरह से गढा जाता हैं कि वह समाज और परिवार के प्रति जिम्मेदार बने ! इन चेहरों पर आत्म विश्वास झलकना चाहता हैं लेकिन मन में अद्रशय शक्तियों का भय अब तक हैं ! इनके चेहरे पर लालसा हैं ख़ुशी की ! वर्तमान में देखे तो आज की नारी कई मायने में स्वतंत्र भी हुई हैं और एक लम्बी उडान भरना चाहती हैं ! कुछ करना चाहती हैं एक नए हिम्मत और होंसले के साथ !सामाजिक/राजनीतिक/शैक्षिक/व्यवसायिक आदि तथा कला एवं साहित्य के क्षेत्र में नारी सम्मानित हुई है। समाजवादी नारी भावना का निरंतर विकास हो रहा है। वास्तव मे। ।!नारी पर जो बंधन/सीमा नियंत्रण थे, वह इन सबसे मुक्ति पा रही है। वर्तमान समाज में अर्थ प्रधान संस्कृति का बोलबाला है। विकास के नाम पर नारी स्वच्छंद जीवन व्यतीत कर रही है। नारी-जीवन मूल्यों में आमूल परिवर्तन हुआ है भारत में व्यव्साइक शिक्षा हासिल करने वाली महिलाएँ दुनिया के किसी भी मुल्क से ज्यादा हैं !नौकरी करने वाली महिलाएँ भारत देश में ज्यादा हैं ! भारत में अमेरिका से ज्यादा महिलाए प्रोफ़ेसर और seientist हैं ! अमीर देशो मैं जो सुधार 100 वर्ष में आया वह निम्न और मध्यम वर्ग वाले देशो में महज 40 वर्ष में आ गया ! भारत में मातृ सत्तामक समुदायों की महिलाओ में स्वछंद और अनैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले कहकर आलोचना हुई ! मातृसत्तात्मक परिवारों की महिलाओ को वेश्याओ के लिए आरक्षित तिरस्कार के साथ बर्ताव किया गया ! एसा इसलिए हुआ कि वो जीवन साथी अपनी इच्छानुसार बदल सकती थी ! आज वर्तमान युग में हमारी आधी आबादी के खिलाफ यौन हिंसा खत्म करने से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता ! वर्तमान में महिलाओ की इतनी दुर्दशा क्यू हो रही हैं ? ये सवाल महत्वपूर्ण हैं ! आज बेटियों की संख्या कितनी कम रह गई ये सोचने वाली बात हैं ! सवाल बस इतना सा हैं कि हम कैसा जीवन चाहते हैं कैसी कुदरत चाहते हैं जो स्त्री के बिना सोची जा रही हैं ! शक्ति के बगैर शिव को शव ही माना जायेगा ! कृष्ण की बात करे तो राधा का संग पाकर ही सोलह कलाओ से परिपूर्ण होते हैं ! आज अगर नारी जीवन की उपेक्षा होती हैं ऐसे में हम मनुष्य भी नहीं रह सकेंगे ! मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी होगी एसा नहीं हुआ तो असंतुलन होगा ! हमे कोशिश करनी होगी बेटियों को बचाने की और नारी शक्ति का सम्मान करने की !नारी-विवाह संस्था को धुरी रही है, लेकिन वर्तमान सामाजिक संदर्भ में विवाहेत्तर संबंध खुले आम प्रदर्शित हो रहे हैं तथा उन्हें सामाजिक स्वीकार भी लिमता है। यह स्थिति बेहद खतरनाक/विस्फोटक है। पति-पत्नी के जन्म-जन्मांतर के साथ का, मिथक टूट चुका है। , उसने अपना व्यक्तित्व प्राप्त कर लिया है। पत्नी कथा की पीड़ा और वेदना अब कम हुई है। आज की नारी-मध्यकालीन आदर्शों से भिन्न सामंती सभ्यता से विच्छिन्न हो, अपने जीवन के प्रति सजग होकर जीव नयापन करने को स्वच्छंद है ! आज की नारी कुछ करना चाहती हैं एक नए हिम्मत और होंसले के साथ ! भारत में व्यव्साइक शिक्षा हासिल करने वाली महिलाएँ दुनिया के किसी भी मुल्क से ज्यादा हैं !