वैसे तो हर दिन क्या हर पल ही नया होता है, पर नया साल और साल का पहला दिन एक पड़ाव माना जाता है। इस दिन लोग नए संकल्प करते हैं, ताकि उनकी जिंदगी में बेहतर बदलाव आए। वैसे यह जरूरी भी नहीं कि संकल्प करने के लिए नए साल के पहले दिन का ही इंतजार किया जाए, पर दिन को खास बनाने के लिए अकसर लोग ऐसा करते हैं। साल बदलता है तो सब कुछ बदला-बदला सा लगता है। जरा कुछ साल पीछे मुड़ कर देखो, तो नया साल मनाने की हमारी क्या परंपराएं थी। तकनीक ने तरीका ही बदल दिया। अब नया साल मनाने के लिए लोग दिल खोलकर पैसा खर्च करते हैं। एक-दूसरे से अलग इस अवसर को मनाने की होड़ देखते ही बनती है। इस होड़ में हुड़दंग का भी शुमार होता है।
नया साल अब भीड़ का हिस्सा बन गया है। नए साल पर पश्चिम का प्रभाव स्पष्ट रूप से नजर आता है। आधी रात तक सडक़ों पर नशे में सडक़ों पर नाचते- गाते और हुड़दंग मचाते युवाओं को देखकर लगता है कि युवा वर्ग नए साल का स्वागत करने के लिए जोश में तो है, पर होश में नहीं है। और अब तो लगता है कि जिस तरह से नववर्ष को भारत में मनाया जाता है, शायद अंग्रेज भी नहीं मनाते होंगे, जिन्होंने इस की शुरुआत की थी। हर कोई इस दिन को यादगारी बनाने के लिए अपनी तरह से तैयारियां करता है। बुजुर्ग या महिलाएं मंदिरों में पूजा-अर्चना को तरजीह देते हैं, तो युवा लडक़े और लड़कियां इस दिन को आधुनिकता का अंधड़ बना देते हैं। 31 दिसंबर की रात तो रात रहती ही नहीं है। रात के 12 बजने का इंतजार हर कोई करता है। तब तक नाच-गाना, जश्न और कहीं-कहीं तो शराब का दौर भी चलता है। यही एक बात इस पूरे उत्साह और उमंग को कलुषित कर देती है, क्योंकि शराब का जिस भी क्षेत्र में प्रवेश हुआ, वह तो दूषित होना ही है। तभी तो नए साल पर कभी-कभी समाचार पत्रों में मारपीट, लड़ाई-झगड़े और यहां तक कि मरने-मारने की खबरें पढऩे को मिलती हैं। नया साल मनाने की किसी को मनाही नहीं है, पर यदि हम अपने देश के दूसरे पक्ष को देखें, तो इस मामले में मितव्ययिता बरती जा सकती है।
नया साल अब भीड़ का हिस्सा बन गया है। नए साल पर पश्चिम का प्रभाव स्पष्ट रूप से नजर आता है। आधी रात तक सडक़ों पर नशे में सडक़ों पर नाचते- गाते और हुड़दंग मचाते युवाओं को देखकर लगता है कि युवा वर्ग नए साल का स्वागत करने के लिए जोश में तो है, पर होश में नहीं है। और अब तो लगता है कि जिस तरह से नववर्ष को भारत में मनाया जाता है, शायद अंग्रेज भी नहीं मनाते होंगे, जिन्होंने इस की शुरुआत की थी। हर कोई इस दिन को यादगारी बनाने के लिए अपनी तरह से तैयारियां करता है। बुजुर्ग या महिलाएं मंदिरों में पूजा-अर्चना को तरजीह देते हैं, तो युवा लडक़े और लड़कियां इस दिन को आधुनिकता का अंधड़ बना देते हैं। 31 दिसंबर की रात तो रात रहती ही नहीं है। रात के 12 बजने का इंतजार हर कोई करता है। तब तक नाच-गाना, जश्न और कहीं-कहीं तो शराब का दौर भी चलता है। यही एक बात इस पूरे उत्साह और उमंग को कलुषित कर देती है, क्योंकि शराब का जिस भी क्षेत्र में प्रवेश हुआ, वह तो दूषित होना ही है। तभी तो नए साल पर कभी-कभी समाचार पत्रों में मारपीट, लड़ाई-झगड़े और यहां तक कि मरने-मारने की खबरें पढऩे को मिलती हैं। नया साल मनाने की किसी को मनाही नहीं है, पर यदि हम अपने देश के दूसरे पक्ष को देखें, तो इस मामले में मितव्ययिता बरती जा सकती है।
