देव! तुम्हारे कई उपासक
कई ढंग से आते हैं ।
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे
कई रंग की लाते हैं ॥
धूमधाम से साजबाज से
मंदिर में वे आते हैं ।
मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ
लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ॥
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी
जो कुछ साथ नहीं लायी ।
फिर भी साहस कर मंदिर में
पूजा करने चली आयी ॥
धूप दीप नैवेद्य नहीं है
झांकी का शृंगार नहीं ।
हाय! गले में पहनाने को
फूलों का भी हार नहीं ॥
मैं कैसे स्तुति करूँ तुम्हारी ?
है स्वर में माधुर्य नहीं ।
मन का भाव प्रकट करने को
वाणी में चातुर्य नहीं ॥
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा
ख़ाली हाथ चली आयी ॥
पूजा की विधि नहीं जानती
फिर भी नाथ! चली आयी ॥
पूजा और पुजापा प्रभुवर !
इसी पुजारिन को समझो ।
दान दक्षिणा और निछावर
इसी भिखारिन को समझो ॥
मैं उन्मत्त प्रेम की प्यासी
हृदय दिखाने आयी हूँ ।
जो कुछ है, बस यही पास है
इसे चढ़ाने आयी हूँ ॥
चरणों पर अर्पित है, इसको
चाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है,
ठुकरा दो या प्यार करो ॥
कई ढंग से आते हैं ।
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे
कई रंग की लाते हैं ॥
धूमधाम से साजबाज से
मंदिर में वे आते हैं ।
मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ
लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ॥
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी
जो कुछ साथ नहीं लायी ।
फिर भी साहस कर मंदिर में
पूजा करने चली आयी ॥
धूप दीप नैवेद्य नहीं है
झांकी का शृंगार नहीं ।
हाय! गले में पहनाने को
फूलों का भी हार नहीं ॥
मैं कैसे स्तुति करूँ तुम्हारी ?
है स्वर में माधुर्य नहीं ।
मन का भाव प्रकट करने को
वाणी में चातुर्य नहीं ॥
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा
ख़ाली हाथ चली आयी ॥
पूजा की विधि नहीं जानती
फिर भी नाथ! चली आयी ॥
पूजा और पुजापा प्रभुवर !
इसी पुजारिन को समझो ।
दान दक्षिणा और निछावर
इसी भिखारिन को समझो ॥
मैं उन्मत्त प्रेम की प्यासी
हृदय दिखाने आयी हूँ ।
जो कुछ है, बस यही पास है
इसे चढ़ाने आयी हूँ ॥
चरणों पर अर्पित है, इसको
चाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है,
ठुकरा दो या प्यार करो ॥
- सुभद्रा कुमारी चौहान
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