नौकरी करने वाली महिलाएँ भारत देश में ज्यादा हैं ! भारत में अमेरिका से ज्यादा महिलाएँ प्रोफ़ेसर और seientist हैं ! नारी ने शुष्क व्यवहार उपेक्षा की मार झेलते हुए भी अपने सौंदर्य और सहजता को किस ख़ूबसूरती के साथ बनाए रखा हैं ! खूबसूरत नारी खुद अपनी अनुयाई होती हैं ! अमीर देशो मैं जो सुधार 100 वर्ष में आया वह निम्न और मध्यम वर्ग वाले देशो में महज 40 वर्ष में आ गया ! भारत में मातृ सत्तामक समुदायों की महिलाओ में स्वछंद और अनैतिक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले कहकर आलोचना हुई !! आज वर्तमान युग में हमारी आधी आबादी के खिलाफ यौन हिंसा खत्म करने से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता ! वर्तमान में महिलाओ की इतनी दुर्दशा क्यू हो रही हैं ? ये सवाल महत्वपूर्ण हैं ! आज बेटियों की संख्या कितनी कम रह गई ये सोचने वाली बात हैं ! सवाल बस इतना सा हैं कि हम कैसा जीवन चाहते हैं कैसी कुदरत चाहते हैं जो स्त्री के बिना सोची जा रही हैं ! शक्ति के बगैर शिव को शव ही माना जायेगा ! कृष्ण की बात करे तो राधा का संग पाकर ही सोलह कलाओ से परिपूर्ण होते हैं ! !इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी अपनी वर्जनाओं को तोड अबलापन की भावना को तिलांजलि देकर विकास के सोपान चढ़ रही है। वह किरण बेदी है, तो साथ ही कल्पना चावला भी है, जहां-जहां, उसका दिशा बोध डगमगाया है, वहीं उसका पतन भी चरम पर पहुंचा है। लेकिन शिक्षा प्रसार के साथ-साथ नारी की जड़-मानसिकता में तीव्र परिवर्तन हुआ है। महिलाओ को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा महिलाओ के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए उसका स्वावलंबी और आत्म निर्भर होना बहुत जरुरी हैं ! महिलाएँ चाहे महानगरों की हो या गाँव की निरंतर असुरक्षित होती जा रही हैं ! ओरतो की आज़ादी पर लगाम लगाने वालो पर लगाम लगाना बहुत ज़रुरी हैं ! सच तो यह हैं कि स्त्री से जुड़ीं मान्यता और पुलिस कानून की व्यवस्था ही आज दुष्कर्मी की सबसे बड़ी रक्षक बनी हुई हैं ! महिलाओ पर यौन हिंसा आक्रमण न हो इसके लिए हमे स्वस्थ समाज की पुनर्स्थापना करनी होगी !आज की नारी के चेहरे पर दिखेगा जीवन में कैरिएर के ऊँचे मुकाम हांसिल करना जिसके लिए शायद वो कोई भी समझौता कर सकती हैं शायद अपनी आज़ादी को फिर से दाव लगाकर भी ! खेतिहर और घरेलू महिलाओ को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया जाना महिला सशक्तिकरण में एक महत्व पूर्ण कदम हैं !
जो समाज स्त्रियों के विकास को उचित नहीं समझता उसे बदल देना बेहतर हैं ! नारी ईश्वरीय वरदान हैं आज समाज में सिर्फ इस तरह की मानसिकता के लोग हैं जो सिर्फ नारी को भोग की वस्तु समझते हैं !आधुकनिकता के आक्टोपसी संजाल में फंसी नारी की विभिन्न मुद्राओं एवं चीखों को भी सुना जा सकता है। वह दिन कब आएगा जब महिलाओ और लड़कियों के लिए अपनी मर्ज़ी से जीना संभव हो सकेगा ! आज योग्यता और क्षमता होने के बावजूद देश की आधी आबादी उन्नति नहीं कर पा रही हैं ! असुरक्षा की भावना उन्हें न चाहते हुए भी चार दीवारी में कैद कर देती हैं ! आक्स फेम इंडिया की और से करवाए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में 70 फीसदी महिलाएँ कार्य स्थल पर यौन शोषण का शिकार होती हैं ! एक सर्वेक्षण के नतीजों में तीन भारतीय महिलाओ में एक ने कार्य स्थल पर लेंगिक भेदभाव की बात स्वीकारी ! पुरुषों को ये बर्दाश्त नहीं होता कि स्त्री अपनी जिंदगी से जुड़ा छोटा सा फैसला खुद ले ! महिलाओ को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा महिलाओ के लिए अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए उसका स्वावलंबी और आत्म निर्भर होना बहुत जरूरी हैं आज के समय में नारी जीवन को अधिक गति मिली है। , नगरों में सुशिक्षित नारी में इसकी गति विधि, अधिक दिखाई देती हैं। , सयुक्त परिवार की प्रथा समाप्त हो रही है। पश्चिम के अनुकरण में आज की नारी-शिक्षा, विज्ञान, विज्ञापन, कला, साहित्य के क्षेत्र मे अपना बहुमूल्य योगदान दे रही है ! राष्ट्रीय स्तर पर राजनी‌ति में राबड़ी देवी जैसी घरेलू म‌हिलाएं और मामूली द‌लित प‌रिवार से आई मायावती अपनी प्रभावी भूमिकाएँ निभा रही हैं। आज की नारी के चेहरे पर दिखेगा जीवन में कैरियर के ऊँचे मुकाम हासिल करना जिसके लिए शायद वो कोई भी समझौता कर सकती हैंग्लैमर, फैशन, आजादी और आसमान को छूने की चाह तो बढ़ी ही है।!! खेतिहर और घरलू महिलाओ को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया जाना महिला सशक्तिकरण में एक महत्व पूर्ण कदम हैं ! आज की नारी, अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी जानती है, उसे अपनी सामाजिक सत्ता का पूर्ण भान है। नारी, बदलते परिवेश में पारिवारिक बिखराव, मूल्यहीनता, , दिशाहीन राजनीति का प्रभाव, शोषण से मुक्ति पाने की इच्छा व्यक्त कर रही है, एवं धीरे-धीरे अपने इस प्रयास में सफल भी हो रही है। नारी- की दृढ इच्छा शक्ति के कारण वर्तमान में उसकी अबला नारी की छवि निश्चित ही बदली हैं , नारी-सबल हो रही है, ऊर्जावान बनी है और ये बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ हैं नारी के सम्पूर्ण जीवन में ! आज अगर नारी जीवन की उपेक्षा होती हैं ऐसे में हम मनुष्य भी नहीं रह सकेंगे ! मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी होगी ऐसा नहीं हुआ तो असंतुलन होगा ! हमे कोशिश करनी होगी बेटियों को बचाने की और नारी शक्ति का सम्मान करने की
अगर पुलिस ना होती तो शायद हमारे यहाँ अधर्म का बोलबाला होता। लेकिन पुलिस के होते हुए भी क्या हम चैन की नींद सो सकते हैं? बहुत-से शहरों, और गाँवों में भी लोग अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं। क्या हम पुलिस से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि वह अपराधियों के गिरोह से या जुर्म करने से बाज़ न आनेवाले अपराधियों से हमारी रक्षा करेगी? क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि पुलिस हमें ऐसी हिफाज़त देगी कि हम बेखौफ सड़कों पर घूम-फिर सकेंगे? क्या वह अपराध के खिलाफ अपनी जंग में कभी कामयाब हो सकेगी?
डेविड बेली अपनी किताब, भविष्य की पुलिस (अँग्रेज़ी) में अपनी राय ज़ाहिर करते हैं: “पुलिस अपराध को रोक नहीं सकती। . . . देखा जाए तो पुलिस कैंसर के लिए सिर्फ एक बैंड-एड के समान है। . . . अपराध को रोकने के लिए पुलिस चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, लेकिन हम इस बात के लिए पुलिस पर पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकते कि वह समाज से अपराध खत्म कर देगी।” अध्ययन दिखाते हैं कि पुलिस के तीन खास काम हैं—सड़कों पर गश्त लगाना, अचानक उठनेवाली समस्या पर फौरन कार्यवाही करना, और अपराध की तहकीकात करना। लेकिन इन कामों से अपराध रोके नहीं जा सकते। ऐसा क्यों है?
