''कहाँ गया वो चौका चूल्हा, कहां गया वो घर का आंगन,
सिमट गए सब
रिश्ते नाते, हो गया घरों का विभाजन,
लुप्त हो रहें
संस्कार हमारे, घर में ये अलख जगाओ,
संस्कारों के ही
प्रकाश से, घर-घर का आंगन सजाओ।''
सर्वप्रथम समस्त रैगर
बंधुओ को त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं.
जैसा की आप सभी
जानते हैं की दिनांक 17.08.2016 को त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ की जयंती
है और बड़े हर्ष का विषय है की संपूर्ण भारत वर्ष में विभिन्न संगठनों द्वारा यह
जयंती बड़े हर्शोल्लाश के साथ मनाई जाएगी और क्यु न मनाई जाये आखिर त्यागमूर्ति
स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ रैगर समाज के महापुरुष हैं और हमें गर्व है की त्यागमूर्ति
स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जैसे महापुरुष हमारे समाज में पैदा हुए हैं. लेकिन विचारणीय बिंदु यह है की क्या हम सही
मायनों में त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती मानते आ रहे हैं और इस बार
भी मना पाएंगे. किसी भी कार्य को करने के मायने प्रत्येक व्यक्ति के विभिन्न हो
सकते हैं. त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती को मनाने के मायने जो में
समझता हूँ उसे आप सभी के साथ बाँटना चाहता हूँ इसलिए ये लेख लिख रहा हूँ.
हम सभी कल
देखेंगे की बड़े बड़े संगठनों द्वारा त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती
मनाई जाएगी और हजारो की संख्या में रैगर बंधू एकत्रित होंगे ,कलश यात्राएं निकाली जाएँगी, मंचो से बड़े बड़े उद्बोधन सुनने को मिलेंगे,
भामाशाहो द्वारा बड़ी बड़ी घोषणाएं की जाएँगी,
प्रतिभाओं का सम्मान किया जायेगा, रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जायेगा और अंत
में भोजन प्रसादी के साथ कार्यक्रम समाप्त हो जायेगा. आप क्या सोचते हैं क्या यही
मायने हैं त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती मानाने के. में शायद कुछ और
सोचता हूँ. जब बड़े बड़े बैनरों पर लिखा जायेगा रैगर समाज ......... द्वारा आयोजित त्यागमूर्ति
स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती समारोह........ तो यह सोचकर मेरे मन में पहेले से
ही कुछ प्रश्न उठ रहे हैं. ऊपर लिखे वाक्य में चार बड़े ही महत्पूर्ण प्रश्न छिपे
हैं, जो की उन चार
स्तम्भो की भांति है जो हमारे रैगर समाज की इमारत को सहेजे हुए हैं.
यदि इन चार प्रश्नों के उत्तर विभिन्न संगठन त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’
जयंती के माध्यम से आम जन तक पंहुचा सके तो त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’
जयंती के आयोजन की सार्थकता है अन्यथा ये सिर्फ एक निरूध्येश्य कार्यक्रम ही साबित
होंगे. ये चार प्रश्न हैं :
१. त्यागमूर्ति
स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ कोन थे
२. उन्होंने समाज
के लिए क्या किया था
३. जो उन्होंने
किया उसे आगे बड़ा पाए
४. आज हम उनके
बताये मार्ग पर क्यों नहीं चल रहे
बड़े दुःख की बात
है हर वर्ष त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जयंती का आयोजन करने वाली
अधिकांश संस्थाओं के पदाधिकारियों तक को उक्त सवालो के जवाब पता नहीं हैं तो क्या
वे इनका जवाब आम व्यक्ति तक पंहुचा पाएंगे, क्या उनका कर्त्तव्य नहीं है की वे जिस समाज की सेवा का
बीड़ा अपने कंधो पे उठाये हैं कम से कम अपने समाज के इतिहास की तो जानकारी कर ले
और समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक इस जानकारी को सही रूप में पहुचाएं. उन्हें बताएं की त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’
हुए जिन्होंने प्रथम अखिल भारतीय रैगर सम्मलेन आयोजित किया था l
जरा सोचिये आज
कितने समाज बंधू त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ के विषय में जानकारी रखते
हैं, कितने समाज बंधुओ ने त्यागमूर्ति
स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ का चित्र अपने घरो या व्यवसाय स्थालो पर लगाया हुआ है,
आप मालूम
करने का प्रयास कीजीए या स्वयं से ही पूछ लीजीये, बड़े आश्चर्यजनक परिणाम सामने आयेंगे और बड़े दुखद भी. हम
जो भी कार्य करते हैं जब तक उस कार्य के उद्देश्य उसकी संकल्पना के साथ मेल नहीं
खायेंगे तब तक उस कार्य की सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकती है.
कारण अनेक हैं
जिनकी वजह से हमारे समाज का असली और व्यापक चेहरा कही बहुत पीछे छूट गया है और
समाज के सभी सद्श्यों को उनकी पहचान और सरोकारों से अवगत कराना बहुत आवश्यक है.
ताकि वे पहचान सके अपने वजूद को. इसलिए मेरा समाज के सभी बंधुओ से निवेदन है ,
विशेषकर उनसे जिन्होंने सामाजिक संगठनों की
स्थापना कर समाज सेवा का बीडा उठाया है
की यदि समाज को आगे बढाना है तो
पहेले आधार मजबूत कीजीये. तो समाज बंधू स्वयं आगे आयेंगे आपका इस सद्कर्म में साथ
देने के लिए.
जय रैगर समाज- जय
भारत !
No comments:
Post a Comment