|| भूकंप से बचाव के उपाय ||
दुनिया में अब तक का सर्वाधिक विनाशकारी भूकंप,
चीन के शांशी (Shaanxi) प्रांत में, 23 जनवरी, 1556 को आया था जिसमें मरने वालों की अनुमानित संख्या 830,000 थी!
|| भारत की स्थिति ||
विश्व बैंक वेबसाइट के आलेख के अनुसार, 1960 से लेकर अब तक सभी भूकंपों से 90 फीसदी मौत एशिया में हुई हैं। 2001 में गुजरात में आए भूकंप से हजारों लोगों की जान चली गयी थी।
प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, न ही इन्हें रोका जा सकता है लेकिन इनके प्रभाव को एक सीमा तक जरूर कम किया जा सकता है, जिससे कि जान-माल का कम से कम नुकसान हो। यह कार्य तभी किया जा सकता है, जब सक्षम रूप से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले। प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों में भारत का दसवां स्थान है।
2005 में, पाकिस्तान में आए भूकंप से 70,000 से अधिक लोगों की जान चली गयी थी, इसका मुख्य केंद्र पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर था। और 2008 में, चीन के सिचुआन क्षेत्र में आये एक भूकंप में उतने ही लोगों की मौत हुई, जितनी कश्मीर के भूकंप में।
सोमवार को आये भूकंपीय झटके भारत या पकिस्तान के लिए निश्चित रूप से अंतिम भूकंप नहीं हैं। और दिल्ली जैसे बड़े नगर भूकंपीय-क्षेत्र हो सकते हैं। इसके लिए घनी आबादी, अनियमित सुरक्षा मानकों वाली इमारतों की बड़ी तादाद और स्थानीय सरकारी संस्थानों की खराब तैयारी जिम्मेवार है।
विशेषज्ञों ने बहुत पहले से ही चेतावनी दे रखी है कि भारत की राजधानी भूकंपीय सक्रियता के क्षेत्र में आती है और अगर भूंकप यहां केंद्रित हुआ तो इसके निर्माण मानकों तथा इसकी विशाल आबादी के कारण हताहतों की संख्या बहुत बड़ी हो सकती है।
विशेषज्ञों ने बहुत पहले से ही चेतावनी दे रखी है कि भारत की राजधानी भूकंपीय सक्रियता के क्षेत्र में आती है और अगर भूंकप यहां केंद्रित हुआ तो इसके निर्माण मानकों तथा इसकी विशाल आबादी के कारण हताहतों की संख्या बहुत बड़ी हो सकती है।
|| भूकंप से बचाव ||
अगली बार झटका महसूस होने पर आप क्या करेंगे? वहीं रहेंगे या अपने घरों से बाहर निकल आने का प्रयास करेंगे?
बेहतर हो कि लोग अपनी सुरक्षा की तैयारी खुद कर लें
भविष्य में आए भूकंप के दौरान उठाये जानेवाले कदमों के लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं, जो फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी या अमेरिकी होमलैंड सिक्यूरिटी विभाग तथा सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल और बचाव की सूचना पर आधारित हैं।
सबसे ज़रूरी बात यह है कि आप अपने आपको गिरती हुई चीजों से बचाएं।
फेमा (एफईएमए) वेबसाइट का कहना है, ‘ढहती दीवारों, उड़ते कांच और गिरते हुए सामानों के कारण भूकंप संबंधी अधिकांश दुर्घटनाएं घटा करती है। भूकंप के दौरान चलने-फिरने से मृत्यु या घायल होने की घटना कभी-कभार ही हुआ करती है।’
अगर आप बिस्तर पर हैं तो वहीं रहें, लेकिन अपने चेहरे और सिर को तकिये से ढंक लें।