अपराध रोकने के इरादे से किसी जगह पर भारी तादाद में पुलिस-बलों को तैनात करना, व्यवहारिक नहीं क्योंकि यह बहुत की महँगा पड़ता है। वैसे भी, अगर इतनी सारी पुलिस तैनात करना मुमकिन भी हो, तब भी इससे अपराधियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके अलावा, कार्यवाही करने में पुलिस चाहे कितनी ही फुर्ती क्यों न दिखाए, लेकिन इससे अपराध कम नहीं होते। पुलिस ने रिपोर्ट दी है कि घटनास्थल पर अगर वे एक मिनट के अंदर नहीं पहुँचते, तो अपराधी हाथ से निकल जाते हैं। अपराधी शायद बखूबी जानते हैं कि पुलिस का घटनास्थल पर इतनी जल्दी पहुँचना नामुमकिन है। और अपराधी के बारे में तफतीश करने का भी कोई खास फायदा नहीं होता। यहाँ तक कि अगर जासूस किसी अपराधी को कसूरवार ठहराकर जेल की सलाखों के पीछे डाल भी दे, तौभी इससे अपराध बंद नहीं होते। दूसरे देशों के मुकाबले अमरीका सबसे ज़्यादा अपराधियों को जेल में डालती है, फिर भी वहाँ सबसे ज़्यादा अपराध होते हैं। दूसरी तरफ जापान में, हालाँकि बहुत कम लोगों को जेल में डाला जाता है, फिर भी वहाँ अपराध बहुत कम होते हैं। पड़ोसियों में जागरूकता जैसी योजनाएँ भी खासकर ऐसी जगहों पर ज़्यादा समय तक नहीं टिकतीं, जहाँ हिंसा की बहुत-सी वारदातें होती हैं। ड्रग्स की तस्करी या चोरी जैसे अपराध के खिलाफ जब कड़ी कार्यवाही की जाती है, तो शुरू-शुरू में इसका असर बहुत अच्छा होता है, मगर फिर धीरे-धीरे असर खत्म हो जाता है।
भविष्य की पुलिस (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “किसी समझदार इंसान को यह बात अचंभे की नहीं लगनी चाहिए कि पुलिस, अपराध को रोकने में नाकाम है। कुछ ऐसी सामाजिक परिस्थितियाँ हैं जिन पर न तो पुलिस पूरी तरह काबू पा सकती है और न ही पूरी कानून व्यवस्था, इसलिए आम तौर पर यह समझा जाता है कि इन परिस्थितियों की वजह से अपराध की दर बढ़ती जा रही है।”
अगर पुलिस ना होती?
मान लीजिए कि किसी पुलिसवाले की नज़र आप पर नहीं है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप उनकी गैर-हाज़िरी का फायदा उठाकर कोई कानून तोड़ेंगे? यह एक हैरत की बात है कि खुद को इज़्ज़तदार कहनेवाले कितने ही उच्च और मध्यम वर्गीय लोग, बेईमानी से मुनाफा पाने के लिए दफ्तरों में घोटाला करके अपने मान-सम्मान और भविष्य को खतरे में डाल लेते हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स ने अभी हाल में यह रिपोर्ट दी कि ‘ऐसे 112 लोगों पर धोखाधड़ी का इलज़ाम लगाया गया है, जिन्होंने गाड़ियों की बीमा कंपनियों से छल करके पैसा निकालने की कोशिश की। इन आरोपियों में वकील, डॉक्टर, काइरोप्रैक्टर, थेरपिस्ट, एक्युपंक्चरिस्ट और पुलिस विभाग के प्रशासन की एक सहयोगी शामिल थी।’
हाल ही में न्यू यॉर्क की सदबी और लंदन की क्रिस्टी, नीलाम घरों में बड़े पैमाने पर हुए घोटाले ने उन कला-प्रेमी रईसों को हिलाकर रख दिया जो जनता की सेवा में अपना पैसा खर्च करते हैं। उन्हें यह जानकर धक्का लगा कि नीलाम घरों के भूतपूर्व मुख्य प्रशासकों पर प्राइज़-फिक्सिंग का इलज़ाम लगाया गया है यानी वे चीज़ों का नकली दाम लगवाकर उन्हें बेचते थे। उन प्रशासकों और नीलाम घरों के मालिकों को मुआवज़े और जुरमाने के तौर पर करोड़ों डॉलर भरने पड़े। तो देखिए समाज का कोई भी वर्ग पैसे के मोह से खुद को बचा नहीं पाया है।
सन्‌ 1997 में, ब्राज़ील के रसीफा शहर में पुलिस के हड़ताल कर देने पर जो लूटमार हुई वह यही दिखाती है कि जब सज़ा पाने का डर नहीं होता तो ज़्यादातर लोग बड़ी आसानी से अपराध कर बैठते हैं। ऐसे समय पर उनका धार्मिक विश्वास, उन्हें गलत काम करने से रोक नहीं पाता। वे बड़ी आसानी से अपने आदर्शों और सिद्धांतों को या तो अपनी सहूलियत के मुताबिक बदल देते हैं या उन्हें ताक पर रख देते हैं। इसमें शक नहीं कि छोटे-बड़े पैमाने पर लोग आज बुराई करने के लिए आमादा हैं और ऐसे में बहुत-से देशों की पुलिस एक ऐसी जंग लड़ रही है जिसमें उसकी हार तय है।
दूसरी तरफ, कुछ ऐसे लोग हैं जो कानून का पालन करते हैं क्योंकि वे अधिकार की इज़्ज़त करते हैं। प्रेरित पौलुस ने रोम के मसीहियों से कहा था कि उन्हें परमेश्वर की ओर से नियुक्त अधिकारियों के अधीन रहना चाहिए क्योंकि ये अधिकारी कुछ हद तक समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखते हैं। ऐसे अधिकार के बारे में उसने लिखा: “वह . . . परमेश्वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे। इसलिये अधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्तु डर से अवश्य है, बरन विवेक भी यही गवाही देता है।”—रोमियों 13:4,5.
