Tuesday, December 20, 2016

हर व्यक्ति अपने द्वारा किए गए छोटे-बड़े सभी कामों की प्रशंसा सुनना चाहता है।

यह बईमान दुनिया है, यह अनैतिक दुनिया है, यह भ्रष्ट दुनिया है, यह दांव-पेंच वाली दुनिया है, यह लुटेरों की दुनिया है। यहां 100 में 95 बईमान है, यहां 100 में 95 अनैतिक है, यहां 100 में 95 भ्रष्ट है, यहां 100 में 95 दांव-पेंच वाले है, यहां 100 में 95 लुटेरे है। नैतिकता और शिष्टाचार लगभग विलुप्त होता जा रहा है। जनता से लेकर नौकरशाही, राजनेता और न्यायविद् तक बईमान हो चुके हैं, अनैतिक हो चुके हैं, भ्रष्ट हो चुके हैं, दांव-पेच वाले हैं, लुटेरे हैं। ऐसी स्थिति में कोई भी ईमानदार, नैतिक और जनकल्याण कारी नीति लागू करना कितना मुश्किल काम है, यह समझ सकते हैं़। यही कारण है कि हमारे देश में कोई भी ईमानदार, नैतिक और जनकल्याणकारी नीतियां और योजनाएं अर्थविहीन हो जाती है, लक्ष्य से भटक जाती है और भ्रष्टाचार में डूब जाती है। कोई भी ईमानदार सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू कराने में असमर्थ होती हैं। आखिर क्यों। जब हम इस प्रश्न का चाकचैबंद और निष्पक्ष उत्तर देखेंगे तो साफतौर पर पायेगे कि सरकार की ईमानदार,नैतिक और जन कल्याण कारी योजनाओं व नीतियों का समर्थन व सहयोग जनता व नौकरशाही से मिल ही नहीं पाता है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि निश्चित तौर पर न्यायविद् भी किसी न किसी रूप से अनैतिक, बईमान, भ्रष्ट लोागों का रक्षाकवच बन खडे हो जाते हैं। क्या यह सच नहीं है कि सरकार की सभी नीतियों और कार्यक्रमों की न्यायिक समीक्षा होती है, भ्रष्ट और बईमान लोगों को सजा देने का अंतिम अधिकार न्यायपालिका को है। हमारा लोकतंत्र  दुनिया का सर्वश्रेष्ट माॅडल है और इस पर गर्व भी हम करते हैं पर सच्चाई यह है कि लोकतंत्र के विभिन्न खंभों में तालमेल का अभाव और उनमें जिम्मेदारी का अभाव, कदाचार और अनैतिक लोगों के भरमार के कारण अपराधी, धनपशु और देश के अन्य लुटेरे लाभाथी बन जाते हैं।
हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है और चूँकि हम लोग अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति बेहद जागरूक हैं और हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल है तो हम हर मुद्दे पर अपनी अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और किसी भी फैसले अथवा वक्तव्य को विवाद बना देते हैं  , यही हमारे समाज की विशेषता बन गई है।
संसार का हर व्यक्ति अपने द्वारा किए गए छोटे-बड़े सभी कामों की प्रशंसा सुनना चाहता है। वह निंदा का एक भी शब्द सुनना पसंद नहीं करता। प्रशंसा व्यक्ति के अंदर छिपे उत्साह एवं लगन को जाग्रत कर देती है। भगवान बुद्ध के पास जब भी कोई व्यक्ति आता थावे उसकी अच्छाइयों की प्रशंसा करने लगते थे। अच्छाइयों के प्रकाश में बुराइयों का अंधकार स्वत: ही दूर हो जाता था।
बच्चों में भावनात्मक आवेश वयस्कों की तुलना में अधिक होता है। विद्यालय में शिक्षक द्वारा प्रशंसा या पुरस्कार से उनके अंदर उत्साहलगन एवं खुशी की लहर पैदा होती है। प्रतिस्पर्धा में सफल होने वाले छात्र आगे चलकर दुगने उत्साह एवं लगन से कार्य करते हैं। विद्यालय में छात्रों के हर अच्छे कार्य के लिए उनकी प्रतिभा की सराहना एवं पुरस्कार देनाउनके सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक माना गया है। पुरस्कार और प्रशंसा पाकर बच्चों के अंदर कुछ कर गुजरने की तमन्ना जागती है और दूसरे बच्चे उनका अनुकरण करके प्रोत्साहित होते हैं। इस प्रकार प्रशंसा बच्चों के विकास और उनकी सफलताओं में संजीवनी बूटी का कार्य करती है।
संसार का हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी उम्र का होप्रशंसा सुनना चाहता है। मार्ग में आने वाले सभी अवरोधों एवं कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देने वाली यह प्रशंसाअंदर छिपी शक्ति को पहचानने का एक माध्यम है। लेकिन जब कोई महान या ऊंचे पद पर बैठा व्यक्ति किसी छोटे व्यक्ति के कार्यों की प्रशंसा कर उसे पुरस्कृत करता हैवह खुशी के मारे अपने को साधारण से ऊंचा समझकर अहंकार का शिकार हो जाता है। फिर वह अपने आसपास के लोगों से ठीक से बात ही नहीं करना चाहता। हर अच्छे कार्य की प्रशंसा होनी चाहिए। क्योंकि बुरे कार्यों की अवहेलना एवं निंदा भी जरूरी है। यदि व्यक्ति प्रशंसा के द्वारा या मनोवांछित पुरस्कार प्राप्त होने पर अपने भीतर अहंकार नहीं पैदा होने देतो वह भी महानता के शिखर तक पहुंच सकता है।
