नई दिल्ली। “आरक्षण” आज के दौर का सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द बन चुका है। अधिकांश राजनीतिक पार्टियां आरक्षण को खत्म करने या इसमें संसोधन की बात कर रही हैं। लोगों के मन में भी धारणा बन चुकी है कि आरक्षण से सवर्णों को नुकसान हो रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि अभी तक आरक्षण के बावजूद भी दलितों, पिछड़ों को उनका हक नहीं मिल पा रहा। अभी भी जातीय तौर पर उत्पीड़न जारी है। नौकरी से लेकर पिटाई तक हर मामला जाति से जोड़कर देखा जाता है। हाल ही में देशभर में हुईं अनेकों घटनाएं इसका उदाहरण है।
सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बावजूद भी हाशिये पर खड़े वर्ग की मौजूदगी इसका उदाहरण है। भारत किस दौर में विश्व गुरू था इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। अगर विश्व गुरू भी था तो यहां द्रोणाचार्यों का ही बोलवाला क्यों रहा है। यह भी चिंतनीय विषय है। जिन्होंने हजारों सालों से एक समाज को हाशिये पर रखा वे छह दशक के आरक्षण से तिलमिला रहे हैं….. इस मामले पर डॉ. ओम सुधा लिख रहे हैं…….
असल में भारतीय समाज अपनी गलती सुधारने को लेकर तत्पर नहीं दीखता। जिस दौर में हम भारत को विश्वगुरु घोषित करते रहते हैं, याद रखिए ये वही दौर था जब भारत में सती प्रथा, विधवा विवाह पर रोक, बाल विवाह और जाति प्रथा अपने चरम पर थी। हम अपनी बीमारियों पर गर्व करते रहे। ये भी कहा जा सकता है कि हम बीमारियों को लेकर अनुकूलित हो गये। सामाजिक बीमारियों का अनुकूलन इतना ज़बरदस्त रहा है कि आज भी हम इन बीमारियों को सही ठहराने के पक्ष में तर्क गढ़ते रहते हैं। जाति व्यवस्था ऐसी ही बीमारी है।
सोचिये, कितना गन्दा समाज है जो जाति के आधार पर भेदभाव करता है।
इस बीमारी को डॉ आंबेडकर ने ना केवल समझा बल्कि इसका मुकम्मल इलाज भी लेकर आये। आरक्षण के रूप में बाबा साहब जाति नामक लाइलाज बीमारी का इलाज लेकर आये। मज़ा देखिये देश अब स्वस्थ हो रहा है।
कुछ लोग जो कास्ट हेरारकी के टॉप पर हैं। उनकी सत्ता हिलने लगी। कभी सवा लग्घा दूर से छूत फैलाने वाले बराबरी पर आ गए। साथ वाली कुर्सी पर बैठने लगे। दलित लड़की यू पी एस सी में टॉप पर आ जाती हैं। ये सब आरक्षण की वजह से मुमकिन हुआ। उनका तिलमिलाना लाजिमी भी है।
इसलिए ये समय समय पर मेरिट की बात करते रहते हैं। सोचिये की आई टी ओ चौक पर आपकी गाड़ी की खिड़की पर 5 रूपये की कलम बेचने वाले बच्चे का एड्मिसन यदि किसी डी. पी. एस. में करा दिया जाय तो वह कलक्टर ना भी बने तो कम से कम डॉक्टर या इंजिनियर तो जरूर बनेगा। मतलब साफ है कि मेरिट कुछ नहीं होता है, अवसर सबकुछ होता है।
समता मूलक समाज से चिढ़ने वाले लोग समय-समय पर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का भी शिगूफा छोड़ते रहते हैं। इनको समझना पड़ेगा की आरक्षण कोई गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है बल्कि सबको सामान अवसर और प्रतिनिधित्व मिलने का कार्यक्रम है, जो राष्ट्र निर्माण से जुड़ा है। अपने आसपास नज़रें उठाकर हमें देखना चाहिए की आरक्षण की वजह से कितना कुछ बदल गया है। सब एक पांत में खड़े हो गए हैं।
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