कांच, खिड़कियों, बिजली के उपकरणों, अलमारियों, दीवार पर लटकाये जानेवाले सजावटी सामानों, किताबों की अलमारियों सहित ऐसी सभी चीजों से दूर रहें जो कि आप पर गिर सकती हैं।
अगर संभव हो तो आप किसी मज़बूत टेबल के नीचे चले जाएं, जो आपको गिरती हुई चीजों से बचा सकती है।
अगर आप किसी इमारत की काफी ऊपर की मंजिल पर रहते हैं तो इमारत से निकलने की ज़ल्दबाज़ी न करें।
फेमा वेबसाइट के अनुसार, ‘शोध से पता चलता है कि घायल होने की अनेक घटनाएं तब घटती हैं, जब लोग इमारत के अंदर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का या फिर इमारत से बाहर निकलने का प्रयास करते हैं।’
लिफ्ट के अंदर किसी भी हालत में न जाएं।
रसोई के गैस-स्टोव को बंद कर दें और माचिस या मोमबत्ती का उपयोग न करें। गैस लाइन या गैस सिलिंडर के फटने से आग लगने की आशंका बनी रहती है।
अगर आप बाहर हैं तो इमारतों, बिजली के खंभों और अन्य प्रकार के तारों से दूर रहें। गिरते हुए मलवों से बचने के लिए खुद को ढंकने का प्रयास करें।
अगर आप कार में हैं तो उसे रोक दें और अंदर ही रहें। लेकिन इमारतों, पेड़ों और अन्य गिरनेवाली चीजों से दूर ही रहें।
ज़्यादा जानकारी के लिए
Federal Emergency Management Agency की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना का प्रयोग किया जा सकता है।
Fema.gov
Federal Emergency Management Agency की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना का प्रयोग किया जा सकता है।
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इस जानकारी को सार्वजनिक करने में मदद कीजिये।
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भूकंप आने पर क्या करें और क्या ना करें. भूकंप के बारे में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता, और भारी तबाही मचाने वाली इस प्राकृतिक आपदा को रोकने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता. लेकिन विशेषज्ञ बीच-बीच में ऐसे कई उपाय सुझाते रहे हैं जिनसे भूकंप के बाद होने वाले खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार नुकसान को कम करने और जान बचाने के लिए कुछ तरकीबें हैं, जिनसे मदद मिल सकती है. आप भी जानिए...Please share it to all you care!!
भूकंप आने के वक्त यदि आप घर से बाहर हैं तो ऊंची इमारतों, बिजली के खंभों आदि से दूर रहें. जब तक झटके खत्म न हों, बाहर ही रहें. चलती गाड़ी में होने पर जल्द गाड़ी रोक लें और गाड़ी में ही बैठे रहें. ऐसे पुल या सड़क पर जाने से बचें, जिन्हें भूकंप से नुकसान पहुंचा हो.
अगर आप भूकंप के दौरान मलबे के नीचे दब जाएं तो माचिस हरगिज़ न जलाएं क्योंकि इस दौरान गैस लीक होने का खतरा हो सकता है. हिलें नहीं, और धूल न उड़ाएं. किसी रूमाल या कपड़े से चेहरा ज़रूर ढक लें. किसी पाइप या दीवार को ठकठकाते रहें, ताकि बचाव दल आपको तलाश सके. यदि कोई सीटी उपलब्ध हो तो बजाते रहें. यदि कोई और जरिया न हो, तो चिल्लाते रहें, हालांकि चिल्लाने से धूल मुंह के भीतर जाने का खतरा रहता है, सो, सावधान रहें.
