Thursday, October 13, 2016

रैगर समाज की दुर्दशा के लिये जिम्मेदार कौन ?


रैगर समाज विद्वानो, ऋषि मुनियों और गुरुओं का गौरवशाली समाज रहा है । इतिहास गवाह है कि रैगर समाज ने भारत के लगभग हर क्षेत्र मे प्रतिनिधित्व किया है। लेकिन आज रैगरों की स्थिति बहुत नाजुक हैं । स्वाभिमानी रैगरों को आज गांवों में अपना स्वाभिमान बचाना कठिन हो रहा है । परस्पर ईर्ष्या, द्वेष, दंभ, भेदभाव और खोखले अहंकार ने रैगरों को पतन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है । रैगर समाज की स्थिति में थोड़ा-बहुत मात्रात्मक परिवर्तन हुआ भी है तो उसका कारण सामाजिक चेतना में हुआ मात्रात्मक विकास है ।
अमीरी और गरीबी के बीच की खाई, समाज में स्वयं को उच्च मानने का दंभ और हठ, दहेज का लालच आदि रैगरों को संगठित करने की दिशा में भीषण बाधायें हैं ।
यद्यपि देश भर में अनेक रैगर समाज के सगठन सामाजिक कल्याण के कार्यों में लगे हुये हैं । प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन भी किया जाता हैं धर्मगुरु स्वामी ज्ञान स्वरुप जी महाराज व त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम लक्ष्य जी की जयंती एवं अनेक सामाजिक मांगलिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं ।
अपने व्यक्तिगत एवं राजनैतिक मत-मतांतरों से उपर उठकर रैगर समाज के व्यापक कष्टों को ध्यान में रखते हुये सामाजिक चेतना के तहत हम अभी तक पूर्णत: संगठित नहीं हो पाये हैं । हमारे समाज के नेता ही जब मंच से भाषण देने के बाद अपने सामाजिक दायित्व को भूल जाते हैं और समाज में स्वयं शोषण को प्रोत्साहन देने लगते हैं तो फिर समाज का विश्वास संगठनों से उठने लगता है । यही हमारी एकता का बड़ा रोड़ा है ।
कथनी और करनी की समानता के बिना विश्वास अर्जित करना कठिन होता है । चुनाव के दौरान रैगरों के मतों का कुछ संगठन इस्तेमाल करते हैं किंतु फिर रैगरों के हितों की अनदेखी करते हैं ।
रैगरों के वोट बैंक का लाभ उठाकर फिर रैगरों की खिल्ली उड़ाई जाती है । रैगरों का विरोध खुलेआम किया जाता है, रैगर भी रैगर विरोधियों के सुर-में-सुर मिलाने लगते हैं । दूसरे समाज और बिरादरियों के संगठन से जुड़े लोग देश में केवल रैगर समाज को ही अछूत समाज मानते हैं ।
साम्प्रदायिक सोच और रैगर चेतना को अलग-अलग करके समाज और राष्ट्र के सामने रखने की आज आवश्यकता है । बहुसंख्यक रैगर गाँवों में रहते है और स्वर्ण भूस्वामियों के बर्बर सामन्ती उत्पीड़न के शिकार है । राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा अन्य राज्यों में चुन-चुनकर रैगरों की हत्यायें, अपहरण तथा रैगरों की कन्याओं के साथ बलात्कार और पूरे परिवार की हत्या जैसी जघन्य दर्दनाक घटनाओं पर भी शासन, प्रशासन, जनता और रैगर समाज का मौन मन को पीड़ा से भर देता है । रैगरों के स्वाभिमान को कुचलता देखकर समाज के तथाकथित कर्णधार जुल्म के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाते, यह शर्मनाक है ।
हमारे मतों से चुनकर गये नेता चुपचाप तमाशा देखते हैं और रैगरों के उपर इरादतन अन्याय किया जाता है । गरीब, असहाय और निरीह रैगरों के बच्चों की शिक्षा, कन्या विवाह, पालन-पोषण और उनके भविष्य की सुरक्षा के लिये रैगर संगठनों को आगे आना चाहिये ।
अखिल भारतीय रैगर महासभा और दिल्ली रैगर पंचायत इस दिशा में सक्रिय है । रोजगार की स्थिति इतनी दयनीय है कि निजीकरण के कारण रैगर प्रतिभायें पढ़-लिखकर मजदूर बनने के लिये मजबूर हैं । श्रमिको का शोषण ही आर्थिक शोषण है। हमे आर्थिक शोषण से सुरक्षा जैसे अन्य सभी मुद्दों पर तार्किक और तथ्यपरक ढंग से सोच-विचार किया जाना चाहिए। अतर्क-कुतर्क और अन्धभक्ति से किसी का भला नहीं हो सकता।
समय रहते रैगरों को चेतना चाहिए ताकि बाद में पछताना न पड़े । समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में रैगर चेतना का अभाव खलता है । अपने जातीय गौरव और इतिहास की रक्षा का भाव भी नई पीढ़ी में दिखाई नहीं देता ।
सेक्यूलर होने का अर्थ सब धर्म और जातियों का सम्मान करना तो है किंतु ये कौन सा सेक्यूलरवार प्रगतिशीलता या आधुनिकता है कि हम अपने गौरवशाली इतिहास और परम्परा को सबसे अपमानित, तिरस्कृत और उपेक्षित होते देखकर भी मौन है । अपने स्वाभिमान को खोकर हम कुछ नहीं पा सकते ।



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