Monday, December 19, 2016

अभिभावक स्कूलों द्वारा किये जा रहे परिवहन नियमों के उल्लंघन

पीठ पर बैग, गले में पानी की बोतल और हाथों को हवा में लहराते शरारती बच्चों को मां कितने प्यार से तैयार करके स्कूल भेजती है मगर ये रिक्शे और स्कूल वैन में ठूसकर भरे बच्चे सुबह शाम स्कूल जाते हुए दिख जायेंगे। शहर की सड़कों पर ये नजारा आम होता है। शहर के लगभग सभी  स्कूलों में चलने वाले वाहन परिवहन नियमों का खुलकर दुरूपयोग कर रहे हैं।
अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के चक्कर में अभिभावक  स्कूलों द्वारा किये जा रहे परिवहन नियमों के उल्लंघन को भी  जान कर अनजान बने रहने में अपनी भलाई समझते है। अभिभावकों की चुप्पी और स्कूलों द्वारा किये जा रहे परिवहन नियमों की अनदेखी के बीच मासूमों की जान हर समय सांसत में पड़ी रहती है। देश के भविष्य के साथ ऐसे खिलवाड़ पर स्कूल प्रबंधन से लेकर जिम्मेदार विभाग  तक सभी  अपनी आंखे मूंदे है। पैसा कमाने के चक्कर में वैन मलिक और स्कूल प्रबंधन मासूम बच्चों की जिंदगी को ही दांव पर लगाये दिये दे रहे है।
मानकों की अनदेखी
सरकार द्वारा जो मानक तय किये गये है उनको पूरा नही किया जा जाता है।  पेट्रोल बचाने के चक्कर में स्कूल वैन के मलिक अलग से एलपीजी लगवा देते है। कुछ लोग तो घरों में इस्तेमाल होने वाले सिलेंडर का भी  प्रयोग कर रहे है। इन दोनों के प्रयोग से बच्चों पर खतरा बना रहता है। इसके अलावा पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के बाद पैसा बचाने के चक्कर में स्कूली व निजी वाहनों में लोग गैस किट लगवा कर कम खर्च पर उनका संचालन कर रहे हैं। इससे वाहन मालिक भले ही मालामाल हो रहे हैं लेकिन उन वाहनों से स्कूल जाने वाले बच्चों की जान खतरे में ही रहती है। दर्जनों स्कूली वैन के चालक गैस किट के बजाए घरेलू सिलेण्डर से काम चला रहे हैं। स्कूली वाहनों में मानकों की अनदेखी करने का खमियाजा किसी दिन इन नन्हें-मुन्नें नौनिहालों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ सकता है।

क्षमता से अधिक बैठाते है बच्चें
स्कूलों में बच्चों को लाने और ले जाने के लिए लगे रिक्शा और वैन अपनी क्षमताओं से अधिक बच्चों को बैठाते है या यू कहे कि ठूसकर भरते है। पांच की क्षमता वाले रिक्शे पर दस बच्चों को बैठाते है। बच्चों के बैग के का भार  सो अलग । इसके अलावा स्कूली वैन भी  बैठाने की क्षमता से अधिक बच्चों को बैठाते है। ऐसे में छोटा सा हादसा भी  बडे हादसे में बदल सकता है।

तेज चलाते है वाहन
अक्सर स्कूली वैन बच्चों को जल्दी स्कूल ले जाने और घर छोड़ने के चक्कर में तेज चलाते है जबकि वैन पर लिखा होता है कि तेज चलाना मना है। इसके बाद भी  वैन चालक अपनी मनमानी करते है और स्कूल प्रबंधन जानकर भी  अंजान बने हुए है। ऐसे में यदि कोई हादसा होता है  तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?

