Wednesday, December 28, 2016

लेखनी

गिरने  के दर डर  से क्या चलना छोड़ दे ?
मरने के डर से क्या जीना  छोड़ दे ?
हारने  के डर  से क्या खेलना छोड़ दे?
असफल होने के दर से काम हाथ में लेना छोड़ दे ?


                                                नहीं ना  । तो फिर देर किस बात की । आइए चले एक नई  मंज़िल की ओर ,नए जीवन की ओर ,नए खेल की और नए काम की ओर  । एक नए युग की शुरूआत के लिये । 


ठीक है, मैं फिर हार  जाऊँगा ,गिर जाऊँगा ,मर जाऊँगा । लेकिन मै फिर उठूँगा और पूरी उर्जा पूरे जॊश से ,कहूँगा ,लो,"मै फिर तैयार हूँ "। नए जीवन के लिये । नए युग की शुरूआत के लिये । 


"हमारे सोच में ,हमारे काम में आशा की सरिता बहे। हमारी सोच एक धनात्मक उर्जा से पल्लवित हो। हम निरंतर गतिशील बने ,मर्यादित हों । हममे ,भोर के सूरज की आभा हो ,चंद्रमा की शीतलता हो ,धरती का धैर्य हो ,विचारों में समंदर की गहराई  हो । " देखिये ! हम फिर तैयार हैं ,एक नए जीवन के लिये । 


                                                मैं जानता हूँ ,मैं फिर गिर जाऊँगा ,सूरज की तरह । उस अमावस  में फिर खो जाऊँगा ,चंद्रमा की तरह । पतझड़ मे  पत्तों  की तरह । 



लेकिन मुझे पता है ,मै  फिर आऊंगा ,फिर से उगते सूरज की तरह ,पूर्णिमा में चंद्रमा की तरह ,बसंत में फूलों  की तरह ,सावन में धरती की प्यास बुझाने । नए जीवन की शुरुआत के लिए !


मैं जानता हूँ , सूरज की तरह मैं गति के नियम से बंधा नहीं हु ,ना  ही मैं सृष्टी  के समय चक्र से बंधा हूँ । मैं स्वतंत्र हूँ । तो फिर ,मेरे निर्णय गलत हो सकते हैं । मैं रास्ते से भटक सकता हूँ । तो फिर क्या ?........................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................
                       "मैं आऊंगा नए रास्तों  के तलाश के लिए ,नए युग की शुरुआत के लिये  । "

मैं अपने आप को या बहुत  सारे देश वासिओं को देश के कुछ हिस्सों में सुरक्षित महसूस नहीं कर पता ये मेरे देश की विफलता है । 
                            और मैं  देश को इस लायक नहीं बना पाया ये मेरी विफलता है । 


धार्मिक असुरक्षा का माहॊल है देश में ,मुझे दुःख है ,ये हमें विरासत में मिला है और  हम  देश वासी  अब भी इसे ढो रहे हैं । 

                         मेरे देश में अब भी रोटी की समस्या है ,और मुझे अपनी रोटी लहू से सनी नज़र आती है । 


खेल कोई हो हम हर वक़्त पिछड़े हैं ,मुझे दुःख है मैंने किसी को खेल में नहीं हराया । 

                          जुल्म की हदे कई जगह टूटी ,और जिमेद्दार लोग पीछे भागते रहे । 
                           और  भ्रस्टाचार ने मेरी नींद लूट ली है ।  
आतंकवादी हमलो से देश जूझता रहा ,सरकारे बिकती रही घोटाले होते रहे ,और हम देश वासी नपुंसक लोकतंत्र ढोते  रहे । 
                 ये मेरी विफलता है मैं इसे मजबूत नहीं बना पाया । 

मेरे  दोस्तों ,मै आपको  एक कहानी  सुनाता हूँ ।और कहानी  सुनाने से पहले कहानी की भूमिका ........
शायद आपको याद हो,जब आप बचपन में नींद से जाग जाते या देर रात तक नींद नहीं आती थी या फिर गाँव में जाड़े  की रातो में  अलाव को घेर बैठे अपनी दादी -नानी से कहानी सुनाने  की  जिद करते थे तो कहानी आपके लिए एक नींद की गोली हुआ करती थी ।रोमांच से भरी..............
                                                                   
                                                                        आज  बैरेन नींद ने मेरे  साथ धोखा किया ,और  किसी के साथ सोई है ।मेरी निगाह ढूंढ़ रही  है कहानी  सुनाने वाली दादी की ।लेकिन आज मै खुद दादी की भूमिका मे हूँ । लेकिन बैचेनी में .........।मै आपको कहानी सुनाता हूँ   ,गूंगे अंधे और बहरे भारत की .............।

कहीं धमाके हुए ,कुछ निर्दोष मरे। कई घायल । कुछ गंभीर रूप से घायल । कुछ  सरकारी सम्पतिओं का नुकसान । लाश से भर गए अस्पताल ।कराहती रही, कहीं ममता । कुछ टूटी चूड़ियों की खनखनाहट ।कही सर्द पड़ी लाशें । पास में चीखता मासूम।.कुछ सपने टूटे । कुछ घरोंदे बिखरे ।कुछ घोसले लापता ,कुछ कबूतर और कुत्ते  भी।...........

