Monday, October 10, 2016

महिला समाज में उत्पीड़न की शिकार है

जनीश आनंद, प्रभात खबर.कॉम
नारी को हमारा समाज भले ही शक्तिस्वरूपा बताता हो, लेकिन वह इस पितृसत्तात्मक समाज में उत्पीड़न की शिकार है. स्थिति इतनी विकट है कि महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने और उसके खिलाफ जनजागरूकता के लिए देश भर में 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा मनाया जाता है. जनजातीय बहुल झारखंड प्रदेश में तो स्थिति और भी विकट है. यहां कई तरह के अंधविश्वासों की आड़ में भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा हो रही है. बावजूद इसके अभी भी हमारा समाज महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा के प्रति उतना जागरूक नहीं है, जितना कि उसे होना चाहिए. खुद महिलाएं भी अपने साथ हो रही इस हिंसा को अपनी नियति मानकर सबकुछ चुपचाप सहने के लिए बाध्य हैं. जबकि सरकार ने महिला हिंसा को रोकने के लिए कई कानून बनाये हैं. यह आज भी सच है कि महिलाओं की अधिकांश आबादी को इस बात का इल्म नहीं है कि उनके साथ कुछ ऐसा हो रहा है जो मानवाधिकार का उल्लंघन है.
महिला हिंसा के कारण
अगर हम इस समस्या के कारणों को जानने का प्रयास करेंगे तो यह पायेंगे कि हमारा समाज अभी भी स्त्रियों को समाज की एक इकाई के रूप में स्वीकार नहीं कर पाया है. भले ही हमारे देश में हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपना वर्चस्व कायम किया है और अपनी बुद्धिमता स्थापित की है. खासकर ग्रामीण समाज में यह सोच व्याप्त है कि अगर कोई महिला कोई गलती करती है या फिर पुरुष को कोई गलती करने से रोकती है, तो उसकी आवाज को दबाने का सबसे बेहतर तरीका है उसके साथ मारपीट. चाहे हम बात घरेलू हिंसा की करें या फिर किसी अन्य तरह की हिंसा की.
महिलाओं के खिलाफ हो रही यौन हिंसा के पीछे भी हमारे समाज की सोच ही जिम्मेदार है. पुरुष वर्ग अपने हवस की भूख को शांत करने के लिए अक्सर ही प्रलोभन, ठगी या फिर जोर-जबरदस्ती से एक महिला के साथ यौनाचार करता है. ऐसे भी मामले देखे गये हैं, जहां सबक सिखाने और बदला लेने के लिए भी महिलाओं के साथ यौन अपराध किये जाते हैं. झारखंड जैसे राज्य में अंधविश्वास की आड़ में भी महिलाओं के साथ हिंसा हो रही है. कई बार सामाजिक कुरीतियां भी महिला हिंसा का कारण बन जाती है.
महिला हिंसा के प्रकार
महिला हिंसा के कई प्रकार हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है कि महिलाओं के साथ हो रही हिंसा दो तरह की है-1. प्रत्यक्ष हिंसा(जो हमें सहजता से दिखाई दे जाती है)2. अप्रत्यक्ष हिंसा (जब किसी महिला को शारीरिक रूप से पीड़ित न करके उसे मानसिक प्रताड़ना दी जाये). प्रत्यक्ष हिंसा के दायरे में मारपीट, बलात्कार, छेड़खानी इत्यादि आते हैं, वहीं अप्रत्यक्ष हिंसा में मानसिक प्रताड़ना और आर्थिक प्रताड़ना को शामिल किया जा सकता है. झारखंड में महिला हिंसा के जो मामले प्रमुखता से सामने आते हैं उनमें ट्रैफिकिंग, असुरक्षित पलायन, यौन हिंसा, संपत्ति विवाद में हिंसा, डायन बिसाही और घरेलू हिंसा शामिल है.
