Monday, January 16, 2017

लेख

संविधान या कानून द्वारा स्वीकृत प्रावधानों के तहत या संसारभर में विज्ञान के किसी भी सिद्धान्त से इस बात की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पुष्टि नहीं हुई है कि पूजा-अर्चना किये जाने से किसी प्रदेश की जनता की उन्नति और प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त होता हो। ऐसे में जनता से संग्रहित राजस्व को प्रदेश की उन्नति और विकास के नाम पर राजस्थान सरकार द्वारा खर्च किया जाना असंवैधानिक और अवैज्ञानिक तो है ही, साथ ही साथ ऐसा किया जाना अंधविश्‍वासों को बढावा देने वाला है। जो संविधान के अनुच्छेद 51क (ज) में वर्णित नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों के विपरीत भी है।
-: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ :-
एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ, (1994) 3 एससीसी मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने साफ लफ्जों में कहा है कि धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त भारतीय संविधान का आधारभूत (अर्थात् मूल) ढांचा है। राज्य सत्ता द्वारा इसका उल्लंघन किया जाना संविधान का खुला उल्लंघन है। हमारे देश के संविधान के अनुसार धर्म लोगों के व्यक्तिगत विश्‍वास की बात है, उसे लौकिक क्रियाओं में नहीं मिलाया जा सकता है, क्योंकि लौकिक क्रियाओं को तो राज्य विधि बनाकर विनियमित कर सकता है, लेकिन धर्म, आस्था या विश्‍वास को विनियमित नहीं किया जा सकता। केवल यही नहीं, बल्कि राज्य सत्ता अर्थात् सरकार को धर्मनिरपेक्ष बने रहने के लिये धार्मिक मामलों में पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष और तटस्थ बने रहना राज्य सत्ता का बाध्यकारी संवैधानिक दायित्व है। ऐसा करके ही कोई भी राज्य सत्ता या सरकार धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष होने का दावा कर सकती है।
हमारे संविधान में धर्म निरपेक्षता का जो मूल अधिकार लोगों को दिया गया है, उसके अन्तर्गत किसी भी धर्म या ईश्‍वरीय सत्ता में आस्था नहीं रखने वाले नास्तिकों के लिये भी संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है। अर्थात् यदि कोई व्यक्ति देश में प्रचलित किसी भी धर्म को नहीं मानता हो या नहीं मानना चाहता हो तो उसके इस नास्तिक विश्‍वास और आस्था की रक्षा करना भी राज्य सत्ता का संवैधानिक दायित्व है। इसीलिये राज्य सत्ता से संवैधानिक अपेक्षा की जाती है कि राज्य सत्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई भी ऐसा कृत्य नहीं करे, जिससे किसी भी प्रकार के धार्मिक, आस्तिक या नास्तिक विश्‍वासों में आस्था रखने वाले लोग या नागरिक आहत हों या उनकी आस्था को किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष या परोक्ष चोट पहुँचे।
केवल यही नहीं, बल्कि जनता से संग्रहित राजस्व को राज्य सत्ता द्वारा किसी भी प्रकार के धार्मिक आयोजनों या किसी भी धर्म को बढावा देने या किसी धर्म के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि राज्य सत्ता द्वारा किसी भी धर्म या किसी भी धार्मिक कर्मकाण्ड को बढावा देने या किसी भी धर्म को क्षति कारित करने वाला कोई भी कृत्य किया जाना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त तथा संविधान का खुला उल्लंघन माना जाता है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक तथा संवैधानिक मूल्यों में आस्था रखने वाली संसार की सभी धर्मनिरपेक्ष सरकारें धर्मनिरपेक्षता के इस सिद्धान्त का ईमानदारी से पालन करती हैं।
उपरोक्त सभी तथ्यों, अवधारणाओं और हमारे देश के संवैधानिक प्रावधानों के ठीक विपरीत संविधान के स्पष्ट प्रावधानों को धता बताते हुए राजस्थान की वर्तमान वसुन्धरा राजे सरकार ने निर्णय लिया है कि राजस्थान के मंदिर हो या दरगाह, चाहे गुरुद्वारा या फिर गिरजाघर। सभी धार्मिक स्थलों पर प्रदेश की उन्नति और विकास की कामना से सरकार की ओर से “विशेष” आराधना का कार्यक्रम चलाया जायेगा। इसके लिए राज्य सरकार ने बाकायदा राज्य के खजाने से 34 लाख 80 हजार रुपये का विशेष बजट आवंटित किया है।
