Tuesday, October 18, 2016

श्रम और आत्म विश्वास हैं ऐसे संकल्प

बदल जायेगी तकदीर
श्रम और आत्म विश्वास हैं ऐसे संकल्प
मंजिल पाने के लिये नहीं कोई और विकल्प
पौ फटने से पहले का घना अँधेरा
फिर लायेगा इक नया सवेरा
देखो निराशा मे आशा की तस्वीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर
बस दुख मे कभी भी ना घबराना
जीवन के संघर्षों से ना डर जाना
युवा शक्ति पुँज बनो तुम कर्मभूमी के वीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर
नयी सुबह लाने को सूरज को तपना पडता है
धरती कि प्यास बुझाने को बादल को फटना पडता है
मंजिल तक ले जाती है आशा की एक लकीर
तनिक धीर धरो राही बदल जायेगी तकदीर्
कुन्दन बनता है सोना जब भट्टी मे तपाया जाता है
चमक दिखाता हीरा जब पत्थर से घिसाया जाता है
श्रममार्ग के पथिक बनो अवरोधों से जा टकराओ
मंजिल पर पहुँचोगे अवश्य बस रुको नहीं बढते जाओ
बदल जायेगी तकदीर
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खुद के बनाए ज़ाल में यूँ उलझकर रह गए
दर्द सारे दिल के मेरे अश्क बनकर बह गए
हम खड़े रह भी गए घाट पर तो क्या हुआ
वक्त की रफ़्तार में तो दरिया सारे बह गए
हमने सीखा ना सिखाया बुजुर्गों की छाँव में
अब तलक छत वो रहे फिर खंडहर-से ढह गए
पंछियों ने सीख ली माँ-बाप से अठखेलियाँ
मूढ़ थे हम बेकदर माँ-बाप फिर भी सह गए
जो कहोगे-जो करोगे वापिस मिलेगा सौ-गुना
क्या मिला, सोंचो जरा, क्या बिजते रह गए?
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माँ बाप ने मन्नतो का ढ़ेर लगाया होगा
तब कहीं जाकर घर का चिराग पाया होगा
तेरी सलामती खातिर दुआ अर्ज़ करने
कई मंदिरों मस्जिदों मजारो पे शीश नवाया होगा
तेरा हर ख़्वाब पूरा करने की चाह में,
ख़ुद के अरमानों का गला दबाया होगा
स्वयं के सपनों को आग लगाई होगी
तब कहीं जाकर तेरा हर स्वप्न सजाया होगा
और जब तू उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ आया आज
सोच तुमने सब कुछ खोकर क्या पाया होगा
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हो जाते माता पिता ,कोमल कभी कठोर
बच्चों का जिसमे भला ,ले जाते उस ओर
ले जाते उस ऒर, सोचते अच्छा उन का
होते वो मजबूर , न कर पाएं यदि मन का
मगर अर्चना बात समझ वो तब ये पाते
खुद बनते माँ बाप ,बड़े इतने हो जाते

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