Tuesday, October 11, 2016

राजस्थानी कविता

तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव।
घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव!

जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन।
'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन।।

चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म।
चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म।।

सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ।
एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ।।

दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर।
रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर।

दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न।
पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न।।

रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग।
थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग।।

म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल।
चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल!

जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ।
सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात।।

म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल।
एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ।।

दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट।
एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट।।

पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान।
माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान।।

माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान।
एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान।।

थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप।
तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप।।

आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ।
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ।।
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जरणी जणै तो रतन जण, कै दाता कै सूर।

नींतर रहजै बांझड़ी, मती गमाजै नूर।।
माई, ऐड़ा पूत जण, जेड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै सांप।।
मीठो बोल्यां मन बधै, मोसौ मार्यां बैर।
मीठा बोलने से मन बढ़ता है, ताना मारने से बैर।
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा
बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा।।
मतीरो भांणा में आयां पछै सासरा में मती-रो।
मतीरा थाल में आ जाय तो फिर ससुराल में मत रहो।
कहावत है कि जब दामाद के थाल में मतीरा आ जाय तो उसे वहां नहीं रहना चाहिए। सामंती शासन में जिस व्यक्ति को सेवामुक्त करना होता उसे मतीरा थमा दिया जाता। वह तुरंत सोच लेता कि उसे नौकरी से निकालने का आदेश मिल गया है।

घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखांण।
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पांण।।
घड़ै कूंभार, बरतै संसार।
घड़े कुम्हार, बरते संसार।
कलाकृति का सृष्टा तो एक ही होता है, पर उसका आनन्द लेने वाले बहुतेरे।
बरसण लाग्या सरकणा, भीजण लागी भींत।
ऊंठ सरिसा बैयग्या, दाळ रो सुवाद आयो ई कोयनीं।।

(2)
गुवाड़ बिचाळै पींपळी, म्हे जाण्यो बड़बोर
लाफां मार्यो घेसळो, छाछ पड़ी मण च्यार।
लुगायां, कांदा चुगल्यो , चीणां री दाळ-सा।।

(3)
भूंगर चाल्यो सासरै, सागै च्यार जणां।
भली जिमाई लापसी, वा रै कस्सी डंडा।।

(4)
भिड़क भैंस पींपळ चढी, दोय भाजग्या ऊंठ।
गधै मारी लात री, हाथी रा दोय टूक।
लुगायां, लाठी ल्याओ , गूदड़ै में डोरा घालां।।

(5)
चूल्है लारै के पड़्यो, म्हे जाण्यो लड़लूंक।
पूंछ ऊंचो कर'र देखां, तो टाबरां री माय।।

(6)
चरड़-चरड़ फळसो करै, फळसै आगै दो सींग।
आगै जाय'र देखूं तो, कुतड़ी पाल्लो खाय।
चरणद्यो बापड़ी नै, गाय री जाई है।।

(7)
गुवाड़ बिचाळै गोह पड़ी, म्हैं जाण्यो गणगौर।
पूंछड़ो ऊंचो कर'र देखूं तो, दीयाळी रा दिन तीन ही है।।
आज रो औखांणो

मूंड मुंडायां तीन गुण, मिटी टाट री खाज।
बाबा बाज्या जगत में, खांधै मैली लाज।।

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