समाज की स्थिति में बदलाव
बेशक समाज को सुधारने में पुलिस का काम काफी हद तक असरदार रहा है। जब सड़कों पर ड्रग्स के व्यापारी या हिंसा नहीं दिखायी देती, तो लोग भी समाज के अच्छे स्तरों के मुताबिक जीने की कोशिश करते हैं। मगर जहाँ तक समाज को पूरी तरह बदलने की बात है, वह किसी भी पुलिस-बल के बस में नहीं है।
क्या आप एक ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं, जहाँ लोगों के दिलों में कानून के लिए इतना गहरा आदर होगा कि पुलिस की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी? क्या आप अपने मन में एक ऐसे संसार की तसवीर उभार सकते हैं, जहाँ पड़ोसी एक-दूसरे की परवाह करेंगे और मदद करने के लिए हरदम तैयार रहेंगे और किसी को पुलिस बुलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी? शायद यह बात एक खयाली पुलाव लगे। मगर यीशु के ये शब्द हालाँकि दूसरे संदर्भ में कहे गए थे, बेशक यहाँ भी लागू होते हैं। उसने कहा: “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।”—मत्ती 19:26.
बाइबल वर्णन करती है कि भविष्य में एक ऐसा वक्‍त आएगा जब सारी मानवजाति परमेश्वर यहोवा के ज़रिए स्थापित सरकार के अधीन होगी। “स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो . . . उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा।” (दानिय्येल 2:44) यह नयी सरकार सभी सच्चे दिल के लोगों को परमेश्वर के प्रेम के मुताबिक शिक्षा देगी और अपराध से भरे इस पुराने समाज को पूरी तरह से बदल देगी। “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह 11:9) यहोवा का ठहराया हुआ राजा, यीशु मसीह हर तरह के अपराध को रोकने में काबिल होगा। “वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा; परन्तु वह कंगालों का न्याय धर्म से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय खराई से करेगा।”—यशायाह 11:3,4.
न अपराध होगा, न अपराधी। तो फिर पुलिस की भी ज़रूरत नहीं होगी। सभी लोग “अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा।” (मीका 4:4) अगर आप उस “नई पृथ्वी” का भाग बनना चाहते हैं जिसका वर्णन बाइबल करती है, तो यही समय है कि परमेश्वर के वचन में लिखे उसके वादों के बारे में आप जाँच-परख करें।—2 पतरस 3:13.(g02 7/8)
[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
न अपराध होगा, न अपराधी
[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]
पुलिस बनाम आतंकवादी
सितंबर 11,2001 को न्यू यॉर्क सिटी और वॉशिंगटन डी. सी. में जो घटना घटी उससे जग ज़ाहिर हो गया कि विमान अपहरण करनेवालों, बंदी बनानेवालों और आतंकवादियों की वजह से पुलिस-दलों के सामने जनता की हिफाज़त करना खासकर एक बड़ी चुनौती बन गयी है। दुनिया के कई भागों में विशेष सैनिक दस्तों को ट्रेनिंग दी गयी है कि वे कैसे खड़े विमान में झट-से घुसकर उसे अपने काबू में कर सकते हैं। उन्हें यह भी सिखाया गया है कि किसी इमारत में कैसे अचानक घुसना चाहिए, जैसे रस्सी के सहारे छत से उतरना, खिड़कियों से कूदकर अंदर आना, आँसू-गैस छोड़ना या कॉनकशन ग्रेनेड फेंकना जिसमें से शॉक देनेवाली तरंगे निकलती हैं और जिससे लोग कुछ देर के लिए बेहोश हो जाते हैं। ये माहिर अफसर अकसर आतंकवादियों को चौंका देने और उन्हें अपने कब्ज़े में कर लेने में कामयाब होते हैं और इस दौरान बंधक व्यक्तियों को भी कम-से-कम चोट पहुँचता है।

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