प्राकृतिक आपदाओं पर हमारा कोई बस नहीं होता। लेकिन कई बार हमारी घबराहट, हड़बड़ी और असावधानी हमें बड़ी घटना का शिकार बना देती है। आइए जानें किभूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से कैसे निपटें -
* सबसे पहले तो भूकंप आने पर तुरंत घर, ऑफिस या स्कूल से निकलकर सुरक्षित खुले मैदान में जाकर उल्टे लेट जाएं।
* बड़ी इमारतें, पेड़, खंभें आदि से यथासंभव दूर रहें। यह गिरकर बड़ा नुकसान कर सकते हैं और इनके गिरने से आपकी जान जा सकती है।
* लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें।
* भूकंप के तेज झटकों के दौरान दौड़ें कतई नहीं। इससे भूकंप का आप पर ज्यादा असर होगा। आप गिर सकते हैं।
* ऑफिस या घर के मजबूत फर्नीचर के नीचे घुस जाएं और उन्हें कसकर पकड़ लें ताकि झटकों से वह खिसके नहीं।
* गाड़ी में हैं तो खुले मैदान में गाड़ी रोकें और भूकंप रुकने तक इंतजार करें।
* 1070 नंबर डायल करें। पूरे देश में कहीं भी प्राकृतिक आपदा होने पर मदद के लिए इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं। इस हेल्पलाइन पर फोन कर आप अपने प्रदेश और शहर के हेल्पलाइन का अलग नंबर भी ले सकते हैं।
नई दिल्ली [अभिनव उपाध्याय]। भूगर्भीय फाल्ट (भ्रंश) से राजधानी घिरी हुई है, इसलिए यहां कभी भी भूकंप के कारण बड़ा हादसा हो सकता है। दादरी, हरियाणा जोन सहित अन्य फाल्ट की हलचल बड़े हादसे का संकेत हो सकती है। गौरतलब है कि लातूर मे हलचलों के बाद ही बड़ा भूकंप आया था। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के भू-विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सीएस दुबे का कहना है कि दिल्ली चारों तरफ से भूगर्भीय फाल्ट से जुड़ी है और किसी भी फाल्ट में होने वाली हलचल दिल्ली को प्रभावित कर सकती है। दिल्ली-देहरादून फाल्ट इसे हिमालय से जोड़ता है, इसलिए हिमालय क्षेत्र में होने वाली हलचल का सीधा असर राजधानी पर पड़ता है। दूसरा, दिल्ली-सरगोधा रिज में भी भूकंप की प्रबल आशंकाएं रहती है, क्योंकि सन् 1720 में इस रिज मे 6.7 क्षमता का भूकंप आया था, जिसके कारण दिल्ली और उसके समीपवर्ती इलाकों मे भारी तबाही हुई थी, पिछले लगभग 300 सालो में यह रिज शांत है। पूर्व की शोध से पता चला है कि जो इलाका भूगर्भीय हलचलों से जितने ज्यादा समय तक शांत रहता है, वहां पर तनाव उतना ही बढ़ता है। यहां कभी भी भूकंप भारी तबाही ला सकता है। दिल्ली दो अन्य फाल्ट रोहतक -फरीदाबाद तथा दिल्ली-आगरा हैं। दिल्ली सरगोदा फाल्ट पर सोनीपत आता है और यहां पिछले कुछ वर्षो में लगातार हुए कंपन की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 1-2 मापी गई है। यानी की यहां पर भूगर्भीय गतिविधि हो रही हैं, जिसका यह संकेत है कि यहां कभी भी बड़ी क्षमता का भूकंप आ सकता है। भूकंप विशेषज्ञों की मानें तो फाल्ट जितना ज्यादा लंबा होगा, उस पर भूगर्भीय हलचल होने से उतनी अधिक ऊर्जा निकलने और नुकसान होने की आशंका रहेगी। इसमे यह तथ्य भी मायने रखता है कि क्या भूगर्भीय हलचल पूरे फाल्ट पर हो रही है या उसके कुछ इलाको में, क्योंकि भूकंप आने पर तबाही उसी हिसाब से होती है। