Tuesday, January 3, 2017

नशा व् समाज में बदलाव

नशा नाश का द्वार है तथा सभी धर्मो में नशीली चीजों का सेवन पूर्णतया वर्जित है। अगर बात धार्मिक आयोजन की करें तो ऐसे आयोजनों में विशाल समुदाय की उपस्थिति को देखते हुए बिड़ी, सिगरेट, तम्बाकू व अफीम-तिजारा सहित अन्य नशीली चीजों को दूर रखना बहुत ही कठिन काम हो जाता है लेकिन अगर कार्यक्रम के अग्रणीय व समाज के मुख्या यह सोच लेते है कि आयोजन पूर्ण नशा मुक्त ही होगा व रहेगा तो फिर क्या कहना, कहते है कि जहाॅ चाह वहाॅ राह, जैसी सोच होगी वैसा ही व्यक्ति कर के दिखा सकता है 

अपीलः- मेरा पूरे समाज के सभी बुद्धिजीवी एवं युवा वर्ग से अनुरोध है कि आप भी समाज हित में कुछ ध्यान देवे तथा आपके समस्त प्रकार आयोजनों को स्वय प्रेरित होकर नशा मुक्त रखवाये तथा समाज में कुरीतियां एवं रूढिवादी परम्पराओं सहित अंधविश्वास मिटाने हेतु समय की नजाकत को देखते हुये समाज हित में विशेष अभियान के रूप में जाग्रति लाने के प्रयास में सहयोग दिरावें। 

धार्मिक आस्था जरुरत या दिखावा-- ---------- ------- इस समय लोगो मे धर्म के प्रति गहरा विश्वास है, धर्म के नाम पर पैसा इकट्ठा करना सहज है। मन्दिर बनाने मे जितना पैसा खर्च होता उससे कहीं गुणा अधिक पैसा इकट्ठा हो जाता है। मन्दिर बनाने का एक सिलसिला निकल पड़ा है, मन्दिर बनाना अच्छी बात है इससे समाज मे धर्म का विकास होता है लोगो मे धार्मिकता बढती है जब तक प्रतिष्ठा नही होती तब तक समाज के उस मन्दिर के कार्यकर्तांओ मे गजब की एकता होती है जितने रुपयों की जरुरत होती है उससे अधिक लाकर दे देते है पता नही कोनसी ताकत काम करती है । साधारण से साधारण आदमी तक के दिल मे यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि हमारा अलग मन्दिर होना चाहिए बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्वों को क्या जाने वह तो समाज के पैसे वाले लोगो के पीछे चलता है ओर अपनी सहुलियत देखता है प्रतिष्ठा तक काम करता फिर अपने काम मे लग जाता है फिर तो वह लकीर पीटते रहना ही अपना धर्म समझता है उसकी इस अवस्था मे चालाक लोग इस समय बहूत बेजा फायदा उठा रहे है। लेकिन उसी मन्दिर की प्रतिष्ठा करने के मात्र तीन चार साल बाद नजारा बदल जाता है उस समय मन्दिर की व्यवस्था देखकर दुख होने लगता है। 

तीर्थ धाम बनाना वास्तविक आवश्यकता है परन्तु हर गली मे मन्दिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाना केवल पैसो का दिखावा व समाज के पदाधिकारी बनने की हौड़ के कारण हो रहा है। एक ही शहर मे कहीं मन्दिर बनाना मै नही समझता की बुद्धिमानी का काम है इसके बजाय बड़े बड़े शहरों मे सभी मिलकर 4-5 बीघा या हो सके तो 10 बीघा जमीन भले ही शहर से थोड़ा दूर हो लेना उचित होगा वह भविष्य मे भी जबरदस्त काम आएगी आगे की पीढियां याद करेगी बाकी गली कूचों मे बने मन्दिर आने वाले समय मे किन स्थिती मे होगे समय ही बताएगा धर्म के नाम पर कुछ इने गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्दी के लिए सैकड़ो हजारों आदमियों की शक्ती का दुरुपयोग किया करते है मन्दिर बना लेने से या धुमधाम से प्रतिष्ठा करवा देने से ही लोगो मे आस्था पैदा नही हो जाती है 10-15 दिनों की अस्थाई आस्था का दिखावा पैदा हो सकता है परन्तु लोगो का आचरण नही बदला तो सारा तामजाम किस काम का मै कही मन्दिरो की प्रतिष्ठा मे गया हूं उस समय की चकाचोंध आकर्षित करती है परन्तु साल दो साल बाद जाता हूं तो अध्यक्ष पद के लिए लड़ते नजर आते या पैसों के हिसाब किताब के लिए लड़ते नजर आते आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरु हो जाता है क्या इसलिए हमने मन्दिर बनाया । यह हम सबके लिए सोचने की बात है। 

शंख बजाना दण्डवत प्रणाम करना, मुर्ति के आगे हाथ जोड़ खड़े रहने का नाम धर्म नही है शुद्धआचरण और सदाचार ही धर्म के लक्षण है दो घन्टे तक बैठकर पूजा कीजिए दिखावे के लिए पैदल यात्रा मे जाइए पैसों के बल पर बोली ले कुछ भी करले परन्तु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत देने के बाद यदि आप अपने को दिनभर बेईमानी करने दूसरें को तकलीफ पहूचाने मे आजाद समझते है तो इस धर्म को आने वाला समय कदापी नही टिकने देगा अब आपके पूजा पाठ झूठे पाखण्डी क्रियाक्रम नही देखा जाएगा आपके भलमानसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगा सबके कल्याण की दृष्टी से आपको अपना आचरण सुधारना पड़ेगा एसे झूठे धार्मिक व्यक्तियों से वे नास्तिक आदमी अच्छे है जो दूसरो के सुख दुख का ख्याल रखते है ईश्वर उन नास्तिकों को अधिक प्यार करेगा वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालो से यही कहना पसन्द करेगा कि मुझे मानो या ना मानो तुम्हारे मानने से ही मेरा ईश्वरत्व कायम नही रहेगा दया करके मनुष्यत्व को मानो इसी मे आपका भला है । 

आज के वैज्ञानिक युग मे भी सपने मे माताजी ने दर्शन देने की झूठी कहानी गढने वालो को माताजी माफ नही करेगी भले ही वो रोज दिखावे के लिए माताजी के दरबार मे हाजिर होने का ढोंग करते हो जब तक आचरण नही सुधारा जाएगा ईश्वर को धोखा नही दिया जा सकता है जो लोग ऐसी कोशिस करते है वे स्वयं को धोखा दे रहे है भगवान के सामने नाटक करने से भगवान प्रसन्न नही होते ईश्वर सर्वज्ञ व सर्वव्यापी है उसे सब पता है कौन नाटक करता है कौन केवल मन्दिर परिसर मे ही सबसे ईमानदार है और बाहर जाते ही झूठ व अन्याय के बलबूते लोगो पर अपनी धाक जमाता फिरता है अपनी चापलुसी के बलबूते पद हासिल कर लेना बड़प्पन नही है पद की गरिमा को बनाए रखना नियम व कायदे से काम करना समाज के सभी लोगो की भावना समझना ही पदाधिकारी का कर्तव्य होना चाहिए केवल अमुख लोगो की चापलूसी करके अपना काम निकाल लेना ही सफलता नही है लोगो के दिलों मे जगह बनाना समाज के हर व्यक्ति का विश्वास बनाए रखना ही सच्चे व्यक्ति की पहचान होनी चाहिए तभी समाज आगे बढ पाएगा वरना जैसे चला वैसा चलता जाएगा ।

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