चर्चा करें समूह
में , साझा समाज ज्ञान.
अपनेपन से आपका,
स्वागत है श्रीमान..
अपनी अपनी सब कहें, अपनी अपनी सोच।
एक दूजे की न सुनते, लड़ा रहे हैं चोच।।
एक दूजे की न सुनते, लड़ा रहे हैं चोच।।
स्वागत
है हे मित्रवर, प्यारे
मित्र मनोज.
सुंदर
दोहे आपके, वाणी में
है ओज..
भागा
भागा आ गया सूनी आपकी टेर.
क्षमा
करें श्रीमान जी, हुई मुझे
भी देर.
दोहे लघु
गुरु में बंधे, तेईस अंग
प्रकार.
चार चरण
में सोहते, लघु धारे
आकार..
निम्नलिखित
है लिंक जो, धारे इसका
ज्ञान,
शीघ्र
वहाँ पर आइये, स्वागत
है श्रीमान ..
आया हूँ अति देर
से, अम्बरीष श्रीमान|
शिशु हूँ मैं इस
मंच का,मुझ पर भी दें ध्यान||
दोहों की महिमा
अगम,अकथ अलौकिक तात|
हर प्रकार जानूँ
नहीं,कैसे हो अब बात?
मेरा एक अनुरोध
है,आदरणीय श्रीमान|
एक अलग आलेख में,दोहों का संधान||
धीरे धीरे आ रहा,समझ बहुत कुछ किन्तु|
मोटी बुद्धि है
मेरी,इसमें बहुत परन्तु||
चल-बल,श्येन,करभ तथा मरकट और मंडूक|
नर प्रकार से भी
अधिक,क्या कुछ इनका रूप?
स्वागत
है हे अश्विनी, अग्रज
रूप समान.
बन्दा भी
विद्यार्थी, क्या
बांटेगा ज्ञान..
मुझे लगा
यह अति मधुर ,सादर हे
अम्बरीष ,
ज्ञान
मिले कछु मुझे भी ,देहु
अनुज आशीष
दोहा सच का मीत
है, दोहा गुण की खान.
दोहे की महिमा
अगम, दोहा ब्रह्म समान ..
सत्य कहा प्रभु आपने, स्वीकारें
आभार.
समाज में चर्चा करें, ऐसा हो व्यवहार..
समाज में चर्चा करें, ऐसा हो व्यवहार..
बात आपकी
मान के, कर दोहे
में बात,
जान ही
अब जायेंगे, बना रहे
बस साथ,
वाह वाह भाई मेरे, दोहे में की
बात.
यह दोहा ईनाम में, लो अब मेरे भ्रात..
यह दोहा ईनाम में, लो अब मेरे भ्रात..
प्रथम आज प्रवेश हुआ, मिला आपका साथ।
लो यह दोहा बन गया, बातों ही में बात।।
लो यह दोहा बन गया, बातों ही में बात।।
प्रथम
दिवस आया यहाँ, मिला
आपका साथ.
लो यह
दोहा बन गया, खिला
हमारा माथ..
जो अच्छे इन्सान है, जो काबिल फनकार.
ऊपर वाले तुझे क्यों, है उनकी दरकार?
निश्छल निर्मल मन रहे, विनयशील विद्वान्!
सरस्वती
स्वर साधना, दे
अंतस सद्ज्ञान!!
छंद
सहज धुन में रचें, जाँचें
मात्रा भार!
है
आवश्यक गेयता, यही
बने आधार !!
नाना भाषा-बोलियाँ, नाना भूषा-रूप.
पंचतत्वमय व्याप्त है, दोहा छंद अनूप.
पंचतत्वमय व्याप्त है, दोहा छंद अनूप.
भाषा भाव
विचार को, करे शब्द से व्यक्त.
उर तक उर की चेतना, पहुँचे हो अभिव्यक्त.
उर तक उर की चेतना, पहुँचे हो अभिव्यक्त.
उच्चारण
हो शुद्ध तो, बढ़ता काव्य-प्रभाव.
अर्थ-अनर्थ न हो सके, सुनिए लेकर चाव.
शब्दाक्षर के बोलने, में लगता जो वक्त.
वह मात्रा जाने नहीं, रचनाकार अशक्त.
हृस्व, दीर्घ, प्लुत तीन हैं, मात्राएँ लो जान.
भार एक, दो, तीन लो, इनका क्रमशः मान.
अर्थ-अनर्थ न हो सके, सुनिए लेकर चाव.
शब्दाक्षर के बोलने, में लगता जो वक्त.
वह मात्रा जाने नहीं, रचनाकार अशक्त.
हृस्व, दीर्घ, प्लुत तीन हैं, मात्राएँ लो जान.
भार एक, दो, तीन लो, इनका क्रमशः मान.
(1)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
(2)
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन
(3)
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल
(4)
भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म
भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्म
बेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म
(5)
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार
(6)
भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम
भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम
(7)
ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास
सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास
ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास
सर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास
(8)
हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान
हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान
(9)
दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप
दूध पिलाये हाथ जो डसे उसे भी साँप
दुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप
(10)
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल
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