मानव तस्करी
झारखंड की महिला तस्करी के जरिये सबसे अधिक हिंसा का शिकार बनती है. झारखंड के सुदूर इलाकों वह शहरों से भी दलालों के जरिये लड़कियां बाहर काम करने के लिए जाती हैं. जहां उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है. कई बार तो उनके साथ मारपीट-गाली-गलौज के साथ ही यौन अपराध भी किया जाता है. अगर बात आंकड़ों की करें, तो अभी तक न तो सरकार के पास और न ही किसी संस्था के पास इस संबंध में प्रमाणिक आंकड़े हैं कि प्रति वर्ष कितनी महिलाएं काम के लिए बाहर जाती हैं, लेकिन अगर इस क्षेत्र में काम करने वाली संस्था आशा की मानें तो प्रति वर्ष लगभग 30 हजार लड़कियां प्रदेश से बाहर जाती हैं. बाहर जाने वाली लड़कियों में ज्यादातर 12-19 साल तक की लड़कियां रहती हैं. आशा संस्था की सदस्य पूनम ने बताया कि अभी हम नामकोम पंचायत में काम कर रहे हैं, जहां सर्वेक्षण से हमें यह ज्ञात हुआ है कि यहां की लगभग 45 लड़कियां काम के सिलसिले में घर छोड़कर बाहर गयीं हैं. इनमें से 15-16 लड़कियों को संस्था वापस लेकर आयी है, इन लड़कियों की त्रसदी यह है कि तमाम तरह की हिंसा का
शिकार होने के बाद भी इन्हें इस बात का भान नहीं रहता है कि उनके साथ किसी तरह की नाइंसाफी हुई है. तस्करी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ रहे भारतीय किसान संघ के संचालक संजय मिश्र का कहना है कि ट्रैफिकिंग और असुरक्षित पलायन की शिकार बनी युवतियों के साथ अकसर हिंसा की घटनाएं होती हैं, लेकिन वे शिकायत नहीं कर पातीं. जनजातीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास के कारण भी महिलाएं डायन बिसाही जैसी कुरीतियों के जरिये हिंसा का शिकार होती हैं. घरेलू हिंसा की समस्या भी सामने नजर आती है.
समस्या निवारण
ट्रैफिकिंग व असुरक्षित पलायन जैसी समस्या से निपटने के लिए प्रदेश में कई संस्थाएं कार्यरत हैं, जो स्वतंत्र रूप से और सरकार की मदद से भी इस समस्या के निवारण में जुटी है. भारतीय किसान संघ, शक्ति वाहिनी,आशा और एसएक्सबी फाउंडेशन जैसी संस्थाएं इस समस्या से लड़ने के लिए कार्यरत हैं. संजय मिश्र ने बताया कि उनकी संस्था इस समस्या से लड़ने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है. वह यह चाहती है कि आदिवासी समाज इस बात को समङो कि किस तरह उनके अधिकारों का हनन हो रहा है, इसके लिए गांव-गांव में जनजागरूकता अभियान चलाये जा रहे है. ट्रैफिकिंग की शिकार युवतियों की तलाश कर उन्हें बचाना और उन्हें जागरूक करना भी इनके कार्यक्षेत्र में आता है. वहीं आशा संस्था के अजय भगत ने बताया कि उनकी संस्था इस समस्या के निपटारे के लिए अभी प्रदेश के तीन जिलों रांची, खूंटी और सरायकेला में कार्यरत है. जहां किशोरी समूह और निगरानी कमेटी के जरिये वे लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं. बैठक, अभियान और जनजागरूकता कार्यक्रम के जरिये वे लोगों को इस बारे में बताने और समझाने का प्रयास कर रहे हैं. संस्था यह प्रयास कर रही है कि पंचायत स्तर पर इस समस्या से लड़ने के उपाय किये जायें. एसएक्सबी फाउंडेशन के सत्यप्रकाश ने बताया कि ट्रैफिकिंग की शिकार युवतियों के साथ कई बार महिला द्वारा ही मारपीट किये जाने के मामले सामने आते हैं. गरीबी और जानकारी के अभाव में यह लड़कियां कुछ कर भी नहीं पाती हैं. इसलिए छुड़ाये जाने के बाद भी इनका पुनर्निवास एक बड़ी समस्या है, जिससे लड़ने के लिए हमारी संस्था पंचायत स्तर पर जनजागरूकता के काम में जुटी है.                        
