Gorakhpur : देश के सभी राजनीतिक दल सदन में मुद्दा विहीन हो एक दूसरे को कोसते रहते हैं। किसी भी देश के विकास में वहाॅ की शिक्षा ब्यवस्था रीढ़ का का काम करती है। देश भर में शिक्षा के अलग-अलग केन्द्रिय व क्षेत्रीय बोर्ड काम करते हैं।यानी समान शिक्षा का अभाव है । यह बात भारत के गाल बजाउ नेता अच्छी तरह समझते हैं ; इस पर बात करके वह आमदनी का जरिया खतम नहीं करना चाहते। भले ही देश में डिग्रीधारी हार्दिक पटेल जैसे लोग सड़कों पर ताण्डव करें। कूबत के हिसाब से शिक्षा बिक रही है और उसका सौदा करने वाले उसे जब चाहते हैं खुलेआम निलाम कर देते है। जैसा कि आजकल बिहार माध्यमिक बोर्ड के टापर्स का मामला सुर्खियों में है। पिछले कुछ समय से किसी परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले विद्यार्थी सुर्खियों में रहे हैं और उनकी प्रतिभा के बारे में जितनी खबरें आर्इं, वे नए विद्यार्थियों या प्रतियोगियों के लिए उपयोगी थीं। लेकिन बिहार में इंटरमीडिएट परीक्षा के परिणामों की घोषणा के बाद चर्चा का विषय यह है कि इसमें शीर्ष पर आने वाले विद्यार्थियों ने कैसे यह स्थान प्राप्त किया होगा ! हाल ही में इंटरमीडिएट के नतीजों में कला संकाय की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाने वाली रूबी कुमारी से जब कुछ पत्रकारों ने परीक्षा से संबंधित साधारण सवाल किए तो वह नहीं बता पाई। इसी तरह, विज्ञान संकाय में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले सौरव श्रेष्ठ को भी अपने विषय से संबंधित बहुत मामूली जानकारी तक नहीं थी।
ये नौबत क्यो आयी सरकार!
खबरें आने के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा, तब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने कला और विज्ञान परीक्षा के नतीजों पर रोक लगाते हुए इन संकायों में पहले सात स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को दोबारा जांच के लिए बुलाया। मगर सवाल है कि कैसे यह संभव हुआ कि जिन विद्यार्थियों का अपने विषयों के बारे में जानकारी का स्तर इतना कमजोर है, उन्होंने परीक्षा की कॉपियों में सवालों के जवाब इस तरह दिए कि उन्हें पचासी या नवासी फीसद अंक मिले और वे सबसे आगे रहे! निश्चित तौर पर यह एक व्यापक गड़बड़ी का नतीजा है, जिसमें अकेले परीक्षार्थी को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। पिछले साल ऐसी ही एक परीक्षा में व्यापक रूप से गड़बड़ी होने की खबरें फैलने के बाद सरकार ने इस बार पूरी तरह साफ-सुथरी परीक्षा आयोजित कराने का फैसला किया था और काफी हद तक इसमें कामयाबी भी मिली। यहां तक कि सख्ती के चलते कई जगहों पर स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था। मगर तमाम चौकसी के बावजूद बिहार की परीक्षा प्रणाली पर इस बार कहीं ज्यादा ही सवाल उठ रहे हैं, यहां तक कि वह जग हंसाई का विषय बन गई है।
क्या समूची शिक्षा-व्यवस्था और पद्धति पर यह सवाल नहीं है ?