ऐसे 108 धार्मिक स्थलों का चयन किया गया है, जहां सरकार की ओर से ईशवंदना का आयोजन होगा। सुख-समृद्धि की कामना से देवस्थान विभाग के मंदिरों में महाआरती की जाएगी, तो दरगाहों पर चादरपोशी का दौर चलेगा। यही नहीं, गुरुद्वारों में अरदास और गिरजाघरों में प्रार्थना सभाएं होंगी। सरकार द्वारा सभी विभागों से तैयार कराई जा रही 60 दिन की विशेष कार्ययोजना के तहत देवस्थान विभाग की ओर से महाआरती व सांस्कृतिक कार्यक्रम तय किए गए। धार्मिक स्थलों पर विभिन्न आयोजन के साथ ही राज्य के प्रत्येक जिले के एक मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे। इस सब पर प्रतिपक्ष की चुप्पी भी आश्‍चर्यजनक है! 
राज्य के देवस्थान विभाग के कमिश्‍नर भवानी सिंह देथा के मुताबिक ‘‘हमने सभी जिलों के निर्देश जारी कर दिए हैं कि आयोजन बेहतर हों और अधिक से अधिक लोगों का जुड़ाव हो।’’ धार्मिक स्थलों पर कार्यक्रमों का ये दौर करीब डेढ़ माह तक जारी रहेगा। विभाग के अधिकारियों के अनुसार ये कार्यक्रम 15 जनवरी से शुरू होंगे, जो फरवरी तक जारी रहेंगे।
राज्य के देवस्थान विभाग द्वारा प्रत्येक धार्मिक स्थल पर पूजा-अर्चना, चादरपोशी या अरदास के लिए 10 हजार रुपये का बजट स्वीकृत किया जाएगा। वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रत्येक के लिए एक लाख रुपये का बजट रखा गया। इस प्रकार करीब 34 लाख 80 हजार रुपये के बजट में ये आयोजन होंगे।
उपरोक्त आयोजन में राजस्था सरकार द्वारा 34 लाख 80 हजार रुपये तो नगद स्वीकृत किये गये हैं। इसके अलावा डेढ माह तक सरकारी लोक सेवकों को इस असंवैधानिक कार्य को अंजाम देने के लिये कार्य करना होगा। इससे राज्य सत्ता की धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक छवि का क्या होगा और किसी भी धर्म में आस्था नहीं रखने वाले लोगों से एकत्रित धन भी धर्म के आयोजनों में खर्च किया जाना, अपने आप में ऐसे नागरिकों की आस्था एवं विश्‍वासों के साथ खुला मजाक और सरकार द्वारा किया जाने वाला धोखा है। 
इसके अलावा एक सवाल और भी यहॉं पर खड़ा होता है। राजस्थान की वर्तमान राज्य सरकार जब तक नयी विधानसभा से बजट स्वीकृत नहीं करा लेती है, पिछली विधानसभा एवं पिछली सरकार द्वारा स्वीकृत बजट से ही राज्य सत्ता का संचालन कर रही है। पिछली विधानसभा एवं पिछली सरकार द्वारा संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त के विरुद्ध धार्मिक आयोजनों पर खर्च करने के लिये ऐसी कोई बजट स्वीकृत प्रदान नहीं की गयी है और संविधान के अनुसार विधानसभा द्वारा सम्भवत: ऐसी बजट स्वीकृत प्रदान भी नहीं की जा सकती है।
ऐसे में जनता की गाढी कमाई से अर्जित राजस्व को सत्ताधारी पार्टी के लोगों द्वारा अपनी आस्थाओं को बढावा देने के लिये सरकारी धन से धार्मिक आयोजनों या पूजा अर्चना पर इतनी बड़ी राशि को खर्च किया जाना, अपने आप में प्रदेश की जनता और संविधान की भावनाओं के साथ खुला खिलवाड़ है। जिसे किसी भी सूरत में संविधान सम्मत नहीं माना जाना चाहिये।
आज तक किसी भी संविधान या कानून द्वारा स्वीकृत प्रावधानों के तहत या संसारभर में विज्ञान के किसी भी सिद्धान्त से इस बात की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पुष्टि नहीं हुई है कि पूजा-अर्चना किये जाने से किसी प्रदेश की जनता की उन्नति और किसी प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ हो। ऐसे में जनता से संग्रहित राजस्व को प्रदेश की उन्नति और विकास के नाम पर खर्च किया जाना असंवैधानिक और अवैज्ञानिक तो है ही, साथ ही साथ सरकार द्वारा ऐसा किया जाना अंधविश्‍वासों को बढावा देने वाला है। जो संविधान के अनुच्छेद 51क (ज) में वर्णित नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों के विपरीत भी है। इस सन्दर्भ में यहॉं यह उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 51क (ज) में भारत के प्रत्येक नागरिक द्वारा वैज्ञानिक विचारधारा को बढावा देना, उसका मूल कर्त्तव्य बताया गया है, जबकि इसके विपरीत स्वयं सरकार वैज्ञानिकता के बजाय अंध विश्‍वासों को बढावा देने वाले धार्मिक आयोजनों पर लाखों रुपये खर्च करने जा रही है। 
ऐसे में राजस्थान सरकार का प्रस्तावित धार्मिक पूजा-आयोजन का कृत्य संविधान विरोधी है, जिस पर तत्काल रोक लगे और जनता से एकत्रित राजस्व को बर्बाद होने से बचाया जाये। इसके लिये प्रदेश और देश के प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि हम सब आगे आकर इसका कड़ा विरोध करें और इस गैर- जरूरी खर्चे को रोकने के लिये सरकार पर दबाव बनायें। 

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