Tuesday, October 18, 2016

मैंने एक वैश्या को देवी से ऊपर देखा

मैंने एक वैश्या को देवी से ऊपर देखा
एक पण्डित को उसके कदमो में गिरते देखा
समझ न आया फिर भी लेकिन दृश्य ये देखा
मैंने एक वैश्या को …………
रहा न गया पूछा मैंने फिर
ईश्वर बोल पड़ा मुस्कुराकर
एहसान है इस वैश्या का
मुझ पर और समाज पर
जीवित रखा विश्वास जो मुझ पर
भटके हुए हर इंसा का
मन विकल फिर पूछ बैठा कैसे
आँख झुकाये अब वैश्या बोली
मेरे कोठे पर सभ्रांत बन आते
मदिरा पीते गौमांस उड़ाते
मुझे याद पाठ गीता का
कर्मज्ञान से ये थे इठलाते
सभ्य समाज परिवार सभी
विखर जाये यदि मैं न थामूं
चोरी से दिन का समय निकालूँ
जा मन्दिर में ज्ञान सुना था
हैरान हुई देखा इश्वर को
ईश्वर फिर मुस्काया और बोला
यदि सभ्य परिधान ये न देती
नशे में नंगा उनको करती
मुझ पर विश्वास न करता कोई
मन्दिर मस्जिद जाता न कोई
सुने रहते गुरूद्वारे गिरिजा
ज्ञान सभी पोथी में रहता
इंसानियत फिर मर जाती
कोई काम न किसी के आता
इसलिए बनी ये देवी और
दुष्ट ये दानव दल आतंकी राक्षस
कर्म बिधान का लेख यही
शीश झुका समझ चुकी मैं
वैश्या को देवी मान चुकी मैं
यहाँ पण्डित जाति सूचक न होकर किसी भी धर्म का व्याख्याता है
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मेरी किस्मत ले चली,अब जाने किस ओर।
प्रभु हाथों में सौप दी,यह जीवन की डोर।।
किस्मत में है क्या लिखा,नहीँ किसी को भान।
निरर्थक हैं विधा सभी,थोथा है सब ज्ञान।।
भाग्य-भाग्य का खेल है,इससे जीता कौन।
किस्मत नाच नचा रही,देख रहे सब मौन।।
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पत्नी ऐसी दीजीए, हमको तुम भगवान !
देखन में ऐश्वर्या लगे, सुंदरता की खान !!
संस्कारी बहु बने घर की रखे साफ़ सफाई !
सारा घर का काम करे, बनकर शांताबाई !!
रेखा जैसा जलवा हो,जो साठ में भी युवा लगे !
प्रियंका सी फिगर रखती, माधुरी सा डांस करे !!
सोनिया जैसी चतुर हो,किरण जैसी दमदार !
मैरीकॉम से मेडल जीते, संभाल के परिवार !!
हर काम में अव्वल हो,रहे पति सेवा को तैयार !
स्वादिस्ट भोजन बनाये,वो प्यार करे बेसुमार !!
पत्नी ऐसी दीजीए , हमको तुम भगवान !
कभी न कोई मांग हो,करे न्योछावर प्राण !!
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ऐसा दूल्हा ढूँढना,
सुन लो बाबुल बात
देय सैलरी हाथ में,
मॉल घुमाये रात
मॉल घुमाये रात,
डिनर प्रतिदिन होटल में
माँगू जो भी चीज,
दौड ले आये पल में
रित्विक सा हो फेस,
खूब ही लावै पैसा
रखे हमेशा ख्याल,
चाहिये प्रीतम ऐसा॥
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मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !
जब जब भी दुःखदर्द है देखा अपनी कलम चलाईं है !!
जब घुटनों के बल चलता था तब मुझको न खलता था !
अलग किया जब अपनों ने तब देख मेरा दिल जलता था !!
दादा जी गुजर चुके थे हिस्से में दादी भी न आई है !
मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !!
देख गरीबी सब ने मेरी अपना कसर निकाला है !
बच्चो का तो पेट भरा माँ खाया नही निवाला है !
सच कहता हूँ यार प्रभु ने सबकी लाज बचाई है !
मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !!
पापा जी परदेस में रहते घर में तो मालिकाना था !
जग में रोशन नाम हो अपना ऐसा हमने ठाना था !!
लाख बुरा हूँ लेकिन मुझमें थोड़ी सी अच्छाई है !
मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !!
कुछ लोगो ने मार्ग परिवर्तित कर मुझको भत्काया था !
अब क्या होगा इस जीवन क्या सोच सोच घबराया था !!
मेरे मम्मी पापा इतने अच्छे लक्ष्मण जैसे भाई है !
मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !!
चला गाया मै उस रस्ते में जहां घनघोर अँधेरा था !
चिलम चढाये बैठे रहते न दिन रात सबेरा था !!
देख लिया हमने जग सारा अपनों से ठोकर खाई है !
मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !!
मै मूर्ख नही यारों जो अपने बारे में लिखता रहता हूँ !
मेरे इस गलती से सीखो कविता के द्वारा कहता हूँ !!
का वर्षा जब कृषि सुखाने कॉलेज डिग्री पाई है !
मै लिखता जो गीत नही है जीवन की सच्चाई है !!
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आज इस राज से पर्दा उठा दे
मेरे होने की वजह मुझे बता दे
मेरी ज़िन्दगी की रातों की,
कब होगी सुबह बता दे,
हर तरफ अँधेरा है घना,
कैसे होगी रौशनी बता दे,
निराशाओं से मन घिर रहा है,
कोई तो आशा की किरण दिखा दे,
पत्तों की मानिंद उड़ रहा हूँ मैं,
मेरी उड़ान को कोई दिशा दिखा दे,
दूर क्षितिज में कोई बिंदु चमक रहा है,
उस बिंदु तक पहुचने की राह बता दे,
मेरा वजूद क्या है,
कौन हूँ मैं,
मेरी हकीकत क्या है,
मेरे हर सवाल का जवाब बता दे,

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