वहीं महिलाओं की संस्था महिला सामाख्या की जिला साधनसेवी अंशु एक्का ने बताया कि प्रदेश के 11 जिलों में हम काम कर रहे हैं. हमारे सामने जो मामले आये हैं, उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मात्र गरीबी के कारण ही लड़कियां ट्रैफिकिंग का शिकार नहीं बनती हैं, बल्कि आधुनिकता की चकाचौंध उन्हें इसके लिए विवश करती है. मांडर ब्लॉक के गोरेगांव के हर घर की लड़कियां काम के लिए बाहर गयीं हैं, जबकि इस गांव के लोग साधन संपन्न हैं. ट्रैफिकिंग के कारण हिंसा का शिकार बन रहीं युवतियों के बचाव के लिए सामाख्या यह प्रयास कर रह रही है कि जो भी किशोरी गांव से बाहर जाती है. पंचायत में उनका रजिस्ट्रेशन हो. ग्रामसभा में इस बात की पूरी जानकारी दी जाये कि 18 वर्ष से अधिक की कितनी लड़कियां गांव से बाहर गयीं हैं, किसके साथ गयीं और वहां जाकर कहां रहेंगी. अब लोगों में इस बात को लेकर चेतना भी जागृत हो गयी है. यही कारण है कि बेडो ब्लॉक के खडदेरी और शेरो बिहडो टोली गांव के लोग अपनी 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को बाहर नहीं भेज रहे हैं. सामाख्या अपनी महिला समूह के जरिये जागरूकता कार्यक्रम चला रही है. वीडियो शो भी दिखाया जा रहा है.
घरेलू हिंसा
झारखंड एक ऐसा प्रदेश है, जहां की महिलाएं आर्थिक रूप से न सिर्फ सशक्त हैं, बल्कि पूरे परिवार का बोझ भी उठाती हैं. बावजूद इसके उसके साथ मारपीट आम बात है. घर के कामकाज में कोई गलती हो जाने पर या पारिवारिक विवाद होने पर भी उसके साथ मारपीट की जाती है. अकसर यह देखा गया है कि नवविवाहिता को उसके ससुराल वाले और वृद्ध माता को उसकी संतान प्रताड़ित करती है. आर्थिक रूप से सबल होने के बाद भी झारखंडी महिलाओं का अपनी कमाई पर हक नहीं है. पूरा दिन खटकर शाम को वह जब पैसे कमाकर घर लौटती है, तो उसका पति उससे दारू पीने के लिए पैसे मांगता है. इनकार करने पर उसके साथ मारपीट करता है और इसे वह अधिकार समझता है और महिलाएं इसे अपनी नियति. जब विवाद हद से ज्यादा बढ़ जाता है तब भी महिलाएं अपने पति या पुत्र के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती हैं. उनकी यही कोशिश रहती है कि किसी तरह विवाद न बढ़े और उनका परिवार बना रहे.
समस्या का निवारण
इस समस्या के समाधान हेतु यह जरूरी है कि महिलाओं को इस बात की जानकारी हो, कि उसके साथ जो मारपीट की जा रही है वह गलत है और समाज की एक इकाई के रूप में ऐसा किया जाना अपराध है. इसके लिए सबसे जरूरी है महिलाओं का जागरूक होना. महिला सामाख्या और आशा जैसी संस्थाएं महिलाओं को इस संबंध में जागरूक करने में जुटीं हैं. बैठक, प्रशिक्षण, कॉउसिलिंग और नारी अदालत के जरिये वह नारी को जागरूक कर रही है. घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम की जानकारी भी उन्हें दी जा रही है.