जो पैसा हम नए साल पर ऐश उड़ाने में, शराब पीने पर या दूसरे फालतू खर्चों पर करते हैं, वही पैसे किसी की मदद करके नए साल का संकल्प ले सकते हैं। हमारे देश की 20 फीसदी आबादी रोज भूखे पेट फुटपाथ पर सोती है। इस पक्ष को भी सामने रखना चाहिए कि एक और महकमा भी नए साल की हुड़दंगबाजी से परेशान होता है। मैं पुलिस की बात कर रहा हूं। यह महकमा ऐसा है जिसके लिए कोई दिन-त्योहार नहीं है।
जब हम दिवाली, होली या कोई भी त्योहार मनाते हैं, तो पुलिस वाले ड्यूटी पर होते हैं। हम अपनी मस्ती बढ़ाकर इनकी सिरदर्द बढ़ा देते हैं। नए साल का उत्साह तो इन्हें भी है, पर तब ये अपने परिवार के साथ न रहकर समाज की सुरक्षा के लिए सडक़ों, चौकों या दूसरी जगहों पर गश्त लगा रहे होते हैं। खुद के लिए आनंद ऐसा हो, जो दूसरों के लिए आफत न हो। अत: नए साल का स्वागत जोश में करें, पर होश का होना ही जरूरी है। फैसला आप को करना है कि आप ने नया साल आनंद के साथ मनाना है या उन्माद के साथ। यह आप के ऊपर है कि आप ने नए साल में प्रवेश सधे हुए कदमों से करना है या गिरते-पड़ते डगमगाते हुए।
क्या आप नए साल की अखबारों की सुर्खियों में मार-पीट, खून- खराबा देखना चाहते हैं या कुछ सकारात्मक खबरें पढऩा चाहते हैं। हर कोई चाहता है कि नया साल खुशियों की खुशबू बिखेरे, न कि दंगे-फसाद की दहशत दिलों में भरे। जरा अनुभव कर के देखो कि सुबह-सुबह मंदिर की घंटियों की आवाज और ? के उच्चारण से आपके मन में कितनी पवित्रता आती है। यह सब स्वाभाविक ही तो है। दूसरी तरफ डीजे की बीट का भी अनुभव कर के देख लीजिए, आप कितनी देर तक उन्माद का अनुभव कर पाएंगे। उन्माद तो क्षणिक ही होता है और आनंद की कोई अवधि नहीं होती। अभी भी कुछ घंटे बचे हैं कि हम इस उत्साह को दूसरों के लिए आफत बनने के बजाय उल्लास का पर्व बनाएं। आप किन उपलब्धियों को हासिल करने से इस वर्ष वंचित रह गए, उन्हें आने वाले वर्ष में हासिल करने का संकल्प लें। मेरे कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं कि हर आयु वर्ग के लोग मंदिरों में ही जाएं या आध्यात्मिक बनकर ही नया साल मनाएं। बस कोशिश यही हो कि उस उल्लास में किसी के हुड़दंग के कारण उदासी न पसर जाए। खुश होने के लिए ज्यादा जतन नहीं करने पड़ते, पर किसी की उदासी मिटाने के लिए कभी साधन भी कम पड़ जाते हैं। उसके लिए बस यही उपाय है कि हम नए साल का स्वागत सादगी से करें। नए साल की सुबह दस्तक देने वाली है, तो इस बार पिछले नववर्षों से कुछ अलग सादगी से कर के तो देखो, कायल हो जाओगे।
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