दूसरा पहलू यह भी है कि बारहवीं में पढ़ने वाले किसी स्कूल के नियमित विद्यार्थी को अगर बहुत साधारण जानकारियां भी नहीं हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेवार है? स्वयंसेवी संगठन ‘प्रथम’ के अध्ययनों में कई साल से एक ही तरह के निष्कर्ष सामने आ रहे हैं कि पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थी ठीक से दूसरी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ पाते। क्या यह समूची शिक्षा-व्यवस्था और पद्धति पर सवाल नहीं है? जहां तक परीक्षाओं में गड़बड़ी और नतीजों का सवाल है, तो इसका दायरा व्यापक है। ऐसे मामले अक्सर उजागर होते रहे हैं जिनमें किसी परीक्षार्थी की जगह दूसरे विद्यार्थी ने परीक्षा दी। मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आयोजित परीक्षाओं में भी संगठित तौर पर नकल करने-कराने या परचे लीक करने के मामले कई बार पकड़ में आए। नकल के लिए जिस तरह उच्च तकनीकी का सहारा लिए जाने की घटनाएं हुर्इं, उसके मद््देनजर हाल में चिकित्सा पाठ्यक्रम के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा में विद्यार्थियों के बैठने के लिए कोई आवश्यक सामान ले जाने से लेकर कपड़े पहनने तक के मामले में भी कई शर्तें लगाई गई थीं। बिहार राज्य में शिक्षा के नवरत्नों की कभी कमी नही रही। पर कुछ समय से यहाॅ जैसे भी हो खुद को आकाश की उंचाई पर उड़ाने का ख्वाब हर बच्चा देखने लगा है इसका कारण भी शायद वे आदर्श हैं जो शिक्षा के गम्भीर मसले पर भी अपनी ओछी हरकत से बाज नहीं आते। हाबर्ट विश्वविद्यालय में लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती का राजनीतिक बिषय पर सेमिनार मे स्वयं को स्रोता की जगह बक्ता बताने की कोशिश ,फर्जी सम्बोधन; गलत प्रयास से सही परिणाम लाने की कोशिश ! जाहिर है, बिहार अपवाद नहीं है, और परीक्षाओं पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में सोचने की जरूरत है।
शिक्षा ब्यवस्था पर जनता की राय —
शिक्षा की गुणवत्ता के लिए मात्र शिक्षक ही दोषी नहीं बल्कि सरकार की नीतियां भी बराबर की दोषी हैं। शिक्षकों की कमी को पूरा किया जाए।शिक्षकों से किसी भी प्रकार का गैर.शैक्षणिक कार्य न लिया जाए। स्कूलों में ज़रूरत की सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं। समय-समय पर शिक्षा अधिकारियों द्वारा स्कूलों का औचक निरीक्षण किया जाए। पाठ्यक्रम के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ न की जाए। – विनय शर्माा, प्रधानाचार्य
स्कूलों में उत्कृष्ट अध्यापन सुनिश्चित नहीं ; धक्का मार कर पास कराने की गाारंण्टी देने वाले कालेज खुलेआाम मनमाने तौर पर कार्य कर रहे हैं और शिक्षा माफियाओं के हाथ में पूरा शिक्षा तंत्र फंसा पड़ा है। परीक्षा परिणाम के लिए अध्यापकों की जवाबदेही तय की जाये। अभिभावकों तथा अध्यापकों को बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए समय-समय पर बैठक करनी चाहिए ताकि शिक्षा की खामियों को दूर किया जा सके। राजनीतिक हस्तक्षेप बिल्कुल बंद हो।
– विश्ववैभव शर्मा, समाजसेवी
देश के कई राज्यों में शिक्षा बोर्ड के नतीजे बेहद शर्मनाक हैं। शिक्षा के स्तर में व्यापक सुधार की जरूरत है। सरकारों को को बिना समय गंवाए बुनियादी शिक्षा से लेकर माध्यमिक तक में खामियों ,अपर्याप्त स्टाफ ,आज के बदलते युग में पढ़ने के तरीकों पर व्यापक और विस्तृत ढंग से विचार करने की ज़रूरत है। -श्यामानंद श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार
सरकार; सरकारी स्कूलों में योग्य अध्यापकों की नियुक्ति का दावा करती है और उनके वेतनमान भी निजी स्कूलों से अधिक हैं। बावजूद इसके निजी स्कूलों का परिणाम बेहतर आता है। इससे स्पष्ट होता है कि सरकारी स्कूल प्रतिस्पर्द्धा की दौड़ से बाहर हो चुके हैं। कहीं न कहीं सरकारी स्कूलों में ही खामियां हैं। सरकार को निजी स्कूलों की तरह शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रयास करने होंगे। निजी स्कूलों के समान सरकारी स्कूलों को भी पूर्ण सुविधाओं से युक्त कर सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
– रुबा सरीन, ब्यवसायी
परीक्षा परिणाम तभी बेहतर होंगे जब हमारी शिक्षा निति कठोर अनुशासन के साथ क्रियान्वित हो! सरकार को बुनियादी शिक्षा में पेशतर खामियों और अपर्याप्त स्टाफ के अभाव को समय रहते दूर करना चाहिए। शिक्षा के प्रति सरकार की सोच दूरगामी, पार्टी हितों से ऊपर होनी चाहिए।पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के भविष्य को ध्यान में रखकर तय होना चाहिए। बुनियादी शिक्षा सरकार की जिम्मेदारी है। विद्यार्थी इसे प्राप्त करने में कहां चूक रहे हैं, इसे पहचानने का दायित्व सरकार कुशलता से निभाये। निजी स्कूलों की भांति पूर्ण शिक्षा तंत्र विकसित किया जाये जो बच्चों के भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। अध्यापकों से केवल शैक्षणिक कार्य ही लिये जायें।
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