यौन हिंसा
झारखंड में महिलाओं के साथ यौन हिंसा आम बात है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यौन हिंसा के लिए कहीं न कहीं महिलाएं भी जिम्मेदार हैं. किशोरावस्था में ग्रामीण और शहरी दोनों जगह की युवतियां कई बार अपनी मर्जी से अपने साथी के साथ सहवास करती हैं और आगे चलकर यही संबंध उनके लिए परेशानी का सबब बन जाता है. अकसर यह देखा गया है कि भविष्य में शादी करने का आश्वासन देकर युवतियों के साथी उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन बाद में वे मुकर जाते हैं, कई बार तो गर्भ ठहर जाने के बाद वे इस बात से ही इनकार कर देते हैं कि उनका उक्त लड़की से किसी तरह का कोई संबंध था.

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ग्रामीण समाज इस तरह के मामलों पर ज्यादा तवज्जो नहीं देता और मामले को दबाने का प्रयास करता है. इस स्थिति में पीड़ित लड़की का मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरीके से शोषण होता है. कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि छोटी बच्चियों को बहला-फुसलाकर उनके सगे-संबंधी और पड़ोसी भी उनके साथ बलात्कार करते हैं. बलात्कार की घटनाओं को लेकर झारखंड का समाज आज भी संवेदनाशून्य है और गांवों में तो लोग इसपर बात तक नहीं करना चाहते. अगर पीड़ित लड़की और उसका परिवार पंचायत तक शिकायत लेकर पहुंचता भी है, तो पंचायत बलात्कारी से ही उसकी शादी करा देने का फरमान जारी कर देती है. यह स्थिति न सिर्फ चौंकानेवाली है, बल्कि उस महिला के लिए जीवन भर के दंड के समान है.
समस्या का निवारण
महिलाओं को यह समझाना होगा कि जब कोई उन्हें यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित करे, तो उन्हें इसके लिए मना करना चाहिए. उन्हें पहले यह बात समझ लेनी चाहिए कि जो व्यक्ति उन्हें शादी का आश्वासन दे रहा है, वह विश्वास करने योग्य है कि नहीं इस बात का पक्का भरोसा कर लें. साथ ही उन्हें इस बात की जानकारी भी होनी चाहिए कि पोस्को एक्ट के अनुसार अगर 18 वर्ष से कम के युवा अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो वे भी कानून की नजर में दोषी माने जाते हैं, इसलिए युवतियों को इस कानून की जानकारी होनी चाहिए. इसके साथ ही युवक और युवतियों को स्कूल में सेक्स की भी जानकारी देनी चाहिए, ताकि वे जिज्ञासा वश कोई गलती न कर बैठें. जहां तक बात बलात्कार जैसे अपराध की है, तो इसके लिए दोषी पुरुष को कठोर सजा दिये जाने के साथ ही समाज की सोच में यह बदलाव लाना भी आवश्यक है कि एक स्त्री का शरीर उसकी संपत्ति है और वह इस मामले में स्वतंत्र है कि वह उसके साथ संबंध बनायेगी अथवा नहीं.
डायन बिसाही व संपत्ति विवाद की आड़ में हिंसा
झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर होने वाली हिंसा में अबतक 1312 महिलाओं की जान जा चुकी है. आदिवासी समाज में व्याप्त अंधविश्वास के कारण वैसी महिलाएं जो अकेली और कमजोर हैं या फिर जिनका पुरुष साथी कमजोर है, उन्हें समाज डायन करार देकर उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज, सार्वजनिक अपमान और उनकी हत्या तक करने में गुरेज नहीं करता है. जब भी गांव में किसी की मौत हो जाती है या फिर किसी के पशु की मौत हो जाती है, तो गांव वाले ओझा से संपर्क करते हैं और वही ओझा किसी महिला को डायन करार देता है. कई बार किसी महिला की संपत्ति हड़पने के लिए भी उसे डायन करार दिया जाता है. चूंकि आदिवासी समाज में लड़कियों को संपत्ति पर अधिकार नहीं दिया गया है, इसलिए भी अकेली महिला की संपत्ति हड़पने के लिए उसे डायन करार दिया जाता है.