यातायात विभाग  भी  सुस्त
स्कूलों द्वारा मानकों की अनदेखी पर यातायात विभाग  ने भी  आखें बंद कर रखी है। इन स्कूलों के प्रभाव  के आगे विभाग  कार्रवाई करने में पीछे रहता है। विभाग अभियान  के नाम पर मात्र खानापूर्ति करते है। अक्सर देखा गया है कि जब कोई हादसा होता है तभी  प्रशासन की कुंभकरणी नींद खुलती है। आनन फानन में अभियान  चलाकर छोटे स्कूलों पर कार्रवाई करके अपनी पीठ थपथपा लेते है।
इनसाइट बाक्स
अभी  हाल में ही पीजीआई क्षेत्र में न्यू पब्लिक स्कूल की वैन चालक की लापरवाही और तेज गति से चलाने के कारण पलट गई थी जिसमें कई बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गये थे। मानकों की अनदेखी का इससे बड़ा सबूत नहीं मिल सकता इस वैन में डेढ़ दर्जन से अधिक बच्चे बैठे थे।
जानकारी के अनुसार इस वैन को स्टैंड वाला तेज गति से चला रहा था जिसके कारण वैन उसके नियंत्रण से बाहर हो गई और पास के नाले में जा गिरी जिसमें कई बच्चे घायल हो गये थे।


बाक्स
क्या है नियम
प्राइवेट वाहन लगाने पर वह स्कूल के कलर कोड की होनी चाहिए।
प्रत्येक तीन महीने में प्रिंसिपल बस की स्थिति की समीक्षा करें।
ड्राइवर और कंडक्टरों की योग्यता मानक पर विचार-विमर्श होना चाहिए।
स्कूल वाहन का फिटनेस सर्टिफिकेट और ड्राइवर के पास लाइसेंस होना चाहिए।
खिड़कियों में जाली या तीन रॉड के साथ चढ़ने और उतरने की सही व्यवस्था होनी चाहिए।
स्कूली वाहन का रंग पीला और स्कूली वाहन लिखा होना चाहिए।
स्कूल वाहन में साइड मिरर और इंडीकेटर, लाइट दुरुस्त होनी चाहिए।
बैठने की सीटें सही और खिड़की से इतनी नीचे हो कि बच्चे बाहर सिर न निकाल सकें।
उपलब्ध सीट से ज्यादा बच्चों की संख्या नहीं होनी चाहिए
स्कूल वाहन की गति भी  निर्धारित होती है।
स्कूल वाहन में प्राथमिक उपचार की व्यवस्था होनी चाहिए
बस से नीचे उतरने के लिए विशेष इंतजाम हो ।
 ड्राइविंग के दौरान चालक ड्रेस में नेमप्लेट के साथ हो।
 बस का फिटनेस सर्टिफिकेट छह महीने से पुराना न हो।
15 साल से पुरानी बस स्कूल के लिए प्रयोग न की जाए।
सह चालक के पास न्यूनतम पांच साल का अनुभव , चालक के पास बस परमिट, लाइसेंस होना आवश्यक है।
बस के आगे-पीछे स्पष्ट रूप से स्कूल वाहन लिखा हो।
बच्चों के साथ एक शिक्षक की तैनाती आवश्यक।

अभिभावक  के वर्जन
इन्दिरा नगर निवासी प्राची सिंह का बेटा शहर के एक नामी स्कूल में पढ़ता है। उन्होंने बताया कि आये दिन हो रहे हादसों के कारण जब तक उनका बेटा घर नहीं आ जाता है तब तक उनको चैन नही मिलता है। ऐसे हादसों से दिल में डर तो बना ही रहता है। वो अक्सर वैन चालक को आराम से वैन चलाने की नसीहत देने में भी  नहीं चूकती हैं।

2..कल्याणपुर निवासी रोहित पाण्डेय ने बताया कि स्कूलों की गाड़ियों में बच्चों को इस तरहभरा  जाता है मानो वह अनाज की बोरी हो। शुरुआत में हमने सोचा था कि बच्चे को घर से स्कूल तक आने जाने के लिए स्कूल वैन लगा दे लेकिन स्कूल की वैनों की हालत व उसमें खचाखच भरे  बच्चों को देख कर हमारी हिम्मत नहीं हुई। इस लिए हम अपने बच्चे को खुद छोड़ने और लेने जाते है। 

ये काम आरटीओ का होता है वही इसके खिलाफ अभियान चलाते है उनके अभियान  में हम लोग सहयोग करते है। स्कूलों में मानकों के अनुरूप जो वाहन नहीं होते है उनके सख्त खिलाफ कार्रवाई की जाती है। 

No comments:

Post a Comment