एक आताताई पकड़ा गया, जिन्दा।पुलिस पकड़  कर ले गई उसे तफ्तीश के लिए .....।चार साल बाद उसे सजा मिली मौंत की।.........आज तक इंतजार मे  है .....वह । 
    ....................................        इसी बीच मेरा गूंगा भारत खड़ा है वहाँ .........................

फिर कुछ घोटाले हुए ,अरबो के ।हर घोटाले के नाम  अलग -अलग ।और इन ऐतहासिक घोटालों को सामान्यं ज्ञान  का प्रशन बनाकर भिन्न -भिन्न परीक्षओं मे पूछा जाता है आजकल ।गरीबी  रेखा मुकर्र की गई  तीस तीस रुपये ,और गरीब चालीस करोड़ ......।एक गरीब  इन्ही घोटालो के नाम ,पार्टी ,नेता  याद याद करके किसी प्रतयोगी परीक्ष।में गया लाखों की भीड़ में .....  अपने रोटी के सपने में ......।
करोड़ टन अनाज सड़ गए ,घोटालो की भेंट चढ़ गए .....।

और गरीब रोटी ,मकान के सपने में दम तोड़ गया ..,किसी हाई-वे  के बीच ..............।कुत्ते ने भी नहीं पूछा इन लाशों का हाल ।चील और कौवों  भी नहीं मंडराये ....।क्योंकि चील ,कुत्ते,और  कौवों को भी पता था ,इनमे सिवाए हड्डी के कुछ नहीं है ।गरीब आदमी की गरीब लाश ।हुँह ............।
  ....................................        इसी बीच मेरा अँधा भारत खड़ा है वहाँ .........................

फिर कुछ चीखें ,कुछ मदद की । चीखें थी धार्मिक उन्माद में घायल लोगो की ....।या फिर सिसकियाँ थी कुछ अपमानो की ,टूटे अरमानो की .......।कुछ   व्यवस्था  से त्रस्त  चीखें ......।कही अलगाव वादिओं  के जुल्म की चीखें ।
कहीं अपनों से अपनों की लड़ाई की चीखें ..........।
चीखें इतनी गहरी थी की बहरा हो गया "भारत"  ...........
  ....................................        इसी बीच मेरा बहरा  भारत खड़ा है वहाँ ......................... 

                                            " अंतिम दृश्य "
जो आताताई   पकडे  गए ,सजा मिली मौंत की  उसे ।फांसी पर  चढाया गया उसको । पर रस्सी टूट गई ,क्योंकि भ्रष्ट व्यवस्था ने कमजोर रस्सी खरीदी थी ,या फिर जेल की रस्सी घोटाला  से एक और घोटाला नाम अस्तित्व  में आया ।................
इस तरह अजमल कसाब ,अफजल गुरु .........वगैरह -वगैरह बिरयानी खाते गणतंत्र दिवस 2050 का इंतजार कर रहे  है ,क्योंकि सदभावना के तहत यही तारीख मुकर्र की गई है ,इनकी रिहाई के लिए ....................

और जो नेता घोटालो में थे ,कुछ  को दलितों का मसीहा(मा ), गरीबों का मसीहा (ला ),धार्मिक मसीहा (मु ,दि ,न )(मैंने  किसी  धर्म का नाम  नहीं लिया  नहीं तो मेरे ऊपर धार्मिक विद्वेष फै लाने  का आरोप  लगेगा ).....इत्यादि  के नाम पार्क ,स्मारक और मूर्तियाँ लगवाई गई ।क्रमशः ये भारत के नये रत्न घोषित किये गए ........................................।

और  चीखें अब भी जारी है.......................। शोर बढ़ता जा रहा है .........।हाहाकार ......................।चीत्कार ......................।चीख -पुकार................।सिसकियाँ ..................।हिचकियाँ ....................। बस शोर बढ़ता  जा  रहा  है ...............।
.................     और  मेरा  अँधा बहरा गूंगा भारत   अब भी  खड़ा है वहां  ................

No comments:

Post a Comment