समस्या का निवारण
हालांकि सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए डायन प्रथा निषेध अधिनियम 2011 बनाया है, बावजूद इसके डायन बताकर महिलाओं का शोषण जारी है. चूंकि इस अधिनियम में कई खामियां हैं, इसलिए भी इस समस्या का निवारण नहीं हो पा रहा है. महिला आयोग ने सरकार के समक्ष इस अधिनियम में संशोधन की सिफारिश की है, लेकिन अभी तक उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है.
महिला के प्रति हिंसा समाज में मौजूद एक ऐसी समस्या है, जिसकी शिकार हर वर्ग की महिला है, फिर चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण, बच्ची हो या कोई वृद्धा. इस समस्या से निपटने के लिए समाज की सोच में बदलाव तो जरूरी है ही, महिलाओं को खुद जागरूक और सतर्क रहने की भी जरूरत है. कोई भी कानून या अधिनियम आपकी रक्षा तभी कर सकता है, जब आप उनका समझदारी के साथ प्रयोग करें और अपने हक के लिए जागरूक रहें. जिस दिन यह स्थिति बनेगी, यह कहने की जरूरत नहीं कि महिला हिंसा पर लगाम कसेगी.

महिला सामाख्या के पास अप्रैल 2009 से मार्च 2013 तक महिला हिंसा के दर्ज मामले
   नारी अदालत द्वारा निपटाई गयी लिखित शिकायत -437, सुलझाये गये 382
   महिला समूह द्वारा निपटाई गयी लिखित शिकायत -263, सुलझाये गये184
   मौखिक शिकायत पर सामाख्या द्वारा निपटाये गये मामले-500
महिला आयोग के पास वर्ष 2010 से नवंबर 2012 तक दर्ज मामले
   कुल दर्ज मामले : 1623
   जिनका निपटारा हो चुका है : 749
   विचाराधीन मामले : 874
   दर्ज मामलों का ब्यौरा
   यौन हिंसा : 48
   घरेलू हिंसा 83
   महिलाओं के प्रति हिंसा :247
   संपत्ति विवाद : 34
   डायन बिसाही :10
   जान का खतरा : 18
   न्याय संबंधी : 80
   अपहरण (ट्रैफिकिंग से संबंधित) : 17
   बहुविवाह : 7
   हत्या संबंधी : 5
   दलित उत्पीडन : 1
   अन्य 5
1991 से  2000 मार्च तक डायन बताकर मारी गयी युवतियां
(उत्तर दक्षिण छोटानागपुर, पुलिस महानिरीक्षक, रांची)
कुल हत्या – 522

स्मिता गुप्ता (स्टेट हेड, महिला सामाख्या) : आज के परिदृश्य में हर आयुवर्ग और क्षेत्र की महिलाएं हिंसा का शिकार हैं. आज हमारे सामने घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, संपत्ति विवाद, ट्रैफिकिंग, अपहरण और बलात्कार के कई मामले आते हैं, जिनसे निपटने के लिए हम काम कर रहे हैं. अगर महिलाएं खुद भी जागरूक हों, तो स्थिति काफी बदल सकती है.

आशा संस्था द्वारा वर्ष 2000 में किये गये एक सव्रे के अनुसार
जिला   प्रखंड   पंचायत गांव   चिह्न्ति महिला  चिह्न्ति ओझा
रांची      07     62     76     65     08
बोकारो         07     38     78     44     06
पू0 सिंहभूम     07     44      83   41     69
देवघर 06     87     98    26     04
कुल              27     231    332    176    87

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