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.5 हो और उसका केद्र दिल्ली या उसके समीप का इलाका हो तो राजधानी में तबाही का खौफनाक मंजर दिख सकता है, लेकिन कुछ दशकों में यह स्थिति राजधानी में नहीं आई है। रेतीला इलाका बनाता है दिल्ली को खतरनाक प्रोफेसर सीएस दुबे का कहना है कि दिल्ली मे भूकंप का खतरा ज्यादा है। दरअसल, यहां यमुना की वजह से काफी क्षेत्र रेतीला है, जिस कारण यह इलाका ज्यादा प्रभावित होने की आशंका है। दक्षिण दिल्ली की अपेक्षा पूर्वी, उत्तर पूर्वी और नई दिल्ली इलाके की मिट्टी में रेत अधिक है, इसलिए यहां पर जान माल के नुकसान की आशंका ज्यादा है। उन्होंने कहा कि हमने एक शोध मे 12,00 बोरवेल और फ्लाईओवर का डेटा लेकर अध्ययन किया है। इसमें मेट्रो के 20 मीटर के खंभे की खुदाई के बाद वहां के द्रवीकरण के आधार पर अनुमान लगाया गया है। रोहिणी, पीतमपुरा, जहांगीर पुरी, राजौरी गार्डन, पंजाबी बाग, निर्माण विहार, सीलमपुर, मयूर विहार, लक्ष्मी नगर, मुखर्जी नगर, कश्मीरी गेट,तिमारपुर, नेहरू विहार, नई दिल्ली का पूरा इलाका 5-6.5 क्षमता का भूकंप नहीं सह सकता। हालांकि दक्षिणी दिल्ली में पथरीला इलाका होने के कारण यहां पर इस क्षमता का भूकंप आने पर भारी नुकसान होने की संभावना कम है। भूकंप के लिहाज से दिल्ली असुरक्षित है, इस पर हम काम कर रहे हैं। यदि रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5-6.5 रहती है तो इसका राजधानी पर खासा प्रभाव होगा। दिल्ली मे भूकंप के बारे मे फिरदौस ने अपनी पुस्तक मे 1720 में लिखा है। उस समय हुए नुकसान के आधार पर यह माना जाता है कि यहां आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.5 रही होगी। हमने इसे भी शोध में शामिल किया है। हलचलो को नही बनाया जा सकता भविष्यवाणी का आधार मौसम विभाग के सिस्मोलाजी डिपार्टमेट मे डायरेक्टर (ऑपरेशन) जेएल गौतम ने बताया कि हिमालय रीजन में एशियन प्लेट से इंडियन प्लेट टकरा रही है। टकराकर इंडियन प्लेट नीचे जा रही है और एशियन प्लेट ऊपर आ रही है। इस टकराहट का प्रमुख कारण लाखों वर्ष पहले हिमालय का निर्माण है। जिन हलचलों के आधार पर बड़े भूकंप की भविष्यवाणी की जा रही है, वह पूरी तरह से सत्य नहीं है, क्योकि इसका कोई प्रमाणिक वैज्ञानिक आधार नही है। पूरा हिमालय क्षेत्र सिस्मिक जोन 4 और 5 के अंतर्गत आता है। इसमे पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर भारत और अंडमान निकोबार तक का क्षेत्र शामिल है। शेष भारत सिस्मिक जोन 2 और 3 मे आता है। यहां पर तबाही की आशंका कम है। भूकंप के पूर्वानुमान की तकनीकि विश्व के किसी भी देश के पास नहीं है। वैज्ञानिक इस प्रयास में जुटे है कि भूकंप से पूर्व के लक्षणों को चिह्नित किया जा सके, जिससे समय रहते ही जानकारी मिल सके। गौतम ने कहा कि रविवार को दिल्ली मे हल्के झटके की सूचना है, लेकिन इसकी क्षमता रिक्टर पैमाने पर लगभग चार थी। इसलिए इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। पशुओ की गतिविधियां भी दे सकती है प्राकृतिक आपदा का संकेत डीयू मे भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आरबी सिंह का कहना है कि यह पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रमाणित तो नहीं है, लेकिन प्राकृतिक आपदा के समय पशुओं के व्यवहार मे जबरदस्त बदलाव देखा गया है। हमें इस पर भी नजर रखनी चाहिए। पूर्व में ऐसा देखा गया है कि चीन मे आए भूकंप से पहले वहां से पशुओ का पलायन होने लगा था। भारत मे आई सुनामी में सबसे कम पशु प्रभावित हुए थे। श्रीलंका मे आई सुनामी मे वहां से हाथियो का पलायन होने लगा था। इसी तरह कई बार देखा गया है कि तेज बारिश से पूर्व चीटियां अपना दूसरा ठिकाना खोज लेती है। उन्होंने कहा कि हमे भूगर्भीय हलचलो को मॉनीटर करने की आवश्कयता है, क्योकि दिल्ली सिस्मिक जोन (भूकंपीय क्षेत्र) चार मे आती है। देश का 60 फीसद हिस्सा ऐसा है, जो भूकंप से प्रभावित हो सकता है।
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