Tuesday, January 10, 2017

सन्देश

मुख्यमंत्री जी का संदेश

हमारी संस्कृति में जल को देवता और नदियों को माँ की सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त है। जल को जीवन की संज्ञा देकर उसके संरक्षण को अत्यधिक महत्व दिया गया है। माँ नर्मदा के महत्व को सभी जानते हैं। मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि अपने आप में सम्पूर्ण सभ्यता और संस्कृति है। इस दिव्य और रहस्यमयी नदी की महिमा वेदों तक ने गायी है। युगों-युगों से हमारी माटी को अपने अमृत-जल से सोना उपजाने योग्य बनाने और हमारे शुष्क कंठों की प्यास बुझाने वाली इस पवित्रतम नदी को हम युगों-युगों से पूजते आये हैं। मैकल पर्वत के अमरकंटक शिखर से निकली यह नदी शिव की प्रिय है। इस नदी के तट पर अनेक तीर्थ-स्थल हैं, जहाँ युगों-युगों से साधकों ने तपस्या और भक्ति से परमतत्व का अनुभव किया। इसके किनारे बसे गाँव सुखी और समृद्ध हुये। संत के हृदय जैसे इसके निर्मल जल की लहरों में अठखेलियां करते मेरा भी बचपन बीता।
आधुनिक युग में भौतिक विकास की अंधी दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में हमने जिस तरह के अविवेक का परिचय दिया है, उसके चलते जल सहित सभी संसाधनों के अभाव और उनके दूषण का घोर संकट हमारे सामने खड़ा हो गया है। जल के मामले में तो स्थिति बहुत विकट हो गयी है। हमारी संस्कृति में जलाशयों को दूषित करना घोरतम पापों की श्रेणी में रखा गया है।
जल संरक्षण का काम सरकार, किसी एक संस्था अथवा व्यक्ति द्वारा अकेले किया जाना संभव नहीं है। यह सबका सामूहिक दायित्व और परम कर्तव्य है। जल संरक्षण एक संस्कार है, जिसे पुनर्जीवित करना आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। जल और उसके स्रोतों की शुद्धता बनाए रखना और उनका संरक्षण करना जीवनशैली का अभिन्न अंग होना चाहिए। बच्चे-बच्चे में यह संस्कार विकसित करना होगा।
इसी महती उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में समाज को जागरूक करने और जीवनदायी माँ नर्मदा के संरक्षण के महान यज्ञ में जन-जन की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए 11 नवंबर 2016 देव प्रबोधनी एकादशी से नर्मदा संरक्षण यात्रा का आयोजन किया जा रहा है।
आज नदी को शुद्ध रखने वाले विभिन्न कारकों में असंतुलन के चलते नर्मदा के संरक्षण की आवश्यकता को महसूस किया गया। इसके लिए मध्यप्रदेश शासन ने नमामि देवि नर्मदे, नाम से एक विशेष यात्रा चलाने की योजना बनायी है। इसका उद्देश्य नर्मदा के संरक्षण एवं इसके संसाधनों के समुचित उपयोग के प्रति जन-जागरण करना है। यात्रा के दौरान नदी के तटीय क्षेत्रों में वानस्पतिक आच्छादन को बढ़ाया जाएगा और मृदा क्षरण को रोकने के लिए बड़े स्तर पर पौधारोपण किया जाएगा। नर्मदा नदी की पारिस्थितिकी में सुधार की गतिविधियों का निर्धारण कर उनके क्रियान्वयन में स्थानीय जन-समुदाय की जिम्मेदारी तय की जाएगी। टिकाऊ और जैविक कृषि पद्धतियों के विषय में जन-जागरण किया जाएगा। नदी में प्रदूषण के विभिन्न कारकों की पहचान कर उनकी रोकथाम के लिए जन-चेतना बढ़ायी जाएगी। नदी के जलभरण क्षेत्र में जल संग्रहण के लिए उपाय किये जाएंगे और इस विषय में भी लोगों को जागृत किया जाएगा।
आइये, युगों-युगों से हमें जीवन, सुख-समृद्धि तथा परम आध्यात्मिक अनुभव कराने वाली अपनी माँ नर्मदा के संरक्षण की गतिविधियों में हम सब मिलकर सक्रिय रूप से भागीदारी कर अपना जीवन सार्थक करें। इसमें हमारा और हमारी भावी पीढियों का भी कल्याण निहित है।
सर्वदा, सर्वदे
नमामि देवि नर्मदे ।।
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