रोगियों की समाज सेवा-हिंदी व्यंग्य कविता
समाज की हर बीमारी के इलाज का
दावा करते हैं वह लोग,
अस्पतालों के पीछे जाकर
छिपाते हैं जो अपने रोग।
कहें दीपक जिनकी देह
अपनी शक्ति से संभाली नहीं जाती
ज़माने भर की समस्याओं पर
उनकी ज्यादा ही नज़र जाती,
कोई चंदा कोई दान जुटा रहा,
उनके इलाज का बोझ भी समाज ने सहा,
लाचार इंसानों के जज़्बातों से
खेलना कितना आसान हो गया है
उसमें उम्मीदों का झूठा जोश जगा रहे
फरिश्ता बने कुछ लोग,
जिनके तन और मन
बेबस हो गये हैं करते हुए भोग।
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