छलकपटधोखाधड़ी एवं भ्रष्टाचार से घिरी व्यवस्था में बहुत से व्यक्ति बड़े-बड़े अधिकारियों एवं मंत्रियों की प्रशंसा करते दिखलाई देते हैं। झूठी प्रशंसा के द्वारा ऐसे चाटुकार लोग अधिकारियों एवं मंत्रियों को प्रसन्न करते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। प्रशंसा एवं चाटुकारिता से घिरे ऐसे लोग अपनी आत्मा में झांकने की कभी कोशिश नहीं करते। चाटुकारिता से घिरे अधिकारी एवं मंत्री समय बीत जाने परजब उनकी पद प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती हैइन्हीं चाटुकारों की निंदा करते हुए पछताते नजर आते हैं। स्वार्थ पूरा होने पर चाटुकारी लोग उनका साथ छोड़ देते हैं। इस प्रकार मिथ्या प्रशंसा कष्टप्रद होती है।
प्रशंसा उस पीपल या बट वृक्ष की जड़ों के समान होती है जो सीमेंट या पत्थर को फोड़कर छतों की दीवारों में अपना स्थान बना लेती हैदूसरे बड़े वृक्षों के तनों में प्रवेश करके सारे वृक्ष को हरा भरा रखती है। प्रशंसा करने वाला व्यक्ति कठोर से कठोर हृदय को पिघलाने की शक्ति रखता है। यदि हम किसी व्यक्ति के व्यवहार से बहुत असंतुष्ट हैंयदि वह हमारे सामने आकर हमारी अच्छाइयों का बखान करने लगे तो हमारा गुस्सा शांत होने लगता है।
प्रशंसा चाहे शारीरिक सौन्दर्य की होचारित्रिक गुणों की होचाहे किसी भी अच्छे कर्म की होव्यक्ति के अंदर खुशी की लहर पैदा करती है। प्रशंसक प्रशंसा द्वारा सामने वाले का दिल जीत लेता है। कभी-कभी माता-पिता प्रेम के वशीभूत होकर अपनी संतानों के गलत कार्यों की भी प्रशंसा करने लगते हैं। मेरे पुत्र ने जो कुछ कियाअच्छा किया। यह प्रशंसा उनके एवं उनकी संतानों के लिए घातक सिद्ध होती है। बच्चे माता-पिता का गलत संरक्षण पाकर बिगड़ जाते हैं। माता-पिता के संकीर्ण मिथ्या प्रेम से उत्पन्न यह प्रशंसा उनके ही पतन का कारण बनती है। दक्षिण भारत के महान संत कवि वेमना ने कहा है, 'मूर्खों की प्रशंसा मूर्ख ही करते हैं। सुअर कीचड़ की प्रशंसा करता हैन कि गुलाबजल की।व्यक्ति को अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए प्रशंसा का भूखा नहीं होना चाहिएबल्कि निंदा-स्तुति से पूर्णत: निलिर्प्त महान आदर्शों को धारण करते हुए कर्तव्य के प्रति समपिर्त रहना चाहिए। प्रशंसा वही भली होती है,जो अपने आप पीछे-पीछे दौड़ती है।
भाषा का अपना द्वंद्व होता है। इसका सीधा संबंध शब्दों से होता है। मनुष्य जीवन में शब्दों का बड़ा प्यारा प्रयोग है - प्रशंसा और आलोचना। कोई कितना ही मौन साधे इन दो स्थितियों से बच नहीं सकता। हमारी भाषा कैसी हो यह एक कला है। सार्वजनिक जीवन में तो ठीक है, लेकिन परिवार में भाषा और शब्द, कलह और प्रेम का कारण बन जाते हैं। जब किसी की प्रशंसा करनी हो तो सबके सामने करिए और आलोचना करनी हो तो एकांत में करिए। आइए, पहले प्रशंसा को समझ लें। प्रशंसा में दो गड़बड़ हो सकती है। सामने वाला भ्रम में डूब सकता है, अहंकार में गिर सकता है या फिर हमें चापलूस मान सकता है, इसलिए प्रशंसा में उसके कार्य को अधिक फोकस करें। हम व्यक्ति की प्रशंसा करने लगते हैं। उसके काम को भी तीन भागों में बांटकर प्रशंसा करें।
एक, यह काम उन्होंने किया कैसे? हमें भी इसकी समझ होनी चाहिए, इसलिए बिना जाने किसी की प्रशंसा न करें। दो, अब ऐसे प्रशंसनीय कार्य कौन-कौन कर गए, इस तरह के कार्य की प्रशंसा करें। इसमें व्यक्ति की बात भी आ जाएगी और व्यक्तित्व की तुलना भी हो जाएगी। तीन, इस कार्य से अन्य लोगों को क्या फायदा होगा। ऐसा दर्शाने से उनका कार्य सेवा में बदल जाएगा। सामने वाले को महसूस होगा कि प्रशंसा उसके व्यक्तित्व की नहीं, उसके सेवा-कार्य की हो रही है। इससे वह अहंकार से बच जाएगा और वह जान जाएगा कि हर प्रशंसा करने वाला चापलूस नहीं होता। अब बात करते हैं आलोचना की। जब आलोचना करनी ही पड़ जाए तो सार्वजनिक रूप से बचें। व्यक्ति कितना ही बड़ा या छोटा क्यों न हो उससे अकेले में ही बात करें। सार्वजनिक रूप से की गई आलोचना अपमान में बदल जाती है और एकांत में की गई आलोचना अच्छी सलाह बन जाती है।

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